दलाई लामा का दावा, महात्मा गांधी चाहते थे जिन्ना बनें PM, मगर नेहरू ने नहीं मानी बात
Advertisement

दलाई लामा का दावा, महात्मा गांधी चाहते थे जिन्ना बनें PM, मगर नेहरू ने नहीं मानी बात

दलाई लामा ने दावा किया कि यदि महात्मा गांधी की जिन्ना को पहला प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा को अमल में लाया गया होता तो भारत का बंटवारा नहीं होता.

दलाई लामा (फाइल फोटो)

पणजी : तिब्बत के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा ने कहा कि महात्मा गांधी चाहते थे कि मोहम्मद अली जिन्ना देश के शीर्ष पद पर बैठे, लेकिन पहला प्रधानमंत्री बनने के लिए जवाहरलाल नेहरू ने ‘आत्म केंद्रित रवैया’ अपनाया. दलाई ने दावा किया कि यदि महात्मा गांधी की जिन्ना को पहला प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा को अमल में लाया गया होता तो भारत का बंटवारा नहीं होता.

प्रजातांत्रिक प्रणाली होती है बेहतर- दलाई लामा
गोवा में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए दलाई लामा ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि सामंती व्यवस्था के बजाय प्रजातांत्रिक प्रणाली बहुत अच्छी होती है. सामंती व्यवस्था में कुछ लोगों के हाथों में निर्णय लेने की शक्ति होती है, जो बहुत खतरनाक होता है.’’

पंडित नेहरू ने स्वीकार नहीं की गांधी की इच्छा!
उन्होंने कहा, ‘‘अब भारत की तरफ देखें. मुझे लगता है कि महात्मा गांधी जिन्ना को प्रधानमंत्री का पद देने के बेहद इच्छुक थे. लेकिन पंडित नेहरू ने इसे स्वीकार नहीं किया.’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि स्वयं को प्रधानमंत्री के रूप में देखना पंडित नेहरू का आत्म केंद्रित रवैया था. यदि महात्मा गांधी की सोच को स्वीकारा गया होता तो भारत और पाकिस्तान एक होते.’’

कभी-कभी गलतियां कर देते थे नेहरू-दलाई लामा
उन्होंने कहा, ‘‘मैं पंडित नेहरू को बहुत अच्छी तरह जानता हूं, वह बेहद अनुभवी और बुद्धिमान व्यक्ति थे, लेकिन कभी-कभी गलतियां हो जाती हैं.’’ जिंदगी में सबसे बड़े भय का सामना करने के सवाल पर आध्यात्मिक गुरू ने उस दिन को याद किया जब उन्हें उनके समर्थकों के साथ तिब्बत से निष्कासित कर दिया गया था.

तिब्बत, चीन की समस्या पर दिया जोर
उन्होंने याद किया कि कैसे तिब्बत और चीन के बीच समस्या बदतर होती जा रही थी. चीन के अधिकारियों का रवैया दिन ब दिन अधिक आक्रामक होता जा रहा था. उन्होंने याद किया कि स्थिति को शांत करने करने के उनके तमाम प्रयासों के बावजुद 17 मार्च 1959 की रात को उन्होंने निर्णय किया वह यहां नहीं रहेंगे और वह निकल आये.

शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने उठाए सवाल, 'जो सम्मान दलाई लामा को है, वह शंकराचार्य को नहीं'

‘‘दलाई लामा नाम की संस्था’’ पर जताई चिंता
दलाई लामा ने कहा कि ‘‘दलाई लामा नाम की संस्था’’ अब राजनीतिक रूप से प्रासंगिक नहीं रह गई है और यह फैसला तिब्बत के लोगों को करना है कि यह पुरानी परंपरा जारी रहनी चाहिए, या नहीं. तिब्बती आध्यात्मिक गुरू ने कहा कि चीन सरकार इस संस्था के बारे में राजनीतिक कारणों को लेकर उनकी तुलना में कहीं अधिक चिंतित है.

गौरतलब है कि तिब्बत के लोगों ने आध्यात्मिक गुरू को दलाई लामा की उपाधि दी है. यह उपाधि उन लोगों को दी जाती है जो गेलुग स्कूल के सर्वाधिक महत्वपूर्ण बौद्ध भिक्षुओं में एक माने जाते हैं. यह स्कूल तिब्बती बौद्ध मतावलंबियों का सबसे नया स्कूल है. चौदहवें दलाई लामा ने गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘1969 में ही मैंने औपचारिक रूप से यह बयान दिया था कि दलाई लामा की यह संस्था जारी रहनी चाहिए या नहीं, यह फैसला करना तिब्बत के लोगों पर निर्भर है.’’

1959 में किया था भारत में पलायन
गौरतलब है कि 1959 में दलाई लामा भारत पलायन कर गए थे. दलाई ने कहा, ‘‘ 2011 में वह राजनीतिक जिम्मेदारी से पूरी तरह से मुक्त हो गए. अब निर्वाचित राजनीतिक नेतृत्व पूरी जिम्मेदारी निभा रहा है, मैं उनके फैसलों में शामिल नहीं होता.’’वर्ष 1989 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए गए आध्यात्मिक गुरू ने कहा, ‘‘अब, दलाई लामा नाम की संस्था राजनीतिक रूप से प्रासंगिक नहीं है.’’

दलाई लामा भविष्य के लिए नवंबर में बैठक
भविष्य के दलाई लामा के बारे में उन्होंने कहा कि विभिन्न बौद्ध परंपराओं के सभी नेता नवंबर में तिब्बत में बैठक करते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘इस नवंबर हम फिर से बैठक कर रहे हैं. पहले की बैठकों में उन लोगों ने यह फैसला किया था कि जब मैं करीब 90 साल का हो जाउंगा, तब नेताओं का समूह भविष्य के दलाई लामा के बारे में फैसला करेगा.’’

Trending news