देश की राजधानी में करीब एक सप्ताह से नेत्रहीन छात्र सड़क पर सोने को मजबूर हैं. मामला पश्चिमी दिल्ली जनकपुरी के वीरेंद्र नगर का है. जहां पिछले 17 सालों से चल रहे ब्लाइंड हॉस्टल (नेत्रहीन छात्रावास) को डीडीए के बुल्डोजर ने 15 दिसंबर को गिरा दिया.
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नई दिल्लीः जिस दिल्ली शहर में इस समय कड़ाके की ठंड के चलते लोग अपने घरों से बाहर निकलने के लिए भी कई बार सोचते है, उसी दिल्ली में 20 नेत्रहीनों को डीडीए (दिल्ली विकास प्राधिकरण) ने बेघर कर सड़क पर सोने को मजबूर कर दिया है. देश की राजधानी में करीब एक सप्ताह से नेत्रहीन छात्र सड़क पर सोने को मजबूर हैं. मामला पश्चिमी दिल्ली जनकपुरी के वीरेंद्र नगर का है. जहां पिछले 17 सालों से चल रहे ब्लाइंड हॉस्टल (नेत्रहीन छात्रावास) को डीडीए के बुल्डोजर ने 15 दिसंबर को गिरा दिया.
यह हॉस्टल लुईस वेल्फेयर प्रोग्रेसिव एसोसिएशन द्वारा संचालित किया जा रहा था और इसमें करीब 20 लोग रहते हैं जिनमें से ज्यादातर दिल्ली यूनिवर्सिटी और पास के ही सर्वोदय विद्यालय के छात्र हैं. इस हॉस्टल के केयरटेकर कमलेश कुमार (खुद नेत्रहीन) ने बताया है कि डीडीए पार्क के पास बनें इस हॉस्टल में 15 दिसंबर को सुबह 11 बजे डीडीए के अधिकारी पुलिस के साथ पहुंचे और उसे गिरा दिया.
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उन्होनें कहा कि प्रशासन ने उन्हें इस कार्रवाई से पहले किसी प्रकार का नोटिस भी जारी नहीं किया था. ना हीं उन्हें इतना समय दिया कि वह अपने सामान को वहां से हटा सके. कमलेश ने बताया कि, 'डीडीए के अधिकारियों ने हॉस्टल की बिल्डिंग को गिराने से पहले केवल बड़े सामान को ही बाहर निकाला जिनमें बैड, फ्रिज और गैस सिलेंडर था. बाकि चीजें अंदर ही थीं. उन्होंने बिल्डिंग को गिरा दिया.'
छात्रों का दर्द
इस हॉस्टल में रहने वाले डीयू ओपन लर्निंग के छात्र आर्यन कुमार ने कहा कि, 'जब मैं वापस लौटा तो बिल्डिंग गिराई जा चुकी थी. मेरी अपनी एडमिशन स्लिप और किताबें खो गई है, कुछ और नोट्स, मार्कशीट और गैजेट्स भी लापता हैं.' लेकिन डीडीए के एक अधिकारी का इस मामले में कहना है कि हमने कार्रवाई से पहले ही सूचना दे दी थी. 'हम लोग हॉस्टल मैनेजमेंट के साथ अप्रैल महीने से संपर्क में थे, इस कार्रवाई से पहले हमने चार बार उन्हें इन्फॉर्म किया है.
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मोहित राणा नाम के छात्र ने कहा कि डीडीए को पहले हमारे पुनर्वास का प्रबंध करना चाहिए था. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. खुले में हम लोग एक सप्ताह से रह रहे है, खुले के चलते हमारा गैस स्टोव भी चोरी हो गया है. एक छात्र ने कहा कि डीडीए की जमीन पर हर रोज नई-नई अवैध कॉलोनियां बन रही हैं लेकिन अमीर लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है.
डीडीए का कहना है
इस कार्रवाई से एक दिन पहले भी हमने मौखिक रूप से बता दिया था. डीडीए ने कहा कि हमने इस कार्रवाई की लिखित सूचना इसलिए नहीं दी थी क्योंकि लिखित सूचना पर हॉस्टल मैनेजमेंट कोर्ट से स्टे ऑर्डर ले आता और ऐसे में हमें अतिक्रमण हटाने में दिक्कत होती है. 'उन्होंने कहा कि हम इन नेत्रहीन बच्चों के प्रति संवेदना प्रकट करते हैं लेकिन यह कार्रवाई मैनेजमेंट के आधार पर की गई है, छात्र किसी भी सरकारी छात्रावास में रह सकते है, इन्हें सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर उसपर हॉस्टल चलाने की क्या आवश्यकता है?
छात्रों के लिए अस्थाई व्यवस्था
छात्रों का कहना है कि अब डीडीए के अधिकारी इस जमीन को खाली करने के लिए कह रहे हैं, उन्होंने हमें DUSIB (दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड) के टेंटों में जाएं या रैन बसेरा में जाकर ठहरें. कक्षा 12वीं के छात्र दीपक कुमार कहते है कि नेत्रहीन छात्र एक दूसरे पर निर्भर होते है, उनके लिए रैन बसेरा में ठहरना मुश्किल भरा है. उन्होंने कहा कि हमारे हॉस्टल की गिराई गई बिल्डिंग के पास ही के पार्क में DUSIB ने जो हमारे लिए अस्थाई व्यवस्था की है वहीं रुकना भी बहुत मुश्किल भरा है, क्योंकि वहां गंदगी है, पास के घरों के सीवर का पानी वहां आता है.
आपको बता दें कि यहां यह छात्रावास साल 2010 में बना था, इससे पहले इस बिल्डिंग का इस्तेमाल आंगनवाड़ी सेंटर के रूप में हो रहा था. यह आंगनवाड़ी स्लम के बच्चों के लिए थी. लेकिन साल 2010 में इसे यहां से शिफ्ट कर दिया गया था. क्षेत्रीय पार्षद ने यह जमीन फिर हमें रहने के लिए दे दी थी. इस छात्रावास के कई छात्र सिविल सर्विस और क्लार्क ग्रेड की परीक्षा में भी सफल हुए है.
क्षेत्रीय काउंसलर ने का बयान
क्षेत्रीय निगम पार्षद (काउंसलर) नरेंद्र चावला का कहना है कि हॉस्टल नेत्रहीन छात्रों द्वारा चलाया जा रहा था. यह ऐसा हॉस्टल नहीं था जिसका उद्देश्य लाभ कमाना हो, यह छात्रों द्वारा ही चलाया जा रहा था. डीडीए ने इस ठंडे मौसम में ऐसी कार्रवाई करके इन नेत्रहीन छात्रों के प्रति असंवेदनशीलता दिखाते हुए यह काम किया है.