'डियर जिंदगी' : क्‍या आपका बच्‍चा आत्‍महत्‍या के खतरे से बाहर है...
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'डियर जिंदगी' : क्‍या आपका बच्‍चा आत्‍महत्‍या के खतरे से बाहर है...

आज से नियम बनाइए, अपने बच्‍चे से हर दिन कम से कम आधा घंटा बात कीजिए.

'डियर जिंदगी' को पिछले सप्‍ताह सबसे अधिक प्रतिक्रियाएं मध्य प्रदेश और भोपाल से मिलीं. जहां एमपी बोर्ड की दसवीं और बारहवीं परीक्षाओं के रिजल्‍ट घोषित हुए हैं. शुक्रवार को नौ से अधिक बच्‍चों ने सुसाइड कर लिया. इनमें सबसे चौंकाने वाला नाम भोपाल से नमन जड़वे का है. नमन को 74 प्रतिशत अंक मिले थे. इनमें से तीन विषयों में उसे विशेष योग्‍यता मिली थी. 

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मध्य प्रदेश के प्रमुख अखबार दैनिक भास्‍कर के अनुसार पिछले पांच सालों में एमपी में 650 से अधिक बच्‍चे आत्‍महत्‍या कर चुके हैं. बच्‍चों की आत्‍महत्‍या का कोई एक कारण नहीं है. लेकिन सबसे बड़ा कारण है, आशंका 'क्‍लब' की मेंबरशिप. खराब रिजल्‍ट से बच्‍चे पिछड़ जाते हैं, उनका भविष्‍य खतरे में पड़ जाएगा.

ऐसी आंशका से बच्‍चों का जीवन हर दिन उदासी, डिप्रेशन की खाई की ओर बढ़ रहा है. बच्‍चों के दिमाग में आशंका का 'क्‍लब' बनाने वाले खास लोग उसका स्‍कूल, परिवार, पड़ोसी और रिश्‍तेदार हैं. इनमें से कोई भी अपरिचित नहीं हैं. यानी उसके अपने ही उसके सबसे बड़े दुश्‍मन हैं.

हमने बच्‍चे के माथे पर लिख दिया है कि अगर तुम कामयाब नहीं हुए तो तुम्‍हारे होने का मतलब ही खत्‍म हो जाएगा. जबकि यह पूरी तरह से झूठ है. स्‍कूलों और कोचिंग सेटर्स का बनाया और पढ़ाया झूठ. किसी से प्‍यार किसी कारण से नहीं होता. प्‍यार इसलिए होता है क्‍योंकि उससे हमें प्‍यार होता है. प्‍यार करने के लिए जिस भी दिन कारण की जरूरत पड़ जाए , मान लो कि प्‍यार है ही नहीं...

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बस यही बात बच्‍चे पर लागू करने की जरूरत है. बच्‍चा हमारा ही रहेगा भले ही वह कुछ बने या न भी बने. उसके स्‍कूल और रिजल्‍ट की नजर से उसे तौलना बंद कर दीजिए, बच्‍चे आत्‍महत्‍या करना बंद कर देंगे. 

एक समाज के रूप में भारतीय समस्‍या को तभी स्‍वीकार करते हैं, जब वह ठीक हमारे दरवाजे पर दस्‍तक दे दे. दूसरे के घर से आने वाली दर्द की चीखों को हम बस टालते रहते हैं. यह मानकर कि हमारे बच्‍चे तो बहुत समझदार हैं, वह ऐसा कर ही नहीं सकते. यह पलायन है, खुद से बोला गया सबसे खतरनाक झूठ. मनुष्‍य का मनुष्‍यता से पलायन है. अगर मेरे पड़ोसी, मित्र की पीड़ा को मैं नहीं समझ पा रहा हूं, उसके लिए मेरे पास समय नहीं है. उसके लिए बेचैनी मेरे भीतर नहीं है, तो यकीन मानिए किसी भी दिन जब आप संकट में होंगे, तो किसी के पास आपके लिए संवेदना तो दूर दो मिनट भी नहीं होंगे.

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बच्‍चे इस सदी के सबसे बड़े संकट का सामना कर रहे हैं. यह संकट हमने अपने लालच, महत्‍वाकांक्षा और बच्‍चों पर अपनी जिंदगी थोपकर खुद चुना है. इसलिए आज से नियम बनाइए, अपने बच्‍चे से हर दिन कम से कम आधा घंटा बात कीजिए, और उसे बताइए कि कोई रिजल्‍ट उससे और आपके प्‍यार के बीच बाधा नहीं है. 

घर की दीवारों, शहर के चौराहों पर लिखवा दीजिए...

कोई सपना जीवन से बड़ा नहीं होता और किसी रिजल्‍ट में आपकी जिंदगी की दिशा बदलने की शक्ति नहीं होती. रिजल्‍ट एक सरकारी स्‍टेटमेंट है, उसमें आपकी काबिलियत का टेस्‍ट लेने की क्षमता नहीं है. उसे अपने लिए चुनौती मानिए, उससे बेहतर कर दिखाने की. उसे अपने बारे में राय बताने वाला विशेषज्ञ मत बनाइए. 
उठिए और रिजल्‍ट से आगे की जिंदगी की तैयारी कीजिए. जीवन रिजल्‍ट से आगे देखने वालों को सलाम करता है, उसके आगे झुकने वालों को नहीं ...

(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)

(https://twitter.com/dayashankarmi)

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