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आप अपनी जिंदगी में जितने लोगों से मिले हैं, उनमें से कितने को आप जिंदगी से पूरी तरह संतुष्ट पाते हैं! हर हाल में खुश. मेरे पास तो बमुश्किल पांच लोग हैं, जिन्हें मैं पूरी तरह से संतुष्ट, सुखी कह सकता हूं. ऐसे संतुष्टों की प्रजाति अब विलुप्त होती जा रही है और इसके साथ ब्लड प्रेशर और चिंता हमारी रगों में दौड़ते जा रहे हैं. यह खुशी अंतर्मन से उपजती है, इसलिए इसके बाहरी कारण कम होते हैं.
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नंबर कम आए तो परेशान. अधिक आए तो परेशान कि बस दो और मिल जाते. एप्रेजल हुआ तो परेशान कि थोड़ा और हो जाता तो मज़ा ही आ जाता. बहुत अच्छा हुआ तो परेशान कि प्रमोशन आपकी प्रतिभा के हिसाब से कम हुआ. दूसरे का हो गया तो परेशान कि हमारा नहीं हुआ, उसका क्यों हुआ. असंतोष के बढ़ते 'प्रदूषण' और अति महत्वाकांक्षा के चलते जीवन में सुकून के साथ रहे संतोष और शांति नाम के परिंदे हमें छोड़कर न जाने किस जंगल की ओर मुड़ गए हैं.
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हम आज में खुश नहीं है, क्योंकि हम भविष्य और अतीत में व्यस्त हैं, पहला भविष्य की चिंता और दूसरा अतीत की जकड़न. हम भूल गए हैं कि अगर हम आज प्रसन्नता से नहीं जी रहे हैं जो हमारा अतीत तो खुद ही अप्रसन्न हो गया. और रहा भविष्य तो इस तरह की जीवनशैली से वह कभी भी प्रगतिशील नहीं हो सकेगा.
आज का विषय तर्क और विश्लेषण से अधिक संवेदना और अनुभव का है. हम हर बात को फॉर्मूले से नहीं समझ सकते. उसके लिए अनुभव की कोमलता और समय में निष्ठा की भावना जरूरी है. मेरे पास एक कहानी है, जो बचपन में गांव की सुहानी चांदनी रातों में, गर्मी की विशाल चिंतामुक्त छुट्टियों में मां सुनाती थी. ऐसी ही एक कहानी जो खुश रहने के भाव को आप तक पूरी तरह पहुंचा सकती है, बशर्ते आप अपनी समझ से अधिक अनुभव और समय की निष्ठा के प्रति समर्पित रहें.
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कहानी कुछ इस तरह है.
एक किसान था. उसके पास एक शानदार घोड़ा था. एक दिन वह अचानक बाड़ तोड़कर जंगल की ओर भाग गया. गांव वालों को जैसे ही खबर मिली, वह दुख की पोटली बांटने आ गए. उनमें से एक ने दुखी होकर कहा, 'बड़ा दुख हुआ, आपका इतना शानदार घोड़ा चला गया. इससे तो अच्छा होता आपने पिछले महीने मुझे बेच दिया होता. आपके साथ बहुत बुरा हुआ. यह बड़े ही अफसोस की बात है.'
किसान ने चिंतित हुए बिना कहा - 'शायद है.'
मुश्किल से चार दिन बीते. घोड़ा जंगल से वापस आ गया और अपने साथ चार जंगली घोड़े भी ले आया. गांव वाले फिर आए. किसी ने कहा, 'बधाई हो, यह तो बड़ी खुशी की बात है. किसान ने फिर निर्विकार भाव से कहा. 'शायद है.'
एक सप्ताह बाद ही किसान का इकलौता बेटा जंगली घोड़े की सवारी के चक्कर में अपनी दोनों टांगे तुड़वा बैठा. कम से कम एक बरस के लिए बेकार हो गया. सूचना मिलते ही पड़ोसी आए. किसी ने कहा , तुम्हारा समय ही खराब चल रहा है, वरना न जंगली घोड़े आते और न ही बेटे की टांग टूटती.
किसान ने पहले की तरह कहा, - 'शायद, चल रहा है'
किसान के बेटे की टांग टूटने के कुछ ही दिन बाद, राजा के सैनिक गांव आ धमके और गांव से सभी जवान, सेहतमंद युवाओं को सेना में भर्ती करने के लिए जबरन अपने साथ ले गए. क्योंकि पड़ोस के राज्य ने अचानक आक्रमण कर दिया और हजारों सैनिक मारे गए. इसलिए सभी को सेना में भर्ती करने का फरमान था. गांव के नौजवानों में केवल किसान का घायल बेटा बचा. गांव वाले किसान के पास आए और कहा. पता नहीं हममें से किसके बच्चे वापस लौटें. चलो, तुम्हारा बेटा तो बचा रहेगा, तुम खुशकिस्मत हो .
किसान ने हमेशा की तरह शांत और संतुष्ट भाव से कहा - 'शायद , हूं'
किसरिया ( कहानी ) समाप्त. जैसा मां कहती है.
कहानी सुनने वाले का भी भला और सुनाने वाले का भी.
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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