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नई दिल्ली: बुधवार को पंजाब में ऐसी घटना हुई, जो भारत के इतिहास में इससे पहले शायद कभी नहीं हुई. पंजाब के फिरोजपुर में प्रधानमंत्री मोदी को एक कार्यक्रम में जाना था. लेकिन रास्ते में कुछ आंदोलनकारियों ने उस सड़क को ब्लॉक कर दिया, जहां से प्रधानमंत्री गुजर रहे थे. इस दौरान प्रधानमंत्री का काफिला 20 मिनट तक खुली सड़क पर ट्रैफिक के बीच फंसा रहा और उनके सुरक्षाकर्मी सड़क खुलवाने की कोशिश करते रहे, और आखिर में जब सड़क नहीं खुली तो प्रधानमंत्री मोदी को बिना कार्यक्रम में हिस्सा लिए ही वहां से लौटना पड़ा. ये प्रधानमंत्री की सुरक्षा में एक अभूतपूर्व चूक है, जिसकी वजह से उनकी जान भी जा सकती थी. इसीलिए उन्होंने वापस आते हुए हवाई अड्डे के कर्मचारियों को ये कहा कि अपने मुख्यमंत्री को धन्यवाद देना कि मैं यहां से जिंदा लौट पाया. हमें लगता है कि पंजाब में जो कुछ भी हुआ, ये एक खतरनाक परंपरा की शुरुआत है.
बुधवार को प्रधानमंत्री के काफिले की स्थिति ऐसी थी कि उन पर कोई जानलेवा हमला हो सकता था. गाड़ी पर पथराव हो सकता था और यहां तक कि कोई आत्मघाती हमला भी हो सकता था. आइए जानते हैं कि ये महज सुरक्षा की एक चूक थी या कांग्रेस की सरकार उनका अपमान कराना चाहती थी या फिर ये उनकी हत्या की साजिश थी?
खास बात ये है कि ये जगह पाकिस्तान से सिर्फ 10 किलोमीटर दूर है और जब प्रधानमंत्री का काफिला 20 मिनट तक एक फ्लाईओवर (Flyover) पर फंसा रहा तो आसपास मौजूद सैकड़ों लोगों ने अपने मोबाइल फोन से उनका वीडियो शूट किया. बड़ी बात ये है कि इतनी पास से कोई उन्हें असलियत में भी शूट कर सकता था. भारत ने अपने दो प्रधानमंत्रियों को ऐसे ही खोया है और ये दोनों ही प्रधानमंत्री कांग्रेस के थे. इंदिरा गांधी की हत्या पंजाब की खालिस्तानी ताकतों ने की थी और राजीव गांधी की हत्या एक और आतंकवादी संगठन LTTE ने की थी. इसके बावजूद कांग्रेस इस इतिहास को भूल गई और आज कांग्रेस के ही कुछ नेता इस पूरे घटनाक्रम पर तालियां बजा रहे हैं.
सबसे बड़ी बात ये है कि इस घटना ने पंजाब की सरकार और उसकी मंशा पर बहुत खतरनाक सवाल खड़े किए हैं. हाल ही में भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच के दौरान सुरक्षा एजेंसियों को नक्सलियों की एक ऐसी चिट्ठी मिली थी, जिसमें लिखा था कि प्रधानमंत्री मोदी की हत्या ऐसे ही सड़क पर घेर कर की जाएगी और किसान आंदोलन में नक्सलियों के Footprints साफ नजर आते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिरोजपुर पहुंचने से लेकर दिल्ली लौटने तक क्या-क्या हुआ, इसे समझने के लिए पहले आपको तीन बातें समझनी चाहिए. पहली बात, प्रधानमंत्री मोदी फिरोजपुर में एक रैली करेंगे, इसका फैसला अचानक से नहीं हुआ. इस रैली का ऐलान 27 दिसंबर को यानी 11 दिन पहले ही हो गया था. दूसरी बात, प्रधानमंत्री मोदी पूरे 2 वर्षों के बाद पहली बार पंजाब आने वाले थे. इससे पहले वो नवंबर 2019 को करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन करने के लिए पंजाब आए थे और तीसरी बात, प्रधानमंत्री मोदी का ये पंजाब दौरा ऐसे समय में था, जब पिछले महीने ही किसान आंदोलन समाप्त हुआ है. इस आन्दोलन के दौरान उन्हें जान से मारने की धमकी भी दी गई थी. लेकिन इस सबके बावजूद प्रधानमंत्री आज फिरोजपुर रैली के लिए दिल्ली से रवाना हुए.
वो दिल्ली से पहले बठिंडा एयरपोर्ट पहुंचे, जहां से फिरोजपुर लगभग 130 किलोमीटर दूर है. तय कार्यक्रम के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी को पहले फिरोजपुर के हुसैनीवाला गांव में स्थित राष्ट्रीय शहीद स्मारक पर जाना था, जहां शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की समाधि है. ये जगह बठिंडा एयरपोर्ट से लगभग 140 किलोमीटर दूर है और फिर यहां से प्रधानमंत्री मोदी को रैली स्थल पर जाना था, जो इस शहीद स्मारक से 17 किलोमीटर दूर थी. प्रधानमंत्री पहले हेलिकॉप्टर से इस Memorial तक जाने वाले थे. लेकिन खराब मौसम और बारिश की वजह से उन्हें बठिंडा एयरपोर्ट पर ही कुछ देर इंतजार करना पड़ा. लगभग 20 मिनट तक इंतजार करने के बाद भी जब मौसम साफ नहीं हुआ और बारिश नहीं रुकी तो ये तय हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी सड़क मार्ग से फिरोजपुर जाएंगे.
प्रोटोकॉल के तहत जब भी प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में ऐसा कोई बदलाव होता है तो इसकी सबसे पहले जानकारी उस राज्य की पुलिस को दी जाती है. अगर पुलिस बदले हुए कार्यक्रम को लेकर सहमत होती है, तब ही प्रधानमंत्री के काफिले का कोई मूवमेंट होता है और इस मामले में भी ऐसा ही हुआ.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि बठिंडा एयरपोर्ट पर इंतजार के दौरान जब मौसम साफ नहीं हुआ तो पंजाब पुलिस के DGP को ये जानकारी दी गई कि प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से फिरोजपुर जाएंगे और उन्होंने ये भरोसा दिया कि पुलिस इस दौरान सारे सुरक्षा बंदोबस्त कर लेगी. यानी पंजाब पुलिस के DGP को इसकी जानकारी थी और उन्होंने सुरक्षा बंदोबस्त होने की भी बात कही थी. आपको बता दें कि बठिंडा एयरपोर्ट से फिरोजपुर के शहीद स्मारक पहुंचने में किसी भी गाड़ी को कम से कम 2 घंटे का समय लगता है और प्रधानमंत्री मोदी का काफिला भी समय से वहां पहुंचने वाला था. लेकिन जैसे ही वो फिरोजपुर के हुसैनीवाला पहुंचे तो एक Flyover पर उनका काफिला फंस गया.
ये Flyover रैली स्थल से लगभग 47 किलोमीटर और शहीद स्मारक से 30 किलोमीटर दूर है. प्रधानमंत्री का काफिला इस Flyover पर 15 से 20 मिनट तक फंसा रहा इतने समय में कुछ भी हो सकता था. प्रधानमंत्री की गाड़ी के आसपास जिस तरह से बसें और दूसरी गाड़ियां खड़ी थीं, उससे ये बिल्कुल साफ है कि ये प्रधानमंत्री की सुरक्षा में एक बहुत बड़ी चूक है. उस जगह की Videos में साफ दिख रहा है कि इस Flyover से कुछ दूरी पर बड़ी संख्या में किसान प्रदर्शन कर रहे थे और उनके हाथों में किसान संगठनों के झंडे थे. इनमें एक वीडियो में लोगों के हाथों में लाठी डंडे भी नजर आ रहे हैं और ये लोग नारेबाजी भी कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री का काफिला जिस Flyover पर फंसा था, उसके साथ में नीचे जो सड़क थी, वहां से भी लोगों को गुजरते हुए देखा गया. इससे पता चलता है कि पंजाब पुलिस ने इस रूट पर सुरक्षा के जरूरी बंदोबस्त भी नहीं किए थे. इस Flyover के आसपास पूरा रिहायशी इलाका है और इस दौरान लोग अपने घरों से प्रधानमंत्री की गाड़ी का वीडियो भी बना रहे थे. इनमें एक वीडियो में व्यक्ति ये बता रहा है कि प्रधानमंत्री किस गाड़ी में हैं. सोचिए, इन इमारतों में अगर कोई हमलावर छिपा होता तो क्या होता? इस वीडियो को देखने के बाद ये सवाल भी खड़ा होता है कि कहीं इस चूक के पीछे कोई साजिश तो नहीं?
इस Flyover पर 15 से 20 मिनट तक रुकने के बाद जब सुरक्षाकर्मियों ने खतरे को देखते हुए वापस बठिंडा एयरपोर्ट लौटने का फैसला किया, उस दौरान भी प्रधानमंत्री की सुरक्षा में बड़ी चूक हुई. Protocol के तहत अगर प्रधानमंत्री का काफिला Double Lane सड़क से गुजरता है तो एक तरफ का ट्रैफिक रोक दिया जाता है ताकि उनकी सुरक्षा में कोई कमी ना रहे. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बल्कि जब प्रधानमंत्री का काफिला वापस बठिंडा एयरपोर्ट लौट रहा था, उस समय उनके काफिले के साथ आम लोगों की गाड़ियां जा रही थीं.
प्रधानमंत्री जब वापस बठिंडा एयरपोर्ट लौटे तो फिरोजपुर में आयोजित उनकी रैली रद्द कर दी गई. इसकी जानकारी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने खुद लोगों को दी, जो पहले से रैली स्थल पर पहुंच चुके थे. इस रैली के रद्द होने से लगभग 43 हजार करोड़ की सरकारी परियोजनाओं का उदघाटन भी नहीं हो पाया. इनमें 669 किलोमीटर लंबा दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे था. अमृतसर से ऊना के बीच 4 लेन का एक्सप्रेसवे था और कपूरथला और होशियारपुर में मेडिकल कॉलेज की नींव रखी जानी थी. सोचिए, ये कौन लोग हैं, जो ये सरकारी परियोजनाएं नहीं चाहते?
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