अब 'नाव' बताएगी, भारत की प्रमुख नदियों में कहां से गिरता है प्रदूषण बढ़ाने वाला गंदा पानी
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अब 'नाव' बताएगी, भारत की प्रमुख नदियों में कहां से गिरता है प्रदूषण बढ़ाने वाला गंदा पानी

यह नौका यात्रा टाटा विकास केन्द्र, शिकागो विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बीएचयू), वाराणसी के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा ‘इंटरनेशनल इनोवेशन कोर’ के सहयोग से विकसित ‘वॉटर टू क्लाउड’ परियोजना का हिस्सा थी.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: वैज्ञानिकों ने पिछले सप्ताह सेंसर से लैस एक नौका से प्रदूषण वाले स्थानों का पता करने तथा वास्तविक समय में जल की गुणवत्ता जांच करने के लिए यमुना के एक हिस्से का दौरा किया. दिल्ली के निगमबोध घाट से शुरू हुई नौका यात्रा में सेंसर उन स्थानों के बारे में बता सकता है जहां गंदा पानी नदी में गिरता है. सेंसर से तीक्षणता के स्तर का मानचित्र, घुली हुई ऑक्सीजन और यौगिक पदार्थ सहित उन अन्य कारकों का पता लगाया जा सकता है जो नदी के जल को मानवों तथा जलीय जीवों के लिए अयोग्य बनाते हैं.

यह नौका यात्रा टाटा विकास केन्द्र, शिकागो विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (बीएचयू), वाराणसी के अनुसंधानकर्ताओं द्वारा ‘इंटरनेशनल इनोवेशन कोर’ के सहयोग से विकसित ‘वॉटर टू क्लाउड’ परियोजना का हिस्सा थी. यमुना में नौका से दौरा करने से कुछ दिन पहले, अनुसंधानकर्ता इस प्रणाली की क्षमता दिखाने के लिए उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी पर गये थे.

वैज्ञानिकों ने कहा कि इस परियोजना का उद्देश्य वास्तविक समय डेटा वाले सेंसरों के जरिये बेहतर जल गुणवत्ता निगरानी प्लेटफॉर्म तथा गंगा एवं यमुना सहित प्रमुख नदियों तथा महत्वपूर्ण झीलों में प्रदूषण के स्थल बताना हैं. ‘वॉटर टू क्लाउड’ परियोजना के प्रबंधक और टीम प्रमुख प्रियांक हीरानी ने कहा कि परियोजना निरंतर और वास्तविक समय में जल गुणवत्ता निगरानी प्रणाली के लाभों को तलाश करती है जो चेतावनी प्रणाली के रूप में काम करेगी.

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