Freedom of Expression: दिल्ली की एक अदालत ने भाजपा सांसद राजू बिस्ता द्वारा अपनी ही पार्टी के विधायक बिष्णु प्रसाद शर्मा के खिलाफ दायर की गई आपराधिक मानहानि याचिका को खारिज कर दिया है.
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Freedom of Expression: दिल्ली की एक अदालत ने भाजपा सांसद राजू बिस्ता द्वारा अपनी ही पार्टी के विधायक बिष्णु प्रसाद शर्मा के खिलाफ दायर की गई आपराधिक मानहानि याचिका को खारिज कर दिया है. अदालत ने अपने फैसले में साफ कहा कि विधायक ने केवल अपनी शिकायत और असंतोष को सार्वजनिक किया था जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत आता है. इसे मानहानि के रूप में नहीं देखा जा सकता. अदालत का यह फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण के रूप में देखा जा रहा है.
कोर्ट की टिप्पणी
अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) नेहा मित्तल ने अपने आदेश में कहा कि विधायक द्वारा की गई टिप्पणी यह दर्शाती है कि उन्होंने केवल उस मुद्दे पर असंतोष जताया. जिस पर सांसद बिस्ता ने कोई कार्रवाई नहीं की. कोर्ट ने कहा कि यदि इस तरह के बयान को मानहानि माना जाए तो इससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता निरर्थक हो जाएगी.
जनप्रतिनिधियों को आलोचना झेलने की आदत होनी चाहिए
न्यायाधीश ने यह भी कहा कि प्रस्तावित आरोपी (विधायक) द्वारा दिए गए बयान सांसद के आधिकारिक कार्यों और आचरण से जुड़े थे. सांसद एक जनप्रतिनिधि हैं और उन्हें अपने कार्यों पर आलोचना या सवाल झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए. यही लोकतंत्र की बुनियाद है और इसे मानहानि का मामला नहीं कहा जा सकता.
मानहानि का आरोप क्यों लगाया गया था
भाजपा सांसद राजू बिस्ता ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि विधायक बिष्णु प्रसाद शर्मा ने अप्रैल 2024 में एक प्रेस कांफ्रेंस में उनके खिलाफ ‘निराधार और अपमानजनक’ टिप्पणी की थी. सांसद बिस्ता का कहना था कि विधायक ने जल जीवन मिशन से जुड़े एक कथित घोटाले में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाकर उनकी छवि को नुकसान पहुंचाया. इसी को लेकर उन्होंने मानहानि का मामला दर्ज कराया था.
अदालत ने याचिका खारिज करने का आधार बताया
कोर्ट ने पाया कि विधायक द्वारा सांसद पर सीधे कोई भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगाया गया था बल्कि उनसे उस मामले की जांच करने की मांग की गई थी. अदालत ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति किसी मुद्दे की जांच की मांग करता है तो उसे मानहानि के दायरे में नहीं रखा जा सकता. तब तक नहीं जब तक जांच में यह साबित न हो जाए कि आरोप पूरी तरह से गलत और बेबुनियाद थे.
लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती पर जोर
अदालत के इस फैसले को लोकतंत्र के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है. अदालत ने यह संदेश दिया कि जनप्रतिनिधियों को सार्वजनिक आलोचना और सवालों का सामना करना चाहिए. यदि किसी व्यक्ति या नेता द्वारा भ्रष्टाचार के मुद्दे उठाए जाते हैं और उनकी जांच की मांग की जाती है, तो इसे किसी की मानहानि नहीं समझा जाना चाहिए.
(एजेंसी इनपुट के साथ)