सांस के गंभीर मरीज़ों के लिए AIIMS में नया इलाज, दावा - 'ठीक हो सकता है अस्थमा'
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सांस के गंभीर मरीज़ों के लिए AIIMS में नया इलाज, दावा - 'ठीक हो सकता है अस्थमा'

एम्स में ऐसे मरीज़ों के लिए ब्रॉंकियल थर्मोप्लास्टी तकनीक से इलाज शुरु किया गया है, जिन पर दवाएं बेकार हो चुकी हों और इनहेलर से भी फायदा ना हो पा रहा हो. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्लीः दमघोंटू प्रदूषण में सांस लेने की कोशिश कर रहे दमा यानी अस्थमा के मरीज़ों के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल एम्स के डॉक्टरों ने नया इलाज शुरु किया है. ब्रॉंकोस्कोपी थर्मोप्लास्टी नाम की ये तकनीक ऐसे मरीज़ों के लिए वरदान साबित हो सकती है जिन पर इनहेलर और स्टीऱॉयड दवाओं का असर न हो रहा हो. एम्स देश का पहला अस्पताल है जहां ये इलाज पूरी तरह मुफ्त उपलब्ध है. ब्रांकोस्कापी थर्मोप्लास्टी आपरेशन थिएटर में की जाने वाली प्रक्रिया है. हांलाकि इस तकनीक में सर्जरी नहीं की जाती, लेकिन एक घंटे तक चलने वाली इस प्रक्रिया में मरीज़ को बेहोश करने की ज़रुरत पड़ती है.

इस तकनीक में मुंह के ज़रिए कैमरा लगी एक लंबी ट्यूब को सांस की नली में पहुंचाया जाता है. इस ट्यूब से गुजरते हुए एक कैथेटर पर लगी वायर सांस की नली में उस जगह पहुंचती हैं जहां दमे की वजह से सांस की नली की मांसपेशिया फूल गई हों. कैथेटर में लगी छोटी छोटी वायर यानी तारों से गर्मी जेनरेट की जाती है जो फूली हुई मांसपेशियों को जलाकर पतला कर देती है.

इस तरह सांस की नली को चौड़ा किया जाता है. इस प्रोसीजर में एक घंटे का वक्त लग सकता है. ये प्रक्रिया तीन हफ्तों के अंतराल पर तीन बार करनी पड़ती है. एम्स के विशेषज्ञों का दावा है कि इसके बाद 5 से 10 साल तक मरीज़ को किसी तरह की दिक्कत नहीं होती.

एम्स के निदेशक डॉ रंदीप गुलेरिया ने बताया कि इस तकनीक से इलाज के लिए कई भारतीय मरीज़ों को अमेरिका या यूरोपीय देशों का रुख करना पड़ता था. पिछले साल भारत के 6 से 8 प्राइवेट अस्पतालों में ये सुविधा शुरु तो हुई है लेकिन 5 से 7 लाख रुपए का इलाज का खर्च कई मरीज़ों की पहुंच से बाहर है. फिलहाल एम्स इस तकनीक से इलाज के लिए किसी तरह के पैसे नहीं ले रहा है.

एम्स में इस तकनीक के इस्तेमाल से एक मरीज़ का इलाज कामयाबी से पूरा कर लिया गया है. इलाज करने वाले डॉ करन मदान के मुताबिक अस्थमा के कुल मरीज़ों में से 15 से 20 फीसदी मरीज़ ऐसे हैं, जिन्हें इस तकनीक से ठीक किया जा सकता है. देश में बढ़ते जा रहे प्रदूषण की वजह से एम्स में सांस की बीमारी के मरीज़ो में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हो गई हैं.

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