ZEE जानकारीः देश के हर शहर में कैसे फैल रहा है अतिक्रमण का कैंसर!
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ZEE जानकारीः देश के हर शहर में कैसे फैल रहा है अतिक्रमण का कैंसर!

दिल्ली में Unauthorized Colonies की समस्या बहुत बड़ी है..इन इलाकों में सिस्टम को रिश्वत की भेंट चढ़ाकर मकानों का निर्माण बड़ी आसानी से हो जाता है. इन इलाकों में अच्छा ख़ासा वोट बैंक होता है इसलिए राजनीतिक पार्टियां अपने इस वोट बैंक को खराब नहीं करना चाहती.

ZEE जानकारीः देश के हर शहर में कैसे फैल रहा है अतिक्रमण का कैंसर!

अगर हमारे देश का आम इंसान चांद और मंगल तक पहुंच जाए, तो हो सकता है कि एक दिन वहां भी सिस्टम को रिश्वत देकर अवैध कब्ज़े किए जाने लगेंगे. इसके बाद चांद पर अवैध कॉलोनियां बन जाएंगी . मंगल की सड़कों और फुटपाथों पर अवैध कब्जे हो जाऐंगे . अगर वहां का प्रशासन Moon या Mars Development Authority बना भी देगा, तो भी उसके अधिकारी, रिश्वत लेकर ये सब कुछ बड़े आराम से होने देंगे . आपको ये बात एक मज़ाक या सिर्फ़ कल्पना लग रही होगी लेकिन देश में इतने बड़े पैमाने पर अवैध कब्ज़े हो चुके हैं, कि आने वाले दौर में ऐसा होना संभव हैं. लोगों में अवैध कब्ज़ा करने का लालच और सिस्टम की भ्रष्ट नीयत ने, देश में अतिक्रमण के कैंसर को हर शहर में फैला दिया है. अगर सिस्टम चाहे तो अतिक्रमण को जड़ से उखाड़कर फेंक सकता है. लेकिन परेशानी ये है कि कोई इस समस्या का इलाज नहीं करना चाहता. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में दखल दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को ज़बरदस्त फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने जो बातें कही हैं वो दिल्ली के संदर्भ में कही गई हैं. लेकिन ये बातें देश के हर शहर पर लागू होती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को ये आदेश दिया है कि दिल्ली में हो रहे अवैध निर्माण को तुरंत ख़त्म किया जाए . दिल्ली की सड़कों और फुटपाथ से अतिक्रमण हटाने के लिए एक STF यानी स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि दिल्ली की 1 हज़ार 797 अवैध कॉलोनियों में हो रहे निर्माण कार्य को तुरंत रोका जाए . 

दिल्ली में Unauthorized Colonies की समस्या बहुत बड़ी है..इन इलाकों में सिस्टम को रिश्वत की भेंट चढ़ाकर मकानों का निर्माण बड़ी आसानी से हो जाता है. इन इलाकों में अच्छा ख़ासा वोट बैंक होता है इसलिए राजनीतिक पार्टियां अपने इस वोट बैंक को खराब नहीं करना चाहती. सुप्रीम कोर्ट ने अवैध कॉलोनियों को सरकारी मान्यता देने वाले फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि ये बहुत गलत है कि ऐसा करके आप गलत काम को कानूनी रूप से सही बना रहे हैं . लोगों को नियम और कानून तोड़ने की अनुमति नहीं दी जा सकतीं. सरकारें और सिस्टम, चुप रहकर अतिक्रमण करने की अनुमति नहीं दे सकतीं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2004 में भी अवैध निर्माण को रोकने का आदेश दिया गया था. लेकिन 14 साल के बाद भी हमारी सरकारें और सिस्टम इसे नहीं रोक पाए. ये दिल्ली का हाल है. आप सोचिए कि देश के दूसरे हिस्सों की क्या हालत होगी ? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और सिस्टम को फटकार लगाते हुए ये कहा कि दिल्ली में अवैध निर्माण से प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ गया है इससे दिल्ली के लोग परेशान हैं. हमारे फेफड़े खराब हो चुके हैं लेकिन इससे आपको कोई फर्क़ नहीं पड़ता.ये देश के सिस्टम के लिए बहुत शर्म की बात है कि वो अतिक्रमण की समस्या के सामने फेल हो चुका है . जिस काम को करने की ज़िम्मेदारी सरकार और सिस्टम की थी उसे अब सुप्रीम कोर्ट को करना पड़ रहा है . 

हमारे देश में अतिक्रमण वाली समस्या से हर कोई परेशान है. आपके आसपास कोई ना कोई ऐसी सड़क ज़रूर होगी.. जिस पर अतिक्रमण हुआ होगा.. कोई ना कोई ऐसा फुटपाथ ज़रूर होगा.. जिस पर किसी ने अवैध कब्ज़ा कर लिया होगा... ये सब देखकर आपको गुस्सा भी आता होगा लेकिन प्रशासन का ठंडा व्यवहार देखकर आपको ये लगता होगा कि सब मिले हुए हैं और इस देश का कुछ नहीं हो सकता . लेकिन हम ऐसा नहीं सोचते. ज़ी मीडिया अतिक्रमण के ख़िलाफ लगातार मुहिम चला रहा है . आपको याद होगा कि पिछले साल 11 दिसंबर को हमने दिल्ली में अतिक्रमण के खिलाफ़ ग्राउंड रिपोर्टिंग की थी. आज साढ़े 4 महीने के बाद हमारी टीम फिर से उन इलाकों में गई. और हमने ये जानने की कोशिश की है कि इतना समय बीत जाने के बाद अतिक्रमण की क्या स्थिति है ?

ये सिर्फ एक ख़बर नहीं है, ये वो तकलीफ है जिसे देश के करोड़ों लोग, हर रोज़ सहन करते हैं. जबकि अतिक्रमण और अवैध कब्ज़े के प्रति किसी को भी सहनशील नहीं होना चाहिए. हमने 11 दिसंबर 2017 को जब अतिक्रमण की ये ख़बर दिखाई थी, तो बहुत से ज़िम्मेदार लोगों को Live शिकायत की थी. लेकिन इन लोगों ने कोई कार्रवाई नहीं की. हमने दिल्ली पुलिस, दिल्ली ट्रैफिक पुलिस, दक्षिण दिल्ली नगर निगम की मेयर Kamaljeet Sehrawat,  दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और दिल्ली के LG अनिल बैजल को Twitter पर Live शिकायत की थी. लेकिन इनमें से किसी ने भी अतिक्रमण के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. 

अतिक्रमण अपने आप में एक समस्या ही नहीं बल्कि कई समस्याओं की वजह भी है. सड़कों पर होने वाला अतिक्रमण हमेशा ट्रैफिक Jam को जन्म देता है. भारत में ट्रैफिक Jam के बारे में सुनकर लोगों को सिरदर्द और तनाव होने लगता है.. महानगरों में रहने वाले लोग अब घर से निकलने से पहले अपने फोन पर Maps की App को ज़रूर देखते हैं और इसमें उन्हें चारों तरफ ट्रैफिक Jam वाला लाल रंग ही नज़र आता है. ऐसा लगता है कि भारत की सड़कें ट्रैफिक Jam की वजह से लहुलुहान हो गई हैं. और इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है. हर साल ट्रैफिक Jam की वजह से लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है. व्यंग्य और कटाक्ष करने वाले ये भी कह रहे हैं कि ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब देश के हर नागरिक को Loan लेकर.... ट्रैफिक Jam से होने वाले नुकसान की भरपाई करनी पड़ेगी.

भारत में दिल्ली, मुंबई..बैंगलुरू और कोलकाता में ट्रैफिक Jam की वजह से हर साल 1 लाख 43 हज़ार करोड़ रूपये बर्बाद हो जाते हैं . ये एक बहुत बड़ी रकम है. भारत में ट्रैफिक जाम पर हुए एक नये रिसर्च के मुताबिक इन चारों शहरों में, पूरे एशिया के शहरों के मुकाबले 149 प्रतिशत ज़्यादा भीड़भाड़ है. ट्रैफिक Jam से होने वाले नुकसान के मामले में दिल्ली पहले नंबर पर है जहां हर साल 62 हज़ार 400 करोड़ रूपये बर्बाद हो जाते हैं इसके बाद दूसरे नंबर पर बैंगलुरू है जहां हर साल 38 हज़ार 800 करोड़ रूपये बर्बाद होते हैं तीसरे पर मुंबई है जहां 31 हज़ार 200 करोड़ रूपये का नुकसान होता है, जबकि कोलकाता में हर साल 12 हज़ार 800 करोड़ रूपये बर्बाद हो जाते हैं .

इन चारों शहरों में हर रोज़ के सफ़र में सामान्य से डेढ़ गुना ज़्यादा समय लगता है . हमारे सिस्टम को ये नहीं भूलना चाहिए कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ी आबादी वाला देश है. इसलिए यहां भीड़ से बचना नामुमकिन है. इस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए Technology की मदद लेनी पड़ेगी. CCTV कैमरे ई चालानऔर ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी कि जो नियम तोड़ेगा वो कानून के शिकंजे से बच नहीं पाएगा.

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