कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी व्यक्ति की सहमति के बिना जबरन उसका इलाज नहीं कराया जा सकता है.
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नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना को अपने एक गैर कमीशंड अधिकारी को शराब की लत और मनोरोगी होने की वजह से दो महीने से ज्यादा वक्त तक एक मनोरोग वार्ड में रखने को लेकर शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय की नाराजगी झेलनी पड़ी. जस्टिस एस मुरलीधर और विनोद गोयल की पीठ ने कॉर्परल को मनोरोग वार्ड में रखने पर वायुसेना के फैसले के औचत्य पर सवाल किया और पूछा कि उसने रोजाना किस आधार पर यह पता लगाया कि कॉर्परल को अब भी शराब पीने की तलब होती है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि नया मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति की सहमति के बिना जबरन उसका इलाज नहीं कराया जा सकता है. उन्होंने कहा कि वायुसेना ‘देश के कानून को नजरअंदाज’ नहीं कर सकती है.
वायुसेना के आचरण को ‘गैरजिम्मेदाराना’ बताते हुए पीठ ने हैरानी जताई कि वहां पर ऐसे कितने मामले हो सकते हैं जो सामने नहीं आए हैं. पीठ ने कहा, "आप रोजाना किस आधार पर यह तय कर रहे थे कि उनकी शराब पीने की लत कम नहीं हुई है? आपने कौनसे परीक्षण किए? यह पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना है. हम हैरान है कि वहां इस तरह के कितने मामले होंगे."
पीठ ने कहा, "यह स्पष्ट मामला है जिसमें एक व्यक्ति कह रहा है कि उन्हें बिना सहमति के रखा गया है. नए मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम के तहत आप किसी को उन्हें उनकी सहमति के बिना इलाज के लिए बाध्य नहीं कर सकते हैं."
कोर्ट ने कल कॉर्परल को पेश करने का हुक्म दिया. वायुसेना का प्रतिनिधित्व, केंद्र सरकार के वकील रिपुदमन सिंह भारद्वाज ने किया. वायुसेना ने कहा कि उनकी पत्नी की इस शिकायत पर कॉर्परल के खिलाफ कार्रवाई की गई थी कि वह शराब पीने के बाद हिंसक हो जाते हैं.