Deoli Water Crisis : नूरानी मस्जिद के पास रह रहे लोग पानी न मिलने से परेशान हैं. उनका कहना है कि दो दिन बाद बकरीद है. पानी की किल्लत में वह कैसे त्योहार मनाएंगे. जल बोर्ड हो या फिर जनप्रतिनिधि, कोई समस्या का हल नहीं खोज पा रहा है.
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Deoli Stoty on Water Crisis: भीषण गर्मी में दिल्ली के तमाम इलाकों में लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं, लेकिन साउथ दिल्ली संसदीय क्षेत्र में यह समस्या नासूर बन चुकी है. वर्षों से रह रहे मजबूर लोग जैसे इस समस्या को मुकद्दर मान चुके हैं और शायद जनप्रतिनिधि कानों में रुई डाल चुके हैं. हां अगर जलसंकट को लेकर कभी-कभी उनका मुंह खुलता भी है तो सिर्फ विपक्ष को गुनहगार साबित करने और जनता को आश्वासन देने के लिए, बाकी हल उनके पास भी नहीं है. अब देवली विधानसभा इलाके को ही ले लें तो यहां पानी की किल्लत की वजह से लोग यहां से पलायन करने तक की सोच रहे हैं. हालात इस कदर खराब हो चुके हैं कि लोग 15-15 दिनों से नहा तक नहीं पा रहे हैं.
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साउथ दिल्ली में 2014 से बीजेपी के सांसद हैं और देवली विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व 2013 से AAP के विधायक कर रहे हैं, लेकिन किसी भी स्तर पर जनता की यह समस्या सुलझ नहीं पाई है. देवली क्षेत्र में नूरानी मस्जिद के पास रह रहे लोग पानी न मिलने से परेशान हैं. यहां न पाइपलाइन का पानी है और न सरकारी टैंकर से पानी की आपूर्ति होती है. लोगों को पानी के लिए प्राइवेट टैंकर पर निर्भर रहना पड़ रहा है.
लोगों का कहना है कि पानी के लिए उन्हें कभी 1000 तो कभी 2000 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. टैंकर में करीब 2000 लीटर पानी होता है. कई बार वह भी टाइम पर नहीं मिलता. स्थानीय निवासियों का कहना है कि दो दिन बाद (16/17 जून) बकरीद है, लेकिन पानी नहीं है. कैसे त्योहार मनेगा, यह पता नहीं है.
जनप्रतिनिधि समस्या सुनते तो हैं पर हल नहीं करते
शमशाद अली नाम के एक शख्स ने बताया कि न ख़त्म होने वाली पानी की किल्लत की वजह से कई लोगों ने घर छोड़ दिया है. न पीने के लिए पानी है, न नहाने और न कपड़े धोने के लिए. सब समस्या लेकर जलबोर्ड और जनप्रतिनिधियों के पास जाते हैं तो वे हमें बहकाकर वापस भेज देते हैं. हरिशंकर का कहना कई बार खाने के लिए मजबूरन 25 रुपये का बोतलबंद पानी लेकर आना पड़ता है.
बुजुर्ग महिला बोली-अब जी नहीं करता है यहां रहने का
नसीम कहती हैं-पानी है नहीं, सोच रही हूं सब छोड़कर वापस गांव चली जाऊं. अभी कुछ दिन पहले ही गांव से आई हूं, लेकिन यहां दिक्कत है. आदमी बीमार है. 17 दिन के बाद कल नहाए हैं. 1000 से 2000 में प्राइवेट टैंकर आता है. बुजुर्ग महिला हसीना का कहना है, टैंकर के लिए बोलते बोलते थक गई हूं. बहुत लोग गांव चले गए. अब यहां रहना मुश्किल हो गया है. वहीं बुजुर्ग महिला नसरीन का कहना है बस ऐसे ही गुजारा कर रहे हैं, थोड़ा-थोड़ा पानी इस्तेमाल करके. अब जी नहीं करता है यहां रहने का.
नलकूप पर लटका ताला
स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां सबको पानी मिले, इसके लिए चार ट्यूबबेल की जरूरत है, लेकिन इलाके में दो ही हैं, उन पर भी ताला लटका है. सोसायटी के लोग इसका रखरखाव करते हैं. इन ट्यूबबेल में महीने-डेढ़ महीने में दो ढाई घंटे आता है. इतनी आबादी के लिए यह काफी कम है. कई दिनों तक बासी पानी पीने को मजबूर होना पड़ता है. लोग काम करने जाएं या फिर पानी के लिए भटकें. ट्यूबबेल का रखरखाव करने वाले ज्यादातर समय उसे बंद रखते हैं. उनका कहना है, पानी होगा तभी देंगे न.
इनपुट: मुकेश सिंह