जज ने फैसले में लिखा- यासीन की गांधीवादी होने की दलील बेमानी, हथियार छोड़े, हिंसा नहीं
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जज ने फैसले में लिखा- यासीन की गांधीवादी होने की दलील बेमानी, हथियार छोड़े, हिंसा नहीं

एनआईए कोर्ट ने यासीन मलिक को उम्रकैद की सज़ा देते हुए उसके गांधीवादी होने की दलील को खारिज किया है. 20 पेज के लिखित आदेश में  स्पेशल जज प्रवीण सिंह ने कहा कि  यासीन मलिक महात्मा गांधी की शिक्षाओं पर चलने की दुहाई नहीं दे सकता.

अलगाववादी नेता यासीन मलिक

नई दिल्ली: एनआईए कोर्ट ने यासीन मलिक को उम्रकैद की सज़ा देते हुए उसके गांधीवादी होने की दलील को खारिज किया है. 20 पेज के लिखित आदेश में  स्पेशल जज प्रवीण सिंह ने कहा कि  यासीन मलिक महात्मा गांधी की शिक्षाओं पर चलने की दुहाई नहीं दे सकता. गांधी जी के आंदोलन में हिंसा की कोई जगह नहीं थी, जबकि यासीन का राजनीतिक आंदोलन हमेशा हिंसक रहा और उसने कभी घाटी में हिंसक वारदातों की निंदा नहीं की.

यासीन का रास्ता गांधी जी का नहीं
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यासीन मलिक खुद को गांधी जी की शिक्षाओं पर चलने वाला बताता है, पर उस पर लगे आरोप दूसरी ही कहानी कहते हैं. गांधी जी ने चौरीचौरा में हुई महज एक हिंसक घटना के चलते पूरा असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था. पर यहां तो हिंसा होती रही. यासीन मलिक ने कभी उसकी निंदा तक भी नहीं की.

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यासीन मलिक को कोई पछतावा नहीं
सज़ा पर जिरह के दौरान यासीन मलिक ने दलील दी थी कि उसने 1994 में हथियार छोड़ दिये और उसके बाद वो हिंसक गतिविधियों में शामिल नहीं रहा, लेकिन कोर्ट ने इन दलीलों को भी खारिज कर दिया. स्पेशल जज प्रवीण सिंह ने आदेश में कहा कि यासीन मलिक ने भले ही 1994 में हथियार छोड़ दिये हों, लेकिन इससे पहले की गई हिंसा को लेकर उसे कोई पछतावा नहीं है.

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यासीन ने विश्वासघात किया
सजा पर जिरह के दौरान यासीन मलिक ने यह भी दलील दी थी कि वो देश के कई प्रधानमंत्रियों से मिला है, जिन्होंने उसे राजनैतिक प्लेटफार्म दिया. वो हिंसा में शामिल नहीं था, इसलिए प्रधानमंत्रियों तक ने उसे अपनी बात रखने का मौका दिया. पर कोर्ट ने फैसले में कहा कि सरकार ने यासीन के लिए अच्छी नीयत रखकर उसे सुधरने का मौका दिया, लेकिन उसने हिंसा का रास्ता न छोड़कर  सरकार के साथ विश्वासघात किया. राजनीतिक संघर्ष की आड़ में हिंसा का रास्ता यासीन अख्तियार करता रहा. यासीन का मकसद कश्मीर को भारत से अलग करना था. उसका अपराध इसलिए भी गम्भीर हो जाता है कि विदेशी ताकतों की शह पर इसे अंजाम दिया गया और आड़ शान्तिपूर्ण राजनीतिक आंदोलन की ली गई.

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