जेएनयू विवाद: पुलिस आरोपी छात्रों को खींचकर बाहर निकालती तो देश उन्हें शाबासी देता
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जेएनयू विवाद: पुलिस आरोपी छात्रों को खींचकर बाहर निकालती तो देश उन्हें शाबासी देता

शिवसेना ने गुरुवार को दिल्ली पुलिस पर जेएनयू में बने हालात से दूरी बनाने का आरोप लगाया और कहा कि यह मुद्दा कानून व्यवस्था के पतन की ओर इशारा करता है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय के अनुसार, ‘जेएनयू की घटना केवल एक चिंगारी है जो दिखाती है कि देश में क्या हो रहा है। देश को बांटने के पक्ष में और जम्मू कश्मीर, केरल तथा असम को अलग करने को लेकर देश की राजधानी के विश्वविद्यालय में नारे सुनने को मिल रहे हैं।’

जेएनयू विवाद: पुलिस आरोपी छात्रों को खींचकर बाहर निकालती तो देश उन्हें शाबासी देता

मुंबई : शिवसेना ने गुरुवार को दिल्ली पुलिस पर जेएनयू में बने हालात से दूरी बनाने का आरोप लगाया और कहा कि यह मुद्दा कानून व्यवस्था के पतन की ओर इशारा करता है। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय के अनुसार, ‘जेएनयू की घटना केवल एक चिंगारी है जो दिखाती है कि देश में क्या हो रहा है। देश को बांटने के पक्ष में और जम्मू कश्मीर, केरल तथा असम को अलग करने को लेकर देश की राजधानी के विश्वविद्यालय में नारे सुनने को मिल रहे हैं।’

संपादकीय में लिखा गया है, ‘अफजल गुरू के लिए स्मृति दिवस मनाया जा रहा है जिसने संसद पर हमला किया था और जिसे उसकी करतूत के लिए फांसी दे दी गयी। हर घर में अफजल गुरू के पैदा होने की चेतावनी दी जा रही है। ये घटनाएं कानून-व्यवस्था के पतन की ओर इशारा करती हैं।’

शिवसेना के मुखपत्र के मुताबिक पुलिस मूकदर्शक बनी रही और कानून व्यवस्था की स्थिति को चुनौती देने वाले छात्रों के समूह को गिरफ्तार करने के लिए परिसर में नहीं गयी। इसमें लिखा है, ‘यह कायरता है और हालात से भागने का संकेत है। अगर विश्वविद्यालय राष्ट्रविरोधियों का गढ़ बन जाते हैं तो ऐसी स्वायत्तता को आग लगा देनी चाहिए।’

‘सामना’ के अनुसार, ‘अगर पुलिस परिसर में घुसकर छात्रों के समूह को खींचकर बाहर निकालती और उन्हें गिरफ्तार करती तो पूरा देश उन्हें शाबासी देता।’ उन्होंने लिखा, ‘हमारी पुलिस, सीबीआई और सेना स्वर्ण मंदिर में घुस सकते हैं लेकिन देश को तोड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों को पकड़ने के लिए एक विश्वविद्यालय में नहीं जा सकते।’ शिवसेना के अनुसार, ‘पुलिस और सीबीआई मुख्यमंत्री के दफ्तर और घर में घुस सकते हैं। वे एक केंद्रीय मंत्री, एक संसद सदस्य के घरों में भी घुस सकते हैं और उन्हें सलाखों के पीछे डालने के बाद अपमानित कर सकते हैं। लेकिन जब जेएनयू की बात आती है तो उन्हें स्वायत्तता याद आ गयी।’

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