भारतीय सेना में बंगाल रेजीमेंट बनाने की मांग, बांग्ला में एग्जाम देने का मांगा ऑप्शन
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भारतीय सेना में बंगाल रेजीमेंट बनाने की मांग, बांग्ला में एग्जाम देने का मांगा ऑप्शन

भारतीय सेना में बंगाल रेजीमेंट बनाने की मांग उठ रही है.  इसके लिए बंगाली संगठन ‘बांग्ला पोक्खो’ ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखा है.

सेना में बंगाली रेजिमेंट के गठन की मांग उठाई

कोलकाता:  बंगाली संगठन ‘बांग्ला पोक्खो’ ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर मांग उठाई कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पश्चिम बंगाल के अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के योगदान को उचित श्रद्धांजलि देने के लिए भारतीय सेना में एक ‘बंगाली रेजिमेंट’ का गठन किया जाए.

  1. सेना में बंगाली रेजिमेंट के गठन की मांग
  2. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर रक्षा मंत्री को पत्र
  3. बंगाल के संगठन ने उठाई मांग

युवाओं को बंगाली भाषा में भर्ती परीक्षा देने का हो विकल्प 

संगठन ने यह भी कहा कि सशस्त्र सेनाओं में शामिल होने के इच्छुक युवाओं को बंगाली भाषा में भर्ती परीक्षा देने का विकल्प दिया जाए. मोदी और सिंह को लिखे पत्र में संगठन ने कहा, ‘बंगाल के महान नेता सुभाष चंद्र बोस की 125वीं जयंती के अवसर पर बंगालियों की मांग है कि भारतीय सेना में बंगाली रेजिमेंट का गठन किया जाए’. बांग्ला पोक्खो ने कहा कि सेना में बंगाली रेजिमेंट का गठन कर नेताजी और राज्य के उन योद्धाओं को उचित सम्मान दिया जा सकेगा जिन्होंने ब्रिटिश राज से देश को मुक्त कराने में भूमिका निभाई थी.

नेताजी को आज देश कर रहा याद

बता दें कि आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया गेट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया किया. दरअसल, देश आज नेताजी को याद कर रहा है. उनकी आज 125वीं जयंती है. 23 जनवरी 1897 को ओडिशा के कटक में एक बांग्ला परिवार में जन्मे सुभाष अपने देश के लिए हर हाल में आजादी चाहते थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन देश के नाम कर दिया और अंतिम सांस तक देश की आजादी के लिए संघर्ष करते रहे. देशवासी उन्हें नमन कर रहे हैं. इस दौरान दिल्ली में फुल ड्रेस रिहर्सल परेड भी निकली गई है.

जानें-क्या बोले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आजादी के अमृत महोत्सव का संकल्प है कि भारत अपनी पहचान और प्रेरणाओं को पुनर्जीवित करेगा. ये दुर्भाग्य रहा कि आजादी के बाद देश की संस्कृति और संस्कारों के साथ ही अनेक महान व्यक्तित्वों के योगदान को मिटाने का काम किया गया है.

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