Uniform Civil Code Update:  देश में लंबे समय से यूनिफॉर्म सिविल कोड (Uniform Civil Code) की बात की जा रही है. सभी धर्मों में तलाक से लेकर बच्चा गोद लेने तक एक समान नियम बनाए जाएं. इससे जुड़ी कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई हैं. अलग-अलग पर्सनल लॉ के बजाए सभी धर्मों के पुरूष - स्त्रियों के लिए एक समान कानून बनाए जाने से जुड़ी याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इंकार कर दिया है. इन याचिकाओं में सभी धर्मों में तलाक की एक समान व्यवस्था, बच्चा गोद लेने और भरण-पोषण के एक समान नियम बनाए जाने की मांग की गई थी. इसके अलावा इन याचिकाओं में सभी धर्मों में विवाह की न्यूनतम उम्र एक समान करने और सभी धर्मो में विरासत के नियम और पैतृक संपत्ति में अधिकार के नियम एक समान बनाए जाने की मांग की गई है.


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कोर्ट ने कहा- कानून बनाना संसद का काम


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पड़ी इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि कानून बनाना संसद का अधिकार है. हम सरकार को इस पर कानून बनाने के लिए कोई आदेश नहीं दे सकते हैं. 


सरकार ने नीतिगत तौर पर UCC का समर्थन किया


सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की जरूरत है. सरकार सैद्धांतिक तौर पर इसका समर्थन करती है लेकिन इस पर फैसला लेना संसद के अधिकार क्षेत्र में आता है. कोर्ट के जरिए ऐसा नहीं हो सकता है.


तलाक हसन पीड़ित की अर्जी पर अलग से सुनवाई


हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि मुस्लिम समाज में प्रचलित तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर वो अलग से सुनवाई करेगा. तलाक-ए-हसन पीड़िता बेनजीर हिना ने ये याचिका दायर की है. इस व्यवस्था में पति 1-1 महीने के अंतर पर 3 बार तलाक बोल कर शादी खत्म कर सकता है.


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