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नई दिल्ली: डीएनए में अब बात टोक्यो की जहां पैरालम्पिक खेलों में मंगलवार को भारत को दो और मेडल मिले. इसी के साथ देश के कुल मेडल की संख्या 10 हो गई, जिनमें 2 गोल्ड हैं, 5 सिल्वर और 3 ब्रॉन्ज मेडल हैं. अवनि लेखरा, सुमित अंतिल, भाविना पटेल और निषाद कुमार ये उन खिलाड़ियों के नाम हैं, जिन्होंने पैरालम्पिक खेलों में देश के लिए मेडल जीता है. हालांकि आपमें से ज्यादातर लोगों ने इन खिलाड़ियों के नाम बीते तीन-चार दिनों में सुने होंगे. क्योंकि शारीरिक अक्षमता वाले लोगों के बारे में हमारे समाज में ज्यादा बात नहीं होती और उनके नाम तो कभी याद भी नहीं रखे जाते.
ऐसे लोगों के बारे में एक राय बना ली जाती है. उन्हें कमजोर समझा जाता है, उनके साथ सहानुभूति दिखाई जाती है और कई बार समाज ऐसे लोगों के साथ असंवेदनशील भी होता है. लेकिन इन सब खिलाड़ियों की कहानियां और इनका संघर्ष बताता है कि शारीरिक अक्षमता कहीं से भी इंसान को कमजोर और दूसरों पर निर्भर नहीं बनाती.
भारत को पहला गोल्ड मेडल राजस्थान की अवनि लेखरा ने शूटिंग में दिलाया. अवनि के दोनों पैर काम नहीं करते और वो पिछले 9 सालों से व्हील चेयर (Wheel Chair) पर हैं. वर्ष 2012 में जयपुर में एक सड़क दुर्घटना में अवनि बुरी तरह जख्मी हो गई थीं. हादसे में उनकी जान तो बच गई लेकिन रीढ़ की हड्डी में चोट की वजह से उनके पैरों ने काम करना बंद कर दिया. इस हालत में अवनि चाहती तो वो घर बैठ जाती और उनका परिवार और समाज भी उनसे कभी शिकायत नहीं करता. उन्हें सहानुभूति की नजरों से देखा जाता और थोड़ी बहुत मदद भी मिल जाती.
अवनि के लिए इस तरह की जिंदगी जीना ज्यादा आसान होता. लेकिन उन्होंने मुश्किल रास्ता चुना और वो कड़ी मेहनत हुए पैरालम्पिक खेलों में पोडियम तक पहुंचीं. उन्होंने ना सिर्फ गोल्ड मेडल जीता, बल्कि वो ऐसा करने वाली देश की पहली महिला खिलाड़ी भी बन गईं.
इसी तरह की कहानी सुमित अंतिल की है, जिन्होंने Javelin Throw में गोल्ड मेडल जीता है. सुमति पहलवान बनना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने मेहनत भी की. लेकिन 6 साल पहले 2015 में एक सड़क हादसे में सुमित ने अपना एक पैर खो दिया. इस हादसे के बाद जब उन्होंने Javelin Throw के लिए तैयारी की तो लोगों ने उन्हें कहा कि वो ये नहीं कर पाएंगे. क्योंकि Javelin Throw में भागना पड़ता है. लेकिन सुमित ने इन बातों को कभी पैरों की बेड़ियां नहीं बनने दिया और Javelin Throw में ही देश को गोल्ड जिताया.
सुमित भी अगर चाहते वो भी घर पर बैठ सकते थे और शायद उनका परिवार भी उनसे कभी शिकायत नहीं करता. लेकिन उन्होंने ये साबित किया कि कमजोर वो नहीं है, जिसके हाथ पैर नहीं है. कमजोर वो है, जिसके अन्दर कोशिश करने की हिम्मत नहीं है.
देवेंद्र झाझरिया की कहानी भी संघर्षों से भरी है. देवेंद्र झाझरिया ने Javelin Throw में सिल्वर मेडल जीता है. और पैरालम्पिक खेलों में ये उनका लगातार तीसरा मेडल है और वो ऐसा करने वाले भारत के इकलौते पैरालम्पिक खिलाड़ी हैं. देवेंद्र झाझरिया जब 8 साल के थे तो एक हादसे में डॉक्टरों को उनका हाथ काटना पड़ा था. इस हादसे के बाद उन्होंने कई दिनों तक खुद को एक कमरे में बन्द रखा क्योंकि उन्हें लगता था कि अगर वो दूसरे बच्चों के साथ खेलने जाएंगे तो उनका मज़ाक बनाया जाएगा. लेकिन उनकी मां ने उनकी हिम्मत बढ़ाई और उनसे कहा कि अगर वो कमजोर बन कर रहेंगे तो दुनिया उन्हें कभी भी उनकी प्रतिभा को साबित नहीं करने देगी. इसके बाद देवेंद्र ने संघर्ष करना नहीं छोड़ा और लगातार 3 पैरालम्पिक मेडल जीते
टेबल टेनिल में भारत को पहला मेडल दिलाने वाली गुजरात की भाविना पटेल ने भी काफ़ी संघर्ष किया. वो सालभर की थीं, जब उन्हें पोलियो हो गया. परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, इसलिए उनका ठीक से इलाज भी नहीं हो पाया. बड़ी होने के साथ भाविना जान गई थीं कि अब उन्हें Wheel Chair पर ही ज़िन्दगी गुज़ारनी होगी. और समाज भी उन्हें सहानुभूति की नज़र से देखेगा. हालांकि परिवार की कोशिश से वो 2014 में अहमदाबाद आईं और टेबल टेनिस खेलना शुरू किया. और अपने कड़े परिश्रम से देश को टोक्यो पैरालम्पिक्स में सिल्वर मेडल दिलाया.
किसी बड़ी कामयाबी के बाद मिली सफलता के शोर के आगे में वो ताने हमेशा के लिए खामोश हो गए, जो कभी इस लोगों ने सुने थे. देवेंद्र झाझरिया, अवनि लेखरा, निषाद कुमार, भाविना पटेल, सुमित अंतिल और सुंदर सिंह गुर्जर. ये वो नाम हैं, जो आज से एक हफ्ते पहले तक शायद ही आपने सुने होंगे. लेकिन आज लोग इनके बारे में जानते भी हैं और देश को इन पर गर्व भी है. लेकिन शायद अगर ये खिलाड़ी पैरालम्पिक खेलों में मेडल नहीं लाए होते तो लोग इनकी सफलता की नहीं, बल्कि इनके साथ सहानुभूति दिखाने की बातें करते.
सुमित अंतिल ने सड़क हादसे में अपना एक पैर खोने के बाद भी Javelin Throw में गोल्ड मेडल जीता और अब उनका परिवार और पूरा देश उन पर गर्व कर रहा है. हिमाचल में उना जिले के एक किसान परिवार में जन्मे निषाद कुमार ने High Jump में देश के लिए सिल्वर मेडल जीता है. वो जब 8 साल के थे तो उन्होंने चारा काटने वाली मशीन में अपना दाहिया हाथ डाल दिया था. इस हादसे के बाद उनका हाथ काटना पड़ा. लेकिन इतने बड़े हादसे के बाद भी उन्होंने मेहनत की और पैरालम्पिक खेलों में पोडियम तक पहंचे.
हरियाणा के फरीदाबाद से आने वाले सिंहराज अढाना के घर भी जश्न का माहौल है. उन्होंने शूटिंग में मेडल जीता है. बचपन में उन्हें पोलियो हो गया था, जिसके बाद उनके पैरों ने काम करना बंद कर दिया. व्हील चेयर पर होते हुए भी उन्होंने अपने इरादों को अडिग रखा और मेडल जीतने में कामयाब हुए. जिसके बाद उन्हें केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने सम्मानित किया.
पैरालंपिक खेलों में भारत के लिए मेडल लाने वाले सभी खिलाड़ियों की कहानी एक जैसी है. उन्होंने संघर्ष देखा, समाज के ताने सुने और शारीरिक अक्षमता की वजह से उन्हें अवसाद और तनाव हुआ. लोगों ने उन्हें कमजोर साबित किया. कई मौकों पर समाज इनके प्रति असंवेदनशील भी हुआ और उन्हें बेचारा तक कहा गया. लेकिन इन सभी खिलाड़ियों ने सहानुभूति की इस बैसाखी के सहारे चलने से इनकार कर दिया और मेडल जीत कर देश के लोगों को ये बताया कि संघर्षों से सारे युद्ध जीते जा सकते हैं.
इन खिलाड़ियों से आज आप ये सीख सकते हैं कि अगर आप मानसिक रूप से मज़बूत हैं तो शारीरिक दुर्बलता आपको कभी नहीं हरा सकती.