DNA ANALYSIS: अलग-अलग खेमों में बंटा बॉलीवुड इस मुद्दे पर एक साथ कैसे आ गया?
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DNA ANALYSIS: अलग-अलग खेमों में बंटा बॉलीवुड इस मुद्दे पर एक साथ कैसे आ गया?

फिल्म इंडस्ट्री की चार एसोसिएशन और 34 फिल्म प्रोड्यूसर ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की है. इस याचिका में कुछ न्यूज़ चैनलों के खिलाफ शिकायत की गई है और कहा गया है कि इन न्यूज़ चैनलों पर बॉलीवुड के खिलाफ हो रही रिपोर्टिंग पर रोक लगाई जाए.

DNA ANALYSIS: अलग-अलग खेमों में बंटा बॉलीवुड इस मुद्दे पर एक साथ कैसे आ गया?

नई दिल्ली: वर्ष 1982 में एक फिल्म आई थी जिसका नाम था-सनम तेरी कसम. इस फिल्म में एक गाना था जिसके शुरुआती बोल हैं- शीशे के घरों में देखो तो पत्थर दिल वाले बसते हैं. इसके अलावा प्रसिद्ध अभिनेता राजकुमार का भी एक मशहूर डायलॉग है, जिसमें वो कहते हैं कि जिनके अपने घर शीशे के हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंका करते. वैसे ये एक मशहूर कहावत भी है, लेकिन बॉलीवुड का ये डायलॉग आज बॉलीवुड पर बिल्कुल फिट बैठता है.

दिल्ली हाई कोर्ट में ​याचिका
आजाद भारत के 70 वर्षों के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना घटी है. पहली बार लगभग पूरी फिल्म इंडस्ट्री किसी मुद्दे पर एक साथ आ गई है. ये वो इंडस्ट्री है जो हमेशा, अलग-अलग कैंपों, अलग-अलग खेमों और अलग-अलग खानदानों में बंटी रहती है. लेकिन अभूतपूर्व तरीके से पूरी इंडस्ट्री एकजुट हो गई है. फिल्म इंडस्ट्री की चार एसोसिएशन और 34 फिल्म प्रोड्यूसर ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की है. इस याचिका में कुछ न्यूज़ चैनलों के खिलाफ शिकायत की गई है और कहा गया है कि इन न्यूज़ चैनलों पर बॉलीवुड के खिलाफ हो रही रिपोर्टिंग पर रोक लगाई जाए और बॉलीवुड के लोगों पर की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को वापस लिया जाए. इस याचिका में कुल मिलाकर दो न्यूज़ चैनलों और चार न्यूज़ एंकर्स को आरोपी बनाया गया है.

कुछ शब्दों पर खासतौर से आपत्ति
हालांकि इसमें मीडिया में हो रही रिपोर्टिंग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की मांग नहीं गई है, लेकिन ये जरूर कहा गया है कि ये चारों एंकर रिर्पोटिंग करते समय कानूनों का उल्लंघन न करें. इस केस के लिए इन सभी लोगों ने एक ही लीगल एजेंसी को हायर किया है. इस याचिका में मीडिया के एक हिस्से द्वारा इस्तेमाल किए हुए कुछ शब्दों पर खासतौर से आपत्ति जताई गई है. इनमें Dirt, Filth और Druggies जैसे शब्द शामिल हैं.

इसके अलावा जिन वाक्यों पर आपत्ति जताई गई है उनमें से कुछ हैं-

-बॉलीवुड से गंदगी को साफ करने की जरूरत है.

-अरेबिया का सारा परफ्यूम भी बॉलीवुड से उठने वाली इस दुर्गंध को दूर नहीं कर सकता.

-ये देश की सबसे गंदी इंडस्ट्री है

-ये इंडस्ट्री LSD और Cocaine के नशे में डूबी है.

ये सारी बातें सुशांत सिंह की मौत की जांच और नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो द्वारा की जा रही ड्रग एंगल की जांच पर जो रिपोर्टिंग हो रही है उसके संदर्भ में कही गई हैं.

याचिका में दी गई ये दलील
इस याचिका में ये भी दलील दी गई है कि बॉलीवुड अकेली ऐसी इंडस्ट्री है जो भरोसे की बुनियाद पर चलती है और इसमें दर्शकों द्वारा की जाने वाली सराहना बहुत महत्वपूर्ण है. पूरे के पूरे बॉलीवुड का इस तरह एक साथ आ जाना अपने आप में अभूतपूर्व है. हम इसे अभूतपूर्व घटना क्यों कह रहे हैं ये हम आपको बताएंगे, लेकिन पहले ये जान लीजिए कि शिकायत करने वालों में कौन कौन से फिल्म स्टार्स शामिल हैं.

इनमें से कुछ फिल्म स्टार्स हैं- आमिर खान , शाहरुख खान, सलमान खान, अजय देवगन, अनिल कपूर, अक्षय कुमार, फरहान अख्तर, अनुष्का शर्मा. इसके अलावा करण जौहर, आदित्य चोपड़ा, विधु विनोद चोपड़ा और विशाल भारद्वाज जैसे बड़े फिल्म प्रोड्यूसर्स के नाम भी इसमें शामिल हैं.

70 वर्षों के इतिहास की अभूतपूर्व घटना
पूरी की पूरी फिल्म इंडस्ट्री का मीडिया के एक हिस्से खिलाफ, एक साथ आना भारत के 70 वर्षों के इतिहास की अभूतपूर्व घटना है. 70 वर्षों के इतिहास में भारत ने चार युद्ध देखे, लेकिन ये लोग कभी इस तरह से एक साथ नहीं आए. बॉलीवुड भारत की सबसे बड़ी सॉफ्ट पावर है, लेकिन दुनिया में भारत की छवि बचाने के लिए बॉलीवुड कभी साथ नहीं आया. चीन के साथ विवाद में हमारे 20 सैनिक शहीद हो गए, लेकिन बॉलीवुड ने एकजुट होकर इस तरह से कभी कुछ नहीं कहा. किसी बड़े स्टार ने ये नहीं कहा कि वो अपनी फिल्म चीन में रिलीज नहीं करेगा.

आपको याद होगा जब पुलवामा में हमारे 40 सैनिक शहीद हुए थे, तब भी बॉलीवुड ने पाकिस्तान के खिलाफ ऐसी एकजुटता नहीं दिखाई थी. पाकिस्तान लगातार भारत के लोगों का खून बहाता रहा है. बॉलीवुड के लोगों ने इस पर फिल्में तो बनाईं, लेकिन कभी आगे आकर पाकिस्तान के खिलाफ एक शब्द नहीं बोला. कश्मीर को लेकर भी इनमें से किसी बड़े कलाकार ने कभी कोई बयान नहीं दिया और कभी खुलकर ये नहीं कहा कि कश्मीर हमारा है, जबकि इसी दौरान पाकिस्तान के फिल्म स्टार्स और क्रिकेटर्स कश्मीर के मुद्दे पर खुलकर बोलते रहे और भारत का विरोध करते रहे.

दीपिका पादुकोण जैसी बड़ी फिल्म स्टार टुकड़े टुकड़े गैंग का हौसला बढ़ाने लिए जेएनयू पहुंच जाती हैं. नसीरूद्दीन शाह जैसे कलाकार भी इन्हीं का समर्थन करते हैं. महेश भट्ट जैसे लोग इन्हीं का साथ देते हैं. आमिर खान को अपने देश में डर लगता है कि लेकिन वो तुर्की जैसे दुश्मन देश में जाकर आराम से फिल्म की शूटिंग कर लेते हैं.

फिल्म इंडस्ट्री अपनी फितरत से मजबूर होकर बहुसंख्यकों का इस्तेमाल करती है. इन्हीं बहुसंख्यकों के दम पर अपनी फिल्मों की टिकटें बेचती है, लेकिन बचाव सिर्फ अल्पसंख्यकों का करती है.

दिल्ली के पास अखलाक नामक व्यक्ति की हत्या पर फिल्म इंडस्ट्री के ये बड़े-बड़े कलाकार खुल कर बात करते हैं, लेकिन जब पालघर में साधुओं की हत्या हो जाती है, तो ये लोग चुप्पी साध लेते हैं.

मीडिया ने बचाव नहीं किया तो इन्होंने मीडिया पर ही सवाल उठा दिया
जिस मीडिया ने इन स्टार्स को स्टार बनाया, जिन न्यूज़ चैनलों पर जाकर ये लोग अपनी फिल्में प्रमोट करते हैं. जिस मीडिया को ये लोग फरमाइशी इंटरव्यू देते हैं, आज उसी मीडिया से ये लोग नाराज हैं. आज जब मीडिया ने इनका बचाव नहीं किया तो इन्होंने मीडिया पर ही सवाल उठा दिया.

यानी पिछले 70 वर्षों में तो फिल्म इंडस्ट्री के लोग कभी इकट्ठा नहीं हो पाए, लेकिन आज जब इनका अस्तित्व खतरे में आया और आज जब इनके खुद के दामन पर दाग लगने लगा तो ये लोग इकट्ठा हो गए.

फिल्म इंडस्ट्री के जिन बड़े-बड़े लोगों ने कुछ न्यूज़ चैनलों और एंकर्स के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की है वो फिल्मों में नायक का किरदार निभाते हैं. फिल्मी पर्दे पर ये लोग मजबूर लोगों की जान बचाते है, कभी देश को बचाते हैं, कभी गरीबों को न्याय दिलाते हैं तो कभी अन्याय करने वालों को अंजाम तक पहुंचाते हैं, लेकिन आज ये लोग सिर्फ खुद को बचा रहे हैं. ये वही लोग हैं जो सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मुद्दे पर एक साथ नहीं आए, इनमें से किसी ने सुशांत की मौत को लेकर कुछ नहीं कहा. बॉलीवुड में ड्रग्स के मामले में भी ये लोग पूरी तरह चुप रहे. लेकिन आज ये बड़े बड़े स्टार्स अपने दामन में लगे दाग को साफ करने में जुटे हैं.

जैसा कि हमने आपको बताया, बॉलीवुड की ये खूबी है कि जब पालघर में साधुओं को पीट-पीटकर मार दिया जाता है तो वो एक भी शब्द नहीं बोलते. सब चुप रहते हैं, लेकिन मुंबई से सैकड़ों किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के दादरी में अखलाक की मौत पर बॉलीवुड के तमाम छोटे-बड़े कलाकार बयानबाजी करने लगते हैं. इसी तरह कठुआ में एक बच्ची की मौत के बाद आपने देखा था कि किस तरह कुछ हीरो-हीरोइन, हाथों में तख्ती लेकर निकल पड़े थे और उन्हें अपने देश और अपने हिंदू होने पर शर्म आने लगी थी, लेकिन जब भी आरोपी मुसलमान या फिर किसी भी दूसरे धर्म से होते हैं तो यही कलाकार कभी मुंह तक नहीं खोलते.

क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक
यही दोहरा रवैया हम आमिर खान जैसे बड़े बड़े कलाकारों की फिल्मों में देखते हैं. ये लोग अपनी फिल्मों में क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर हिंदू देवी-देवताओं का मजाक उड़ाते हैं. लेकिन जब मीडिया उनसे सवाल पूछता है तो इन्हें बुरा लग जाता है. हिंदू देवी-देवताओं का अपमान ये लोग अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में करते हैं. लेकिन मीडिया जब फिल्म इंडस्ट्री की गड़बड़ियों पर सवाल उठाता है तो यही लोग मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ कोर्ट चले जाते हैं.

इस विश्लेषण के केंद्र में जो दूसरी अभूतपूर्व बात है वो ये है कि पहली बार देशभर में मीडिया के खिलाफ इस तरह का आक्रोश दिखाई दिया है.

पहले लोग कहते थे कि मीडिया जनता की आवाज़ है. जब लोग सब जगह से हार जाते थे, तब वो मीडिया की तरफ देखते थे. मीडिया भी लोगों को निराश नहीं करता था, मीडिया ने इस देश में बोफोर्स घोटाले को भी उजागर किया है तो 2G घोटाले का भी पर्दाफाश किया है, कॉमनवेल्थ और कोयला घोटाला भी मीडिया ही सामने लेकर आया.

मीडिया ने जेसिका लाल से लेकर निर्भया तक को न्याय दिलाया है. चाहे करगिल का युद्ध हो या संसद पर हुआ हमला, मीडिया कभी पीछे नहीं हटा और अपनी जान को खतरे में डालकर पत्रकारों ने पल पल की जानकारियां आप तक पहुंचाई. टुकड़े टुक़ड़े गैंग का भी मीडिया ने ही पर्दाफाश किया. मीडिया ने ये सब जान पर खेल कर किया. सच्ची पत्रकारिता के दम पर मीडिया ने अपने लिए मान सम्मान अर्जित किया था. इस दौरान मीडिया की ताकत इतनी रही कि मीडिया ने अपने दम पर सरकारें गिराई भी और बनवाईं भी. इसलिए आज मीडिया के खिलाफ जो आक्रोश हमें दिख रहा है वो अभूतपूर्व है. अब स्थिति ये हो गई है कि पूरा बॉलीवुड और मीडिया एक दूसरे के टकरा रहे हैं. इन दोनों इंडस्ट्रीज को कभी एक ही सिक्के का दो पहलू माना जाता था. लेकिन अब मीडिया का एक हिस्सा और पूरी फिल्म इंडस्ट्री एक दूसरे को अपना विरोधी मानने लगी है.

बड़े-बड़े फिल्म स्टार्स न्यूज़ चैनलों के खिलाफ
जिन फिल्म स्टार्स ने मीडिया की शिकायत की है वो बहुत बड़े फिल्म स्टार्स हैं. इनके प्रशंसकों की संख्या करोड़ों में हैं और सोशल मीडिया पर भी इन्हें करोड़ों लोग फॉलो करते हैं. अब ये बड़े-बड़े फिल्म स्टार्स भी कुछ न्यूज़ चैनलों के खिलाफ हो गए हैं और बात भी अपने आप में अभूतपूर्व हैं.

अब आप सोच रहे होंगे कि ये अभूतपूर्व घटना आखिर घटी कैसे और बॉलीवुड को मीडिया के विरोध का ये आइडिया आया कैसे? इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. पिछले हफ्ते कुछ बड़े एडवर्टाइजर्स ने कहा था कि न्यूज़ चैनल अब इतने ज़हरीले हो चुके हैं कि वो न्यूज़ चैनलों पर अपने विज्ञापन नहीं देना चाहते. इन एडवर्टाइजर्स का कहना है कि वो ऐसे चैनलों को अपने विज्ञापन नहीं देना चाहते. कुछ एडवर्टाइजर्स ने तो न्यूज़ चैनलों से अपने विज्ञापनों को वापस भी ले लिया है. ऐसा लगता है कि बॉलीवुड को भी मीडिया के विरोध का ये आइडिया इसी से आया है.

मीडिया के खिलाफ माहौल
मीडिया के खिलाफ ये पूरा माहौल बहुत अभूतपूर्व है, क्योंकि जिन पत्रकारों को कभी मसीहा माना जाता था, वो पत्रकार अब सवालों के घेरे में हैं. अब लगभग हर परिवार अपने बच्चों से कहता है कि न्यूज चैनल मत देखो, बिगड़ जाओगे. ये बहुत गंभीर स्थिति है और आज मीडिया को भी इसकी चिंता करनी चाहिए और आत्म विश्लेषण करना चाहिए.

मीडिया और बॉलीवुड भारत की दो बड़ी ताकतें हैं, लेकिन अब ये दोनों ताकतें एक दूसरे को खत्म करने में जुटी है और अगर ऐसा होगा तो ये सिर्फ और सिर्फ भारत का नुकसान होगा.

आज हमें एक और शेर याद आ रहा है, जो कुछ इस तरह से है-

हाथ आए तो बुत न हाथ आए तो खुदा थे तुम

आज फिल्म इंडस्ट्री की हालत भी कुछ ऐसी हो गई है. जब तक ये सितारे हाथ नहीं आते थे और अपने स्टारडम का फायदा उठाते थे. तब ये किसी खुदा से कम नहीं थे, लेकिन आज जब ये हाथ आ गए हैं तो इनका स्टारडम किसी पत्थर से ज्यादा नहीं लग रहा.

करोड़ों का करोबार दांव पर लगा है
बॉलीवुड में पिछले वर्ष यानी 2019 में कुल 175 हिंदी फिल्में बनीं. इन फिल्मों का कुल कारोबार लगभग 4000 करोड़ रुपये का है. सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद उठे विवाद के कारण फिल्म उद्योग का यही कारोबार दांव पर लगा है. मीडिया को लेकर एक शिकायत बॉम्बे हाईकोर्ट में भी दायर की गई है. ये शिकायत 8 पूर्व आईपीएस अधिकारियों ने की थी. इस याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट में ऑनलाइन सुनवाई हुई जिसमें हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुआ कहा है कि अगर मीडिया से इतनी ही शिकायतें हैं तो किसी ऐसी एजेंसी का गठन क्यों न किया जाए जो इन शिकायतों पर कार्रवाई कर सके. यानी मीडिया के रवैये लेकर पूरे देश में एक अभूतपूर्व बहस भी शुरू हो गई है और अब इसमें अदालतों को भी भूमिका निभानी पड़ रही है.

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