DNA ANALYSIS: जो सुन-बोल नहीं सकता उसने कैसे बदला धर्म? जानें मन्नू यादव के अब्दुल मन्नान बनने की कहानी
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DNA ANALYSIS: जो सुन-बोल नहीं सकता उसने कैसे बदला धर्म? जानें मन्नू यादव के अब्दुल मन्नान बनने की कहानी

हम आपको मन्नू यादव के बारे में बताते हैं, जो इसी साल 11 जनवरी को अब्दुल मन्नान बन गया. मन्नू यादव के कन्वर्शन सर्टिफिकेट यानी धर्म परिवर्तन के प्रमाणपत्र को आप धर्म परिवर्तन के जेहाद का पहला सर्टिफिकेट भी कह सकते हैं.

DNA ANALYSIS: जो सुन-बोल नहीं सकता उसने कैसे बदला धर्म? जानें मन्नू यादव के अब्दुल मन्नान बनने की कहानी

नई दिल्ली: आज हम आपको धर्म परिवर्तन के जरिए चल रहे जेहाद का सर्टिफिकेट दिखाएंगे. हम आपको बताएंगे कि 22 साल का मन्नू यादव कैसे एक एफिडेविट के जरिए अब्दुल मन्नान बन गया. मन्नू यादव मूक बधिर है यानी न वो बोल सकता है और न वो सुन सकता है.

धर्म परिवर्तन के जेहाद का पहला सर्टिफिकेट 

मन्नू यादव के परिवार ने उसे नोएडा के एक मूक बधिर स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा था, लेकिन बाद में परिवार को पता चला कि इस स्कूल में पढ़ने वाला मन्नू यादव अब्दुल मन्नान बन चुका है. सोचिए एक व्यक्ति जो न बोल सकता है, न सुन सकता है, उसने अपने धर्म परिवर्तन का फैसला कैसे लिया होगा? ये धर्म परिवर्तन के जेहाद का नया मॉडल है, जिसे रोके जाना बेहद जरूरी है और इसीलिए आज हम सबसे पहले इस खबर का आपके लिए विश्लेषण करेंगे.

सबसे पहले हम आपको मन्नू यादव के बारे में बताते हैं, जो इसी साल 11 जनवरी को अब्दुल मन्नान बन गया. मन्नू यादव के कन्वर्शन सर्टिफिकेट यानी धर्म परिवर्तन के प्रमाणपत्र को आप धर्म परिवर्तन के जेहाद का पहला सर्टिफिकेट भी कह सकते हैं क्योंकि, आपने शायद इससे पहले ऐसे सर्टिफिकेट नहीं देखे होंगे, लेकिन इस मामले में ऐसे सर्टिफिकेट अब सामने आ रहे हैं.

इसमें लिखा है कि मन्नू यादव ने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम धर्म को स्वीकार किया है और अब से उसका नाम अब्दुल मन्नान हो गया है. बड़ी बात ये है कि इस पर काजी के हस्ताक्षर और Islamic Dawah Center की मुहर लगी हुई है और इसमें लिखा है कि ये प्रमाणपत्र जिले के SDM या नोटरी एफिडेविट के आधार पर जारी किया गया है. नोटरी एफिडेविट को शपथपत्र भी कहते हैं, लेकिन इस सर्टिफिकेट में दो बातें समझने वाली हैं-

पहली बात ये कि इसमें सर्टिफिकेट को जारी करने की तारीख 11 नवम्बर 2021 बताई गई है और ये तारीख एक नहीं दो-दो जगह लिखी है. अब सवाल है कि एक जगह तो गलती हो सकती है लेकिन दोनों जगह 11 नवम्बर लिखने के पीछे कोई षड्यंत्र तो नहीं था?

और दूसरी बात ये कि इस सर्टिफिकेट में अब्दुल मन्नान के पिता राजीव यादव का गुरुग्राम का पता लिखा है, जबकि उसके पिता का कहना है कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी. यहां एक महत्वपूर्ण बात ये भी है कि जिस नोटरी एफिडेविट के आधार पर ये सर्टिफिकेट जारी हुआ है, उसमें भी गुरुग्राम का पता लिखा है, जबकि परिवार का कहना है कि किसी भी विभाग से कोई अधिकारी इस पते की जांच के लिए उनके घर नहीं पहुंचा.

एफिडेविट में लिखी अहम बातें

असल में नोटरी वो वकील या कानूनी व्यवसायी होता है, जिसे केंद्र या राज्य सरकार Notary Act 1952 के तहत नियुक्त करती है और ऐसा व्यक्ति पब्लिक ऑफिसर के रूप में काम करता है. एक नोटरी पब्लिक ऑफिसर का प्रमुख काम होता है, किसी भी दस्तावेज को प्रमाणित करना यानी ये बताना कि उसमें लिखी सभी बातें सबूतों और तथ्यों के आधार पर सही हैं या नहीं, लेकिन आरोप है कि इस मामले में ऐसा नहीं हुआ क्योंकि, इस एफिडेविट में जो पता लिखा है, वहां किसी ने जाकर कोई जांच ही नहीं की और मन्नू यादव के पिता को ये लगता रहा कि उनका बेटा नोएडा के मूक बधिरों के स्कूल में रह रहा है, जबकि इसी दौरान उनके बेटे का धर्म बदल दिया गया और वो मुसलमान बन गया.

इस नोटरी एफिडेविट में लिखी कुछ और बातें अहम हैं.

इसमें लिखा है कि मन्नू यादव बिना किसी दबाव के और अपनी स्वेच्छा से इस्लाम धर्म को स्वीकार करता है और वो चाहता है कि उसे अब अब्दुल मन्नान के नाम से ही समाज, रिश्तेदार और दोस्तों के बीच जाना जाए. ये नोटरी एफिडेविट 11 जनवरी को अटेस्ट करवाया गया था और इस पर दिल्ली सरकार द्वारा नियुक्त नोटरी पब्लिक ऑफिसर का नाम फिरोज अहमद लिखा है.

सोचिए मन्नू या मूक बधिर है, जो न कुछ बोल सकता है, जो न सुन सकता है, सिर्फ साइन लैंग्वेज समझ सकता है और इसी में अपनी बात कर सकता है. ऐसे 22 साल के लड़के का धर्म परिवर्तन हुआ और एफिडेविट में लिखा है कि धर्म बदलने का इतना बड़ा फैसला उसने खुद ले लिया.

एफिडेविट से बनाई गई लीगल शील्ड

इस बात ये ही आप समझ सकते हैं कि इस मामले में किस तरह लोगों का धर्म बदल गया और फिर इस तरह के एफिडेविट से एक लीगल शील्ड बनाई गई, ताकि ये लोग मामला सामने आने पर बच सकें.

अब इन लोगों ने जिस तरह से मन्नू यादव को अब्दुल मन्नान बनाया, ठीक उसी तरह से कई और मूक बधिरों का धर्म बदला और उन्हें मुसलमान बनाया और ये सारे लड़के इन लोगों को नोएडा की Deaf Society में मिले, जहां मूक बधिरों के लिए एक रेजिडेंशियल स्कूल है.

ये बात तो आपको और हैरानी कर देगी कि नोएडा की इस Deaf Society में पहले भी कई छात्रों का धर्म परिवर्तन किया गया है और इसकी शिकायत 2019 में भी सामने आई थी और ये बात खुद इस Deaf Society की डायरेक्टर रुमा रोहा ने आज लखनऊ में ATS द्वारा की गई पूछताछ में मानी है. इसके अलावा ATS ने उनसे 2011 से अब तक के सभी बच्चों की जानकारी देने के लिए कहा है और ऐसी संभावना है कि पिछले 10 वर्षों में इस Deaf Society के जरिए हजारों छात्रों का धर्म बदला गया.

इस सोसायटी को लेकर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि, पुलिस ने अपनी FIR में जिस मूक बधिर छात्र आदित्य गुप्ता का जिक्र किया है, उसका धर्म भी इन लोगों ने बदलवाया था, लेकिन कल ये छात्र रहस्यमय तरीके से अपने घर कानपुर लौट आया और बताया कि नौकरी, मकान और शादी कराने का झांसा देकर इन लोगों ने इसका हिंदू से इस्लाम धर्म में परिवर्तन कराया और इस मामले में भी ठीक वैसा ही धर्म परिवर्तन का प्रमाणपत्र सामने आया है, जैसा मन्नू यादव का अभी हमने आपको दिखाया. आज हमारी टीम इस सोसायटी के दफ्तर पर पहुंची, लेकिन हमें यहां कोई नहीं मिला.

NSA के तहत कार्रवाई

यानी ये मामला बहुत गंभीर है और इसकी तह तक जाने पर पता चलता है कि इन लोगों ने दिल्ली के जामिया नगर में धर्म परिवर्तन कराने की दुकान खोली हुई थी और इसी को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले में गिरफ्तार हुए लोगों के खिलाफ National Security Act 1980, गैंगस्टर एक्ट और इनकी सम्पत्ति जब्त करने के निर्देश दिए हैं.

किसी भी मामले में NSA के तहत तभी कार्रवाई होती है, जब सरकार को ये लगता हो कि कोई व्यक्ति उसे देश या राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले कार्यों को करने से रोक रहा है और ये कानून संदिग्ध व्यक्ति की गिरफ्तारी करने का भी अधिकार सरकार को देता है और इसी से आप समझ सकते हैं कि ये मामला कितना गंभीर है.

भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार

कल हमने आपको बताया था कि भारतीय संविधान का भाग 3 विभिन्न मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है और अनुच्छेद 25 से 28 में धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है. इनमें अनुच्छेद 25 के भाग एक में कहा गया है कि "सार्वजनिक आदेश, नैतिकता, स्वास्थ्य और इस भाग के अन्य प्रावधानों के अधीन, सभी व्यक्ति समान रूप से अपने विवेक की स्वतंत्रता और धर्म का अभ्यास और प्रचार करने के लिए आजाद हैं."

कहने का मतलब ये है कि भारतीय संविधान धर्म परिवर्तन की बात नहीं करता लेकिन धर्म के प्रचार को लोकतांत्रिक मानता है और धर्म के प्रचार से ही लोग ये समझते हैं कि वो अपने धर्म को फैलाने के लिए स्वतंत्र हैं. वर्ष 1947 में जब भारत को ब्रिटिश शासन से आजादी मिली और देश में भारत का संविधान बनाने के लिए संविधान सभा का गठन किया गया तो इसका निर्माण करते समय भी इस पर काफी जोरदार बहस हुई थी.

उस समय संविधान सभा के कई सदस्य इस बात को लेकर सहमत नहीं थे कि इसमें धर्म के प्रचार का शब्द जोड़ जाए. इन सदस्यों में से एक पुरुषोत्तम दास टंडन तब चाहते थे कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का धर्म परिवर्तन असंवैधानिक माना जाना चाहिए. उनके अलावा संविधान सभा के एक और सदस्य के.एम. मुंशी ने तब पुरुषोत्तम दास टंडन की बातों का समर्थन किया था और कहा था कि संविधान में इस बात का उल्लेख करना चाहिए कि जबरन और लालच देकर कराया गया धर्म परिवर्तन असंवैधानिक है, लेकिन इन बातों को तब संविधान सभा ने नहीं माना.

और इसकी वजह थी संविधान सभा के कुछ सदस्यों की जिद. इनमें कुछ सदस्य जो मुस्लिम और ईसाई धर्म से थे, उन्होंने मांग की कि धर्म के साथ संविधान में प्रचार शब्द को भी जोड़ा जाए और कुछ सदस्य इसमें धर्म परिवर्तन शब्द को भी जोड़ना चाहते थे लेकिन आखिर में काफी बहस के बाद प्रचार शब्द को ही संवैधानिक दर्जा हासिल हुआ.

धर्म परिवर्तन को लेकर कानून

उस समय इस पर अपना मत स्पष्ट करते हुए संविधान सभा की एडवायजरी कमेटी के चेयरमैन सरदार वल्लभभाई पटेल ने कहा था कि अल्पसंख्यों के हितों की रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी है. इन तमाम बातों का सार ये है कि संविधान का निर्माण करते समय भी ये सारे मुद्दे चर्चा के केन्द्र में थे, लेकिन तब इस पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकला और शायद यही वजह थी कि संविधान लागू होने के चार साल बाद ही वर्ष 1954 में देश की संसद में धर्म परिवर्तन को लेकर पहला बिल पेश हुआ लेकिन ये बिल कानून का रूप नहीं ले पाया.

संविधान में धर्म के प्रचार के शब्द को कुछ लोग हमेशा से धर्म परिवर्तन से जोड़ते आए हैं और इसे लेकर अपनी धर्मांतरण की दुकानें भी चलाते हैं जबकि इसका मूल उद्देश्य कभी ये नहीं था और सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने एक फैसले ये बात मानी थी. 

1960 के दशक में जब मध्य प्रदेश और उड़ीसा की राज्य सरकारें धर्म परिवर्तन को लेकर कानून लाईं तो इन कानूनों पर बहस करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी धर्म का प्रचार करने का मतलब ये नहीं है कि किसी और का धर्म इसके आधार पर बदला जाए.

ताजा मामले में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख़्तार अब्बास नकवी ने भी सरकार का रुख स्पष्ट किया और कहा कि ऐसे मामलों में कड़ी कार्रवाई की जाएगी.

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