DNA ANALYSIS: अमेरिका में माइनस में गई तेल की कीमत का 'कोरोना टेस्ट'
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DNA ANALYSIS: अमेरिका में माइनस में गई तेल की कीमत का 'कोरोना टेस्ट'

 पूरी दुनिया तेल को सबसे कीमती चीज मानती आई है. इसके लिए दुनिया में बड़े बड़े युद्ध भी हुए लेकिन लॉकडाउन और कोरोना वायरस ने बता दिया है कि इस तेल की कीमत कुछ भी नहीं है और समय आने पर ये तेल पानी से भी सस्ता हो सकता है. 

DNA ANALYSIS: अमेरिका में माइनस में गई तेल की कीमत का 'कोरोना टेस्ट'

आज सबसे पहले हम आपको बताएंगे कि कोरोना वायरस की महामारी ने दुनिया की किन-किन गलतफहमियों को हमेशा के लिए तोड़कर रख दिया है. ज्यादातर लोग आजादी को सस्ता मानते है लेकिन लॉकडाउन ने बता दिया है कि दुनिया में आजादी से कीमती कुछ नहीं है. इसके विपरीत पूरी दुनिया तेल को सबसे कीमती चीज मानती आई है. इसके लिए दुनिया में बड़े बड़े युद्ध भी हुए लेकिन लॉकडाउन और कोरोना वायरस ने बता दिया है कि इस तेल की कीमत कुछ भी नहीं है और समय आने पर ये तेल पानी से भी सस्ता हो सकता है. 

कहते हैं जीवन में एक ही चीज़ स्थाई है और वो है बदलाव. जो व्यक्ति, समाज या देश खुद को बदलाव के लिए तैयार नहीं करता उसे इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. इस समय बदलाव का महत्व पहचानने की सबसे ज्यादा जरूरत है क्योंकि पूरी दुनिया कोरोना वायरस के खिलाफ एक विश्वयुद्ध लड़ रही है और इस युद्ध में वही देश और वही समाज जीतेगा जो समय रहते खुद को बदल लेगा और जिसके पास कोरोना वायरस की वैक्सीन होगी. 

अगर आप अपना भविष्य बदलते हुए नहीं देख पा रहे हैं तो आपको इतिहास की मदद लेनी चाहिए. आज हम इतिहास की मदद से आपको समझाएंगे कि कैसे बदलाव से इनकार करने वाला देश अमेरिका आज बदलाव को अस्वीकार करने की भारी कीमत चुका रहा है. 

वर्ष 1875 में अमेरिका में ही सबसे पहले क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल की खोज हुई थी, इस कच्चे तेल को रिफाइन करके पेट्रोल, डीजल और दूसरे पेट्रोलियम पदार्थों में बदला जाता है. सैंकड़ों वर्षों से ये माना जाता है कि तेल के बगैर दुनिया की अर्थव्यवस्था नहीं चल सकती. इसीलिए दुनिया में कई बड़े युद्ध तेल के लिए ही लड़े गए. 

पहले और दूसरे विश्वयुद्ध से लेकर, इराक और खाड़ी युद्ध तक तेल ने युद्ध की आग भड़काने का काम किया है. यहां तक कि अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों पर किए गए परमाणु हमलों के केंद्र में भी तेल ही था और तेल की भूख ही थी. इसके बारे में हम आपको आगे बताएंगे लेकिन पहले आज की खबर के जरिए ये समझिए कि कैसे जिस तेल के लिए अमेरिका ने दुनियाभर में युद्ध लडे और पानी की तरह पैसा बहाया आज उस तेल को अमेरिका में कोई मुफ्त में भी खरीदने को तैयार क्यों नहीं है? अमेरिका में तेल के बड़े-बड़े व्यापारी ग्राहकों से कह रहे हैं कि बिना एक भी पैसा दिए हमसे जितना चाहे उतना तेल ले जाओ और हम उसके बदले में आपको पैसे भी देंगे. 

अब आप एक पल के लिए कल्पना कीजिए कि आप भारत में किसी पेट्रोल पंप पर अपनी गाड़ी में पेट्रोल भरवाने जाएं. पेट्रोल पंप का कर्मचारी आपकी गाड़ी में करीब 40 लीटर पेट्रोल भर दे. पेट्रोल की कीमत औसतन 70 रुपये प्रति लीटर भी मान ली जाए तो आपको करीब 2800 रुपये चुकाने होंगे.  लेकिन आपसे 2800 रुपये लेने की बजाय अगर पेट्रोल पंप का कर्मचारी उलटे आपको 280 रुपये दे दे तो आपको कैसा लगेगा?  जाहिर है आप खुश हो जाएंगे, क्योंकि एक तो फ्री में आपकी गाड़ी का टैंक फुल हो जाएगा और ऊपर से आपको कुछ पैसे भी मिल जाएंगे. 

आपके लिए खुश होने की कोई वजह नहीं है क्योकि भारत में ऐसा कुछ नहीं होगा लेकिन अमेरिका में कच्चे तेल के व्यापारी अपने ग्राहकों के साथ ऐसा ही कर रहे हैं. अमेरिका में इस समय बड़ी मात्रा में कच्चा तेल यानी क्रूड ऑयल उपलब्ध है लेकिन उसे स्टोर करके रखने की जगह कम पड़ने लगी है. ये सब कोरोना वायरस की वजह से हो रहा है, क्योंकि पूरी दुनिया की तरह अमेरिका की सड़कों पर पर भी गाड़ियों की संख्या कम हो गई है, विमान उड़ान नहीं भर पा रहे और उद्योग धंधे भी बंद है.  लोग तेल खरीद नहीं रहे और अब व्यापारियों के पास इस अतिरिक्त तेल को रखने की जगह नहीं है.  इसलिए अब वहां के व्यापारी कच्चा तेल खरीदने वालों को उलटा अपनी जेब से पैसे दे रहे हैं. 

अमेरिका के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब वहां कच्चे तेल की कीमत माइनस में चली गई. हालांकि तेल की कीमते घटती और बढ़ती रहती हैं और हो सकता है कि जल्द ही इस स्थिति में सुधार आ जाए. लेकिन कुछ घंटे पहले तक अमेरिका के तेल व्यापारी खरीददारों को मुफ्त में तेल देने के साथ-साथ उन्हें अपनी जेब से प्रति बैरल 30 डॉलर्स यानी करीब 2 हज़ार 300 रुपये भी दे रहे थे. 

दरअसल तेल की कीमतें भविष्य की जरूरतों के मद्दे नज़र तय होती हैं.  और मई के महीने को लेकर अमेरिका के तेल व्यापारियों और कंपनियों के बीच जो डील्स हुई थीं, वो आज एक्सपायर हो रही हैं. इसलिए व्यापारी जल्द से ये स्टॉक निकाल देना चाहते हैं क्योंकि एक तो उनके पास तेल जमा करने के लिए पर्य़ाप्त जगह नहीं है और दूसरी तरफ मई महीने में अर्थव्यवस्था फिर से शुरू होने की अभी कोई उम्मीद नहीं है. 

अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल का व्यापार लीटर में नहीं बल्कि बैरल में होता है. एक बैरल में लगभग 158.987 लीटर होते हैं. यानी करीब करीब 159 लीटर. इस समय दुनिया के पास एक लाख 8 हज़ार करोड़ लीटर तेल जमा करने की क्षमता है लेकिन दुनिया भर के 60 प्रतिशत ऑयल टैंक इस समय पूरी तरह से भर चुके हैं. 

अमेरिका में कच्चा तेल जमा करने वाले कई ऑयल डिपॉट के टैंक भी अगले एक से दो दिन में पूरी तरह भर सकते हैं, जबकि कुछ कैरेबियन देशों, दक्षिण अफ्रिका, अंगोला, ब्राजील और नाइजिरिया के पास भी आने वाले दिनों में कच्चा तेल जमा करने के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. 

इस समय दुनिया के अलग-अलग समुद्रो में बड़े बड़े जहाज़ों पर 2 हज़ार 543 करोड़ लीटर कच्चा तेल लदा हुआ है..लेकिन अब तेल कंपनियों को डर है कि किनारों पर पहुंचने के बाद इन्हें स्टोर कहां किया जाएगा? 

सउदी अरब से अमेरिका के लिए रवाना हुआ 31 करोड़ 79 लाख 74 हज़ार लीटर कच्चा तेल भी अभी बीच समुद्र में है और इस तेल को कहां जमा किया जाएगा इस पर अभी संशय बना हुआ है.  तेल की कीमतों में आई कमी देखकर आप लोग सोशल मीडिया पर मजाक भी कर रहे हैं और कह रहे हैं कि वो अब कुछ हज़ार रूपये में बड़े-बड़े ऑयल टैंक खरीद सकते हैं जबकि कुछ लोग कह रहे हैं कि अब एक लीटर तेल की कीमत पानी की बोतल की कीमत से भी कम हो गई है. यहां तक कि कच्चा तेल खरीदना अब Online Streaming Paltforms का Subscription लेने से भी सस्ता हो गया है. 

लेकिन यहां आपको ये समझना होगा कि अमेरिका में कच्चे तेल की कीमतों में आई कमी का असर भारत में पेट्रोल या डीजल की कीमत पर नहीं पड़ेगा. दरअसल, अमेरिका में कच्चे तेल की कीमतों का निर्धारण WTI crude price के तहत होता है.  WTI का अर्थ है West Texas Intermediate जबकि Organisation of Petroleum Exporting Countries यानी तेल का उत्पादन करने वाले OPEC देश Brent Crude Price के तहत कीमतों का निर्धारण करते हैं.  इस Organisation में 15 देश शामिल हैं, जिनमें सऊदी अरब, UAE और , कतर जैसे बड़े तेल उत्पादक देश भी हैं. 

भारत अपना ज्यादातर कच्चा तेल OPEC देशों से ही खरीदता है.  Brent Crude Price के तहत ये देश अब भी 25 डॉलर्स प्रति बैरल की कीमत पर कच्चा तेल बेच रहे हैं..क्योंकि इन देशों के पास अभी कुछ Storage क्षमता बाकी है. 

दुनिया में 66 प्रतिशत कच्चे तेल की कीमत Brent Crude Price के तहत ही तय की जाती है..इसलिए अमेरिका में तेल की कीमते गिरने का असर ज्यादातर देशों पर नहीं पड़ेगा. इनमें भारत भी शामिल है. 

कुछ दिनों पहले रूस और सऊदी अरब ने मांग कम होने के बावजूद तेल का उत्पादन बढ़ा दिया था जिसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत में भारी कमी आई है..लेकिन अब अमेरिका के समझाने पर दोनों देशों ने उत्पादन में कुछ कमी की है.  फिर भी पूरी दुनिया में लॉकडाउन की वजह से कच्चे तेल की मांग बहुत कम हो गई है और अगर ये लॉकडाउन लंबे समय तक जारी रहा तो हो सकता है कि अमेरिका की तरह अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी कच्चे तेल की कीमत में एतिहासिक गिरावट आ जाए. 

 

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