DNA ANALYSIS: क्या फ्रांस को मिल रही सेक्युलर होने की सजा?
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DNA ANALYSIS: क्या फ्रांस को मिल रही सेक्युलर होने की सजा?

कट्टरपंथी इस्लाम के नाम पर फ्रांस के लोगों का खून सिर्फ इसलिए बहाया जा रहा है, क्योंकि सैमुएल पैटी की हत्या के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) ने साफ कर दिया है कि वो अपने देश में किसी भी प्रकार की धार्मिक कट्टरता को बर्दाश्त नहीं करेंगे.

DNA ANALYSIS: क्या फ्रांस को मिल रही सेक्युलर होने की सजा?

नई दिल्ली: क्या किसी देश को सेक्युलर होने की सजा वहां रहने वाले लोगों का खून बहाकर दी जा सकती है? सेक्युलरिज्म (Secularism) यानी धर्मनिरपेक्षता फ्रांस और भारत समेत दुनियाभर के कई लोकतांत्रिक देशों की पहचान है. लेकिन फ्रांस (France) में इस पहचान की गला काट कर हत्या की जा रही है. इसी महीने की 16 तारीख को फ्रांस की राजधानी पेरिस (Paris) में इतिहास पढ़ाने वाले एक स्कूल टीचर की गला काटकर हत्या कर दी गई थी. सैमुएल पैटी नाम के इस स्कूल टीचर की गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने अपनी क्लास में बच्चों को अभिव्यक्ति की आजादी के बारे मे समझाते हुए पैगंबर मोहम्मद साहब के एक कार्टून का इस्तेमाल किया था. ये कार्टून कुछ वर्ष पहले फ्रांस की शार्ली हैब्दो नाम की मैगजीन ने छापा था और इसके बाद से फ्रांस में खून खराबे का जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक जारी है.

कल 29 अक्टूबर को भी पेरिस के पास नीस शहर में एक आतंकवादी ने पहले एक महिला का गला काटा और फिर दो लोगों की चाकू मारकर हत्या कर दी. इस हमले में कई लोगों के घायल होने की भी खबर है.

नीस शहर के मेयर का दावा है कि ये हमला शहर के मशहूर नॉट्रेडेम चर्च में हुआ और हमला करने वाला, लोगों की हत्या करते समय इस्लाम का धार्मिक नारा भी लगा रहा था.

हमलावर को गिरफ्तार कर लिया गया है और फ्रांस की पुलिस ने इसे एक आतंकवादी हमला मानते हुए इसकी जांच शुरू कर दी है. फ्रांस कल आधी रात के बाद से एक बार फिर लॉकडाउन में जाने वाला था और जब ये हमला हुआ, तब फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) अपने मंत्रियों के साथ लॉकडाउन पर ही चर्चा कर रहे थे. इस हमले की खबर जब फ्रांस की संसद तक पहुंची तो फ्रांस की नेशनल एसेंबली के अध्यक्ष ने इस आतंकवादी हमले की खबर सांसदों को दी और सांसदों ने एक मिनट का मौन रखकर मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी.

कट्टरपंथी इस्लाम के नाम पर फ्रांस के लोगों का खून बहाया जा रहा
फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस हमले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि फ्रांस कट्टर इस्लाम के सामने नहीं झुकेगा और आतंकवाद से सख्ती के साथ निपटेगा.

इसके अलावा कल 29 अक्टूबर को सऊदी अरब के शहर जेद्दा में भी फ्रांस के दूतावास के एक गार्ड पर चाकू से हमला किया गया है. फ्रांस के नागरिकों पर हो रहे आतंकवादी हमले अब पूरी दुनिया में चर्चा का केंद्र बन गए हैं और इस मुद्दे पर पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंट गई है. लोग पूछ रहे हैं कि दुनियाभर के जो मुस्लिम देश कुछ दिनों पहले तक बॉयकॉट फ्रांस की मुहिम चला रहे थे वो आज इन हमलों का विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं.

पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्की, ईरान और सऊदी अरब जैसे देशों में जो मुसलमान सड़कों पर उतरकर फ्रांस के खिलाफ नारे लगा रहे थे और ये कह रहे थे कि वो इस्लाम के अपमान को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे, वो लोग आज सड़कों पर क्यों नहीं उतरे.

कट्टरपंथी इस्लाम के नाम पर फ्रांस के लोगों का खून सिर्फ इसलिए बहाया जा रहा है, क्योंकि सैमुएल पैटी की हत्या के बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने साफ कर दिया है कि वो अपने देश में किसी भी प्रकार की धार्मिक कट्टरता को बर्दाश्त नहीं करेंगे और जो लोग धर्म के नाम पर दूसरों को डरा रहे हैं, जल्द ही उन्हें भी डर का सामना करना पड़ेगा.

42 साल के इमैनुएल मैक्रों इस समय पूरी दुनिया में कट्टरपंथी इस्लाम के विरोध का सबसे बड़ा चेहरा बन चुके हैं और ये बात दुनिया के उन देशों को नहीं पच रही जो खुद को इस्लामिक देशों का नेता साबित करना चाहते हैं.

मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातीर मोहम्मद का बयान
यही वजह है कि मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातीर मोहम्मद ने भी एक बहुत बड़ा बयान दिया है. उन्होंने ट्वीट करके कहा है कि मुसलमानों को ये अधिकार है कि वो फ्रांस के नागरिकों को सबक सिखाएं. इतना ही नहीं उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि मुसलमानों को गुस्सा होने का और फ्रांस के करोड़ों लोगों को मारने का अधिकार है.

महातिर मोहम्मद के इस बयान पर फ्रांस की सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई और कहा है कि अगर ट्विटर महातिर मोहम्मद के ट्वीट को नहीं हटाता तो ये माना जाएगा कि ट्विटर भी फ्रांस के नागरिकों की हत्या में शामिल है. इसके बाद ट्विटर ने माहितर मोहम्मद के इस ट्वीट को आपत्तिजनक बताते हुए हटा दिया.

पाकिस्तान की संसद में फ्रांस के खिलाफ प्रस्ताव
कुछ दिनों पहले तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा था कि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों को दिमागी इलाज की जरूरत है, जबकि पाकिस्तान भी खुलकर फ्रांस का विरोध कर रहा है. पाकिस्तान की संसद ने भी फ्रांस के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया था और फ्रांस से अपने राजदूत को वापस बुलाने का फैसला लिया था. लेकिन जोश-जोश में पाकिस्तान के सांसद ये भूल गए कि फ्रांस में पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान का कोई राजदूत है ही नहीं.

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने इस हमले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि फ्रांस कट्टर इस्लाम के सामने नहीं झुकेगा और आतंकवाद से सख्ती के साथ निपटेगा.

इस्लाम की कट्टरपंथी विचारधारा का समर्थन
तुर्की, पाकिस्तान और मलेशिया वो देश हैं जो खुद को अब इस्लामिक दुनिया का नया लीडर साबित करना चाहते हैं और इसलिए इन देशों के नेता खुलकर फ्रांस का विरोध कर रहे हैं और इस्लाम की कट्टरपंथी विचारधारा का समर्थन कर रहे हैं. यानी फ्रांस में आम नागरिकों के गले को काटा जा रहा है और तुर्की, पाकिस्तान और मलेशिया जैसे देशों को लगता है कि मुसलमान बदला लेकर अच्छा कर रहे हैं.

आज सोशल मीडिया पर भी दिन भर हैशटैग France Beheading Trend करता रहा. Beheading का अर्थ है किसी का सिर काट देना. जिसे आम भाषा में सिर कलम करना भी कहते हैं. मुसलमानों के पवित्र धर्म ग्रंथ कुरान में सिर कलम किए जाने का जिक्र है या नहीं इस पर इस्लाम के जानकारों के बीच काफी मतभेद है. लेकिन इस्लाम के कुछ जानकारों का मानना है कि कुरान में युद्ध के संदर्भ में दुश्मन का सिर कलम किए जाने का जिक्र आता है. लेकिन Beheading यानी किसी का गला काट देना आतंकवादियों के लिए तब आम हो गया, जब वर्ष 2015 में अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन ISIS ने बीहेडिंग यानी सिर कलम करने के वीडियो जारी करने शुरू किए थे. ISIS कई वर्षों तक ऐसे वीडियो जारी करता रहा और ये आतंकवादी संगठन अपने आतंकवादियों को गला काटने की बाकायदा ट्रेनिंग भी देता था. लेकिन अब आतंकवादी नहीं बल्कि फ्रांस जैसे देशों में रहने वाले वो मुसलमान भी सरेआम लोगों का गला काट रहे हैं जो कट्टरपंथी विचारधारा से प्रभावित हो चुके हैं. किसी धार्मिक स्थल में घुसकर या दिन दहाड़े बाजार में धार्मिक नारे लगाते हुए किसी का सिर काट देना, एक पूरे समाज के मन में भय पैदा कर सकता है और कट्टरपंथी इस बात को बहुत अच्छी तरह से समझ चुके हैं.

तुष्टिकरण से आजाद होने का समय
जिस देश में भी अल्पसंख्यक आबादी होती है वहां तुष्टिकरण की राजनीति जरूर होती है और ज्यादातर नेता निजी फायदे के लिए इसका शिकार हो जाते हैं और जो नेता इसका विरोध करते हैं उन्हें इमरान खान जैसे इस्लामिक कट्टरपंथी इस्लामोफोबिया का शिकार यानी मुसलमानों से नफरत करने वाला बता देते हैं. लेकिन फ्रांस ने पूरी दुनिया को इस्लामोफोबिया का विपरीत शब्द बताया है जो है, इस्लामिक फासीवाद फ्रांस के तमाम नेता आज एक सुर मे ये कह रहे हैं कि फ्रांस को इस्लामिक फासीदवाद से मुक्त कराना होगा. ये शब्द देकर फ्रांस ने पूरी दुनिया को बता दिया है कि तुष्टिकरण से आजाद होने का समय आ गया है और फ्रांस इस मामले में दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार है. आज हम आपको बताएंगे कि फ्रांस धर्मनिरपेक्षता का सिर धड़ से अलग करने वालों को रोकने के लिए क्या कर रहा है.

तुर्की, पाकिस्तान और मलेशिया जैसे देशों की नजर में इस तरह लोगों का गला काटना भले ही मुसलमानों द्वारा लिया गया बदला समझा जा रहा है. लेकिन दुनिया में अब भी कई देश ऐसे हैं जो इस तरह की घटनाओं का कड़ा विरोध कर रहे हैं और इस मुश्किल की घड़ी में फ्रांस के लोगों के साथ खड़े हैं.

आतंकवादी हमले की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की निंदा
भारत इन्हीं देशों में से एक है. फ्रांस में हुए आतंकवादी हमले की भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी निंदा की है और कहा है कि चर्च में घुस कर लोगों को मारना घृणा से भरा कार्य है और इस आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत, फ्रांस के साथ खड़ा है.

इतना ही नहीं, भारत के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि आतंकवाद को किसी भी रूप में जायज नहीं ठहराया जा सकता. भारत ने उन बयानों का भी कड़ा विरोध किया है जिनके जरिए फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पर व्यक्तिगत हमले और टिप्पणियां की गई हैं और कहा है कि इस तरह के बयानों को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. फ्रांस में इस्लामिक आतंकवाद के मुद्दे पर भारत सरकार का ये रुख अपने आप में अभूतपूर्व है.

भारत की नीति में बहुत बड़ा बदलाव
ये भारत की नीति में बहुत बड़ा बदलाव है क्योंकि, अक्सर भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर तटस्थ रुख अपनाता है. फिर वो चाहे हॉन्गकॉन्ग में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का मामला हो, ताइवान को चीन द्वारा धमकी दिए जाने का मामला हो, वीगर मुसलमानों की बात हो, इजरायल और फिलीस्तीन का विवाद हो, या फिर अर्मेनिया और अजरबैजान के बीच चल रहा युद्ध. इनमें से ज्यादातर मुद्दों पर भारत बहुत सोच समझकर और संतुलित बयान देता आया है. लेकिन फ्रांस में इस्लामिक कट्टरपंथ का उदय एक ऐसा मसला है जिससे भारत की अंदरूनी राजनीति भी प्रभावित होती है क्योंकि, पिछले कई दशकों से भारत भी फ्रांस की तरह कट्टर इस्लामिक आतंकवाद का शिकार रहा है और फ्रांस की तरह भारत के कुछ मुसलमानों के मन में बढ़ती कट्टर सोच भारत को भी फ्रांस की तरह प्रभावित करती है और चिंता में डालती है.

फ्रांस में बढ़ती कट्टरता की खबर को भारत के लोग भी बहुत ध्यान से देख रहे हैं. फ्रांस से आ रही ऐसी खबरें भारत में ट्रेंड हो रही हैं. भारत के लोग फ्रांस की तरफ इस उम्मीद से देख रहे हैं कि शायद फ्रांस अपने मजबूत इरादों से कट्टरपंथी इस्लाम का इलाज ढूंढ लेगा और इससे भारत को भी मदद मिलेगी.

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि, फ्रांस जल्द ही एक नया कानून लाने वाला है. इस कानून के लागू होने के बाद फ्रांस में संविधान धर्म से ऊपर आ जाएगा और फिर फ्रांस में धर्म के नाम पर किसी भी तरह की कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं बचेगी. अगर फ्रांस इसमें सफल रहा तो ये कानून पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन सकता है. भारत में भी Uniform Civil Code लागू करने की मांग हो रही है और अगर ऐसा हो गया तो भारत में एक तरह से संविधान सभी धर्मों से ऊपर हो जाएगा और कोई भी ऐसा लोकतांत्रिक देश जो खुद को विकसित और आधुनिक होते हुए देखना चाहता है, उसके लिए जरूरी है कि वहां के नागरिक हर विचारधारा से ऊपर संविधान को स्थान दें.

नया भारत, जहां तुष्टिकरण की कोई गुंजाइश नहीं
भारत आज भले ही कट्टर इस्लामिक आतंकवाद के मुद्दे पर फ्रांस के साथ खड़ा है. लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. वर्ष 2005 में जब डेनमार्क के एक अखबार ने पैगंबर मोहम्मद साहब का कार्टून छापा था. तब भी दुनियाभर के इस्लामिक देशों ने डेनमार्क का ऐसा ही विरोध किया था, जैसा आज वो फ्रांस का कर रहे हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि उस समय भारत ने इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाया था. तब भारत में UPA की सरकार थी और चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले थे. UPA की सरकार देश के अल्पसंख्यकों को नाराज नहीं करना चाहती थी. इसलिए पहले तो भारत सरकार ने इस कार्टून को लेकर डेनमार्क की सरकार के सामने अपना विरोध दर्ज कराया और फिर डेनमार्क के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के कार्यक्रम को भी रद्द कर दिया गया. लेकिन ये नया भारत है जहां तुष्टिकरण की कोई गुंजाइश नहीं है.

दूसरी वजह ये है कि पिछले कुछ दशकों में रणनीतिक और कूटनीतिक तौर पर भारत और फ्रांस के रिश्ते बहुत मजबूत हुए हैं. चाहे रफाल लड़ाकू विमानों की डील का मामला हो, या फिर फ्रांस के साथ मिलकर पाकिस्तान जैसे देशों को कड़ा जवाब देना हो. इन तमाम मुद्दों पर फ्रांस और भारत एक साथ खड़े रहे हैं.

इस दोस्ती की एक वजह भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के बीच वो पर्सनल केमिस्ट्री भी है जो दोनों नेताओं के बीच कई मौकों पर दिखाई दी है. प्रधानमंत्री मोदी पिछले 6 वर्षों में 5 बार फ्रांस की यात्रा कर चुके हैं और इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति मैक्रों की दोस्ती पूरी दुनिया ने देखी है. यही वजह है कि आज भारत इस मुश्किल घड़ी में फ्रांस के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है.

भारत को क्यों फ्रांस के मॉडल पर चलने की जरूरत है?
नफरत और कट्टरपंथ से हमारा देश भी अछूता है नहीं है और इसी से जुड़ी घटना कश्मीर के कुलगाम में हुई है. जहां आतंकवादियों ने बीजेपी के तीन स्थानीय नेताओं की गोली मारकर हत्या कर दी. जो जानकारी हमें मिली है उसके मुताबिक कुलगाम के भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव फिदा हुसैन अपने दो साथियों उमर राशीद बेग और उमर रमजान के साथ घर जा रहे थे. इसी दौरान आतंकवादियों ने तीनों को गोली मार दी. हमला करने के बाद आतंकवादी फरार हो गए. अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत को क्यों फ्रांस के मॉडल पर चलने की जरूरत है? ये असली असहनशीलता है और इससे मुकाबला करने के लिए भारत को अपनी सभी पुरानी व्यवस्थाओं को बदलना होगा.

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