DNA ANALYSIS: क्या पुलवामा में 40 जवानों की शहादत याद है हमें?
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DNA ANALYSIS: क्या पुलवामा में 40 जवानों की शहादत याद है हमें?

हमारे देश की याददाश्त बहुत कमज़ोर है और हम अक्सर ऐसी घटनाओं को भूल जाते हैं. लेकिन आज हम आपको पुलवामा हमले की एक बार फिर से याद दिलाएंगे. 

DNA ANALYSIS:  क्या पुलवामा में 40 जवानों की शहादत याद है हमें?

आज हम टुकड़े-टुकड़े गैंग और सबूत गैंग के लिए एक खास पेशकश लेकर आए हैं. लेकिन सबसे पहले हम आपसे एक सवाल पूछना चाहते हैं, और वो ये है कि कल का दिन खास क्यों है? आपमें से ज्यादातर लोग कहेंगे कि कल 14 फरवरी है और वेलेंटाइन डे है इसलिए ये दिन खास है. लेकिन कल का दिन इसलिए अलग है. क्योंकि एक साल पहले कल ही के दिन यानी 14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में CRPF के जवानों पर बहुत बड़ा हमला हुआ था और इस हमले में 40 जवान शहीद हो गए थे.

हमारे देश की याददाश्त बहुत कमज़ोर है और हम अक्सर ऐसी घटनाओं को भूल जाते हैं. लेकिन आज हम आपको पुलवामा हमले की एक बार फिर से याद दिलाएंगे. कई चैनल्स ज़ी न्यूज़ की रिपोर्टिंग और विश्लेषण को कॉपी करने की कोशिश करते हैं. लेकिन हमारे लिए राष्ट्रवाद फैशन या TRP का विषय नहीं है. आप चाहें तो हमें हैशटैग Pulwama Nahi Bhulenge पर ट्वीट करके भी अपनी प्रतिक्रियाएं दे सकते हैं और बता सकते हैं कि आपको इन जवानों की शहादत के बारे में क्या याद है?

कल यानी 14 फरवरी को पुलवामा हमले को एक साल पूरा हो जाएगा. लेकिन हमारे देश की याददाश्त बहुत कमज़ोर है. कल शुक्रवार है और हो सकता है कि आप अभी से Weekend पर पार्टी करने की योजना बना रहे हों. आपको ये भी याद होगा कि कल वेलेंटाइन्स डे है, इसलिए शायद आपने भी इसे लेकर भी कई Plans बनाए होंगे. 

कल शुक्रवार होने की वजह से आपके दिमाग में कोई नई फिल्म देखने का प्लान भी हो सकता है. आप में से ज्यादातर लोगों को ये भी अच्छी तरह याद होगा पिछले एक साल में किस-किस फिल्मी सितारे की कौन कौन सी फिल्में आई हैं. लेकिन क्या आपमें से किसी को भी पुलवामा हमले में शहीद हुए किसी भी जवान का नाम याद है?

14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में CRPF के 40 जवान एक फिदायीन हमले में शहीद हो गए थे. लेकिन क्या आपको इन जवानों में से किसी का भी नाम याद है? क्या आपने पिछले एक साल में इन जवानों के परिवारों को किसी भी प्रकार की मदद दी? क्या आपने इनमें से किसी के भी परिवार के पास जाकर उनका हाल पूछा? आप में से शायद 99 प्रतिशत लोगों का जवाब ना में होगा. 

इसलिए आज हम एक बार फिर देश की उस याददाश्त को ताज़ा कर रहे हैं. जिसमें फिल्मी सितारों और क्रिकेटर्स के लिए तो पूरी जगह होती है. लेकिन शहीदों की यादों को हमारा देश ज्यादा दिनों तक अपने दिल और दिमाग में नहीं रख पाता. 

एक साल पहले पुलवामा हमले के बाद पूरा देश क्रोधित था, आक्रोशित था और गुस्से से उबल रहा था.  क्योंकि 14 फरवरी 2019 को कश्मीर के पुलवामा में हमारे सुरक्षाबलों पर सबसे बड़ा हमला हुआ था. इस हमले में CRPF के 40 जवान, शहीद हो गये थे. 

ये हमला 2016 में उरी में हुए आतंकवादी हमले से भी बड़ा था और इसने पूरे भारत के धैर्य और सब्र को तोड़कर रख दिया था. जब देश के 40 जवान शहीद होते हैं, तो उसे हमला नहीं युद्ध कहा जाता है. तब देश का मूड ये था कि अगर हमला अभूतपूर्व है, तो बदला भी अभूतपूर्व होना चाहिए.  अगर हमला सबसे बड़ा है, तो भारत का बदला भी सबसे बड़ा होना चाहिए.  लोग ये कह रहे थे कि अब सर्जिकल स्ट्राइक नहीं. पूरी सफाई करनी होगी. 

जब इन शहीदों के शव दिल्ली लाए गए तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत देश के तमाम बड़े नेताओं ने इन्हें श्रद्धांजलि दी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने शहीदों की परिक्रमा भी की थी और तमाम पार्टियों के नेताओं ने भी इस मौके पर एकजुटता दिखाई थी. लेकिन ये एकजुटता कुछ ही समय तक कायम रही. इसके बाद देश की राजनीति का स्तर फिर से लगातार गिरने लगा. 

नेताओं ने ऐसे मौके का फायदा भी राजनीतिक हित साधने के लिए किया.  सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगाए गए और देश को ये बता दिया की राजनेताओं के लिए वोट बैंक से बड़ा कुछ नहीं होता. 

इस हमले के ठीक 12 दिनों के बाद यानी 26 फरवरी को भारत ने बदले की बड़ी कार्रवाई की. भारत के 12 मिराज 2000 फाइटर जेट्स ने पाकिस्तान के बालाकोट में जैश-ए- मोहम्मद के उस ठिकाने पर बम बरसाए. जहां आतंकवादियों को भारत पर हमले की ट्रेनिंग दी जाती थी.  इस हमले में 250 से 300 आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया गया था. 

तब पूरे देश में राष्ट्रवाद चरम पर था. लोग भारत माता की जय के नारे लगा रहे थे, सब पाकिस्तान पर की गई इस बदले की कार्रवाई से बहुत खुश थे. और ऐसा लग रहा था कि अब इस देश को कोई तोड़ नहीं पाएगा और इस देश की जनता अब कभी राष्ट्रवाद को तिलांजलि नहीं देगी. लेकिन दिन और हफ्ते बीतने के साथ-साथ देश ने सबकुछ भुला दिया.

देश का पूरा ध्यान होली दिवाली जैसे त्योहारों पर केंद्रित हो गया और राजनेता चुनावों की तैयारियों में जुट गए. और चुनावी तैयारी के नाम पर देश की सरकार पर ही सवाल उठाए जाने लगे.  कुछ नेताओं ने तो पुलवामा हमले को भारत सरकार की ही साजिश बता दिया तो कुछ नेताओं ने एयर स्ट्राइक के सबूत मांगे थे. 

सोचने वाली बात ये भी है कि पुलवामा हमले का दिन Guns and Roses वाला दिन था. यानी तब पूरी दुनिया हाथ में गुलाब का फूल लेकर वैलेंटाइन्स Day मना रही थी. लेकिन हमारे जवानों के हाथ में बंदूक थी . अपनी ज़िंदगी में उन्हें भी कभी ना कभी गुलाब का फूल खरीदने का विकल्प मिला होगा, पार्टी करने और चैन से अपना जीवन जीने का विकल्प मिला होगा. लेकिन उन्होंने Rose के बजाए Gun का चुनाव किया. 

दुर्भाग्य की बात ये है कि अपने आखिरी वक्त में इन जवानों को हथियार उठाने का मौका भी नहीं मिल पाया. किसी भी सैनिक के लिए ये सबसे बड़ी बात होती है कि जब हमला हो तो वो हथियारों से मुकाबला करे.  लेकिन अगर बिना हथियार उठाए, बिना युद्ध का मौका मिले ही किसी सैनिक की मृत्यु हो जाए तो उसे सबसे ज़्यादा मलाल होता है.

2016 में उरी में भी ऐसा ही हुआ था, जब सोए हुए सेना के जवानों पर आतंकवादियों ने हमला किया था और 14 फरवरी 2019 को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में भी ऐसा ही हुआ. जब CRPF की गाड़ी पर अचानक आत्मघाती हमला हो गया. 

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