DNA ANALYSIS: Farmers Protest में अलगाववादी एजेंडा की एंट्री, प्रधानमंत्री के खिलाफ क्‍यों लगे आपत्तिजनक नारे ?
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DNA ANALYSIS: Farmers Protest में अलगाववादी एजेंडा की एंट्री, प्रधानमंत्री के खिलाफ क्‍यों लगे आपत्तिजनक नारे ?

Farmers Protest: प्रतिबंधित खालिस्तान समर्थक संगठन Sikhs For Justice ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी में Sikhs For Justice ने लिखा है कि पंजाब (Punjab) को वो एक स्वायत्त राष्ट्र यानी अलग देश के तौर पर देखना चाहता है. 

DNA ANALYSIS: Farmers Protest में अलगाववादी एजेंडा की एंट्री, प्रधानमंत्री के खिलाफ क्‍यों लगे आपत्तिजनक नारे ?

नई दिल्‍ली:  किसान आंदोलन (Farmers Protest)  में खालिस्तान की एंट्री पर Zee News की रिपोर्टिंग का सच देश की सरकार ने माना और अब खुद देश में प्रतिबंधित संगठन ने भी खालिस्तान (Khalistan) की एंट्री का सच स्वीकार कर लिया है,  जिसे Zee News 10 दिसंबर से लगातार आप को दिखा रहा है.

  1. Sikhs For Justice का किसानों के हित और नए कृषि कानूनों से कोई लेना-देना नहीं 
  2. गणतंत्र दिवस की परेड के जवाब में ट्रैक्टर रैली निकालने को लेकर भड़काने की कोशिश की.
  3. प्रधानमंत्री मोदी के ख़िलाफ आपत्तिजनक नारेबाजी क्‍यों की गई?  
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Sikhs For Justice की चिट्ठी

प्रतिबंधित खालिस्तान समर्थक संगठन Sikhs For Justice ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को चिट्ठी लिखी है. चिट्ठी में Sikhs For Justice ने लिखा है कि पंजाब (Punjab) को वो एक स्वायत्त राष्ट्र यानी अलग देश के तौर पर देखना चाहता है. इसके लिए 15 अगस्त को लंदन में जनमत संग्रह की शुरुआत होगी. दुनिया के किसी भी हिस्से में मौजूद सिख इसमें भाग ले सकेंगे और बिना डरे अपनी राय दे सकेंगे.  इससे ये भी समझ आ जाएगा कि दुनिया, भारत के साथ जुड़े रहने पर पंजाब के भविष्य को कैसे देखती है. Sikhs For Justice ने स्वीकार किया है कि वो किसान आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे. 

हमने आपको इसी संगठन की एक और चिट्ठी दिखाई थी. जिसमें Sikhs For Justice ने ये घोषणा की थी कि जो भी दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड में खालिस्तान का झंडा लहराएगा, उसे 1 करोड़ 83 लाख रुपये ईनाम के तौर पर दिया जाएगा. इसी संगठन ने पंजाब के किसानों को गणतंत्र दिवस की परेड के जवाब में एक ट्रैक्टर रैली निकालने के लिए भड़काने की कोशिश की है. 

किसानों के हित और नए कृषि कानूनों से कोई लेना-देना नहीं

10 दिसंबर से Zee News यही बताने की लगातार कोशिश कर रहा है कि खालिस्तान का समर्थन करने वाले संगठन Sikhs For Justice का किसानों के हित और नए कृषि कानूनों से कोई लेना-देना नहीं है. वो सिर्फ किसान आंदोलन में घुसपैठ करके अपना एजेंडा चलाना चाहता है.

किसान आंदोलन का कल 49वां  दिन था. कल लोहड़ी का त्योहार भी था. लोहड़ी से नई फसल की शुरुआत होती है.  इस दिन किसान अलाव जलाकर अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करते हैं. लेकिन दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान अलाव की जगह नए कृषि कानून (Farm Laws) की कॉपी जला रहे हैं. 

प्रधानमंत्री के ख़िलाफ आपत्तिजनक नारेबाजी 

दिल्ली में सिंघु बॉर्डर पर कल कुछ महिलाओं ने लोहड़ी पर गीत गाकर प्रधानमंत्री (PM Narendra Modi) के ख़िलाफ आपत्तिजनक नारेबाजी की. 

किसान आंदोलन में ऐसा पहले भी हो चुका है. दिसंबर महीने में इसी आंदोलन में कुछ लोगों ने इसी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया था. 

सुप्रीम कोर्ट ने किसानों की समस्याएं सुनने के लिए 4 सदस्यों की कमेटी जरूर बनाई है.  लेकिन किसानों को ये मंजूर नहीं है.  इसका मतलब ये है कि किसान आने वाले दिनों में आंदोलन को और तेज करेंगे. 

 ZEE NEWS ने सबसे पहले दिखाई किसान आंदोलन में खालिस्तानी घुसपैठ की सच्चाई

सच कड़वा होता है. सच को दिखाने की हिम्मत सभी लोगों में नहीं होती है क्योंकि, इसके लिए बड़ी कुर्बानी देनी पड़ती है.  लोगों को सच दिखाना एक जोखिम वाला काम है.  ZEE NEWS ने किसान आंदोलन में खालिस्तानी घुसपैठ की कड़वी सच्चाई सबसे पहले लोगों को इसलिए दिखाई क्योंकि, हमें लगता है कि ये सच लोगों के लिए ठीक है और इसे भी जरूर जानना चाहिए और Zee News की ये कड़वी खबर फिर 100 प्रतिशत सही साबित हुई है.  Zee News ने आपको सबसे पहले बताया था कि किसान आंदोलन में खालिस्तान समर्थक गैंग की एंट्री हो गई है और इनका किसानों की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है.  ये केवल देश को तोड़ना चाहते हैं.

किसानों के कैंप में गुरचरण सिंह बनवैत की तस्वीर

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि किसान आंदोलन में कुछ खालिस्तानी घुस आए हैं और वो इंटेलिजेंस ब्‍यूरो के इनपुट्स  के साथ इस पर एफिडेविट दायर करेंगे. जो बातें केंद्र सरकार ने बताईं, वो बातें Zee News ने 1 महीने पहले ही बता दी थीं.  10 दिसंबर को हमने डीएनए में आपको दिखाया था कि किस तरह सिंघु बॉर्डर पर किसानों के कैंप में International Punjabi Foundation का बैनर लगा हुआ है. साथ में गुरचरण सिंह बनवैत की तस्वीर भी लगी है. गुरचरण सिंह बनवैत का नाम वर्ष 1986 में एयर इंडिया के एक प्लेन को क्रैश कराने की साजिश में सामने आया था.  हमने तभी बता दिया था कि किसान आंदोलन को, खालिस्तानी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. हम 10 दिसंबर को ही सच आपको बता चुके थे.  

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आंदोलन में खालिस्तान के झंडे 

10 दिसंबर को किसान आंदोलन पर दिखाई गई हमारी एक-एक खबर सही थी. हम ही थे जो आपको किसान आंदोलन का सच बता रहे थे. लेकिन जब से हमने किसान आंदोलन का सच बताया, तभी से आंदोलन में शामिल हुए कुछ लोग ये चाहते हैं कि हम सच न दिखाएं और ये कोई नई बात नहीं है. आपको याद होगा दिसंबर महीने में जब हमारे रिपोर्टर्स ने दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर इस आंदोलन में शामिल लोगों से ये पूछा था कि आंदोलन में खालिस्तान के झंडे क्या कर रहे हैं? तो अचानक भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने हमारे रिपोर्टर्स से बदसलूकी की, उनसे धक्का मुक्की की गई. 

किसान आंदोलन में  बैन कर दी गई हमारे सहयोगियों की एंट्री

किसान आंदोलन में हमारे सहयोगियों की एंट्री बैन कर दी गई. उनके पोस्टर्स लगाकर उनपर क्रॉस का निशान लगा दिया गया.  जब से ZEE NEWS ने किसान आंदोलन की असली तस्वीर लोगों को दिखाई है, तब से हम कुछ लोगों की आंखों में खटक रहे हैं.

आपने देखा होगा कि किस तरह से किसान आंदोलन के दौरान Zee News के रिपोर्टर्स लगातार कुछ लोगों के निशाने पर थे. ये हाल तब है जब हमने किसानों के विरोध में कभी कुछ नहीं कहा.  हमने सिर्फ खालिस्तानियों की बात की, जो ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों में बैठकर पाकिस्तान के बहकावे में आकर इस आंदोलन का दुरुपयोग कर रहे हैं.  देश का असली किसान हमसे नाराज नहीं है क्योंकि, किसानों के हित में जो काम Zee News ने किया, जितनी खबरें हमने दिखाईं, उतनी किसी ने नहीं दिखाई.  लेकिन फिर भी किसान आंदोलन की कुछ जगहों पर हमारे साथ ऐसा व्यवहार किया जाता रहा. 

शाहीन बाग में धरना स्‍थल पर जाने से रोक दिया गया

पिछले वर्ष 27 जनवरी को जब मैं (ज़ी न्‍यूज़ के एडिटर-इन-चीफ सुधीर चौधरी) खुद शाहीन बाग गया था, तो मुझे भी वहां धरना स्थल पर जाने से रोक दिया गया. वहां हमें रोकने के लिए मानव श्रृंखला बना दी गई. संविधान के पोस्टर्स हाथ में लेकर हमें हमारे ही देश के एक इलाके में घुसने से रोक दिया गया. 

इसी तरह वर्ष 2019 में हमारी रिपोर्टर रूफ़ी ज़ैदी ने JNU में नए नागरिकता कानून के विरोध के दौरान जब लोगों से सवाल पूछने की कोशिश की, तो उनसे भी बदसलूकी की गई और उन्हें भी वहां से पीछे हटने पर मजबूर कर दिया गया. 

वर्ष 2019 में ही 15 दिसंबर को हमारे रिपोर्टर रवि त्रिपाठी,  दिल्ली के आईटीओ पर CAA का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों से बात कर रहे थे.  तब 4-5 लोगों ने मिलकर हमारे कैमरामैन से  कैमरा छीनने की कोशिश की और धक्का देकर उन्हें जमीन पर गिरा दिया. 

इससे पहले 15 नवंबर 2019 को जेएनयू  में, वहां के छात्रों ने हमारी दो महिला रिपोर्टरों को कवरेज करने से रोका.  तब JNU में नए नागरिकता कानून का विरोध किया गया था.  उस समय हमारी टीम विरोध करने वाले उन छात्रों से भी बात करना चाहती थी.  लेकिन उन छात्रों ने हमारे सवालों का जवाब देने के बदले, हमारी रिपोर्टर्स को लगातार परेशान किया और नारेबाज़ी की. 

कठुआ गैंगरेप मामले की रिपोर्टिंग  

आपको जम्मू के कठुआ में आठ साल की मासूम की हत्या का केस भी याद करना चाहिए. जनवरी 2018 में एक मासूम बच्‍ची से गैंगरेप और फिर उसकी हत्या की खबर आई थी.  इस केस में 7 आरोपी थे,  इन आरोपियों में विशाल जंगोत्रा नाम का एक लड़का भी था.  Zee News की टीम को अपनी इनेवेस्टिगेटिव रिपोर्टिंग के दौरान पता चला कि घटना के वक्त ये लड़का कठुआ में मौजूद ही नहीं था.  वो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पढ़ाई कर रहा था.  कठुआ गैंग रेप केस में विशाल जंगोत्रा Zee News की ग्राउंड रिपोर्टिंग के बाद जुटाए गए सबूतों के आधार पर बरी हो गए. मामले की सुनवाई कर रही पठानकोट की स्पेशल कोर्ट ने अपने फैसले में Zee News की Investigative Reporting की तारीफ की थी. 

ज़ी न्‍यूज़ ने बताया, बालाकोट एयर स्‍ट्रइक का एक एक सच

आपको याद होगा पुलवामा हमले के 12 दिन बाद 26 फरवरी 2019 को भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में बम बरसाए थे.  भारतीय वायुसेना ने जैश-ए- मोहम्मद के उन ठिकाने पर बम बरसाए, जहां आतंकवादियों को भारत पर हमले के लिए ट्रेनिंग दी जाती थी.  भारत के 12 मिराज 2000 फाइटर जेट्स के इस हमले में 250 से 300 आतंकवादियों के मारे जाने का दावा किया गया था. हमने आपको इस एयर स्‍ट्राइक का एक-एक सच बताया था. लेकिन तब कुछ नेताओं को इस खबर पर यकीन नहीं हुआ.  वो तब सरकार से एयर स्ट्राइक के सबूत मांग रहे थे. 

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