DNA ANALYSIS: सरकार के साथ बातचीत रही बेनतीजा, जानिए कृषि कानून को लेकर इतने आशंकित क्यों हैं किसान?
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DNA ANALYSIS: सरकार के साथ बातचीत रही बेनतीजा, जानिए कृषि कानून को लेकर इतने आशंकित क्यों हैं किसान?

सरकार के साथ किसानों की बातचीत 3 दिसंबर को प्रस्तावित थी. लेकिन सरकार ने 1 दिसंबर को ही किसानों को बात करने के लिए बुला लिया. किसानों का कहना है कि उन्हें कमेटी के गठन से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जब तक कमेटी किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचती, किसान अपना आंदोलन जारी रखेंगे.

DNA ANALYSIS: सरकार के साथ बातचीत रही बेनतीजा, जानिए कृषि कानून को लेकर इतने आशंकित क्यों हैं किसान?

नई दिल्ली: कल मंगलवार 1 दिसंबर को आंदोलन कर रहे किसानों और केंद्र सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण बैठक हुई. ये बैठक 4 घंटे तक चली. इसमें सरकार ने किसानों के सामने प्रस्ताव रखा कि वो अधिकतम 5 सदस्यों के नाम सुझाएं. जो एक एक्सपर्ट कमेटी का हिस्सा होंगे. इस कमेटी में सरकार के मंत्री भी होंगे और कुछ कृषि विशेषज्ञ भी होंगे.

सरकार के साथ किसानों की ये बातचीत 3 दिसंबर को प्रस्तावित थी. लेकिन सरकार ने 1 दिसंबर को ही किसानों को बात करने के लिए बुला लिया. सरकार का कहना है कि बातचीत अच्छी रही, जबकि किसानों का कहना है कि वो 3 दिसंबर को एक बार फिर बातचीत के लिए जाएंगे.

दोनों पक्षों के बीच अगली बैठक 3 दिसंबर को
बैठक के दौरान सरकार ने किसानों के सामने कृषि कानूनों पर चर्चा के लिए समिति बनाने का सुझाव रखा, लेकिन किसानों ने इससे इनकार कर दिया. दोनों पक्षों के बीच अगली बैठक गुरुवार 3 दिसंबर को होगी.

किसानों का ये भी कहना है कि उन्हें कमेटी के गठन से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन जब तक कमेटी किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचती, किसान अपना आंदोलन जारी रखेंगे.

इस बातचीत में सरकार की तरफ से तीन मंत्री शामिल हुए, इनके नाम हैं केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेल मंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोमप्रकाश.

इस दौरान सरकार ने बाकायदा किसानों को एक प्रेजेंटेशन के जरिए समझाया कि MSP और APMC को लेकर किसानों की जो चिंताएं हैं वो निराधार हैं और सरकार किसानों के हितों का पूरा ख्याल रखेगी.

MSP की लिखित गारंटी
इस बैठक में किसानों ने सरकार के सामने मांग रखी कि वो तीनों कृषि कानूनों को वापस ले और MSP की लिखित गारंटी दे.

जबकि सरकार ने कहा है कि किसान जो बदलाव चाहते हैं उन्हें पॉइंट्स में लिखकर दिया जाए और इस मामले को सुलझाने के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया जाए.

किसानों की तरफ से 35 प्रतिनिधियों ने इस बैठक में हिस्सा लिया, इनमें 32 अलग अलग किसान संगठनों के नेता भी शामिल थे. 

 किसानों ने कहा, ये कानून उनके लिए डेथ वारंट
सरकार के साथ किसानों की जो बैठक हुई उसमें किसानों ने कहा कि ये कानून उनके लिए डेथ वारंट है. किसानों ने इसे काला कानून भी बताया. किसानों का ये भी कहना है कि कमेटी का गठन तो ठीक है. लेकिन उन्हें ऐसा लगता है कि ये उन्हें टालने की कोशिश है, जबकि सरकार का कहना है कि ये तीनों कानून किसानों के हित में हैं. लेकिन फिर भी अगर किसान इसमें बदलाव चाहते हैं तो उन्हें लिखकर अपनी बातें सरकार से कहनी होगी.

धीरे धीरे अब आंदोलनकारी दिल्ली में आने और यहां से जाने के रास्तों को घेरने लगे हैं. आशंका है कि आने वाले दिनों में बाहरी राज्यों से दिल्ली में आना और दिल्ली से बाहर जाना मुश्किल हो जाएगा.

सरकार अब भी लगातार MSP पर किसानों से फसल खरीद रही
एक सच ये भी है कि सरकार अब भी लगातार MSP पर किसानों से फसल खरीद रही है और अब तक 29 लाख 70 हज़ार किसान इसका फायदा उठा चुके हैं. वर्ष 2020-21 के लिए सरकार 60 हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा की फसल MSP पर किसानों से खरीद चुकी है. इसमें से 64 प्रतिशत धान की फसल पंजाब के किसानों से खरीदी गई है, जबकि 18 प्रतिशत फसल हरियाणा के किसानों से खरीदी गई है. इसके अलावा उत्तर प्रदेश के किसानों से 7 प्रतिशत, उत्तराखंड से 3 प्रतिशत, तमिलनाडु से 1 प्रतिशत और अन्य राज्यों से 2 से 5 प्रतिशत धान की फसल सरकार ने MSP पर खरीदी है.

कुल मिलाकर इस साल सरकार ने गेहूं और चावल की जो कुल फसल किसानों से खरीदी है उसमें से 82 प्रतिशत चावल और 52 प्रतिशत गेहूं की फसल हरियाणा और पंजाब के किसानों से ही खरीदी गई है.

इसलिए ये समझना थोड़ा मुश्किल हो जाता है कि जिस राज्य के किसानों को MSP का सबसे ज्यादा फायदा मिल रहा है. वही किसान MSP को लेकर इतने आशंकित क्यों हैं?

किसानों की सारी आशंकाएं और मांगे पूरी तरह से गलत नहीं
इन किसानों की सारी आशंकाएं और मांगे पूरी तरह से गलत नहीं हैं. हम पहले भी कह चुके हैं कि हम ज़मीदार किसानों के साथ नहीं, बल्कि देश के उन 86 प्रतिशत छोटे किसानों के साथ हैं जिनके पास खेती के लिए 5 हैक्टेयर ज़मीन भी नहीं है और जो मुश्किल से अपना पेट भर पाते हैं. लेकिन फिर भी हर मुश्किल हालात में देश के 135 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए फसल उगाते हैं. अब इन किसानों के बीच कुछ देश विरोधी तत्वों की एंट्री हो चुकी है. कल हमने आपको दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर खड़े एक ऐसे ट्रैक्टर की तस्वीरें दिखाई थी जिस पर AK 47 राइफल बनी हुई थी और खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगे हुए थे. आज जब Zee News की टीम इस जगह पर एक बार फिर पहुंची और इस ट्रैक्टर को लेकर सवाल किया तो हमारे रिपोर्टर का विरोध शुरू हो गया  और हमारी टीम को वहां से जाने पर मजबूर कर दिया गया.

कुल मिलाकर जहां जहां देश विरोधी ताकतें सक्रिय हैं वहां वहां Zee News की एंट्री बैन हो जाती है. पहले ऐसा JNU में हुआ, फिर शाहीन बाग में हुआ और अब किसानों के आंदोलन की रिपोर्टिंग के दौरान भी ऐसा ही हो रहा है. इस आंदोलन में अब धीरे धीरे वो सारे चेहरे दिखाई देने लगे हैं जो कभी शाहीन बाग में दिखाई देते हैं तो कभी JNU के टुकड़े टुकड़े गैंग के साथ दिखाई देते हैं. आज ये सभी लोग किसान आंदोलन का भी हिस्सा बन गए हैं और इसीलिए हम कह रहे हैं कि इस आंदोलन को हाइजैक कर लिया गया है.

हम पिछले कुछ दिनों से लगातार इस आंदोलन में खालिस्तान, राजनैतिक पार्टियों, और विदेशी ताकतों की एंट्री के सबूत दिखा रहे हैं और आज इसका एक बड़ा सबूत कनाडा जैसे देश से आया है. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि उन्हें भारत में आंदोलन कर रहे किसानों की चिंता है और वो चाहते हैं कि शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने वाले लोगों को किसी तरह का कोई नुकसान न पहुंचाया जाए.

जस्टिन ट्रूडो की तुष्टीकरण की राजनीति
जस्टिन ट्रूडो तुष्टीकरण की राजनीति कर रहे हैं. कनाडा की कुल आबादी में करीब 4 प्रतिशत भारतीय मूल के हैं. यानी कनाडा में रहने वाले भारतीयों की संख्या करीब 15 लाख है और इनमें से लाखों लोगों के पास कनाडा में वोट डालने का अधिकार भी है. इनमें सिखों की आबादी सबसे ज्यादा है और कनाडा में सिख राजनैतिक रूप से बहुत प्रभावशाली माने जाते हैं और इसीलिए जस्टिन ट्रूडो अपने इस वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहते. कनाडा की कुल आबादी में भारतीय मूल के लोगों की हिस्सेदारी भले ही सिर्फ 4 प्रतिशत है. लेकिन इस समय कनाडा की संसद में 22 सांसद भारतीय मूल के हैं. इसलिए जस्टिन ट्रूडो हॉन्ग कॉन्ग, थाइलैंड, फ्रांस, बांग्लादेश और पोलेंड जैसे देशो में हो रहे प्रदर्शनों पर कुछ नहीं बोलते. लेकिन भारत के किसान आंदोलन में उनकी विशेष रुचि दिखाई देती है.

जस्टिन ट्रूडो की सरकार पर खालिस्तानियों के प्रति हमदर्दी दिखाने के आरोप भी लग चुके हैं. 2018 में जब कनाडा के प्रधानमंत्री भारत आए थे तो इस दौरान दी गई एक डिनर पार्टी में खालिस्तानी आतंकवादी को भी न्योता भेजा गया था. दावा किया गया था कि ये आतंकवादी ट्रूडो के आधिकारिक दल का हिस्सा था. हालांकि बाद में कनाडा की सरकार ने सफाई दी थी कि ये आतंकवादी उनके आधिकारिक डेलीगेशन के साथ नहीं था.

लेकिन कनाडा की सरकारों पर लंबे समय से खालिस्तानी समर्थकों के साथ नर्म रुख अपनाने के आरोप लगते रहे हैं और किसान आंदोलन में जस्टिन ट्रूडो का कूदना भी कहीं न कहीं इसी तरफ इशारा करता है.

आज जब सरकार ने किसानों को बातचीत के लिए बुलाया तो इस दौरान सरकार की तरफ से केंद्रीय राज्य मंत्री सोमप्रकाश भी शामिल थे. जिनके पास फिलहाल वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय है. सोमप्रकाश पंजाब को होशियारपुर से सांसद हैं और माना जाता है कि पंजाब के किसानों के बीच उनकी पकड़ मजबूत है. इसलिए सरकार ने उन्हें इस बातचीत का हिस्सा बनाया है.

विधवाओं के गांव में जाकर उन महिलाओं का हाल चाल क्यों नहीं पूछते?
भारत में करीब 15 करोड़ किसान हैं और 24 करोड़ लोग ऐसे हैं. जो किसी न किसी रूप में कृषि से जुड़े हैं और इनमें से ज्यादातर छोटे और गरीब किसान हैं लेकिन जो लोग आज हमें ट्रोल कर रहे हैं. हमारी पत्रकारिता पर सवाल उठा रहे हैं वो खुद इन किसानों की बात नहीं करते, जबकि Zee News आज से नहीं बल्कि वर्षों से किसानों की समस्याओं को देश के सामने रखता आया है, फिर चाहे बात पंजाब में विधवाओं के उन गांवों की हो जहां लगभग सभी पुरुष किसानों ने आत्महत्या कर ली है, या फिर पराली की समस्या से वैज्ञानिक तरीके से निपटने वाले किसानों की कहानी हो, Zee News ने किसानों की समस्याओं और उनकी कोशिशों का हर पहलू देश को दिखाया है. जो लोग हमारा विरोध कर रहे हैं उनसे हमारा सवाल ये है कि इन लोगों को किसानों की इतनी ही चिंता है तो फिर ये लोग विधवाओं के गांव में जाकर उन महिलाओं का हाल चाल क्यों नहीं पूछते, जिनके किसान पतियों ने कर्ज़ की वजह से आत्महत्या कर ली.

रात में सड़क पर खाना बनाने को मजबूर किसान
ये लोग रात में सड़क पर खाना बनाने पर मजबूर किसानों की मदद के लिए क्यों नहीं जाते. ये लोग ऐसा इसलिए नहीं करते क्योंकि, इन्हें इसमें नहीं बल्कि सिर्फ किसानों के नाम पर राजनीति करने में दिलचस्पी है. लेकिन Zee News हमेशा अपना कर्तव्य निभाना जानता है. Zee News की रिर्पोटिंग टीम ने आंदोलन कर रहे किसानों के साथ एक पूरी रात बिताई और ये समझने की कोशिश की इतनी ठंड में ये किसान खुद को आंदोलन के लिए कैसे तैयार करते हैं और इनकी असली समस्याएं क्या हैं.

ये रिपोर्ट को दिखाने से पहले हमें प्रसिद्ध कवि सुदामा पांडेय उर्फ धूमिल की एक कविता याद आ रही है जिसका शीर्षक है.. रोटी और संसद. इसमें वो कहते हैं-

एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं- 'यह तीसरा आदमी कौन है?'
मेरे देश की संसद मौन है.

किसान पूछ रहे, सरकार उनकी मांगें कब मानेगी?
70 साल से देश की संसद इस सवाल पर मौन रही है कि वो तीसरा आदमी कौन है? लेकिन हमने सर्द रातों में सड़क पर रोटियां बेल रहे किसानों से ही इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश की.

पहले चूल्हा जलाया गया और फिर किसानों ने रोटियां बनानी शुरू कर दीं. साल भर मेहनत करके खेत में अनाज उपजाने वाले अन्नदाता, अब उसी अनाज से अपने लिए रोटियां बना रहे हैं. लकड़ियां सूखी नहीं हैं, इसलिए आग सही से जल नहीं रही है और कुछ रोटियां जल भी गई हैं लेकिन बनाने वालों का जोश कम नहीं है.

रात के करीब 9 बजे हैं. कुछ किसान खाना बना रहे हैं. साथ ही दिन भर हुए प्रदर्शन की बातें भी हो रही है. किसान एक-दूसरे से ये भी पूछ रहे हैं कि सरकार उनकी मांगें कब मानेगी.

दिल्ली और हरियाणा के बीच टिकरी बॉर्डर सील है. यहां पर किसानों का प्रदर्शन चल रहा है. शाम होते-होते मीडिया के कैमरे भी यहां से वापस चले जाते हैं. हालांकि इस आंदोलन में Zee News छोटे और गरीब किसानों के साथ है और उनके हक की बात कर रहा है.

ज़ी न्यूज़ की टीम ने प्रदर्शन कर रहे किसानों की मुश्किलों को समझने की कोशिश की और पूरी रात किसानों के साथ ही बिताई. आंदोलन कर रहे किसान अपने अपने गुटों में बैठ कर अगले दिन की रणनीति बनाते हैं. कुछ घंटे बीत चुके हैं. इस बीच खाना बनकर तैयार हो गया है. कई रोटियां अधपकी हैं, लेकिन किसानों ने दाल और अचार के साथ इन्हीं रोटियों को खाकर अपनी भूख मिटाई.

आंदोलन कर रहे किसानों को डर है कि सरकार MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था खत्म करने वाली है, हालांकि सरकार कहती है कि ऐसा कुछ भी नहीं है.

आज़ादी के बाद से भारत में किसानों पर सिर्फ राजनीति होती रही है. इसी का नतीजा है कि दिल्ली की इस ठंड में भी पंजाब के किसान सड़कों पर प्रदर्शन के लिए बैठे हुए हैं.

किसानों के इस हालात के लिए वो नेता भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने किसानों को नए कृषि कानून के बारे में समझाने के बदले कई और अफवाहें फैला दी.

किसानों ने बताया अपना डर
किसानों ने अपना डर Zee News को बताया और फिर कई किसान खुले आसमान के नीचे ही कंबल ओढ़कर सो गए. शायद आप भी अपने घर पर सर्दी को दूर करने की कोशिशें कर रहे होंगे. हालांकि खुले में किसी सड़क पर ऐसा करना बहुत मुश्किल है.

पिछले कई वर्षों में किसानों की परेशानियों के बारे में जितनी खबरें Zee News ने देश तक पहुंचाई है उतनी किसी ने नहीं पहुंचाई, हम किसानों के हर सुख और दुख में शामिल रहे हैं और देश को ये भी बताते रहे हैं कि हमारे अन्नदाता कितने संघर्षों के बाद देश के 135 करोड़ लोगों का पेट भरते हैं.

किसानों की समस्याओं को समझते-समझते पूरी रात बीत गई. वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी सुबह की तैयारियां करने लगे. देश में किसानों के नाम पर होने वाली राजनीति की वजह से ऐसे प्रदर्शन हो रहे हैं, और ऐसा करके हमारे किसान कुछ नेताओं का मोहरा बन गए हैं.

इस समय खेतों में कौन काम कर रहा है?
क्या आपके मन में ये सवाल नहीं आ रहा कि हर दिन हज़ारों किसान आंदोलन कर रहे हैं तो फिर इस समय इनके खेतों में कौन काम कर रहा है. इस समय पंजाब में रबी की फसल का सीज़न है और इस दौरान बड़े पैमाने पर गेहूं और सरसो बोया जाता है. लेकिन जब हज़ारों किसान आंदोलन कर रहे हैं तो इनके खेतों का क्या हो रहा होगा?

आज हमने इस बारे में देश के अलग अलग राज्यों के किसानों से बात की और ये समझने की कोशिश की है कि ये किसान इस आंदोलन का हिस्सा क्यों नहीं हैं और जो किसान दिल्ली नहीं आए हैं वो अभी क्या कर रहे हैं. हमें पता चला कि ज्यादातर किसान इस समय भी अपने खेतों में व्यस्त हैं और फसल की बुआई का काम कर रहे हैं. इनमें से कुछ किसानों का तो यहां तक कहना था कि वो लगातार कृषि करके भी एक तरह से आंदोलन ही कर रहे हैं.

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