DNA ANALYSIS: किसानों की Soft Power कब पहचानेगा देश?
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DNA ANALYSIS: किसानों की Soft Power कब पहचानेगा देश?

भारत की सॉफ्ट पावर (Soft Power) भारत के किसान हैं. जो कड़ी धूप में परिश्रम करते हैं, अन्न उगाते हैं, अपनी फसल बेचने के लिए संघर्ष करते हैं लेकिन फिर भारत अपनी इस Soft Power का सम्मान नहीं कर पाता. नए कृषि कानूनों (Farm Laws)  में बदलाव के लिए किसान सड़क पर हैं, जबकि दक्षिण कोरिया ने अपनी सॉफ्ट पावर यानी K Pop को बचाने के लिए 72 वर्ष पुराने एक कानून में बदलाव कर दिया है.

DNA ANALYSIS: किसानों की Soft Power कब पहचानेगा देश?

नई दिल्ली: आज हम देश की सॉफ्ट पावर की बात करेंगे और इसे समझने के लिए हम दो तस्वीरों की बात करेंगे. एक तस्वीर कठिन परिश्रम करके देश के 135 करोड़ लोगों के लिए अन्न उगाने वाले किसानों की है और दूसरी तस्वीर दक्षिण कोरिया के एक K Pop Band BTS की है. किसान भारत की सॉफ्ट पावर हैं और K Pop दक्षिण कोरिया की सॉफ्ट पावर. नए कृषि कानूनों में बदलाव के लिए किसान सड़क पर हैं, जबकि दक्षिण कोरिया ने अपनी सॉफ्ट पावर यानी K Pop को बचाने के लिए 72 वर्ष पुराने एक कानून में बदलाव कर दिया है.

दक्षिण कोरिया जानता है अपनी Soft Power का सम्मान करना 
दक्षिण कोरिया के संविधान के मुताबिक वहां के 19 से 28 वर्ष के पुरुषों के लिए 18 महीने तक देश की सेना में सेवा देना अनिवार्य है. लेकिन दक्षिण कोरिया के सबसे मशहूर K Pop Band, BTS के एक सदस्य की उम्र इस महीने 28 वर्ष होने जा रही है. BTS को इसका नुकसान न उठाना पड़े इसीलिए दक्षिण कोरिया की सरकार ने 72 साल पुराने कानून में बदलाव किया है. दक्षिण कोरिया की सरकार ने अपने देश के K Pop stars को ये रियायत दी है कि वो अनिवार्य मिलिट्री सर्विस को 30 वर्ष की उम्र तक स्थगित कर सकते है. यानी दक्षिण कोरिया अपनी Soft Power का सम्मान करना जानता है जबकि दूसरी तरफ भारत के 86 प्रतिशत किसान आज भी गरीबी की हालत में जी रहे हैं और उन्हें चाहकर भी न्याय नहीं मिल पाता.

लेकिन इन दोनों ख़बरों से एक और निष्कर्ष निकलता है और वो ये है कि कानून सबसे ऊपर होता है. दक्षिण कोरिया के K Pop stars को 2 साल की रियायत दी गई है. लेकिन कानून को समाप्त नहीं किया गया, 30 वर्ष की उम्र के बाद इन स्टार्स को सेना में सेवा देनी ही होगी. ये बात किसानों समेत हमारे देश के सभी लोगों को भी समझना चाहिए कि कानून मतलब कानून होता है और देश का हर नागरिक किसी न किसी रूप में कानूनों से बंधा हुआ है.

दक्षिण कोरिया ने BTS के लिए 72 साल साल पुराने कानून में बदलाव कैसे और क्यों किया. ये हम आपको विस्तार से बताएंगे. लेकिन पहले बात किसानों की करते हैं.

किसानों ने धमकी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो...
आज देश की राजधानी दिल्ली में किसानों के आंदोलन का 8वां दिन है. सरकार के साथ किसानों की बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला और अब किसानों ने मांग की है कि नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया जाए.

किसानों ने धमकी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वो दिल्ली और आस पास के शहरों की कई सड़कों को ब्लॉक कर देंगे.

कई रास्तों पर भारी ट्रैफिक जाम
दिल्ली के सिंघु और टिकरी बॉर्डर इस आंदोलन की वजह से आज भी बंद हैं.  किसानों ने दिल्ली और नोएडा को जोड़ने वाले कई रास्तों को भी बंद कर दिया था. हालांकि अब ज्यादातर रास्ते खोल दिए गए हैं. लेकिन अब भी इनमें से कई रास्तों पर भारी ट्रैफिक जाम है. अगर आप भी इन रास्तों से अक्सर गुज़रते हैं तो अगले कुछ दिनों तक आप ट्रैफिक का अपडेट लेने के बाद ही घर से बाहर निकलें. 

किसानों और सरकार के बीच आज दूसरे राउंड की बातचीत होगी, उससे पहले 2 दिसंबर को गृहमंत्री अमित शाह ने रेल मंत्री पीयूष गोयल और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मुलाकात की और सूत्रों के मुताबिक अमित शाह आज पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से भी मिल सकते हैं.

देश के कृषि मंत्री ने कहा है कि सरकार इस पर गौर कर रही है कि इस मामले को बातचीत के ज़रिए किस हद तक सुलझाया जा सकता है, दूसरी तरफ़ किसानों ने कहा है कि अगर सरकार ने उनकी बातें नहीं मानी तो दिल्ली की तमाम सड़कों को आंदोलनकारी बंद कर देंगे.

नेताओं का मकसद अखबारों और न्यूज़ चैनलों पर अपनी तस्वीरें दिखाना
आपने देखा होगा कि देश के कई नेता ऐसे हैं जो किसानों के इस आंदोलन में शामिल होने के लिए तैयार हो गए. इन नेताओं का मकसद अखबारों और न्यूज़ चैनलों पर अपनी तस्वीरें दिखाना है, ताकि इनकी राजनीति की दुकानें चलती रहें.

भारत ही नहीं अब उन देशों में भी किसानों के समर्थन में रैलियां निकाली जा रही हैं, जहां भारतीय मूल के लोगों की संख्या ज्यादा है. उदाहरण के लिए कनाडा के कई शहरों में ऐसी ही रैलियां निकाली गईं और ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में भी 5 दिसंबर को एक रैली का आयोजन होगा. लेकिन इन सबके बावजूद ये मामला आसानी से सुलझता हुआ नहीं लग रहा है.

आगे की राह मुश्किल?
सरकार ने किसानों को सुझाव दिया था कि सरकार इस विवाद को सुलझाने के लिए एक कमेटी बनाएगी, जिसमें अधिकतम 5 प्रतिनिधि किसानों की तरफ़ से होंगे. इसके अलावा इसमें सरकार के प्रतिनिधि भी होंगे और कृषि विशेषज्ञ भी होंगे. लेकिन किसान इस मांग को ख़ारिज कर चुके हैं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि 1 दिसंबर को करीब 32 अलग अलग किसान संगठनों के नेता सरकार से बातचीत करने के लिए गए थे. लेकिन सरकार का कहना है कि किसान किन्हीं 5 प्रतिनिधियों का चुनाव करें. किसान संगठन इसके लिए तैयार नहीं हैं. इसलिए आगे की राह मुश्किल लग रही है.

किसान नेताओं का दावा है कि इस आंदोलन में देश के अलग अलग राज्यों के किसान शामिल हो चुके हैं. लेकिन इनमें सबसे बड़ी संख्या पंजाब के किसानों की है. हालांकि ये भी सच है कि कुछ किसान हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और उत्तराखंड जैसे राज्यों से भी आए हैं. लेकिन अगर आप तस्वीरें देखेंगे तो सबसे ज़्यादा संख्या में सिख किसान ही आपको नज़र आएंगे.

राजनीतिक पार्टियां अपने लिए वोटों की फसल बोने लगीं
लेकिन फिर भी इस आंदोलन के ज़रिए सभी राजनीतिक पार्टियां अपने लिए वोटों की फसल बोने लगी हैं. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा है कि मौजूदा सरकार के दौरान किसानों की आय आधी हो गई है. शिरोमणि अकाली दल का कहना है कि सरकार आंदोलन कर रहे किसानों को थका देना चाहती है. इसलिए उनकी बातें नहीं सुनी जा रही हैं, जबकि आम आदमी पार्टी ने कहा है कि केंद्र सरकार उन्हें किसानों के लिए स्टेडियम खोलने की इजाज़त नहीं दे रही है.

कुल मिलाकर ऐसा लगता है कि किसान इस राजनीति का मोहरा बन गए हैं और किसानों का आंदोलन अब आम लोगों के लिए भी परेशानी की वजह बनने लगा है.

स्थिति ये है कि सरकार और किसानों के बीच अच्छे तरीके से संवाद की स्थिति पैदा नहीं हो रही है और दूसरी तरफ़ दोनों पक्षों में एक दूसरे के प्रति विश्वास की कमी भी साफ़ दिखाई देती है. लेकिन इस लड़ाई का खामियाज़ा आम आदमी भुगत रहा है. इस आंदोलन की वजह से आज दिल्ली और आस पास के शहरों में य़ातायात बाधित रहा और आने वाले दिनों में भी ऐसी स्थिति दोबारा बन सकती है. इस आंदोलन की वजह से आज देश की राजधानी दिल्ली की सड़कें कैसे बंधक बन गईं. 

प्रदर्शन अब दिल्ली NCR के लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी करने लगा
कृषि कानून का विरोध कर रहे किसानों का प्रदर्शन अब दिल्ली एनसीआर के लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी करने लगा है. दिल्ली को हरियाणा यूपी से जोड़ने वाली सड़कों पर जगह जगह इस आंदोलन का असर दिखा. कई जगहों पर ट्रैफिक को रोकना पड़ा. इसके चलते कामकाज के लिए निकले लोगों को दिक्कत हुई.

नोएडा से दिल्ली को जोड़ने वाले डीएनडी फ्लाईओवर पर सुबह से लंबा जाम था. इस टैफ्रिक जाम में एक एंबुलेंस भी फंस गई. जाम में फंसे हुए लोगों ने ही एंबुलेंस के लिए रास्ता बनाया जिसके बाद ये एंबुलेंस आगे बढ़ सकी.

दिल्ली गाजियाबाद बॉर्डर पर तो किसान बैरिकेडिंग पर चढ़ गए. किसानों ने बैरिकेडिंग को हटाने का भी प्रयास किया. यहां प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि जब तक हमारी यूनियन कहेगी हम यहीं पर डटे रहेंगे.

किसान आंदोलन का असर दिल्ली की मंडियों पर भी पड़ रहा है. राजधानी की सबसे बड़ी आजादपुर मंडी की सप्लाई और डिमांड पर आंदोलन का सबसे अधिक असर पड़ा है.

किसान संगठनों और सरकार के बीच 3 दिसंबर को महत्वपूर्ण बैठक होनी है. बैठक पर एनसीआर के लोगों की सबसे अधिक नज़र रहेगी. यदि किसान आंदोलन लंबा चलता है तो यहां के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर इसका असर और ज्यादा दिखाई देगा.

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किसानों का कोई पहला आंदोलन नहीं...
किसानों का जो आंदोलन आज दिल्ली में हो रहा है. वो किसानों का कोई पहला आंदोलन नहीं है. आज से 32 वर्ष पहले यानी 1988 में किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में 5 लाख किसान दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए पहुंचे थे. महेंद्र सिंह टिकैत उस समय किसानों के बहुत बड़े नेता थे. और उनकी एक आवाज पर लाखों किसान सड़कों पर उतर आते थे. उस समय किसान अपनी 35 मांगों के साथ दिल्ली पहुंचे थे. इनमें सिचाई की दरें घटाने से लेकर फसल के सही दाम को लेकर भी मांग रखी गई थी. इस आंदोलन को रोकने के लिए पुलिस की तरफ से फायरिंग की गई, जिसमें दो किसानों की मौत भी हो गई थी. किसानों की मांग पर इस तरह की कार्रवाई से पुलिस की काफी आलोचना भी हुई थी और तब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार भारी दबाव में आ गई थी और आखिरकार सरकार को किसानों की सभी मांगे माननी पड़ी थीं.

भारत की स्थिति ज्यादातर देशों के मुकाबले अच्छी नहीं
भारत में किसानों की प्रति माह औसत आमदनी सिर्फ़ 6 हज़ार 400 रुपये है और इनमें मुख्य रूप से वो किसान शामिल हैं जिनके पास 5 हेक्टेयर से भी कम ज़मीन है. नए कृषि कानून की मदद से सरकार किसानों की आय को दोगुना करना चाहती है. अगर किसान खुद भी चाहें तो अपनी आय को कई गुना बढ़ा सकते हैं. फिलहाल प्रति हेक्टेयर उत्पादन के मामले में भारत की स्थिति ज्यादातर देशों के मुकाबले अच्छी नहीं है. उदाहरण के लिए,

-अमेरिका में अनाज का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 8 हजार 281 किलोग्राम है.

-ब्रिटेन में भी ये भारत के मुकाबले दोगुना है.

-फ्रांस में प्रति हैक्टेयर अनाज का उत्पादन 6 हजार 80 किलोग्राम है

-जबकि ब्राजील में 4 हजार 810 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर अनाज़ होता है.

-इसके विपरीत कृषि प्रधान देश होने के बावजूद प्रति हेक्टेयर उत्पादन सिर्फ 3 हज़ार कलोग्राम है.

किसानों को सहायता की जगह प्रतियोगिता को अपनाना चाहिए
लेकिन ऐसा नहीं है कि किसान अपनी हालत सुधार नहीं सकते. इसके लिए किसानों को अपने प्रदर्शन में सुधार करना होगा और किसानों को सहायता की जगह प्रतियोगिता को अपनाना चाहिए.

इसे आप दूध के उदाहरण से समझिए. भारत में दूध की कोई MSP नहीं है, दूध के दाम सिर्फ़ इस बात से तय होते हैं कि उसमें फैट की मात्रा कितनी है, इसके बावजूद जो किसान दूध उत्पादन करते हैं. वो अच्छा ख़ासा मुनाफ़ा कमाते हैं. दूध उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है. बाज़ार में दूध से बने प्रोडक्ट्स की बहुत मांग है. इसलिए बड़ी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी किसानों से दूध खरीदती हैं. इससे किसान ठीक ठाक कमाई कर लेते हैं. हम ये नहीं कह रहे कि सभी Dairy Farmers लाखों में कमा रहे हैं. लेकिन बहुत सारे किसान ऐसे हैं जो दूध की बिक्री से एक से 10 लाख रुपये महीने तक भी कमा लेते हैं.

इसी तरह देश के कई हिस्सों मे Pollyhouse Farming के ज़रिए भी किसान अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं. इतना ही नहीं किसानों से जुड़े कई ऐसे Start Ups शुरू हो गए हैं जिनकी मार्केट वैल्यू अब कई सौ करोड़ रुपये है.

उदाहरण के लिए IIT के एक पूर्व छात्र ने एक Start Up शुरू किया जिसका नाम Dehaat है. उसकी मार्केट वैल्यू 150 करोड़ रुपये से ज़्यादा हो चुकी है. ये कंपनी किसानों को और ख़रीदारों को आपस में जोड़ने का काम करती है और इसमें कोई बिचौलिया नहीं होता.

इसी तरह एक कंपनी है जिसका नाम है Animal In, ये कंपनी ऑनलाइन गाय और दूसरे मवेशी बेचने का काम करती है. इस कंपनी की मार्केट वैल्यू आज की तारीख में 175 करोड़ रुपये से ज़्यादा है. अगर किसान खुद को अपग्रेड करेंगे तो ऐसी कंपनियां किसानों को बहुत फ़ायदा पहुंचा सकती हैं.

इसके अलावा किसान अपनी फसलों को डाइवर्सिफाय भी कर सकते हैं. इसका अर्थ है ऐसी अलग अलग फसलों को उगाना या उन चीज़ों की खेती करना जिनकी मांग स्थानीय बाज़ारों में भी होती हैं. उदाहरण के लिए मधुमक्खी पालन या डेयरी उत्पादन. लेकिन देश के ज़्यादातर छोटे किसान ऐसा नहीं कर पाए और सरकारों ने भी किसानों को ऐसा करने के लिए कभी दिल से प्रोत्साहित नहीं किया.

किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होता जा रहा
इसका नतीजा ये हुआ है कि पंजाब जैसे राज्यों के ज़्यादातर किसान सिर्फ़ धान और गेहूं की खेती पर निर्भर हो गए. लेकिन धीरे धीरे अब पंजाब में उगाए जाने वाले गेहूं की गुणवत्ता कम होने लगी है, पंजाब में पानी की भी भयंकर कमी होने लगी है और किसानों के लिए खेती करना मुश्किल होता जा रहा है.

ऐसे में किसान चाहें तो नए तौर तरीके अपनाकर अपनी स्थिति को सुधार सकते हैं. लेकिन इसके लिए सरकारों को भी आगे आना होगा और किसानों को वो सारी तकनीक सस्ते दामों पर उपलब्ध करानी होंगी, जो उन्हें आमदनी के नए और बेहतर तरीके दे सकती हैं.

भारत में किसान नए कानून का विरोध कर रहे हैं. देश की GDP में भारत के 15 करोड़ किसानों की हिस्सेदारी करीब 17 प्रतिशत है. इसके बावजूद सरकार और किसानों के बीच गतिरोध कायम है. किसान भारत की सॉफ्ट पावर हैं, क्योंकि जो अन्न भारत के किसान उगाते हैं उससे सिर्फ़ भारत के ही नहीं, बल्कि दुनिया 100 से ज्यादा देशों के करोड़ों लोगों का पेट भरता है. लेकिन एक Soft Power के रूप में भारत के किसान कभी पॉपुलर कल्चर का हिस्सा नहीं बन पाए .लेकिन दक्षिण कोरिया ने अपनी सबसे बड़े सॉफ्ट पावर Korean Pop को बचाने के लिए बहुत बड़ा कदम उठाया है.

दक्षिण कोरिया की सरकार ने देश के K Pop stars को दी रियायत
दक्षिण कोरिया की सरकार ने अपने देश के K Pop stars को ये रियायत दी है कि अब वो अनिवार्य मिलिट्री सर्विस को 30 वर्ष की उम्र तक स्थगित कर सकते हैं, पहले ये सीमा 28 वर्ष थी. इसके लिए दक्षिण कोरिया की सरकार ने 72 वर्ष पुराने कानून में बदलाव किया है. दक्षिण कोरिया का संविधान वर्ष 1948 में लागू हुआ था. इसके अनुच्छेद 39 में लिखा है कि दक्षिण कोरिया के सभी नागरिकों को अनिवार्य रूप से राष्ट्र की सेवा करनी होगी, इसके बाद 1957 में Military Service Act लागू किया गया जिसके तहत 19 वर्ष से 28 वर्ष तक की उम्र वाले सभी पुरुषों के लिए सेना में 18 महीने की सेवा अनिवार्य कर दी गई.

K Pop का मतलब होता है Korean Pop. दक्षिण कोरिया का K Pop कल्चर अब पूरी दुनिया में इतना मशहूर है कि ये अब दक्षिण कोरिया की सबसे बड़ी सॉफ्ट पावर बन गया है. इससे पहले दक्षिण कोरिया में सिर्फ़ कलाकारों, खिलाड़ियों और संगीतकारों को ही सेना में अनिवार्य सर्विस से छूट मिली हुई थी. लेकिन अब दक्षिण कोरिया के K Pop Stars भी इसके दायरे में आ जाएंगे.

वैसे तो इस बदलाव का फ़ायदा सभी K Pop stars को मिलेगा. लेकिन कहा जा रहा है कि दक्षिण कोरिया की सरकार ने ये कदम खासतौर पर वहां के सबसे मशहूर K Pop Band, BTS को बचाने के लिए किया है.

BTS में कुल सात सदस्य हैं और उम्र के लिहाज से इनमें सबसे बड़े सदस्य का नाम Jin है. जिन 4 दिसंबर को 28 वर्ष के हो जाएंगे. अगर ये नियम नहीं बदला जाता तो Jin को BTS छोड़ना पड़ता. लेकिन अब वो अगले 2 साल तक BTS में रह सकते हैं. इसलिए कहा जा रहा है कि नए कानून के केंद्र में मुख्य रूप से BTS ही है.

दक्षिण कोरिया की GDP को BTS बैंड के कारण 34 हज़ार करोड़ रुपये का फायदा होता है. कुछ महीने पहले BTS का एक नया गाना Dynamite रिलीज़ हुआ था. जिसकी रिलीज़ से पहले दक्षिण कोरिया की सरकार ने कहा था कि इससे उनके देश की GDP को 10 हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा का फ़ायदा होगा और 8 हज़ार नई नौकरियां पैदा होंगी. ये अनुमान इस गाने से Cosmetics, और खाने-पीने की संभावित बिक्री के आधार पर लगाया गया था.

हज़ारों करोड़ रुपये का उद्योग ​
कोविड की वजह से पिछले कई महीनों से ज़्यादातर देशों में कहीं भी Live Concert नहीं हो रहे हैं और पूरी दुनिया की म्यूजिक इंडस्ट्री संघर्ष कर रही है. लेकिन इस दौरान भी BTS का मुनाफ़ा लगातार बढ़ता रहा. BTS ने सिर्फ़ अपनी नई एलबम और Official Merchandise की बिक्री के दाम पर पिछली तिमाही में 600 करोड़ रुपये से ज़्यादा का मुनाफ़ा कमाया.

K Pop दक्षिण कोरिया की एक म्यूजिक इंडस्ट्री हैं, जिसका मतलब है Korean Pop Music. POP का अर्थ होता है Popular Culture यानी ऐसी संस्कृति जिसकी लोकप्रियता बहुत ज़्यादा हो. K Pop दक्षिण कोरिया की सॉफ्ट पावर बन गया है. यानी एक ऐसी ताकत जो दिखाई तो नहीं देती लेकिन उसका प्रभाव बहुत होता है.

K POP की बदौलत दक्षिण कोरिया की संस्कृति दुनिया के कोने कोने तक पहुंच चुकी है और K Pop stars इस संस्कृति के सबसे बड़े ग्लोबल ब्रांड एम्बेसडर बन गए हैं. K POP Music Albums में आधुनिक संगीत, लीरिक्स, डांस कोरियो ग्राफी और हाई क्वालिटी प्रोडक्शन का मिश्रण होता है. K Pop पिछले 20 वर्षों से अस्तित्व में है. लेकिन इसे असली लोकप्रियता 2009 से मिलनी शुरू हुई, जब दक्षिण कोरिया के Wonder Girls नाम के एक समूह ने अपना पहला Music वीडियो Nobody लॉन्च किया था. तब से लेकर अब तक दक्षिण कोरिया का K Pop Music हज़ारों करोड़ रुपये का उद्योग बन चुका है.

K Pop वाली Soft Power किसी मिसाइल से भी ज़्यादा प्रभावी
दक्षिण कोरिया एक ऐसा देश है जिसके पड़ोस में उसका दुश्मन उत्तर कोरिया है. दोनों देशों के बीच युद्ध छिड़ने की आशंका हमेशा बनी रहती है और इसी लिए दोनों देशों के लोगों के लिए सेना में सेवा देना अनिवार्य है. लेकिन दक्षिण कोरिया जानता है कि उसकी K Pop वाली Soft Power किसी मिसाइल से भी ज़्यादा प्रभावी है.

K POP की लोकप्रियता इतनी ज़्यादा है कि वर्ष 2018 में उत्तर कोरिया की राजधानी Pyongyang (प्योंगयांग) में तानाशाह Kim Jong Un के सामने भी दक्षिण कोरिया के Pop Stars ने Performance दी थी.

K Pop Stars स्टेज पर परफॉर्मेंस देते हैं, गीत गाते हैं और इसके लिए लाखों करोड़ों रुपये की फीस लेते हैं.

दूसरी तरफ भारत की सॉफ्ट पावर भारत के किसान हैं. जो कड़ी धूप में परिश्रम करते हैं, अन्न उगाते हैं, अपनी फसल बेचने के लिए संघर्ष करते हैं लेकिन फिर भारत अपनी इस Soft Power का सम्मान नहीं कर पाता.

देश का हर नागरिक किसी न किसी रूप में कानूनों से बंधा हुआ
लेकिन यहां ये भी समझने की जरूरत है कि दक्षिण कोरिया के K Pop stars को 2 साल की रियायत दी गई है. लेकिन कानून को समाप्त नहीं किया गया, 30 वर्ष की उम्र के बाद इन Stars को सेना में सेवा देनी ही होगी. ये बात किसानों समेत हमारे देश के सभी लोगों को भी समझना चाहिए कि कानून का मतलब कानून होता है और देश का हर नागरिक किसी ना किसी रूप में कानूनों से बंधा हुआ है.

किसान तो भारत की बहुत बड़ी Soft Power है हीं लेकिन ये लिस्ट सिर्फ किसानों पर खत्म नहीं होती. बॉलीवुड, आयुर्वेद, योग, गांधी जी का अहिंसा का मंत्र, अध्यात्म, हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म भी भारत की Soft Power हैं. बड़ी बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने अब आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स बनाना शुरू कर दिया है, अध्यात्म का अनुभव लेने के लिए भी बड़ी संख्या में विदेशी भारत आते हैं. लेकिन भारत को अपनी इस Soft Power को पहचानने की जरूरत है.

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