Farmers Protest: किसानों ने पुलिसवालों पर ट्रैक्टर चढ़ा कर उनकी जान लेने की कोशिश की. सोचिए क्या इस दिन के लिए हमारे देश ने आजादी के लिए संघर्ष किया था? और क्या भगत सिंह ऐसे ही भारत के लिए सिर्फ 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ गए थे?
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नई दिल्ली: कल 26 जनवरी को हमने अपना 72वां गणतंत्र दिवस मनाया और आज हम आपसे ये कहना चाहते हैं कि भारत मुट्ठीभर लोगों का नहीं है. भारत 135 करोड़ लोगों का है और हमारे देश के स्वाभिमान को कोई नहीं कुचल सकता. हालांकि आज हमारे पास आपके लिए एक सवाल भी है. सवाल ये कि आप भारत के गणतंत्र दिवस की परेड देखना चाहते हैं या किसानों की ट्रैक्टर परेड क्योंकि, एक परेड देश की ताकत से आपका परिचय कराती है तो दूसरी परेड उस नफरत की बुनियाद पर टिकी है. जिसकी तस्वीरें पूरे देश ने देखी और इसीलिए हम भी आज दो तस्वीरों पर बात करेंगे.
पहली तस्वीर 16 अगस्त 1947 की है. जब भारत को अंग्रेजों से आज़ादी मिली थी और लाल किला पर तिरंगा फहराया गया था और दूसरी तस्वीर कल 26 जनवरी की है, जब उग्र भीड़ लाल किला में घुस गई और इस भीड़ में शामिल लोगों ने एक धर्म का झंडा यहां फहरा दिया. ये तस्वीरें भारत की उस यात्रा को भी दर्शाती हैं, जो शुरू तो तिरंगे से हुई थी, लेकिन आज ये यात्रा एक धर्म के झंडे पर आकर खड़ी है.
अब हम एक और तस्वीर की बात करेंगे, जो कई गंभीर सवाल खड़े करती है. जिस समय पुलिस के जवान प्रदर्शनकारियों को लाल किला में घुसने से रोक रहे थे. उस दौरान कई जवानों को ट्रैक्टर से कुचलने की कोशिश की गई और उन पर लाठियों से हमला भी किया गया. जान बचाने के लिए पुलिस के जवानों को नाले में कूदना पड़ा, जिससे उन्हें चोटें भी आईं.
जब भारत आज़ाद हुआ था तब देश में बहुत सी रियासतें थीं, जिन्हें एकता के सूत्र के पिरोना बड़ी चुनौती थी और तब ये कहा गया था कि भारत चाहे कितनी ही कोशिशें कर ले इन रियासतों को कभी एक नहीं किया जा सकता और आज की ये तस्वीरें बताती हैं कि आज़ादी के बाद कही गई ये बातें काफी हद तक सही थीं.
लाल किले के अंदर घुसे किसानों ने आज जो कुछ किया, उससे दुर्भाग्यपूर्ण हमारे देश के लिए कुछ नहीं हो सकता और ये सब सिर्फ मुट्ठीभर लोगों ने किया यानी 0.01 प्रतिशत लोगों ने. लेकिन 99.99 प्रतिशत लोग आज गणतंत्र दिवस के गौरव को समझ रहे थे.
कल आप टीवी पर गणतंत्र दिवस की परेड देखने के लिए सुबह जल्दी उठ गए होंगे. अपने दोस्तों और परिवार के लोगों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी होगी और भारत के लोकतंत्र पर गर्व महसूस किया होगा. बच्चों ने परेड के जरिए भारत का सांस्कृतिक और सैन्य महत्व भी समझा होगा. लेकिन इस सबके बीच दिल्ली में कल जो कुछ हुआ, वो भारत के संविधान को चुनौती देने जैसा था. सारी मर्यादाएं तोड़ दी गईं और जिस चीज का डर हमें सबसे ज्यादा था, वही हुआ. मुट्ठीभर लोगों ने भारत के गौरव को ऐसी चोट पहुंचाई, जिसके निशान इतिहास के पन्नों पर हमेशा नजर आएंगे.
भारत के 135 करोड़ लोगों के लिए गणतंत्र दिवस एक त्योहार की तरह है और इस त्योहार में हम किसी को खलल डालने की इजाजत नहीं देंगे और आपको भी आज अपना दिल छोटा करना की जरूरत नहीं हैं क्योंकि, हिंसा करने वाले ये मुट्ठी भर लोग भारत नहीं है. भारत हम और आप हैं, जिनके मन में देश का स्वाभिमान सर्वोच्च है.
आपको आज भी अपने बचपन का 26 जनवरी या 15 अगस्त का दिन याद होगा, जब आप स्कूल में झंडा फहराने जाते थे. जहां हमें ये समझाया जाता था कि हमारे पास आजादी जैसा मूल्यवान अधिकार है और हमें इसका सम्मान करना चाहिए. लेकिन कुछ लोगों ने आज देश की राजधानी में आपके इस अहसास को झूठा साबित करने की कोशिश की. वो आपके ऊपर हंस रहे थे और पूरी दुनिया हमारे देश पर हंस रही थी. लोकतंत्र के नाम पर कुछ भी करने की आजादी वाली इस जिद ने आज हमारी राजधानी को बंधक बनाने की कोशिश की.
26 जनवरी 1950 को जब भारत का संविधान लागू हुआ और हमारा देश एक गणतंत्र बना. तब शायद ही किसी ने ये सोचा होगा कि एक दिन इसी तारीख को लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाई जाएंगी. संवैधानिक मूल्यों को कुचल दिया जाएगा और मुट्ठीभर लोग भारत के गणतंत्र पर पैर रख कर उसे रौंदने की कोशिश करेंगे. लेकिन ये हमारे देश का दुर्भाग्य ही है कि जिस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था. उसी दिन संविधान का मुट्ठीभर लोगों ने गला घोंटने की कोशिश की और नफरत का वायरस इतनी तेजी से फैला कि इसने दिल्ली को बंधक बना दिया. हमें लगता है कि ऐसा करने वाले लोग किसान हो ही नहीं सकते.
15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर जिस लाल किला से देश के प्रधानमंत्री भारत के नागरिकों को संबोधित करते हैं. उस पर कुछ मुट्ठीभर लोगों ने हमला कर दिया. उग्र भीड़ में शामिल एक प्रदर्शनकारी ने लाल किले पर झंडा फहरा कर देश के लोकतंत्र को चुनौती दी और भारत के135 करोड़ लोगों के गौरव को भी ललकारा और हम मानते हैं कि ये भारत का Capitol Hill Moment था. जैसे अमेरिका में कुछ लोगों की भीड़ ने वहां के लोकतंत्र को धक्का देकर गिराने की कोशिश की थी, ठीक वैसे ही देश की राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन के नाम पर लोकतंत्र को निशाना बनाया गया.
एक और तस्वीर सामने आई जिसमें एक प्रदर्शनकारी पुलिस के जवानों पर हमला करता हुआ दिखा. जिस पुलिस ने इन लोगों को गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत दी, उसी पुलिस पर इन लोगों ने तलवार से हमला कर दिया और ये बता दिया कि इन्हें ट्रैक्टर परेड निकालने की मंजूरी देना सबसे बड़ी गलती थी.
हम क्यों कह रहे हैं कि ये किसान नहीं हैं. इसे आप इस तस्वीर से समझिए, जिसमें किसानों ने पुलिसवालों पर ट्रैक्टर चढ़ा कर उनकी जान लेने की कोशिश की. सोचिए क्या इस दिन के लिए हमारे देश ने आजादी के लिए संघर्ष किया था? और क्या भगत सिंह ऐसे ही भारत के लिए सिर्फ 23 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ गए थे?
एक और तस्वीर सामने आई है, जिसमें खुद को किसान बताने वाले ये लोग पुलिस के जवानों को बेरहमी से पीटते हुए नजर आ रहे हैं, तो इन लोगों को देश का दुश्मन क्यों न कहा जाए.
दुनिया में पहला ट्रैक्टर वर्ष 1894 में अमेरिका में बनाया गया था और इसका उद्देश्य खेती को आसान बनाना था. लेकिन अब लगता है कि ट्रैक्टर से नफरत की खेती भी होने लगी है. कल आपके पैसों से खरीदी गई एक सरकारी बस को ट्रैक्टर से गिराने की कोशिश की गई.
इसी तरह एक और तस्वीर में किसान पुलिस के जवानों पर पत्थर फेंकते हुए नजर आए.
ट्रैक्टर परेड में एक ऐसा दृश्य भी देखने को मिला, जिसने भारत के गणतंत्र को शर्मसार कर दिया. इसमें घायल पुलिसवाले सड़क पर मदद का इंतजार करते दिखे. पुलिस के जवानों का ये हाल उन लोगों ने किया, जो खुद को किसान कहते हैं.
दिल्ली पुलिस ने प्रदर्शनकारियों की ट्रैक्टर परेड के लिए तीन रूट तय किए थे और इस पर किसान नेताओं ने सहमति भी दी थी. लेकिन जब ये परेड शुरू हुई तो ये लोग दिल्ली के दूसरे इलाकों में घुस गए और पुलिस की तरफ से लगाए गए बैरिकेड भी नीचे गिरा दिए. इन लोगों ने पब्लिक प्रॉपर्टी को काफी नुकसान पहुंचाया.
कहते हैं कि कानून का पालन करने वाले लोगों को ही सरकार के बनाए किसी कानून का विरोध करने का अधिकार होता है. लेकिन इन लोगों ने एक नया उदाहरण पेश किया और ये साबित कर दिया कि इन्हें देश की व्यवस्था और संविधान में कोई विश्वास नहीं है और हम फिर कहना चाहते हैं कि हिंसा करने वाले ये लोग किसान हो ही नहीं सकते.
अब किसानों की कथनी और उनकी करनी का फर्क समझिए-
-किसान नेताओं ने कहा था कि ट्रैक्टर परेड शांतिपूर्ण होगी. लेकिन हुआ क्या, किसानों ने पुलिस के जवानों और मीडिया पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की.
-किसान नेताओं ने वादा किया था कि ट्रैक्टर रैली से देश का गौरव बढ़ेगा. लेकिन इस परेड की तस्वीरों ने देश को शर्मसार कर दिया.
-किसान नेताओं ने कहा था कि अगर रैली शांतिपूर्ण रही तो उनके आंदोलन की जीत होगी. लेकिन हुआ क्या, परेड के दौरान प्रदर्शनकारी हिंसक हो गए और पुलिस के जवानों को भी पीटा गया.
-वादा था कि तय रूट पर ही ट्रैक्टर परेड होगी. लेकिन इसका भी पालन नहीं किया गया.
-पुलिस ने 12 बजे से शाम 5 बजे के बीच ही ट्रैक्टर रैली निकालने की इजाजत दी थी. लेकिन किसानों ने गणतंत्र दिवस की परेड शुरू होने से पहले ही ट्रैक्टर मार्च शुरू कर दिया.
-वादा था कि किसान बैरिकेडिंग नहीं तोड़ेंगे, लेकिन कई जगहों पर बैरिकेड तोड़ दिए गए.
-किसानों ने कहा था कि परेड में ट्रैक्टर एक लाइन में चलेंगे. लेकिन जो तस्वीरें हमने आज देखी वो अराजकता वाली थीं.
-ये भी कहा था कि परेड में कोई भी व्यक्ति अपने साथ लाठी नहीं रखेगा. लेकिन इसका भी पालन नहीं हुआ और प्रदर्शनकारी लाठी डंडे और तलवारों के साथ परेड में शामिल हुए.
-किसान नेताओं ने तय किया था कि वो ट्रैक्टर की छत पर नहीं बैठेंगे, लेकिन वो पुलिस की गाड़ियों पर चढ़ गए और हंगामा करने लगे.
अब हम आपको ये बताते हैं कि कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने कैसे नियम और कानूनाें को ताक पर रख दिया.
किसानों की ट्रैक्टर परेड के लिए दिल्ली पुलिस ने 3 रूट्स को ही मंजूरी दी थी. इन तीनों ही रूट्स में कहीं भी दिल्ली का ITO और लाल किला नहीं था. लेकिन ट्रैक्टर परेड इन जगहों पर पहुंची और प्रदर्शनकारियों ने इसके लिए तोड़फोड़ भी की और पब्लिक प्रॉपर्टी को भी नुकसान पहुंचाया और सबसे अहम ये कि किसी भी तय शर्त का पालन नहीं हुआ. परेड 10 बजे शुरू कर दी गई. बैरिकेड तोड़ दिए गए. नेशनल हाइवे नम्बर 9 और नम्बर 24 पर पुलिस ने बैरिकेडिंग लगा दी थी. इसके बावजूद किसानों की ट्रैक्टर परेड नहीं रुकी. पहले ये लोग मेरठ हाईवे पहुंचे फिर वहां से दिल्ली के रिंग रोड पहुंच गए. कुछ प्रदर्शनकारी रिंग रोड के रास्ते प्रगति मैदान और ITO तक आ गए और कुछ लोग दरियागंज के रास्ते दिल्ली पहुंच गए. यानी कानून का विरोध करने वाले किसानों ने किसी भी नियम और कानून का कोई पालन नहीं किया और हम यहां एक बार फिर कहना चाहते हैं जो लोग कानून का पालन नहीं करते. उन्हें सरकार के बनाए कानून के खिलाफ आवाज उठाने का कोई अधिकार नहीं होता.