नई दिल्‍ली: देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने वर्ष 1965 में नारा दिया था- जय जवान, जय किसान.  ये नारा देश के जवानों के शौर्य और देश के किसानों के श्रम के महत्व को बताता है.  लेकिन गणतंत्र दिवस के मौके पर आंदोलन के नाम पर ट्रैक्टर परेड में जो अराजकता दिखी, उस पर कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं.


किसान नेता इन सवालों पर क्‍या कहेंगे?


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हम किसान नेता दर्शनपाल सिंह से पूछना चाहते हैं कि उनके आंदोलन में शामिल हुए वो लोग कौन हैं, जिन्होंने हिंसा की?


किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल को बताना चाहिए कि शांतिपूर्ण ट्रैक्टर परेड का वादा क्यों टूटा? क्यों तलवारें लहराई गई? और क्यों लाठियों से हमला किया गया?


किसान नेता योगेंद्र यादव को ये बताना चाहिए कि लाल किले पर एक धर्म का झंडा फहराने से गणतंत्र दिवस की शान कैसे बढ़ सकती है?


किसान नेता राकेश टिकैत को ये बताना चाहिए कि ट्रैक्टर परेड का मकसद क्या पुलिस के जवानों को कुचलना था? क्या दिल्ली में घुसकर अराजकता फैलाना आंदोलन का उद्देश्य था?


किसान नेता सरवन सिंह पंधेर को बताना चाहिए कि ट्रैक्टर परेड का मकसद क्या दिल्ली को बंधक बनाना था?


किसान नेता शिव कुमार कक्का जी को बताना चाहिए कि आखिर क्यों ट्रैक्टर परेड में तय रूट का पालन नहीं हुआ?


हम ये सवाल तो पूछ रहे हैं लेकिन हमें ये भी पता है कि खुद को किसानों का नेता कहने वाले ये लोग हमारे सवालों से ठीक वैसे ही भाग जाएंगे, जैसे आज ये अपनी जिम्मेदारी से भागे. 



मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने किसानों को पहले क्यों नहीं समझाया?


पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दिल्ली में हुई हिंसा पर ट्वीट किया. उन्होंने कहा कि हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है और किसान अब दिल्ली को खाली करके सीमाओं पर लौट जाएं. कैप्टन अमरिंदर सिंह बहुत पहले आंदोलन में हिंसा की आशंका जता चुके हैं. हम उनसे पूछना चाहते हैं कि उन्हें इस हिंसा की इतनी फिक्र क्यों हैं? उन्होंने किसानों को पहले क्यों नहीं समझाया?


किसानों के नेता भी हिंसा के बाद अजब-अजब तर्क दे रहे हैं.


जरूरत से ज्‍यादा आज़ादी ने भारत के लोकतंत्र को किया शर्मसार 


आज ये समझने का भी दिन है कि देश के सम्मान के साथ कौन खड़ा है और कौन देश को अपमानित और शर्मसार कर रहा है और जब आप ये समझेंगे तो आपको पता चलेगा कि अपने देश में कमियां ढूंढने वाले लोग कभी भी अपने राष्ट्र के गौरव और उसके स्वाभिमान से खुश नहीं हो सकते. 


सोचिए महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल और डॉ. भीम राव अंबेडकर की आत्मा को ये दृश्य देख कर कितना दुख पहुंचा होगा, वो क्या सोच रहे होंगे और उन्हें इन तस्वीरों पर कितना अफसोस हो रहा होगा?


आज़ादी के महानायकों ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की भी आहुति दे दी थी. वो डरे नहीं और न ही घबराए. वो देश के लिए और लोगों की आज़ादी के लिए संघर्ष करते रहे लेकिन आज जब आज़ादी का दुरुपयोग होता है और जरूरत से ज्‍यादा आज़ादी भारत के लोकतंत्र को शर्मसार करने की वजह बन जाती है तो ये सोचना जरूरी है कि इन तस्वीरों से हमारे देश के महानायकों की आत्मा को कितनी तकलीफ होती होगी? वो क्या सोचते होंगे? और क्या ऐसे भारत के लिए उन्होंने आज़ादी का सपना देखा था?


जरा एक बार उन जवानों के बारे में भी सोचिए जो देश के लिए शहीद हो जाते हैं. जब किसानों की ट्रैक्टर परेड में हिंसा भड़की, उससे पहले इंडिया गेट पर भारत के लोगों ने गणतंत्र दिवस की परेड का भव्य रूप भी देखा.  


इस परेड से पहले शहीद कर्नल संतोष बाबू को महावीर चक्र मरणोपरांत से सम्मानित किया गया. उनके अलावा शहीद नायब सूबेदार नुदूराम सोरेन, हवलदार के. पलानी, नायक दीपक सिंह और सिपाही गुरतेज सिंह को भी वीर चक्र मरणोपरांत से सम्मानित किया गया. सोचिए,  इन जवानों की आत्मा को ये दृश्य देख कर कितना दुख पहुंचा होगा, जिन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया. 


हमें लगता है कि हिंसा करने वाले लोग ये नहीं समझ सकते क्योंकि, उन्हें भारत से नहीं भारत की कमियों से प्यार है और वो इस देश को सिर्फ अपमानित कर सकते हैं और ये बस मुट्ठीभर लोग हैं.