DNA ANALYSIS: शरणार्थियों की कतार में पूर्व अफगान सेना प्रमुख कर रहे इंतजार
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DNA ANALYSIS: शरणार्थियों की कतार में पूर्व अफगान सेना प्रमुख कर रहे इंतजार

अफगानिस्तान के सेना प्रमुख अपना देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर हो गए हैं. इस वक्त वे अपनी जान बचाने के लिए काबुल एयरपोर्ट के बाहर शरणार्थियों की लाइन में खड़े हैं, और उम्मीद कर रहे हैं कि अमेरिका उन्हें रेस्क्यू करेगा.

DNA ANALYSIS: शरणार्थियों की कतार में पूर्व अफगान सेना प्रमुख कर रहे इंतजार

नई दिल्ली: काबुल एयरपोर्ट (Kabul Airport) पर जमा लाखों लोगों की भीड़ में अफगानिस्तान (Afghanistan) के पूर्व सेना प्रमुख जनरल वली मोहम्मद अहमदजई (Wali Mohammad Ahmadzai) भी हैं, जिन्हें एयरपोर्ट के बाहर आम लोगों की तरह एक लाइन में खड़े हुए देखा गया है. वो पिछले महीने की 27 तारीख को तीन दिन के दौर पर भारत आने वाले थे. लेकिन अब उनकी हालत ये हो गई है कि वो तालिबान से अपनी जान बचाने के लिए काबुल एयरपोर्ट के बाहर लाइन में खड़े हुए हैं. 

  1. देश छोड़कर भागने को मजबूर हुए पूर्व अफगान आर्मी चीफ
  2. शरणार्थियों की लाइन में लगे हैं वली मोहम्मद अहमदजई
  3. यूएस प्लेन में मिलिट्री डॉग्स के लिए जगह, इंसानों के लिए नहीं

देश छोड़ने को मजबूर हुए पूर्व सेना प्रमुख

जनरल वली मोहम्मद को इसी साल जून महीने में अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) ने सेना प्रमुख बनाया था. लेकिन दो महीने बाद ही 11 अगस्त को उन्हें इस पद से हटा दिया गया. जिस सेना प्रमुख को तालिबान (Taliban) से लड़ना था, वही सेना प्रमुख अब हथियार डाल कर अफगानिस्तान से भाग जाना चाहता है. इससे ये सीख मिलती है कि किसी भी देश की सेना या उसका सेना प्रमुख तब तक ही शक्तिशाली रहता है, जब तक उस देश का वजूद है. कट्टरपंथियों का शासन एक देश के सेना प्रमुख को भी अपना देश छोड़कर भागने के लिए मजबूर कर सकता है. ये खबर इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.

प्लेन में डॉग्स की जगह पर इंसानों के लिए नहीं

जनरल वली मोहम्मद को अब अमेरिका (America) से उम्मीद है कि वो उसे रेस्क्यू कर अपने देश ले जाएगा, जहां वो अपनी नई जिन्दगी फिर से शुरू कर सकेंगे. लेकिन सच ये है कि अमेरिका के विमान में उसके मिलिट्री डॉग्स (Military Dogs) के लिए तो जगह है, लेकिन उनके जैसे लोगों के लिए कोई सीट नहीं है. दरअसल, जनरल वली मोहम्मद की तरह हजारों अफगान नागरिकों को लगता है कि ये पश्चिमी देश उन्हें इस नर्क से निकाल लेंगे. लेकिन सच ये है कि ये हजारों लोग इन पश्चिमी देशों की प्राथमिकता में नहीं है. इन देशों के लिए अफगान नागरिकों से ज्यादा जरूरी अपनी सेना के स्नाइफर डॉग और काबुल में मौजूद बीयर कैन (Beer Cans) को अपने देश में ले जाना है.

लोग इंतजार करते रहे, डॉग्स प्लेन में बैठकर उड़े

यूएस मिलिट्री डॉग्स को प्लेन में ले जाने की तस्वीरें आज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं और पूरी दुनिया में इन पर बहस छिड़ी है. एक तरफ लाखों अफगान नागरिक काबुल एयरपोर्ट की कंटीली दीवारों के उस तरफ खड़े हैं, जहां तालिबान का अत्याचार और मौत का साया है तो दूसरी तरफ यूएय मिलिट्री के इन डॉग्स के लिए इस तरह की कोई दीवार नहीं हैं. इन्हें अमेरिका अपने विमानों में रेस्क्यू करके अपने देश वापस ले जा रहा है. यानी अमेरिकी विमान में मिलिट्री डॉग्स के लिए जगह है, लेकिन अफगानिस्तान के लोगों के लिए कोई जगह नहीं हैं. 

88 हजार ने मांगी मदद, बस 2 हजार को निकाला

अमेरिका ने खुद एक बयान जारी करके बताया है कि अब तक ऐसे 88 हजार लोगों ने उससे मदद मांगी है, जो अफगानिस्तान में उसके लिए काम कर रहे थे. इनमें से अमेरिका ने 22 हजार लोगों को निकालने का भरोसा भी दिया है और इसके लिए 31 अगस्त की तारीख तय की गई. लेकिन वो इन 22 हजार अफगान नागरिकों को निकालने के बजाय अपने मिलिट्री डॉग्स को पहले रेस्क्यू कर रहा है. अमेरिका ने अब तक केवल 2 हजार अफगान नागरिकों को ही रेस्क्यू किया है.

22 हजार लीटर शराब अपने देश ले गया जर्मनी

अमेरिका की तरह नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) के देशों ने भी ऐसे हजारों अफगान नागरिकों को रेस्क्यू करने का वादा किया है, जो उनके लिए पिछले कई साल से काम कर रहे थे. इनमें जर्मनी भी है. जर्मनी (Germany) ने कहा है कि वो ऐसे अफगान नागरिकों को रेस्क्यू कर अपने देश ले जाएगा. लेकिन सच ये है कि ये हजारों लोग उसकी प्राथमिकता नहीं है. उसकी प्राथमिकता बीयर की ये हजारों कैन्स हैं. जर्मनी अब तक साढ़े 22 हजार लीटर शराब अफगानिस्तान से अपने देश लेकर जा चुका है. इनमें 65 हजार बीयर की कैन्स हैं और 340 वाइन की बोतल हैं. लेकिन जर्मनी ने अपनी पहली जो इवेक्युएशन फ्लाइट काबुल भेजी, उसमें केवल 7 लोगों को ही जगह मिली और इनमें भी केवल एक ही अफगान नागरिक था. यानी जर्मनी के पास 65 हजार बीयर कैन्स लाने के लिए विमान में जगह है, लेकिन इन अफगान नागरिकों के लिए कोई जगह नहीं है.

लड़कियों को बचाने के लिए जलाए गए रिकॉर्ड

अमेरिका और NATO देशों के इस रवैये की वजह से अफगानिस्तान क्या हाल हो गया है ये भी जान लीजिए. अफगानिस्तान के एकमात्र गर्ल्स बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के रिकॉर्ड जला दिए गए हैं. इस बोर्डिंग स्कूल की संस्थापक शबाना बाशिज ने ट्विटर पर खुद बताया कि उन्होंने ऐसा इन लड़कियों और उनके परिवारों को तालिबानियों से बचाने के लिए किया है. तालिबान ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उसकी अब किसी से दुश्मनी नहीं है. लेकिन सच्चाई ये है कि तालिबान अपने विरोधियों और उसका साथ नहीं देने वालों को चुन-चुन कर मार रहा है. 

अफगान पुलिस चीफ में बीच बाजार दागी गोलियां

उसने अफगान पुलिस के चीफ की भी बेरहमी से हत्या कर दी, जिसका एक वीडियो हमें मिला है. इस वीडियो में पुलिस चीफ की आंखों पर पट्टी बंधी हुई है और उसे घुटनों पर बैठा कर उस पर गोलियां दागी जा रही हैं. अमेरिका के पूर्व सांसद ने बताया है कि अफगानिस्तान में एक ईसाई धर्म की महिला को जिन्दा जला कर उसे खम्भे पर लटका दिया गया. इसके अलावा ऐसी भी खबरें हैं कि तालिबानियों ने एक महिला को खराब खाना बनाने पर उसके हाथ जला दिए. ये वो खबरें हैं, जो कट्टरपंथी तालिबान का असली चेहरा दिखाती हैं.

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