कट्टरपंथी इस्लाम का सबसे अधिक नुकसान फ्रांस भुगत रहा है. हालांकि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि वह हार नहीं मानेंगे. उनके खिलाफ जिन अपशब्दों का इस्तेमाल हो रहा है वो उनके सामने झुकने वाले नहीं हैं.
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नई दिल्ली: कट्टर इस्लाम के खिलाफ जंग शुरू करने वाले फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों (Emmanuel Macron) दुनियाभर में ट्रोल हो रहे हैं. दुनिया के कई देशों में उनकी आलोचना हो रही है. फ्रांस ने शिक्षक सैमुएल पैटी (Samuel Paty) की हत्या के बाद इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ दी है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने साफ कह दिया है कि कट्टरपंथी इस्लाम के लिए अब फ्रांस में अब कोई जगह नहीं है. ये बात खुद को इस्लामिक दुनिया का लीडर मानने देशों को इतनी चुभ गई है कि इन लोगों ने फ्रांस का विरोध शुरू कर दिया है. आज दिन भर सोशल मीडिया पर Boycott French Products और Boycott France जैसे हैशटैग ट्रेंड करते रहे.
तुर्की के राष्ट्रपति ने की अलोचना
तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन (Recep Tayyip Erdogan) फ्रांस के राष्ट्रपति की आलोचना करते हुए शब्दों की मर्यादा तक भूल गए और उन्होंने यहां तक कह दिया कि इमैनुएल मैक्रों की मानसिक स्थिति की जांच की जानी चाहिए. तुर्की के राष्ट्रपति के इस बयान से नाराज फ्रांस ने अपने राजदूत को तुर्की से वापस बुलाने का फैसला किया है. फ्रांस अब तुर्की से सारे राजनयिक संबंध खत्म करने पर विचार कर रहा है.
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान भी तुर्की की ही भाषा बोल रहे हैं, उन्होंने फ्रांस के राष्ट्रपति पर इस्लामोफोबिया फैलाने का आरोप लगाया है. इमरान खान ने कहा है कि फ्रांस के राष्ट्रपति को इस्लाम की कोई समझ नहीं है.
कट्टरपंथी इस्लाम का सबसे अधिक नुकसान
यूरोप में ज्यादातर देश धर्मनिरपेक्ष हैं और वहां के नेता भी हमेशा से खुद के सेक्युलर होने पर गर्व करते हैं. यूरोप के नेता इस्लामोफोबिया शब्द से डरते रहे हैं, उन्हें हमेशा इस बात का डर सताता है कि अगर इस्लामोफोबिक शब्द को उनके नाम से जोड़ दिया गया तो उनकी छवि और पॉलिटिकल ब्रांडिंग खराब हो जाएगी. यूरोप के ज्यादातर देशों ने धर्मनिरपेक्षता की ब्रांडिंग बचाने के लिए मुस्लिम शरणार्थियों के लिए देश के दरवाजे खोल दिए थे. और अब वही शरणार्थी वहां शरिया की बात कर रहे हैं. इस कट्टरपंथी इस्लाम का सबसे अधिक नुकसान फ्रांस भुगत रहा है. हालांकि फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा है कि वह हार नहीं मानेंगे. उनके खिलाफ जिन अपशब्दों का इस्तेमाल हो रहा है वो उनके सामने झुकने वाले नहीं हैं.
राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों का ट्वीट
इमैनुएल मैक्रों ने ट्वीट किया, "हम कभी हार नहीं नहीं मानेंगे. हम शांति की भावना के साथ सभी मतभेदों का सम्मान करते हैं. हम अभद्र भाषा को स्वीकार नहीं करते हैं और उचित बहस का बचाव करते हैं. हम हमेशा मानवीय गरिमा और सार्वभौमिक मूल्यों के पक्ष में रहेंगे."
We will not give in, ever.
We respect all differences in a spirit of peace. We do not accept hate speech and defend reasonable debate. We will always be on the side of human dignity and universal values.— Emmanuel Macron (@EmmanuelMacron) October 25, 2020
यानी इतनी धमकियों के बावजूद फ्रांस के राष्ट्रपति अपनी सेक्लुयर छवि को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन ये तय है कि इस बार वह ऐसे कट्टर इस्लाम को किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे.
फ्रांस में बने प्रोडक्ट्स का बहिष्कार
फ्रांस का जो विरोध तुर्की और पाकिस्तान जैसे देशों में शुरू हुआ वो अब कुवैत, जॉर्डन और कतर जैसे देशों तक भी पहुंच गया है. इन देशों में अब फ्रांस में बने प्रोडक्ट्स का बहिष्कार करने की मांग हो रही है. खुद को इस्लामिक दुनिया का लीडर साबित करने की होड़ यहां तक पहुंच गई है कि जो सऊदी अरब धीरे धीरे खुद को प्रोग्रेसिव साबित कर रहा था, वहां भी फ्रांस और फ्रांस के राष्ट्रपति का विरोध शुरू हो गया है.
20 वर्षों में जनसंख्या लगभग दोगुनी हो गई
फ्रांस में इस्लामिक कट्टरपंथ के उदय की वजह को समझने के लिए वहां की जनसंख्या वृद्धि को समझना भी बहुत जरूरी है. वर्ष 1900 से पहले फ्रांस में मुसलमानों की जनसंख्या 1000 से भी कम थी.
वर्ष 1950 तक फ्रांस में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 1 लाख से अधिक हो गई. जो उस समय की कुल जनसंख्या के एक प्रतिशत से कम थी. अगले 10 वर्ष में यहां मुसलमानों की संख्या 9 लाख से भी ज्यादा हो गई. 1970 में फ्रांस में मुसलमानों की संख्या 20 लाख हो गई. वर्ष 1960 से 1970 के बीच फ्रांस की कुल जनसंख्या में करीब 50 प्रतिशत का इजाफा हुआ जिनमें मुसलमानों की संख्या 10 लाख थी. वर्ष 1980 में फ्रांस में मुसलमानों की आबादी 25 लाख पहुंच गई. जो कुल जनसंख्या 5 प्रतिशत था. अगले 20 वर्षों में फ्रांस में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग दोगुनी हो गई. वर्ष 2000 में फ्रांस की कुल जनसंख्या में मुसलमानों की हिस्सेदारी 8 प्रतिशत तक पहुंच गई. वर्ष 2020 यानी इस समय फ्रांस में कुल जनसंख्या का 10 प्रतिशत मुसलमान हैं. 6 करोड़ 63 लाख 53 हजार की जनसंख्या में मुसलमानों की संख्या 66 लाख 35 हजार से ज्यादा है.
इस्लाम को मानने वाले लोग जनसंख्या के 10 फीसदी
फ्रांस की इस समय कुल जनसंख्या 6 करोड़ 63 लाख 53 हजार 270 है. जिनमें सबसे ज्यादा संख्या ईसाइयों की है. फ्रांस में 3 करोड़ 80 लाख लोग ईसाई धर्म मानते हैं. जो कुल जनसंख्या का 57 प्रतिशत है. इसके बाद उन लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है. जिनका किसी भी धर्म में विश्वास नहीं है. ऐसे लोगों की संख्या 2 करोड़ 8 लाख 34 हजार है और ये कुल जनसंख्या का 31 प्रतिशत हैं. फ्रांस में इस्लाम को मानने वाले लोगों की संख्या 66 लाख 35 हजार है. जो कुल जनसंख्या का 10% हैं. यहां 0.5% यहूदी भी रहते हैं. 0.46% लोग बौद्ध हैं. हिंदुओं की संख्या यहां सिर्फ 1 लाख 21 हजार है. जो कुल जनसंख्या का सिर्फ 0.18% है.