गांधी जी की हत्या के बारे में आपको बार-बार बताया जाता है लेकिन हमारे देश के इतिहास में गुरु तेग बहादुर के हत्यारे के रूप में औरंगजेब का जिक्र बहुत कम मिलता है.
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नई दिल्ली: इस विश्लेषण की शुरुआत करने से पहले हम आपसे दो सवाल पूछना चाहते हैं. पहला सवाल है कि क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी की हत्या किसने की थी?
और दूसरा सवाल ये कि क्या आपको पता है कि सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर की हत्या किसके आदेश पर की गई थी?
महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने की थी और इस सवाल का जवाब शायद आपको पता होगा. लेकिन संभव है कि दूसरे सवाल का जवाब आप अब भी सोच रहे होंगे.
औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम अपनाने के लिए कहा था...
हम ये सवाल आपसे इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि 24 नवंबर 1675 को गुरु तेग बहादुर ने शहादत दी थी. वो सिखों के नौवें गुरु थे और मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर को मौत की सजा दी गई थी. तब औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा था और उन्होंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया था.
हालांकि ये बातें आपको पता नहीं होंगी. गांधी जी की हत्या के बारे में आपको बार-बार बताया जाता है लेकिन हमारे देश के इतिहास में गुरु तेग बहादुर के हत्यारे के रूप में औरंगजेब का जिक्र बहुत कम मिलता है. यानी हमारे दरबारी इतिहासकारों ने यहां भी हत्यारे का धर्म देखकर उसे डिस्काउंट दे दिया.
हालांकि इसके लिए हमारा अपना सिस्टम भी जिम्मेदार है. आज़ादी के बाद पिछले 73 वर्षों में हमने अपने महा-पुरुषों को वो सम्मान नहीं दिया, जिसके वो हकदार थे. हमारे देश में मुगल शासकों जैसे औरंगजेब और अकबर के बारे में आपको कई पुस्तकें मिल जाएंगी. पाठ्यपुस्तकों में इनकी कहानियां शामिल हैं और कुछ पुस्तकों में तो इनकी तारीफ करते हुए इन्हें महान भी बताया गया है. लेकिन जिन महापुरुषों ने इन राजाओं के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपना बलिदान दिया उनकी चर्चा कम ही होती है.
इतिहासकारों के मुताबिक औरंगजेब भारत को एक इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहता था और उसने कश्मीरी पंडितों को जबरदस्ती मुसलमान बनने के लिए मजबूर भी किया था. तब कश्मीरी पंडितों ने गुरु तेग बहादुर से मदद मांगी थी और गुरु तेग बहादुर ने उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिया था.
इसपर औरंगजेब ने गुरु तेग बहादुर को बंदी बनाया और यातनाएं दीं. उनके शिष्यों को उनके सामने ही जिंदा जला दिया. उन्हें इस्लाम धर्म अपनाने के लिए कहा और जब गुरु तेग बहादुर ने इससे इनकार कर दिया तो औरंगजेब ने उनका सिर कटवा दिया. इसी बलिदान की याद में 24 नवंबर को हर वर्ष शहीदी दिवस मनाया जाता है. जिस स्थान पर गुरु तेग बहादुर का शीश यानी सिर काटा गया था, वो जगह दिल्ली में है और अब सीसगंज गुरुद्वारे के नाम से जानी जाती है.
लगभग साढ़े तीन सौ वर्ष पहले धर्म की रक्षा के लिए दिये गए इस बलिदान के बारे में शायद आपको भी पूरी जानकारी नहीं होगी. तब गुरु तेग बहादुर कोई राजा नहीं थे. वो चाहते तो वो कश्मीरी पंडितों की मदद करने से मना कर सकते थे और अपनी जान बचा सकते थे. पर उन्होंने धर्म का मार्ग चुना क्योंकि, उनका उपदेश था, "धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है". इसी शहीदी परंपरा पर देश को गर्व ह. हमें अपने असली नायकों को पहचानना चाहिए और उन्हीं का सम्मान करना चाहिए.
University of California में इतिहास के प्रोफेसर डॉक्टर Noel King ने कहा था कि गुरु तेग बहादुर की शहादत, दुनिया में मानव-अधिकारों की रक्षा के लिए दिया गया पहला बलिदान था.
आप सोचिए कि भारत में ही सिख धर्म की शुरुआत हुई और यहीं से इस धर्म को मानने वाले पूरी दुनिया में गए. हालांकि यहां के दरबारी इतिहासकारों ने गुरु तेग बहादुर की शहादत को भुला दिया लेकिन सिख धर्म पर रिसर्च करने वाले अमेरिका के एक प्रोफेसर को उनके बारे में पूरी जानकारी थी.