नई दिल्‍ली: अब हम प्रकृति के क्रोध की बात करेंगे, जिसकी कुछ तस्वीरें मणिपुर से आई हैं.  मीडिया में नॉर्थ ईस्ट के राज्यों की ख़बरों को अक्सर जगह नहीं मिल पाती.  आप कह सकते हैं कि हमारे देश का मीडिया नॉर्थ ईस्ट की ख़बरों को ख़बर नहीं मानता.  लेकिन Zee News ऐसा नहीं करता.  हम भारत के किसी भी कोने से आई ख़बर को पूरी गंभीरता से आप तक पहुंचाते हैं और उस पर आपके साथ चर्चा करते हैं. आज भी हम नॉर्थ ईस्ट से आई एक ख़बर आपको बताना चाहते हैं. 


जंगलों में लगी आग ने बढ़ाई मणिपुर सरकार की चिंता 


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आपको याद होगा कि वर्ष 2020 जब शुरू हुआ था, तब ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में भीषण आग लगी हुई थी. उस समय ये ख़बर कोरोना से भी बड़ी थी और आप इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि इस साल का अंत भी कुछ इसी तरह हुआ.   उत्तर पूर्वी भारत के दो बड़े राज्यों मणिपुर और नागालैंड की सीमा पर जंगलों में भीषण आग लगी हुई है. 


अनुमान है कि ये आग दो से तीन दिन पहले नागालैंड के कुछ इलाक़ों में लगी. ज़ुको वैली जो कि एक खूबसूरत पर्यटन स्थल है, वहां तक अब ये आग फैल चुकी है.  जंगलों में लगी इस आग ने मणिपुर सरकार की चिंता बढ़ा दी है. 


कहा जा रहा है कि सबसे पहले जुको वैली में आग लगी, जो नागालैंड और मणिपुर की सीमा पर है. आग मणिपुर की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में से एक Mount esii को पार कर चुकी है.  आशंका है कि अगर आग इसी गति से फैली तो ये मणिपुर के घने जंगल वाले इलाक़ों तक पहुंच जाएगी.



स्थिति चिंताजनक है और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह ने हालात समझने के लिए कल इन इलाक़ों का हवाई दौरा भी किया.  उन्होंने जानकारी दी कि आग पर क़ाबू पाने के लिए बचाव दल की टीमों को इन इलाक़ों में भेजा गया है. 


आग के तेज़ी से फैलने की दो बड़ी वजह हैं, एक है तेज़ रफ़्तार से चल रही हवाएं और दूसरी है जंगलों में सूखे हुए पत्ते और घास. इन पत्तों के सूखने के पीछे का विज्ञान क्या है, इसे आप सरल शब्दों में समझिए. जब किसी पहाड़ी इलाक़े में लंबे  समय तक बारिश नहीं होती तो जंगलों में पेड़ों से गिरने वाले पत्ते और घास सूखने लगती है. इसे  Dry Spell कहा जाता है और मणिपुर में ऐसा ही हुआ है. 


कम बारिश की वजह से जंगलों पर बुरा असर 


मणिपुर में वर्ष 2020 में काफ़ी कम बारिश हुई. किसी भी पहाड़ी इलाक़े में जब ऐसा होता है तो इससे जंगलों पर बुरा असर पड़ता है.  यानी ज़्यादा बारिश की वजह से बाढ़ आती है और जब बारिश बहुत कम होती है तो इसके भी परिणाम काफ़ी गंभीर होते हैं. जंगलों में लगने वाली आग भी इसी का नतीजा है. 


आपने अक्सर लोगों को चाय की दुकानों पर किसी विषय पर चर्चा करते हुए देखा होगा.  लोग चाय पीते हुए गम्भीर मुद्दों पर चर्चा करते हैं और चाय ख़त्म होते ही सब अपने अपने घर चले जाते हैं.  आप कह सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के विषय पर भी दुनिया में कुछ ऐसा ही हो रहा है. दुनिया के बड़े  बड़े देश इस विषय को गंभीर तो मानते हैं, लेकिन इस पर गंभीरता से काम नहीं करते. 


विकास जरूरी है, लेकिन हमें लगता है कि जो विकास प्राकृतिक संसाधनों को चोट पहुंचा कर हासिल किया जाए, उस विकास के कोई मायने नहीं होते.