DNA ANALYSIS: क्या क्रिकेट का हर मैच फिक्स और हर खिलाड़ी बिकाऊ होता है?
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DNA ANALYSIS: क्या क्रिकेट का हर मैच फिक्स और हर खिलाड़ी बिकाऊ होता है?

आपने कई बार खेल के रोमांचक पलों पर बनी फिल्में देखी होंगी लेकिन क्या क्रिकेट जैसा खेल खुद एक फिल्म की तरह है, जिसकी पटकथा मैच शुरू होने से पहले ही लिख दी जाती है?

 

DNA ANALYSIS: क्या क्रिकेट का हर मैच फिक्स और हर खिलाड़ी बिकाऊ होता है?

नई दिल्ली:  इस खबर को जानने के बाद हो सकता है कि आप क्रिकेट के साथ सोशल डिस्टेंसिंग अपना लें, यानी आप क्रिकेट से दूरी बना लें या फिर क्रिकेट देखना ही पूरी तरह छोड़ दें. 

क्या आपके सभी फेवरेट क्रिकेट खिलाड़ी, असल में क्रिकेटर नहीं बल्कि एक्टर हैं? क्या जो रोमांच से भरा क्रिकेट मैच आप देखते हैं, उसकी स्क्रिप्ट पहले ही कोई लिख देता है? क्या क्रिकेट के मैदान पर नजर आने वाले 22 खिलाड़ी असल में एक ऐसी स्टार कास्ट का हिस्सा होते हैं, जो किसी निर्देशक के इशारे पर चौके और छक्के मारते हैं और मैच के आखिरी क्षणों में महत्वपूर्ण विकेट गिराकर मैच का पासा पलट देते हैं?

आपने कई बार खेल के रोमांचक पलों पर बनी फिल्में देखी होंगी लेकिन क्या क्रिकेट जैसा खेल खुद एक फिल्म की तरह है, जिसकी पटकथा मैच शुरू होने से पहले ही लिख दी जाती है?

ये सवाल हम इसलिए पूछ रहे हैं क्योंकि मैच फिक्सिंग के आरोप में लंदन से भारत लाए गए एक बुकी यानी सट्टेबाज़ ने दिल्ली पुलिस को दिए बयान में ऐसा ही दावा किया है. इस बुकी का नाम है संजीव चावला. बुकी वो व्यक्ति होता है जो किसी मैच पर सट्टा लगवाता है और मैच का रुख अपने पक्ष में करने के लिए खिलाड़ियों को पैसे का लालच देकर उन्हें खरीद लेता है. 

संजीव चावला ने ये खुलासा दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच को दिए एक बयान में किया है. संजीव चावला का ये बयान ज़ी न्यूज की टीम ने खुद पढ़ा है और इसमें लिखा एक एक शब्द क्रिकेट को लेकर आपकी सोच हमेशा के लिए बदलकर रख देगा. Match Fixing की दुनिया में संजीव चावला एक बहुत बड़ा नाम है. संजीव चावला पर लगे आरोप छोटे मोटे नहीं हैं. इसलिए संजीव चावला के इस बयान को आप हल्के में नहीं ले सकते.

संजीव चावला ने अपने बयान में दावा किया है कि जो भी क्रिकेट मैच लोग देखते हैं वो सभी फिक्स होते हैं. संजीव चावला के मुताबिक ये ठीक वैसा ही है जैसे आप किसी और के द्वारा निर्देशित कोई फिल्म देखते हैं. जिसकी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी होती है. 

संजीव चावला का ये भी कहना है कि इसमें बड़े गिरोह यानी सिंडीकेट और अंडरवर्ल्ड शामिल है. ये सब करने वाले खतरनाक लोग हैं और अगर उन्होंने इस बारे में कुछ भी कहा तो उनकी हत्या कर दी जाएगी. संजीव चावला ने ये खुलासा भी किया है कि इस मामले की जांच कर रहे क्राइम ब्रांच के DCP डॉक्टर G Ram Gopal की जान को भी इस सिंडीकेट और अंडरवर्ल्ड माफियाओं से खतरा है. DCP जी राम गोपाल वही पुलिस अधिकारी हैं जो अपनी टीम के साथ संजीव चावला को लंदन से भारत लेकर आए थे. 

संजीव चावला पर आरोप है कि उसने वर्ष 2000 में साउथ अफ्रीका और भारत के बीच हुए एक मैच को फिक्स किया था और इसमें उसकी मदद उस समय साउथ अफ्रीकन टीम के कैप्टन Hansie Cronje ने की थी. 

उसी वर्ष दिल्ली पुलिस ने Hansie Cronje और संजीव चावला के बीच हुई बातचीत का खुलासा किया था. इस बातचीत का विषय ये था कि फिक्स किए गए मैच में कौन खेल रहा है, कौन नहीं और फिक्सिंग की डील किस किस खिलाड़ी ने स्वीकार कर ली है और किसने नहीं की है. 

उस समय ये आरोप लगा था कि Hansie Cronje के अलावा मैच फिक्सिंग की रकम साउथ अफ्रीका की टीम के कुछ अन्य खिलाड़ियों को भी दी गई थी. इन खिलाड़ियों के नाम थे Herschelle Gibbs, Pieter Strydom and Nicky Boje.

शुरुआत में Hansie Cronje ने किसी भी तरह की मैच फिक्सिंग से इनकार किया था लेकिन बाद में उन्होंने ये माना कि उनसे गलती हुई और इसके बाद Hansie Cronje पर आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसके अलावा Herschelle Gibbs समेत साउथ अफ्रीका के कुछ खिलाड़ियों पर भी कार्रवाई हुई थी लेकिन किसी को भी उतनी बड़ी सजा नहीं मिली जितनी बड़ी सजा Hansie Cronje को मिली थी. 

वर्ष 2002 में एक विमान दुर्घटना में Hansie Cronje की मृत्यु हो गई थी, और क्रिकेट फिक्सिंग मामले में दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2000 में FIR दर्ज की थी और इस मामले में चार्जशीट 13 वर्ष बाद यानी 2013 में दाखिल हो पाई थी. इसके बाद 20 वर्षों की मेहनत के बाद इस साल फरवरी में संजीव चावला को भारत लाया जा सका. यानी मैच फिक्सिंग के एक आरोपी को जेल की सलाखों तक पहुंचाने में 20 वर्षों का समय लग गया और इस कार्रवाई में हुई ये देरी भी इस बात का प्रमाण है कि मैच फिक्सिंग के खेल में कितने शक्तिशाली लोग शामिल हैं. 

हालांकि संजीव चावला के वकील का दावा है कि संजीव चावला ने ऐसा कोई बयान नहीं दिया है और ये दिल्ली पुलिस की कोरी कल्पना है. 

लेकिन आज हम इस केस के कानूनी पहलूओं की बात नहीं कर रहे, बल्कि हम क्रिकेट से जुड़ी उस भावना की बात कर रहे हैं जो भावना हमारे देश के क्रिकेट खिलाड़ियों को सुपर स्टार और यहां तक कि भगवान का दर्जा दिला देती है. अगर संजीव चावला के बयान में जरा सी भी सच्चाई है तो ये देश के उन करोड़ों क्रिकेट फैन्स के साथ धोखा है, जो क्रिकेट को धर्म समझते हैं. 

सबसे बड़ा पाप किसी के धर्म को और किसी की आस्था को चोट पहुंचाना होता है, और अगर मैच फिक्सिंग के इन आरोपों में थोड़ी भी सच्चाई है और अगर सभी क्रिकेट मैचों के पहले से फिक्स होने की बात सच है और सारा रोमांच, सारा आकर्षण किसी पटकथा का हिस्सा होता है तो ये शायद आजाद भारत के इतिहास की सबसे बड़ी धोखाधड़ी कहलाएगी क्योंकि क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसे हमारे देश में हर धर्म, हर जाति का व्यक्ति एक जैसी उत्सुकता के साथ देखता है. 

वर्ष 2018 में International Cricket Council यानी ICC द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक पूरी दुनिया में क्रिकेट फैन्स की संख्या 100 करोड़ है और इनमें से 90 प्रतिशत यानी 90 करोड़ फैंस सिर्फ भारत या भारतीय उपमहाद्वीप के दूसरे देशों में रहते हैं. 

ICC के इस सर्वे में 16 से 69 वर्ष के क्रिकेट फैन्स शामिल थे, जिनकी औसत उम्र 34 वर्ष है. यानी जिस खेल को देश का युवा अपने जीवन का हिस्सा मानता है. जिस खेल के खिलाड़ियों को देश के लोग अपना आदर्श मानते हैं और जिस खेल में टीम के हार जाने से देश की जनता सदमे में चली जाती है उस खेल की ये सच्चाई क्रिकेट के करोड़ों फैन्स का दिल तोड़ सकती है. 

हम यहां पर एक बात साफ कर देना चाहते हैं कि ये सब बातें एक सट्टेबाज ने कही हैं. इसलिए आप क्रिकेट फैन होने के नाते इसे खारिज भी कर सकते हैं. लेकिन क्रिकेट में सट्टेबाजी का इतिहास सिर्फ उतना ही नहीं है, जिसका हिस्सा संजीव चावला या Hansie Cronje जैसे लोग रहे हैं. बल्कि सट्टेबाज़ी और मैच फिक्सिंग 90 के दशक से क्रिकेट का हिस्सा रही है. और ज्यादातर क्रिकेट बोर्ड इस खेल को भ्रष्टाचार से मुक्त करने की बजाय खुद को बदनामी से बचाने की कोशिश करते रहे हैं. आज हमने इस बारे में दिल्ली क्राइम ब्रांच के रिटायर्ड ज्वाइंट कमिश्नर आलोक कुमार से बात की है. आलोक कुमार ने ही सबसे पहले इस मामले की जांच की थी. दिल्ली पुलिस ने इस मैच फिक्सिंग का खुलासा कैसे किया था ये आप आलोक कुमार की बात से समझ सकते हैं. 

ये बातें सुनकर इस आशंका से पूरी तरह इनकार नहीं किया जा सकता कि क्रिकेट मैच का जो रोमांच आपको दिन रात सोने नहीं देता और आपको दांतों तले उंगलिया दबाने पर मजबूर कर देता है वो रोमांच दरअसल एक एक्शन थ्रिलर फिल्म से ज्यादा कुछ नहीं है. 

आपको जानकर हैरानी होगी कि क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत और पाकिस्तान के मैच को पूरी दुनिया में 100 करोड़ से ज्यादा लोग देखते हैं. ये अमेरिका की सबसे मशहूर नेशनल फुटबॉल लीग की Annual Championship को देखने वालों से भी 9 गुना ज्यादा संख्या है. इतना ही नहीं भारत और पाकिस्तान का मैच देखने वालों की संख्या
मशहूर अमेरिकी सीरियल Game Of Thrones के Final Episode को देखने वालों से भी 52 गुना ज्यादा होती है. 

क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं है बल्कि ये कूटनीति का भी जरिया है. क्रिकेट के बहाने भारत और पाकिस्तान जैसे देश अपने विवाद हल करने की कोशिश करते हैं. इतना ही नहीं कुछ वर्ष पहले क्यूबा के क्रांतिकारी नेता Fidel Castro ने क्यूबा के लोगों को बेस बॉल की जगह क्रिकेट खेलने की सलाह दी थी ताकि वो अमेरिका को जवाब दे सकें क्योंकि बेस बॉल अमेरिका का सबसे लोकप्रिय खेल है. 

यहां तक कि चीन ने ईनाम के रूप में वेस्टइंडीज के उन देशों में क्रिकेट स्टेडियमों का निर्माण कराया था जिन्होंने ताइवान को मान्यता देने से इनकार कर दिया था. 

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कई वर्षो तक चले भयंकर युद्ध के बाद अफगानिस्तान के लोगों का जीवन सामान्य करने में भी क्रिकेट ने बड़ी भूमिका निभाई है. अफगानिस्तान में क्रिकेट की लोकप्रियता इतनी है कि वहां के लोग चुनावों में हिस्सा ले या ना लें, वो अपनी टीम का कोई क्रिकेट मैच मिस नहीं करते. 

यानी क्रिकेट भले ही दुनिया के गिने चुने देशों में खेला जाता हो, लेकिन इसकी लोकप्रियता का प्रभाव दुनिया के लगभग हर कोने पर पड़ता है. 

क्रिकेट ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के साथ दुनिया के अलग अलग देशों तक पहुंचा और भारत में भी इसकी शुरुआत अंग्रेजों ने ही की थी. यहां तक कि अमेरिका में भी एक जमाने में क्रिकेट खेला जाता था, लेकिन अमेरिका में ब्रिटिश शासन खत्म होने के बाद वहां क्रिकेट से ही मिलता जुलता एक खेल खेला जाने लगा है जिसका नाम है -Base Ball. 

अंग्रेजों ने क्रिकेट का इस्तेमाल ब्रिटेन की संस्कृति को दूसरे देशों तक फैलाने में किया और दुनिया के कई हिस्सों को अपना उपनिवेश बनाने में भी क्रिकेट की मदद ली. 

लेकिन परिणाम स्वरूप जिन गुलाम देशों ने क्रिकेट खेलना शुरू किया उनके अंदर राष्ट्रभक्ति की भावना जागने लगी, क्योंकि अब वो ब्रिटेन के लोगों को उन्हीं के खेल में हराने का सपना देखने लगे थे. मशहूर फिल्म लगान भी इसी भावना पर केंद्रित थी. 

लेकिन स्थिति आज बदल चुकी है, अब क्रिकेट और इससे होने वाले मुनाफे पर भारत का एकछत्र राज है. पूरी दुनिया में क्रिकेट से जो कमाई होती है उसका 70 प्रतिशत हिस्सा Board of Control for Cricket in India यानी BCCI के पास आता है. 

IPL जैसे आयोजनों ने तो क्रिकेट की लोकप्रियता को चरम पर पहुंचा दिया है. जिस समय पूरी दुनिया में बड़ी बड़ी कंपनियां और बड़े बड़े खेल कोरोना वायरस की वजह से प्रभावित है. उस समय भी BCCI फायदे में है. 

उदाहरण के लिए ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट बोर्ड को COVID 19 की वजह से अपने स्टाफ की सैलरी में 80 प्रतिशत की कमी करनी पडी है. लेकिन BCCI अब भी दुनिया का सबसे धनवान क्रिकेट बोर्ड है. 31 मार्च 2018 तक की बैलेंस शीट के मुताबिक BCCI के पास 5 हजार 526 करोड़ रुपए का फंड मौजूद था.  BCCI को हर साल Broad Cast Rights और Sponsorship के रूप में हजारों करोड़ रुपए मिलते हैं और अगर BCCI अपनी कमाई का आधा हिस्सा IPL की 8 टीमों के बीच बराबर बराबर बांट भी दे तो भी BCCI के पास 2 हजार करोड़ रुपए बच जाते हैं. 

लेकिन अब सवाल ये है कि क्या हजारों करोड़ों रुपये की कमाई और इस चकाचौंध के पीछे फिक्सिंग का वो काला सच छिपा है, जिसके बारे में कोई बात नहीं करना चाहता? या फिर एक आरोपी सिर्फ खुद को बचाने के लिए क्रिकेट को बदनाम कर रहा है?

अब सच चाहे जो भी हो, लेकिन क्रिकेट पर लगे फिक्सिंग के दाग अब तक धुले नहीं हैं और जब तक क्रिकेट पूरी तरह से भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो जाता, तब तक ये नहीं कहा जा सकता कि आप टीवी पर जो मैच देखते हैं उसमें सच में खिलाड़ियों की मेहनत छिपी होती है या फिर ये सब एक दिखावा होता है और आप जिसे मैच समझते हैं वो एक पहले से लिखी लिखाई कहानी से बढ़कर कुछ नहीं होता. 

संजीव चावला कोई सामान्य क्रिकेट बुकी नहीं है. आप सोचिए कि इस व्यक्ति को भारत लाने में करीब 20 वर्ष लग गए. इस व्यक्ति को अच्छी तरह से पता है, कि जिस क्रिकेट को आप बाहर से देख रहे हैं, उस क्रिकेट में अंदर क्या खेल होता है. इसलिए अगर ये व्यक्ति ये खुलासा कर रहा है कि क्रिकेट का हर मैच फिक्स होता है और क्रिकेट मैच एक स्क्रिप्टेड और एडिटेड फिल्म की तरह होता है, तो इसकी बातों को हल्के में नहीं लिया जा सकता. संजीव चावला वो व्यक्ति है, जिसका नाम सबसे पहले वर्ष 2000 के मैच फिक्सिंग स्कैंडल में आया था, जिसने आज से 20 साल पहले करोड़ों क्रिकेट फैंस को सबसे बड़ा झटका दे दिया था. आप हैंसी क्रोनिए का रोता हुआ चेहरा याद कीजिए. 

जब इस मामले में दक्षिण अफ्रीका में उनकी जांच हो रही थी, उनसे पूछताछ की जा रही थी, तो तीन दिन में ही वो टूट गए थे. और वो कोर्ट में ही रोने लगे थे. उन्होंने कबूल कर लिया कि वो मैच फिक्सिंग करते थे. उन्होंने कहा था कि उन्हें सट्टेबाज़ों से एक-एक लाख डॉलर की पांच पेमेंट मिली थी और 20 हजार डॉलर उनके बैंक अकाउंट में जमा किए गए थे. कोई सोच भी नहीं सकता था कि हैंसी कोनिए जैसा क्रिकेटर भी मैच फिक्स कर सकता था. उस वक्त हैंसी क्रोनिए क्रिकेट की दुनिया का बड़ा नाम था. वो दक्षिण अफ्रीका जैसी बड़ी टीम के सफल कप्तान थे. खुद वो बेहतरीन ऑलराउंडर थे और बेहतरीन टीम लीडर थे. क्रिकेट जैसे जेंटलमैन गेम में क्रोनिए की छवि भी जेंटलमैनकी थी. लेकिन क्रोनिए के कबूलनामे ने क्रिकेट के प्रति सोच को बदल दिया. क्योंकि क्रिकेट में फिक्सिंग को लेकर इससे पहले भी कई तरह की बातें की जाती थी, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था कि क्रोनिए जैसे कद का कोई स्टार खिलाड़ी, और जो कप्तान भी था, उसने मैच फिक्स करने की बात कबूल की थी. 

हैंसी क्रोनिए ने कैमरे पर अपने कबूलनामे में ये बात भी कही थी कि उन्होंने अगर पूरी बातें बता दी तो उनकी जान को खतरा हो जाएगा, क्योंकि उन्हें पहले से ही जान से मारने की धमकियां मिल रही थीं. अब इसे इत्तेफाक कहें या फिर कुछ और, मैच फिक्सिंग के इस स्कैंडल के सिर्फ दो साल बाद हैंसी क्रोनिए की एक विमान हादसे में मौत हो गई. तब हैंसी क्रोनिए सिर्फ 32 साल के थे. बहुत लोग ये मानते थे कि ये हत्या थी, जिसके पीछे क्रिकेट के अंडरवर्ल्ड का हाथ था. ऐसी बातों पर 2007 में भी चर्चा हुई, जब उस साल क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान पाकिस्तानी टीम के कोच बॉब वूल्मर की रहस्यमय हालात में मौत हो गई थी. 

ये वर्ल्ड कप वेस्टइंडीज में हो रहा था. वहां जमैका के एक होटल में वूल्मर मृत पाए गए थे. ये वो वक्त था, जब पाकिस्तानी टीम वर्ल्ड कप से बाहर हो चुकी थी और तीन दिन बाद ही उसका आखिरी मैच था. शुरुआत में ये कहा गया था कि वूल्मर की मौत हार्ट अटैक से हुई, लेकिन बाद में जमैका की पुलिस ने कहा कि वो इसे हत्या का मामला मानकर जांच कर रही है, क्योंकि एक जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि वूल्मर की मौत दम घुटने से हुई यानी शायद उनकी हत्या गला घोंट कर की गई. खबरें यहां तक आई कि वूल्मर को पहले जहर दिया गया था, फिर उनका गला दबाया गया. हालांकि बाद में इस मामले को रफा दफा कर दिया गया और इसे सामान्य मौत का मामला बता दिया गया. इस घटना के कुछ वर्षों बाद दक्षिण अफ्रीका के ही पूर्व कप्तान क्लाइव राइस ने दावा किया था कि वूल्मर की मौत के पीछे क्रिकेट माफिया का हाथ है, और ये ऐसा संगठित गिरोह है, जो किसी की भी परवाह नहीं करता, इनके रास्ते में जो भी आता है, उसे ये हटा देते हैं. यहां ये भी ध्यान रखना होगा कि हैंसी क्रोनिए के वक्त में बॉब वूल्मर ही दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के कोच थे. बाद में वो पाकिस्तान की क्रिकेट टीम के कोच बन गए थे. 

मैच फिक्सिंग की जांच कर रहे आयोग के सामने हर्शेल गिब्स ने बताया था कि भारत-दक्षिण अफ्रीका वनडे मैच सीरीज के 5वें वनडे मैच में क्रोनिए ने उन्हें 20 से कम रन बना कर आउट होने के लिए 15 हजार डॉलर यानी करीब साढ़े 11 लाख रुपए का ऑफर दिया था. इतनी ही रकम क्रोनिए ने अपनी टीम के एक बॉलर हेनरी विलियम्स को ऑफर की थी और ये कहा था कि वो अपने ओवर्स में 50 रन से ज़्यादा बल्लेबाज़ों को बनाने दें. हालांकि गिब्स ने उस मैच में 53 गेंदों में 74 रन बनाए थे और कंधे में चोट लगने की वजह से विलियम्स दो ओवर भी पूरे नहीं डाल पाए थे. इससे पहले क्रोनिए खुद ये कह चुके थे कि इसी सीरीज के लिए उन्हें लंदन के सट्टेबाज से दस हजार से 15 हजार डॉलर मिले थे. क्रोनिए ने अपने कबूलनामे में भारत के क्रिकेट खिलाड़ियों का नाम लिया था. इसमें मोहम्मद अजहरुद्दीन का नाम प्रमुख तौर पर था. क्रोनिए ने आरोप लगाए थे कि अजहरूद्दीन ने उन्हें एक सट्टेबाज से मिलवाया था.

मैच फिक्सिंग के इस मामले में भारत में सीबीआई की जांच भी हुई थी. सीबीआई की जांच में मोहम्मद अजहरूद्दीन, अजय जडेजा, मनोज प्रभाकर, अजय शर्मा, नयन मोंगिया जैसे क्रिकेटर्स का नाम आया था. इस पर BCCI की एंटी करेप्शन यूनिट ने भी जांच की थी, जिसके बाद अजहरुद्दीन और अजय शर्मा को दोषी मानकर बोर्ड ने आजीवन प्रतिबंध लगा दिया था. अजय जडेजा और मनोज प्रभाकर जैसे क्रिकेटर्स पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया था. बाद में इनमें से कई क्रिकेटर अदालतों में भी गए, वहां से इन्होंने अपने लिए राहत भी ली, प्रतिबंध भी हटवाए, BCCI ने भी इन्हें बाद में रियायत दे दी और इनमें से अधिकतर क्रिकेटर धीरे धीरे क्रिकेट की मुख्य धारा में वापस भी आ गए. धीरे धीरे फिक्सिंग का ये बड़ा मामला लोगों की याददाश्त से मिटता चला गया. यही हाल 2013 के IPL के स्पॉट फिक्सिंग और सट्टेबाज़ी के केस में हुआ, ये केस भी अधिकतर लोग भूल चुके हैं. 

आपको याद होगा कि 2013 में दिल्ली पुलिस ने IPL टीम राजस्थान रॉयल्स के चार क्रिकेटर्स को स्पॉट फिक्सिंग के केस में पकड़ा था, जिन पर आरोप था कि वो सट्टेबाजों को ग्राउंड से ही इशारा देकर हर बॉल या ओवर के हिसाब से स्पॉट फिक्सिंग करते थे. इसी केस की जांच जब आगे बढ़ी तो IPL में सट्टेबाजी और हितों के टकराव के मामले में कई बड़े बड़े लोगों के नाम आए. इनमें तत्कालीन BCCI अध्यक्ष एन श्रीनिवासन, उनके दामाद गुरुनाथ मय्यप्पन और दूसरी कुछ IPL टीमों के मालिक और अधिकारी शामिल थे. ये मामला सुप्रीम कोर्ट गया और सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई जस्टिस मुदगल कमेटी ने जांच की, तो भारतीय क्रिकेट में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार सामने आया. यहां से क्रिकेट की स्वच्छता और उसे धंधेबाज़ों से मुक्त कराने का अभियान चला. इसके बाद दो आईपीएल टीमों पर प्रतिबंध लगा. BCCI और आईपीएल के कई बड़े चेहरों को सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेट के प्रशासन से ऑउट किया. वैसे ये विवाद भारतीय क्रिकेट और IPL के लिए नए नहीं थे. 2010 में ललित मोदी का मामला भी आपको याद होगा. जिन पर IPL में गड़बड़ियों का आरोप लगा था. ललित मोदी को क्रिकेट बोर्ड से निकाल दिया गया था और वो देश से बाहर चले गए और उन्हें अब तक वापस नहीं लाया जा सका. इन सब बातों से आप समझ सकते हैं कि क्रिकेट के अंदर किस तरह का खेल होता है. 

 

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