DNA ANALYSIS: नकली TRP पर सबसे बड़ा खुलासा, जानिए क्या है रेटिंग स्कैम का पूरा सच
टीआरपी की इस चोरी की तुलना आप बूथ कैप्चरिंग से कर सकते हैं. नेताओं के लिए जो महत्व वोटों का है, टीवी चैनलों के लिए वही महत्व टीआरपी का है.
नई दिल्ली: आज भारत के लोग दुखी हैं क्योंकि शायद देश में पहली बार एक टीआरपी (TRP) घोटाले का खुलासा हुआ है. कल दोपहर को मुंबई पुलिस के कमिश्वर परमबीर सिंह (Param Bir Singh) ने तब पूरे देश को चौंका दिया जब उन्होंने कहा कि टीआरपी से छेड़छाड़ के आरोप में मुंबई पुलिस (Mumbai Police) ने तीन टीवी चैनलों के खिलाफ जांच शुरू कर दी है और दो चैनलों के प्रमोटर्स को गिरफ्तार भी कर लिया गया है लेकिन इनमें सबसे बड़ा नाम है रिपब्लिक टीवी (Republic TV) का. ये वो न्यूज़ चैनल है जो देश का नंबर वन चैनल होने का दावा करता था. ये दावा सही था क्योंकि टीआरपी भी यही कहती है कि ये न्यूज़ चैनल नंबर वन है, चाहे वो अंग्रेजी का रिपब्लिक टीवी हो या फिर हिंदी का चैनल रिपब्लिक भारत. लेकिन मुंबई पुलिस ने ये खुलासा किया है कि ये टीआरपी नकली थी और खरीदी हुई टीआरपी थी. मुंबई पुलिस के अनुसार मुंबई में बहुत सारे परिवारों को हर महीने 500 रुपए देकर ये कहा जाता था कि वो अपने टीवी पर सिर्फ एक ही चैनल लगाकर रखें. ये खुलासा वीरवार के दिन हुआ है. वीरवार हफ्ते का वो दिन होता है. जब टीवी चैनलों की टीआरपी की आती है और टीआरपी की इस चोरी की तुलना आप बूथ कैप्चरिंग से कर सकते हैं. नेताओं के लिए जो महत्व वोटों का है, टीवी चैनलों के लिए वही महत्व टीआरपी का है. कल्पना कीजिए कि अगर कभी कोई ईवीएम हैक जो जाए तो वो कितनी बड़ी खबर होगी. इसी प्रकार अगर टीआरपी मापने वाले बक्से हैक कर लिए जाए तो इससे बड़ी कोई खबर क्या होगी?
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ
टीआरपी घोटाले का पर्दाफाश करने के बाद आज जो व्यक्ति पूरे देश में चर्चा में हैं, वो हैं मुंबई के पुलिस कमिश्नर परम बीर सिंह. परमबीर सिंह ने जो बताया वो सुनकर आज पूरा देश दुखी है. मीडिया का हिस्सा होने के नाते हम भी बहुत दुखी हैं क्योंकि, मीडिया जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है, उस स्तंभ को आज टीआरपी की दीमक खा गई है. जो न्यूज़ चैनल इस स्तंभ को खंडित होने से बचाने का दावा करते थे वो खुद आज इस स्तंभ को टीआरपी वाले हथौड़े से तोड़ते हुए रंगे हाथों पकड़े गए हैं. भारत में करीब 20 करोड़ परिवार टेलीविजन पर न्यूज़ देखते हैं और भारत के सौ करोड़ लोग अपने अपने स्मार्टफोन पर न्यूज के जरिए ये पता लगाना चाहते हैं कि देश में क्या चल रहा है. पत्रकार न तो एक अभिनेता होता है न ही फिल्म प्रोड्यूसर. इसलिए पत्रकार एक्टिंग नहीं करता बल्कि आपको सच दिखाता है. इसलिए देश के करोड़ों लोग खबरों को जानने के लिए बड़े भरोसे के साथ न्यूज़ चैनलों को देखते हैं, जानकारी हासिल करते हैं और अपनी राय बनाते हैं. लेकिन आज देश के 130 करोड़ लोगों के साथ हवा के रास्ते एक बहुत बड़ा धोखा किया गया है.
टीआरपी का नया बिजनेस मॉडल
कुछ दिनों पहले हमने आपको बताया था कि कैसे सोशल मीडिया पर बहुत आराम से फेक फॉलोअर्स और फेक लाइक्स खरीदे जा सकते हैं. ये बात हमने आपको टेलीविजन के माध्यम से बताई थी लेकिन आज हमें ये कहते हुए बहुत अफसोस हो रहा कि अब फेक फॉलोअर्स और फेक लाइक्स खरीदने का काम कुछ न्यूज़ चैनल भी कर रहे हैं. यानी आज हमारे देश ने फेक फॉलोअर्स से फेक टीआरपी तक का सफर तय कर लिया है और इस सफर पर गर्व करने जैसी कोई बात नहीं है.
आपने देखा होगा कि लगभग हर न्यूज़ चैनल और हर न्यूज़ एंकर खुद को नंबर वन बताता है और नंबर वन होने की इस होड़ के पीछे टीआरपी की दौड़ है क्योंकि, जिसे जितनी टीआरपी मिलेगी उसे उतने विज्ञापन मिलेंगे और जिसे जितने विज्ञापन मिलेंगे उसे उतना सफल माना जाएगा. लोगों को 400-500 रुपये देकर टीआरपी बढ़ाने के लिए कहना ऐसा ही है, जैसे एक जमाने में कश्मीर में कुछ लोगों को चार पांच सौ रुपये देकर सेना पर पत्थर मारने के लिए कहा जाता था. यानी ये टीआरपी का नया बिजनेस मॉडल है. जिसमें टीआरपी की सेल भी है और टीआरपी की चोरी भी है.
पैमाना टीआरपी नहीं, बल्कि दर्शकों का भरोसा
जिस चैनल न्यूज़ चैनल पर ये आरोप लगा है, वो एक फ्री टू एयर चैनल है यानी इस चैनल को देखने के लिए आपको कोई सब्सक्रिप्शन फीस नहीं चुकानी पड़ती और हमेशा ध्यान रखिए जब आप किसी प्रोडक्ट के लिए पैसे नहीं चुकाते तो आप खुद एक प्रोडक्ट बन जाते हैं. आपकी पसंद और नापसंद की नीलामी होने लगती है और आपको एकतरफा का खबरों का नशा करने मजबूर कर दिया जाता है.
लेकिन आज आपको ये जानकर अच्छा लगेगा कि ज़ी न्यूज़ एक पेड चैनल है यानी आप हमें पैसे देते हैं और उसी पैसे से हम आप तक खबरें पहुंचाने का खर्च उठाते हैं. हालांकि हमें भी विज्ञापन मिलते हैं लेकिन हमें मिलने वाले विज्ञापनों का एक मात्र पैमाना टीआरपी नहीं, बल्कि आपका भरोसा भी है.
ये बहुत बड़ी विडंबना है कि कल 8 अक्टूबर को जब टीआरपी घोटाले का खुलासा हुआ इस दिन देश के सबसे बड़े साहित्यकारों में से एक मुंशी प्रेम चंद की पुण्यतिथि है. मुंशी प्रेम चंद आज भी प्रासंगिक हैं. उन्होंने लोकप्रियता की खातिर अपने साहित्यिक मापदंडों से कभी समझौता नहीं किया. मुंशी प्रेम चंद ने अपनी एक कहानी में लिखा था- क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे ?
आज अगर वो जीवित होते तो ये खबर देखकर शायद कहते कि टीआरपी घटने के डर से ईमान की बात न कहोगे ?
नंबर-1 बनने की होड़
आप यानी दर्शक कौन सा टीवी चैनल कितनी देर तक देखते हैं. इसके आधार पर उस चैनल पर चलने वाले विज्ञापनों की दर तय होती है. यही कारण है कि हर चैनल में नंबर-1 बनने की होड़ लगी रहती है. कोई चैनल टीआरपी में किस नंबर पर है यह पता लगाने के लिए वर्ष 2010 में नए सिस्टम की शुरुआत की गई थी. क्योंकि इससे पहले जो कंपनी टीआरपी के आंकड़े जारी करती थी उसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो गए थे. इसके बाद भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दिशानिर्देशों के तहत नई एजेंसी बनाई गई थी.
- इस नई एजेंसी का नाम Broadcast Audience Research Council यानी BARC है.
- बार्क में चैनलों और एडवर्टाइजर्स के प्रतिनिधि शामिल होते हैं. ये टीआरपी मापने की दुनिया की सबसे बड़ी एजेंसी है.
- चैनलों की रेटिंग पता करने के लिए बार्क ने देशभर में 44 हजार बैरोमीटर लगा रखे हैं.
- हर टेलीविजन चैनल के प्रसारण के साथ एक खास फ्रीक्वेंसी का ऑडियो भी होता है. इस ऑडियो को हम और आप नहीं सुन सकते हैं. लेकिन बार्क के बैरोमीटर इसे सुन सकते हैं. इसे ऑडियो वाटर मार्किंग भी कहते हैं.
- इससे यह पता चल जाता है कि कोई व्यक्ति कितनी देर तक कौन सा चैनल देख रहा है.
- ये बैरोमीटर जिन 44 हजार घरों में लगे हैं उनके कुल सदस्यों की संख्या 1 लाख 80 हजार के लगभग है.
- यानी 135 करोड़ आबादी वाले देश के लोग कौन सा चैनल देखते हैं इसका अनुमान लगाने के लिए जो सैंपल है वो हमारी जनसंख्या का मात्र 0.01 प्रतिशत है यानी 7500 में से सिर्फ एक आदमी.
हर चैनल एक जैसे प्रोग्राम
ये 1 लाख 80 हजार लोग जो चैनल और जो प्रोग्राम देखते हैं उसी आधार पर मान लिया जाता है कि कौन सा चैनल किस नंबर पर है. ये 1 लाख 80 हजार लोग जिस तरह के प्रोग्राम देखते हैं वैसे ही प्रोग्राम सारे चैनल दिखाने लगते हैं. यही कारण है कि कई बार आप देखते होंगे कि हर चैनल एक जैसे ही कार्यक्रम दिखाने लगता है. कभी सारे चैनलों पर कॉमेडी के शो दिखाए जाने लगे थे तो एक समय ऐसा भी था जब हर चैनल अपराध से जुड़ी खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता था ताकि उसे ज्यादा से ज्यादा लोग देखें. ये एक तरह की व्यापारिक मजबूरी भी है, क्योंकि इससे चैनलों के विज्ञापनों की दर तय होती है.
जितनी ज्यादा रेटिंग, उतने ही ज्यादा विज्ञापन
किसी चैनल को जितनी ज्यादा रेटिंग मिलती है, उसे उतने ही ज्यादा विज्ञापन मिलते हैं. इन विज्ञापनों की दर भी अधिक होती है. इससे उस चैनल की कमाई यानी रेवेन्यू बढ़ता है. यही बिजनेस मॉडल है जिसने आज हमारी और आपकी पसंद-नापसंद को भी एक तरह से हैक कर लिया है.
समस्या ये है कि कुछ चैनलों ने टीआरपी के इस सिस्टम में भी सेंध लगाने की कोशिश की है. ये एक तरह का धोखा है जो इस देश के करोड़ों लोगों के साथ चल रहा है.
हर हफ्ते गुरुवार को TV रेटिंग जारी करने एजेंसी बार्क ने नकली टीआरपी पर मुंबई पुलिस की जांच का स्वागत किया है. बार्क के प्रवक्ता ने कहा है कि "पहले भी जब गड़बड़ियों की शिकायतें मिलीं तब कार्रवाई की गई. हम तय दिशानिर्देशों के अनुसार अपने पूरे सिस्टम की निगरानी करते हैं. हम मुंबई पुलिस की जांच का स्वागत करते हैं. उन्हें जांच में हमसे जो भी सहयोग चाहिए उसके लिए हम पूरी तरह तैयार हैं."