DNA ANALYSIS: अलगाववादी खत्म तो 'अध्याय' क्यों नहीं?
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DNA ANALYSIS: अलगाववादी खत्म तो 'अध्याय' क्यों नहीं?

NCERT ने 12वीं कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की किताब में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए हैं और इसमें जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी राजनीति का जिक्र हटा दिया है.

DNA ANALYSIS: अलगाववादी खत्म तो 'अध्याय' क्यों नहीं?

नई दिल्ली: भारत की राजनीति में अलगाववाद का चैप्टर खत्म हो चुका है और राष्ट्रवाद का चैप्टर जुड़ चुका है. इसलिए अब स्कूली किताबों में भी अलगाववाद की शिक्षा की कोई जगह नहीं बची है. नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग यानी NCERT की किताब से भी अलगाववाद का जिक्र करने वाले हिस्से हटा दिए गए हैं और इसकी जगह पर अब अनुच्छेद 370 को हटाने वाले राष्ट्रवादी फैसले को शामिल किया गया है.

NCERT ने 12वीं कक्षा की राजनीतिक विज्ञान की किताब में कुछ महत्वपूर्ण संशोधन किए हैं और इसमें जम्मू-कश्मीर की अलगाववादी राजनीति का जिक्र हटा दिया है. इस किताब में क्षेत्रीय आकांक्षाएं नाम से जो चैप्टर है, उसमें जम्मू-कश्मीर के बारे में बताते हुए, पहली बार अनुच्छेद 370 को हटाने वाले फैसले की बात लिखी गई है. संशोधित किताब में ये कहा गया कि जम्मू-कश्मीर और लद्धाख, भारत में विविधता वाले समाज के उदाहरण हैं. इसी विविधता के आधार पर यहां पर राजनीति और विकास की अलग-अलग इच्छाएं हैं, जिन इच्छाओं को अनुच्छेद 370 हटाकर पूरा किए जाने की कोशिश है.

ये तो जम्मू कश्मीर में राष्ट्रवाद की नई शिक्षा की बात है, लेकिन पुरानी किताब में क्या पढ़ाया जा रहा है, ये भी आपके लिए जानना बहुत जरूरी है, क्योंकि इसी से आप समझ सकते हैं, कि भारत में किस तरह से एजेंडे के तहत अलगाववाद को बढ़ावा दिया जा रहा था. हमने नई और पुरानी दोनों किताब को देखा है और इसकी तुलना की है.

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NCERT की राजनीतिक विज्ञान की इसी किताब में पहले ये पढ़ाया जा रहा था कि 1989 से जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी राजनीति ने सिर उठाया और इसने कई रूप ले लिए. इसमें इस राजनीति की कई धाराओं का जिक्र था. जिसमें एक धारा के बारे में लिखा गया था कि अलगाववादियों का एक तबका कश्मीर को अलग राष्ट्र बनाना चाहता है यानी ऐसा कश्मीर जो ना पाकिस्तान का हिस्सा हो ना भारत का हिस्सा हो.

पुरानी किताब में क्या लिखा था?
पुरानी किताब में ये भी लिखा था कि कुछ अलगाववादी समूह कश्मीर का पाकिस्तान में विलय चाहते हैं. इसमें आगे यहां तक लिखा गया था कि शुरुआती वर्षों में उग्रवाद को लोगों का कुछ समर्थन हासिल था, लेकिन अब यहां लोग शांति की कामना कर रहे हैं और केंद्र सरकार, विभिन्न अलगाववादी समूहों से बातचीत कर रही है.

पुरानी किताब का ये पूरा जिक्र, नई किताब से हटा दिया गया है. अब आप सोचिए इस तरह की बातों से कैसे छात्रों के मन में भ्रम बनाया जा रहा था और कैसे अलगाववादियों के प्रति हमदर्दी जताने की कोशिश की जा रही थी. ऐसी ही बातों को स्कूलों से पढ़कर छात्र, जब कॉलेज और यूनिवर्सिटी में जाते हैं तो वहां पर टुकड़े-टुकड़े गैंग के जाल में फंस कर आजादी के नारे लगाने लगते हैं.

लेकिन जैसे अनुच्छेद 370 हटने के साथ ही अलगाववादी राजनीति का अंत हो गया और उसी तरह अब स्कूलों में अलगाववाद की शिक्षा का भी अंत हो रहा है.

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