DNA ANALYSIS: नए साल में अगर आपने भी लिया है ऐसा Resolution, तो जानिए क्या कहती है Research?
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DNA ANALYSIS: नए साल में अगर आपने भी लिया है ऐसा Resolution, तो जानिए क्या कहती है Research?

वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर किसी नई प्रतिज्ञा का पालन लगातार 21 दिन भी कर लिया जाए तो वो एक आदत में बदल जाती है. लेकिन एक तारीख को प्रण लेकर उसे 19 जनवरी तक तोड़ देने वाले लोग, 21 दिन भी इसका पालन नहीं कर पाते. 

DNA ANALYSIS: नए साल में अगर आपने भी लिया है ऐसा Resolution, तो जानिए क्या कहती है Research?

नई दिल्ली: वर्ष 2020 से वर्ष 2021 आ चुका है और आप नए साल में प्रवेश कर गए हैं. लेकिन क्या सिर्फ़ अंक बदल जाने से या 365 दिनों में पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा पूरी कर लेने से आपका जीवन भी बदल जाता है? पूरी दुनिया इस बार नए साल का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी, नए साल को लेकर इतनी उत्सुकता पहले शायद कभी नहीं देखी गई और इसकी वजह ये थी कि पिछला वर्ष बहुत सारी चुनौतियों से भरा हुआ था और लोग किसी भी तरह बस नए साल में प्रवेश कर लेना चाहते थे.

जीवन में क्या बदलाव आया?

सबको ऐसा लग रहा था कि जैसे ही घड़ी में रात के 12 बजेंगे. सबकुछ अचानक बदल जाएगा सारी स्थितियां बदल जाएगी और शायद ये दुनिया पूरी तरह से नई हो जाएगी. लेकिन ज़रा आप अपने आपसे पूछिए कि आज सुबह जब आप सोकर उठे तो आपके जीवन में क्या बदलाव आया? क्या अंक बदल जाने के साथ ही आप भी एक व्यक्ति के तौर पर बदल चुके हैं? क्या 31 दिसंबर के बीत जाने से और 1 जनवरी के आ जाने से आपका व्यक्तित्व भी एकदम नया हो गया है? और क्या आपकी स्थितियां भी रातों रात बदल गई हैं. 

अगर आप ईमानदारी से जवाब देंगे तो ज़्यादातर लोगों का जवाब न में होगा. 

नया साल, तारीख और समय के मिश्रण से बनी एक ऐसी अवधारणा है जिसका निर्माण इंसानों ने किया है और इसके केंद्र में है 365 दिनों में पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा पूरी करना. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जब इस पृथ्वी पर इंसानों का नामो निशान तक नहीं था. तब भी पृथ्वी एक साल में सूर्य की परिक्रमा ऐसे ही करती थी और अगर कल को पृथ्वी पर इंसान न हों तो भी ये सिलसिला यू हीं चलता रहेगा. पृथ्वी पिछले साढ़े 360 करोड़ वर्षों से ऐसा ही कर रही है.

...तो बड़े बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

आप सोचिए कि एक जनवरी में ऐसा क्या है जो एक फरवरी, एक मार्च या एक अप्रैल में नहीं है. क्या जब 31 दिसंबर की रात को घड़ी में 12 बजते हैं, तो आसमान में ज़्यादा रोशनी हो जाती है? सितारे ज़्यादा पहले से चमकने लगते हैं? या फिर पेड़ आपस में बात करने लगते हैं? 31 दिसंबर की रात या एक जनवरी की सुबह ऐसा कुछ नहीं होता और सच तो ये है कि वर्ष के किसी भी दिन ऐसा नहीं होता. जब अंकों के बदलने से प्रकृति अंश मात्र भी नहीं बदलती तो भला इंसान किसी बड़े बदलाव की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?

एक जनवरी को लोग बड़ी-बड़ी प्रतिज्ञाएं लेते हैं? जिसे New Year Resolutions कहा जाता है. लेकिन आप ज़रा खुद से पूछिए कि पिछले वर्ष आपने जो प्रतिज्ञाएं ली थी. उनमें से कितनी आपने पूरी कीं.

80 प्रतिशत लोग कभी अपने उद्देश्य हासिल नहीं कर पाते

पिछले वर्ष 80 करोड़ लोगों पर की गई एक स्टडी के आधार पर दावा किया गया था कि इनमें से ज़्यादातर लोग अपने Resolutions का पालन 19 जनवरी तक भी नहीं कर पाए. 

अमेरिका में हुए एक शोध के मुताबिक नए साल पर Resolution लेने वाले 80 प्रतिशत लोग कभी अपने उद्देश्य हासिल नहीं कर पाते. 

वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर किसी नई प्रतिज्ञा का पालन लगातार 21 दिन भी कर लिया जाए तो वो एक आदत में बदल जाती है. लेकिन एक तारीख को प्रण लेकर उसे 19 जनवरी तक तोड़ देने वाले लोग, 21 दिन भी इसका पालन नहीं कर पाते. 

अंतर्मन को मज़बूत बनाने से आता है बदलाव 

ये सारी बातें हम आपको निराश करने के लिए नहीं बता रहे. हम आपको सिर्फ़ ये समझाना चाहते हैं कि बदलाव घड़ी की सुईंया देखकर या कैलेंडर के बदले हुए पन्ने देखकर नहीं आता. बदलाव आता है, अपने अंतर्मन को मज़बूत बनाने से बदलाव आता है, मज़बूत इरादों से और सच में बदलाव की इच्छा रखने वाले लोग कभी तारीख़ों के बदलने का इंतज़ार नहीं करते, वो पहले खुद को बदलते हैं और फिर इतिहास उन्हें तारीख़ बदलने वाले लोगों के रूप में याद रखता है.

आधुनिक युग की समय प्रणाली के अनुसार, हर रात 11 बजकर 59 सेकंड  में जैसे ही एक सेकंड और जुड़ता है यानी रात के 12 बजते हैं तो दिन बदल जाता है और जब ऐसा 31 दिसंबर की रात होता है तो पूरा साल ही बदल जाता है. लेकिन एक साल कुल 3 करोड़ 15 लाख 36 हज़ार सेकंड्स को मिलाकर पूरा होता है. अब आप सोचिए जब 3 करोड़ 15 लाख 35 हज़ार 999 सेकंड लोगों के जीवन में बदलाव नहीं ला पाते, तो क्या सिर्फ़ एक सेकंड ऐसा कमाल कर सकता है ?

आप किसी भी क्षण खुद को बदल सकते हैं

ये कमाल एक सेकंड में तभी हो सकता है, जब आप Digits के बदल जाने के भरोसे न बैठे रहें. बदलाव की शुरुआत अभी इसी समय से हो सकती है. आप चाहें तो अगले पल ही अपने आप को बिल्कुल नया व्यक्ति बना सकते हैं. इसमें शायद एक सेकंड का भी समय न लगे, लेकिन ज़्यादातर लोग ऐसा नहीं कर पाते. 

अगर एक व्यक्ति औसतन 80 वर्ष भी जीवित रहता है तो प्रकृति की तरफ़ से उसे ढाई अरब सेकंड्स मिलते हैं. लेकिन एक ही तरीके से जीवन जीने की आदत की वजह से ये करोड़ों, अरबों लम्हे भी ज़्यादातर इंसानों को नहीं बदल सकते, जबकि सच ये है कि आप किसी भी क्षण खुद को बदल सकते हैं. 

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लेकिन इसके लिए आपको अपनी क्षमताओं का ज़्यादा विकास करना होगा और खुद को ज़्यादा बेहतर व्यक्तित्व में ढालना होगा. ज़्यादा और बेहतर, यही दो शब्द इस नए साल के मूल मंत्र हैं और इस मूल मंत्र को अपनाने के लिए आपको किसी हफ्ते, महीने या साल के बदलने का इंतज़ार नहीं करना है.

आपको शायद हमारी बातें सुनकर लग रहा होगा कि जब कुछ बदलना इतना आसान ही नहीं है तो फिर इसका उपाय क्या है? इसका उपाय सिर्फ़ ये है कि आप सेकंड्स के गुज़र जाने का इंतज़ार करने की बजाय एक एक सेकंड का सदुपयोग करना सीखें. आप सोच रहे होंगे कि भला एक सेकंड में होता ही क्या है? ये तो यूं ही बीत जाता है, लेकिन एक सेकंड किसी का भी जीवन बदल सकता है.

Bumble Bee और Wood Pecker से सीखिए

Bumble Bee नाम की एक मधुमक्खी एक सेकंड में 200 बार अपने पंख फड़फड़ाती है, ताकि वो अपनी उड़ान के दौरान कम समय में ज़्यादा से ज़्यादा दूरी तय कर पाए.

Wood Pecker नाम का एक पक्षी होता है जो अपनी चोंच से एक सेकंड में करीब 20 बार पेड़ के तने पर चोट करता है. ये पक्षी ऐसा इसलिए करता है ताकि वो अपने और अपने बच्चों के लिए बेहतर और बड़ा घोंसला बना पाए.

आप चाहें तो Bumble Bee और Wood Pecker से जीवन में ज़्यादा और बेहतर के मंत्र को अपनाने की कला सीख सकते हैं क्योंकि, ये दोनों अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए जीवन से मिले एक एक सेकंड का कई गुना ताकत से इस्तेमाल करते हैं.

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जो लोग बदलाव के लिए तैयार रहते हैं और समय का सदुपयोग करते हैं. वो लोग जीवन में दूसरों से आगे निकल जाते हैं, लेकिन इस दौड़ में कई बार लोग अपनों को समय देना ही भूल जाते हैं. लोग भूल जाते हैं कि जीवन में दूसरों से आगे निकलने के साथ साथ, कभी रुककर अपनों का हाल चाल जानना भी ज़रूरी होता है, लोगों को माफ़ करते चलना ज़रूरी होता है. थोड़ा रुककर मुश्किल में फंसे किसी व्यक्ति को ढाढस बंधाना भी ज़रूरी होता है. बहुत सारे लोग ऐसा करना भी चाहते हैं. लेकिन सफ़लता के लिए भागते समय उन्हें इसके बारे में याद नहीं रहता और जब तक उन्हें ये याद आता है, तब तक देर हो चुकी होती है. देर करने की इसी आदत पर पाकिस्तान के मशहूर शायर मुनीर नियाज़ी ने एक शेर लिखा था, जिसका शीर्षक है- हमेशा देर कर देता हूं मैं. 

आज आपको मुनीर नियाज़ी की ये शायरी सुननी चाहिए. ये सुनकर आप समझ जाएंगे कि जब तक आप कुछ पल रुककर किसी मौसम का आनंद लेने का मन बनाते हैं तब तक मौसम बदल चुका होता है और रिश्तों में भी ऐसा ही होता है.

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इसलिए अगर आप किसी से कोई जरूरी बात कहना चाहते हैं, अगर आप कोई वादा निभाना चाहते हैं या किसी को माफ करना चाहते हैं तो आप आज ही ऐसा कर लें, नहीं तो जीवन में हमेशा देर हो जाती है.ज्यादातर लोग जीवन में सही काम करने में हमेशा देर कर देते हैं. 

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