DNA ANALYSIS: अब 'इंटरनेट नागरिकता कानून' का वक्त आ चुका है ?
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DNA ANALYSIS: अब 'इंटरनेट नागरिकता कानून' का वक्त आ चुका है ?

भारत में वर्ष 2017 और 2018 में अफवाहों की वजह से 40 लोगों की जान चली गई थी. जबकि 282 मौकों पर भीड़ ने अफवाहों के आधार पर बेकसूर लोगों पर हमले किए. 

DNA ANALYSIS:  अब 'इंटरनेट नागरिकता कानून' का वक्त आ चुका है ?

भारत में वर्ष 2017 और 2018 में अफवाहों की वजह से 40 लोगों की जान चली गई थी. जबकि 282 मौकों पर भीड़ ने अफवाहों के आधार पर बेकसूर लोगों पर हमले किए. इसके मुकाबले 2019 में आतंकवाद की वजह से देश में 39 आम नागरिकों की मौत हुई थी. यानी अफवाहें आतंकवाद से भी ज्यादा जानलेवा हो चुकी हैं. आप इसे E भारत भी कह सकते हैं यानी ऐसा भारत जिसकी एक बड़ी आबादी इंटरनेट का इस्तेमाल करती है. इसलिए सवाल ये है कि इस आबादी में शामिल अराजक तत्वों की पहचान कैसे की जाए और इन्हें रोका कैसे जाए. हम आज इस संदर्भ में कुछ उपाय सुझाना चाहते हैं.

पहला सुझाव तो ये है कि इंटरनेट इस्तेमाल करने की इजाजत उसी को मिले जो इसके काबिल हो, यानी इसके लिए एक Criteria होना चाहिए. जब आप इंटरनेट पर कोई Account बनाते हैं तो बड़ी बड़ी कंपनियां आपसे तमाम जानकारियां लेती हैं. लेकिन ये जानकारियां कोई सरकार को नहीं देना चाहता. इसलिए अब इस सोच में बदलाव आना चाहिए और इंटरनेट उसी को मिलना चाहिए जो जिम्मेदारी से इसका इस्तेमाल कर सके.

इसके अलावा CIBIL SCORE की तरह इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों का भी Record रखा जा सकता है. जैसे जब आप Loan की EMI नहीं चुका पाते या फिर आपके वित्तीय लेन देन में कोई गड़बड़ होती है तो Bank आपका CIBIL स्कोर कम कर देते हैं. इसके बाद कोई दूसरा बैंक आपको Loan या फिर Credit Card नहीं देता. इसलिए इंटरनेट पर जिन लोगों का Record खराब है उनका भी एक Data Bank बनाना चाहिए और इंटरनेट तक उनकी पहुंच सीमित या प्रतिबंधित कर देनी चाहिए.

तीसरा समाधान ये है कि Social Media पर मौजूद उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए जो हिंसा भड़काने का काम करते हैं और जिनके Followers की संख्या हज़ारों या लाखों में है. ऐसे लोगों को Influencers भी कहा जाता है और इन Influencers पर कार्रवाई करके लोगों को कड़ा संदेश दिया जा सकता है. 

अब सवाल ये है, कि WhatsApp या Social Media द्वारा फैलाए गए किसी Message का सच कैसे पता करें? इससे लिए आपको सिर्फ कुछ बातों का ध्यान रखना है. 'फ़ेक न्यूज़' और अफवाहों की पहचान के लिए आपको ये देखना चाहिए कि ख़बर आई कहां से हैं, इसकी शुरुआत कहां से हुई. इसके बाद आपको इंटरनेट सर्च इंजन की मदद से खबर की जांच करनी चाहिए. किसी भी खबर की सिर्फ Headline पर ना जाएं, इसे जान बूझकर दिलचस्प या उत्तेजक बनाया जाता है, ताकि आप खबर पर Click करें. किसी खबर को तब तक शेयर न करें, जब तक आप उसकी प्रामाणिकता को लेकर आश्वस्त ना हों.

Fake News या अफवाह की आशंका वाले Messages को ध्यान से पढ़ें. हो सकता है कि वो Article या News बहुत पुरानी हो और सबसे ज़रूरी बात किसी भी संदेश को आगे बढ़ाने से पहले खुद से ये पूछ लें कि आप इस विषय को लेकर Biased यानी पक्षपाती तो नहीं हैं, क्योंकि अगर किसी मुद्दे पर आपकी राय पक्षपात पूर्ण है तो फिर आपके द्वारा Fake News और अफवाह फैलाने की आशंका बढ़ जाती है.

हमारे न्यूज़रूम में मौजूद हर पत्रकार को तथ्यों की जांच करने की आदत है, लेकिन हमें लगता है कि सिर्फ़ पत्रकारों को ही नहीं, अब आपको भी इसकी आदत डालनी चाहिए. अफवाहें एक संक्रामक रोग की तरह फैल रही हैं और इसके ज़्यादातर मरीज़ों को पता ही नहीं है कि वो बीमार हैं और बीमारी फैला भी रहे हैं. सच तो ये है, कि 'फ़ेक न्यूज़' कोई नई चीज़ नहीं है.

अर्धसत्य से संपूर्ण झूठ तक, हर रंग-रूप के झूठ, हर ज़माने में बोले गये हैं, लेकिन पहले ये सब इतना संगठित नहीं था. आज मोबाइल फोन पर इंटरनेट के ज़रिए लोग सिर्फ़ Fast Food ही नहीं, हिंसा भी ऑर्डर कर रहे हैं. नफ़रत, भ्रामक जानकारियां, आधा-सच और आधा झूठ. ये सब पैदा किया जा रहा है, और खुलेआम बांटा जा रहा है, इसलिए आप सभी को सावधान और सतर्क रहने की ज़रूरत है.

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