नई दिल्ली: टेलीविजन न्यूज को रेगुलेट करने वाली न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (News Broadcasting Standards Authority) की गाइडलाइंस का पूरी तरह से पालन करना होता है. उदाहरण के लिए Zee News आपको किसी आतंकवादी का इंटरव्यू नहीं दिखाता है. डेडबॉडी की तस्वीरें नहीं दिखाई जाती हैं और खून नहीं दिखाया जाता है.


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इसके अलावा गंभीर मामलों में पीड़ित की पहचान नहीं बताई जाती है. शराब और धूम्रपान की तस्वीरें नहीं दिखाई जाती हैं. इसके अलावा हिंसक घटनाओं की रिपोर्टिंग करते हुए कई दिशा-निर्देशों का पालन भी करना होता है. ये गाइडलाइंस सभी न्यूज चैनल्स पर लागू होती हैं.


OTT Platforms और डिजिटल मीडिया के लिए कोई नियम नहीं


लेकिन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (OTT Platforms) और डिजिटल मीडिया (Digital Media) पर इस तरह के कोई नियम लागू नहीं होते. इसलिए आपको ऑनलाइन कंटेट में भरपूर हिंसा और गालियां ही देखने-सुनने को मिलती हैं. जिसका नकारात्मक असर युवाओं और आपके बच्चों पर पड़ता है.


सोचिए हमारे देश में न्यूज चैनल्स पर धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देने का आरोप लगता है. हिन्दू-मुस्लिम करने के आरोप लगाए जाते हैं. लेकिन आज हम पूछना चाहते हैं कि जब मनोरंजन के नाम पर फिल्मों में हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया जाता है तो इस पर हमारे देश के डिजाइनर बुद्धिजीवी मौन क्यों हो जाते हैं? वो भी तब जब ये ऐसे असर करता है जैसे लोगों के डीएनए में नफरत और नकारात्मक विचारों का इंजेक्शन लगा दिया गया हो. इसीलिए आज ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (OTT Platforms) की इस असीमित आजादी को Decode करना जरूरी है.


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सबसे पहले आप ये समझिए कि इसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (OTT Platforms) क्यों कहते हैं? इसका मतलब है ओवर द टॉप. जब बिना किसी केबल नेटवर्क और सैटेलाइट चैनल के इंटरनेट के माध्यम से दर्शकों को फिल्म्स और टेलीविजन का कंटेट उपलब्ध करवाया जाता है तो इसे OTT कहते हैं. लेकिन हमें लगता है कि अब ये OTT Platforms आपके आसपास नकारात्मक विचारों की ऐसी दीवारें खड़ी कर रहे हैं, जिन्हें आप चाह कर भी गिरा नहीं सकते.


ताडंव वेब सीरीज विवाद


15 जनवरी को रिलीज हुई एक वेब सीरीज तांडव (Tandav). इस वेब सीरीज पर हिंदू देवी-देवताओं को अपमानित करने का आरोप लगा है. और महत्वपूर्ण बात ये है कि ये सब अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हुआ है. सोचिए विचारों को प्रकट करने की आजादी जिसे अभिव्यक्ति का अधिकार कहा जाता है, वो कैसे सीमाओं को पार कर जाता है और हिंदू देवी-देवताओं के अपमान को सही ठहराने लगता है.


कहा जाता है कि ये तो कला है और इस कला की कद्र होनी चाहिए. इस विषय पर आज बहुत से लोगों के मन में गुस्सा है, लेकिन एक बड़ी बात यहां ये है कि इस पर भारत में कोई दंगा नहीं हुआ. लोगों ने सड़कों पर कब्जा नहीं कर लिया और कहीं शाहीन बाग नहीं बनाया गया. लेकिन सोचिए अगर इसी तरह का अपमान किसी और धर्म का किया गया होता तो क्या होता? आपको याद होगा पिछले साल बेंगलुरु में क्या हुआ था?


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तब एक फेसबुक पोस्ट की वजह से हिंसा भड़क गई थी और भीड़ ने दो पुलिस थानों को आग लगा दी थी. लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ. आप कह सकते हैं कि हमारे देश में हिंदू देवी देवताओं का अपमान करना बहुत आसान हो गया है और इस वेब सीरीज के निर्माता निर्देशकों पर भी ऐसे ही आरोप लगे हैं.


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ये जो नई वेब सीरीज है, उसमें देश की बहुत ही नकारात्मक छवि पेश की गई है. देश के राजनेता, अस्पताल, स्कूल, पुलिस, विश्वविद्यालय, प्रशासन, सरकार और प्रधानमंत्री का चरित्र इस तरह से दिखाया गया है कि आपका इन सब से विश्वास उठ जाएगा.


ऐसा दिखाया गया है कि हमारे देश में कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा है. वेब सीरीज में किरदारों के नाम और घटनाओं में अत्याचार के शिकार लोगों को एक धर्म विशेष से जोड़कर ऐसा नैरेटिव बनाया गया जो देश की गलत छवि दुनिया के सामने पेश करता है. हालांकि अब इस पर विवाद खड़ा हो गया है और लखनऊ में एक FIR भी दर्ज की गई है. लोग इस वेब सीरीज के निर्माता और निर्देशकों पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं.


भारत में इस समय न्यूज चैनल पर दिखाए जाने वाले कंटेट को रेगुलेट करने वाली संस्था न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी (NBSA) है. प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करने के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (Press Council of India) है . फिल्मों के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (Central Board of Film Certification) है, जिसे सेंसर बोर्ड कहा जाता है.


लेकिन डिजिटल मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (OTT Platforms) पर कंटेट को नियंत्रित करने के लिए ऐसी कोई संस्था नहीं है. फिल्में अक्सर सेंसर बोर्ड के पास जाती हैं. फिल्मों के कई सीन्स पर कट लगाए जाते हैं, उन्हें सेंसर करना पड़ता है. और इस शब्द को लेकर एक नकारात्मक छवि हमारे बीच बन चुकी है. कहा जाता है कि सेंसर बोर्ड फिल्म की वास्तविकता को खत्म कर देता है.


लेकिन हम आपको बताना चाहते हैं कि सेंसरशिप और रेगुलेशन दोनों अलग-अलग चीजें हैं. सेंसरशिप मर्यादा है और रेगुलेशन एक व्यवस्था. आज जब आप अपने घर से ऑफिस के लिए निकलते हैं तो आपको कई तरह के ट्रैफिक नियमों का पालन करना पड़ता है. यही रेगुलेशन है और आज हम इसी की बात कर रहे हैं. हम नियमों की बात कर रहे हैं, जो आजादी का दायरा बनाते हैं.


हमें लगता है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (OTT Platforms) व डिजिटल मीडिया के लिए भी रेगुलेशन होने चाहिए. क्योंकि जब समाज में अभिव्यक्ति कुछ भी बोलने, लिखने और दिखाने के स्वरूप में ढल जाती है तो इस अभिव्यक्ति से सबसे ज्यादा खतरा लोकतंत्र को ही होता है. ये एक ऐसी शक्ति बन जाती है, जिस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं होता.


हम मानते हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर दिखाई जाने वाली फिल्में और वेब सीरीज आज कल गालियों और अश्लीलता का कोर्स कराने लगी हैं. आपने भी अनजाने में इसका कोर्स करने के लिए बहुत से ऑनलाइन स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पर Membership Fee जमा कराई होगी. और हमें पूरा भरोसा है कि ये Streaming Platfroms आपके समय और पैसे का दुरुपयोग करके आपके मन में नकारात्मक विचारों को Download करा रहे होंगे. इसलिए हम चाहते हैं कि आज से आप इन विचारों को Delete करने का संकल्प ले लें.


आपको शायद पता होगा कि शुरुआती दौर की फिल्मों में शूटिंग से स्क्रीनिंग तक का सफर एक लंबी रील में हुआ करता था. जो सिनेमाघरों तक एक डिब्बे में पहुंचाई जाती थी. उस सैकड़ों फुट लंबी रील को Mechanically घुमाया जाता था. जिसके बीच से एक तेज लाइट निकलकर पर्दे पर जाती थी और उस लाइट से जो दृश्य पैदा होते थे, उसमें नजर आती थीं बॉलीवुड की वो Iconic फिल्में. जिन्हें देखने के लिए लोगों की लंबी लाइनें लगती थीं. पिछले कुछ दशकों में मनोरंजन और सूचनाओं की ये यात्रा काफी लंबी रही है.


ये यात्रा दूरदर्शन से शुरू हुई थी. जिसके जरिए सूचनाएं और कई टीवी सीरियल्स घर-घर तक पहुंचे. उनमें एक था 'हम लोग', जो भारत के मध्यम वर्गीय परिवारों की कहानी पर आधारित था. इसी तरह 'वागले की दुनिया', 'Malgudi Days', 'यात्रा' और 'मुंगेरी लाल के हसीन सपने' जैसे सीरियल्स भी काफी लोकप्रिय हुए.


फिर इस यात्रा में नया मोड़ Zee TV के रूप में आया. जब भारत में प्राइवेट सैटेलाइट चैनल्स (Private Satellite Channels) की एंट्री हो गई. साल 1993 में Zee TV पर एक सीरियल का प्रसारण हुआ था, जिसका नाम था Tara. ये एक साफ-सुथरा सीरियल था, जिसमें किसी तरह की कोई अश्लीलता नहीं थी. गालियां नहीं थीं. फिर भी भारत में ये सीरियल काफी हिट हुआ था. इसके अलावा 'जीना इसी का नाम है', 'Rajni', 'Sa Re Ga Ma Pa' और 'कौन बनेगा करोड़पति' जैसे सीरियल्स आए, जिन्होंने लोगों के बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई.


अब ये यात्रा OTT Platforms तक पहुंच चुकी है. जहां पर अश्लीलता और गालियों को सफलता की कसौटी पर कसा जाता है. जहां माना जाता है कि जितनी ज्यादा गालियां होंगी, सफलता मिलने की संभावना उतनी ही बढ़ जाएगी.


इसे हम आपको कुछ आंकड़ों से समझाते हैं. एक स्टडी के मुताबिक, OTT Platforms पर फिल्में और Web Series देखते हुए लोगों का हर 8 सेंकड में ध्यान दूसरी तरफ चला जाता है. और ऐसे में इन लोगों को अपने साथ बांधे रखने के लिए कुछ-कुछ Seconds पर गालियां और अश्लीलता फिल्मों में डाल दी जाती है. यानी आपसे पैसे लेकर कुछ लोग ये तय करते हैं कि आपको कितनी मात्रा में गालियां और अश्लीलता बेचनी है. और गालियों को Glamorise किया जाता है.


जब हम इस पूरे विषय के बारे में पढ़ रहे थे तब हमें ये बात महसूस हुई कि भारत में नकारात्मक विचारों का व्यापार करना काफी आसान है. हमारे देश में नकारात्मक विचारों की आसानी से कीमत मिल जाती है और कई कंपनियां इन्हें बेचकर करोड़ों रुपये कमा लेती हैं. लेकिन ये सब सरकार के पैसों से नहीं होता. ये होता है आपके पैसों से. आपके पैसों से नकारात्मक विचारों का व्यापार एक फायदे का सौदा बन जाता है.


फिल्मों की दुनिया में 1980 का दशक ऐसा था..जब फिल्मों में दो भाई दिखाए जाते थे. एक गरीब परिवार होता था और उनका एक दुश्मन होता था. यानी एक Negative Character ज़रूर होता था..जिससे हीरो बाद में बदला लेता था. और इस फॉर्मूले ने उस दौर में कई फिल्मों को हिट कराया. लेकिन समय के साथ इस फॉर्मूले में भी बदलाव किए गए.


आपको याद होगा वर्ष 1994 में एक फिल्म आई थी 'हम आपके हैं कौन'. इस फिल्म में भारतीय रीति रिवाजों से होने वाली शादियों को एक इवेंट की तरह दिखाया गया. कहा जाता है कि इस फिल्म की वजह से लोगों की मानसिकता भी बदली और भारत में शादियां एक बड़ा बाजार बन गईं.


अब OTT Platforms पर भी इसी तरह के एक हिट फॉर्मूले पर काम किया जा रहा है. ये फॉर्मूला है धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाओं, कहानी में ज्यादा से ज्यादा अश्लीलता डालो, Dialogues के नाम पर गालियों को Glamorise करो और एक Negative Character के इर्द-गिर्द पूरी कहानी को जोड़ दो. ये है OTT Platforms पर हिट होने वाली फिल्मों और Web Series का फॉर्मूला. इस पूरे विषय पर Experts क्या सोचते हैं. ये भी आज आपको जानना चाहिए.


भारत में जब सोशल मीडिया आया था तब लोग इसके प्रति ज्यादा गंभीर नहीं थे. लोगों की धारणा थी कि इसका हमारे समाज पर ज्यादा प्रभाव नहीं होगा. लेकिन ये सभी धारणाएं गलत साबित हुईं और आज सोशल मीडिया Main Stream मीडिया की दिशा तय कर रहा है. आप कह सकते हैं कि हमारे देश में OTT Platfroms को लेकर लोगों की सोच वैसी ही है, जैसी एक समय सोशल मीडिया को लेकर थी. यानी हमारे देश में लोग इसके प्रति उतने गंभीर नहीं हैं और यही बात सबसे ज्यादा चिंताजनक है.


आपको याद होगा फ्रांस में मोहम्मद पैगम्बर का एक कार्टून प्रकाशित करने पर वर्ष 2015 में Charlie Hebdo पत्रिका के पेरिस के ऑफिस पर दो आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी और 12 लोगों को मार डाला था. इस घटना की तब काफी चर्चा हुई थी. उस समय इस पत्रिका पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगा था.


लेकिन भारत में जब हिंदू देवी देवताओं का अपमान किया जाता है तो इससे अभिव्यक्ति की आजादी मान लिया जाता है. और इसकी एक बड़ी वजह है विवाद को जन्म देना क्योंकि विवाद को फिल्मों के लिए सफलता की गारंटी माना जाता है. इसे आप कुछ उदाहरणों से समझिए.


वर्ष 2018 में एक फिल्म आई थी, जिसका नाम था 'पद्मावत'. इस फिल्म का नाम पहले पद्मावती था लेकिन बाद में जब इस पर विवाद हुआ तो इस फिल्म का नाम बदलकर इसे पद्मावत कर दिया गया और इस विवाद ने फिल्म को सफलता भी दिलाई.


इसी तरह पिछले दिनों OTT Platform पर एक फिल्म रिलीज हुई थी 'लक्ष्मी'. पहले इस फिल्म का नाम 'लक्ष्मी बम' था. लेकिन बाद में सेंसर बोर्ड की आपत्ति के बाद इसे बदलकर लक्ष्मी कर दिया गया. इस फिल्म को भी इस विवाद ने सफलता दिलाई थी.


हालांकि हमें लगता है कि OTT Platforms की भी कुछ ऐसी शक्तियां हैं, जो अगर डिजाइनर विचारों से मुक्त हो जाएं तो ये काफी प्रभावी मंच बन सकता है. इसलिए आज हम आपको इसके कुछ मजबूत पहलू भी बताना चाहते हैं.


पहला इससे कहानियों में एक नई ताजगी आई है. फिल्मों को बताने और दिखाने की एक नई शैली पैदा हुई है. इससे Stardom टूटा है और नए कलाकारों व लेखकों को मंच मिला है. सबसे अहम बात है कि इस Platform की वजह से 10 घंटे लंबी Web Series बनने लगी हैं. जिसकी शायद किसी ने अबतक कल्पना भी नहीं की थी.


एक समय ऐसा था जब ये कहा जाता था कि फिल्मों की उम्र तीन घंटे की होती है. लेकिन आप कह सकते हैं कि Web Series के इस युग में The End का सिद्धांत अब खत्म हो चुका है.


इस पूरे विषय पर हमने आज मशहूर फिल्म निर्माता-निर्देशक और सेंसर बोर्ड के पूर्व Chairperson पहलाज निहलानी से बात की है. वो इसे कैसे देखते हैं और उनका इस पर क्या विचार है.


भारत में पिछले ही दिनों ये घोषणा हुई थी कि इस समय जितने भी OTT Platforms हैं, उनका नियंत्रण अब भारत सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के पास होगा. इस नोटिफिकेशन पर देश के राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर भी कर दिए हैं और अब Online जो भी Content आप देखते हैं उस पर सरकार की कड़ी नज़र रहती है. कुछ दिनों पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में भी साफ किया था कि News Channels पर नियंत्रण करने से पहले Digital Media को नियंत्रित करने की जरूरत है .


तय हो OTT Service Providers की जवाबदेही


हमारे देश में समस्याओं पर तो चर्चा होती है लेकिन उस समस्या का समाधान क्या है? उसके बारे में कोई बात नहीं करता. लेकिन आज हम आपको इस विषय से जुड़े कुछ समाधान बताना चाहते हैं.


- सबसे पहले कानून में संशोधन करके OTT Platforms को स्पष्ट तौर पर कवर किया जाए क्योंकि अभी कानून में इस पर कुछ भी सीधे-सीधे नहीं लिखा है.


- कंटेंट को लेकर OTT Service Providers की जवाबदेही तय होनी चाहिए और ऐसा करने के लिए सरकार को नए कानून और नियम बनाने होंगे.


- सरकार को ये सुनिश्चित करना होगा कि जब OTT Platforms के किसी कंटेंट को लेकर शिकायत की जाती है तो उस पर तय समय में कार्रवाई हो. क्योंकि अभी ऐसा करने के लिए कोर्ट में जाना पड़ता है और फिर कोर्ट तय करता है कि वो कंटेंट भड़काऊ है या नहीं


हालांकि वेब सीरीज तांडव पर विवाद शुरू होने के बाद इसके निर्देशक अली अब्बास ने माफी मांगी है. उन्होंने Tweet करके अपना माफीनामा शेयर किया है. उन्होंने लिखा है कि किसी व्यक्ति, जाति, धर्म और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना हमारा मकसद नहीं था लेकिन अगर किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची तो हम इसके लिए माफी मांगते हैं.


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