अनुच्छेद 370 हटा, जम्मू-कश्मीर खिला; जानिए विकास की 4 लेन पर दौड़ते कश्मीर की कहानी
अनुच्छेद 370 नहीं हटता तो गोरखा समाज के हजारों लोगों को जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में वोट डालने का अधिकार नहीं मिलता. इन लोगों का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने इतने बलिदान दिये देश के लिए, इस राज्य के लिए फिर भी हमें फंडामेंटल राइट से वंचित रखा गया था.
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के शासन में 20 साल पूरे होने पर हमारी स्पेशल सीरीज जारी है. डीएनए के इस हिस्से में हम आर्टिकल 370 (Article 370) के बारे में बात करेंगे. भारत की सरकार ने 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) से Article 370 हटाने का फैसला किया था. इसके तहत जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष राज्य का दर्जा खत्म हो गया. इसी के साथ एक झंडा एक विधान का प्रारूप जम्मू कश्मीर में भी लागू हो गया.
'जम्मू कश्मीर में पांच बड़े बदलाव'
आर्टिकल 370 हटाये जाने के बाद बीते दो साल में जम्मू-कश्मीर में पांच बड़े बदलाव हुए.
पहला बदलाव- आतंकवादी घटनाओं में कमी आई. गृह मंत्रालय (MHA) की रिपोर्ट के मुताबिक बीते साल 2020 में आतंकवादी घटनाओं में 59% की कमी आई. वहीं इस साल 2021 में अब तक 32% की कमी दर्ज हुई.
दूसरा बदलाव- पत्थरबाजी और अलगाववाद की दुकान पूरी तरह बंद हो गई.
तीसरा बदलाव- भ्रष्टाचार पर रोक लगी और तेज गति से विकास कार्य होने लगे. सभी घरों में बिजली पहुंचाई गई. अब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में 8 हजार किलोमीटर सड़क बनाई जा रही है. नये अस्पताल और स्टेडियम बनाये जा रहे हैं. हर पंचायत में खेल का मैदान और यूथ क्लब खोलने पर काम हो रहा है.
चौथा बदलाव- स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों को ज्यादा ताकत दी गई है.
पांचवां बदलाव- कश्मीरी पंडितों की पुनर्वास योजना में तेजी आई. इसी साल सितंबर में जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने कश्मीरी पंडितों की संपत्ति पर अवैध कब्जे से मुक्त कराने के लिए पोर्टल की शुरुआत की है.
जम्मू कश्मीर में हो रहे बदलाव पर हमने आपके लिए एक स्पेशल रिपोर्ट तैयार की है, जो आपको जम्मू कश्मीर के नये युग में लेकर जाएगी.
गोरखा समाज के लोगों की जिंदगी बदली
दरअसल अगर अनुच्छेद 370 नहीं हटता तो गोरखा समाज के हजारों लोगों को जम्मू-कश्मीर में वोट डालने का अधिकार नहीं मिलता. इन लोगों का कहना है कि हमारे पूर्वजों ने इतने बलिदान दिये देश के लिए, इस राज्य के लिए फिर भी हमें फंडामेंटल राइट से वंचित रखा गया था. जम्मू के गोरखा नगर निवासी रूप बहादुर के परिवार की चार पीढ़ियां पहचान के अधिकार की लड़ाई लड़ते-लड़ते गुजर गईं. लेकिन उन्हें उनका हक मिला 5 अगस्त 2019 को, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का ऐतिहासिक फैसला किया था.
रूप बहादुर का कहना है कि सही मायने में तो हमें आजादी 5 अगस्त 2019 को मिली है. जिससे हमारी एक पहचान बन गई है. वहीं रूप बहादुर की पत्नी करुणा क्षेत्री ने कहा कि 370 हटाने से हमें पहचान पत्र मिला, डोमिसाइल मिला. अब स्टेट की नौकरी भी मिलेगी.
इस ऐलान के साथ ही जम्मू-कश्मीर में रह रहे गोरखा समाज के 9 हजार और वाल्मीकि समाज के 7 हजार से ज्यादा लोगों को नागरिकता मिली. वहीं बंटवारे के समय पाकिस्तान से आए वो शरणार्थी जिनकी संख्या अब करीब डेढ़ लाख है. उन्हें भी वो सारे अधिकार मिल गए जो जम्मू-कश्मीर में रहने वाले दूसरे नागरिकों के पास थे.
जम्मू-कश्मीर में चार लेन वाले विकास की रफ्तार
अनुच्छेद 370 नहीं हटता तो जम्मू-कश्मीर में विकास की रफ्तार चार लेन में नहीं दिखती. यहां चार लेन का मतलब है सड़क, स्वास्थ्य, स्पोर्ट्स और रोजगार के क्षेत्र में तेज विकास. इसी कड़ी में बारामूला से गुलमर्ग को जोड़ने के लिए 43 किलोमीटर लंबी सड़क बनाई जा रही है ताकि टूरिस्ट के लिए गुलमर्ग पहुंचना आसान हो. एक बड़ी बात ये भी है कि यहां विकास की सड़क शहर ही नहीं बल्कि गांवों तक भी पहुंच रही है जहां पहले कभी नहीं पहुंची.
बारामूला के पूर्व सरपंच मोहम्मद दीन कसाना का कहना है कि यहां न अस्पताल है ना कुछ है. ये रोड भी हमें मोदी की वजह से मिला क्योंकि वो गरीबों को ढूंढ़-ढूंड़ कर निकालते हैं. ये सिर्फ अमीरों को नहीं पूछते हैं गरीबों की सुनते हैं. यहां साल 1965 से कोई रोड नहीं बनी थी.
बारामूला में बना सरकारी अस्पताल
अनुच्छेद 370 नहीं हटता तो इतनी जल्दी बारामूला में सरकारी अस्पताल नहीं बन पाता. बारामूला में बन रहा ये मेडिकल कॉलेज पूरे नार्थ कश्मीर का इकलौता मेडिकल कॉलेज है. जम्मू-कश्मीर में कुल 2 एम्स (AIIMS) और 9 नये मेडिकल कॉलेज बनने हैं. बारामूला की एक और केस स्टडी की बात करें तो जावेद अहमद बट का कहना है कि आम लोगों के लिए बहुत ज्यादा आराम है यहां. पहले हमें हर बात के लिए श्रीनगर जाना पड़ता था.
यानी साफ है कि अगर अनुच्छेद 370 नहीं हटता तो कश्मीर के युवाओं के हाथों में पत्थर की जगह गेंद नहीं होती. वहीं ही हॉकी और फुटबॉल के इंटरनेशनल स्टेडियम बन रहे होते.
तैयार है बख्शी स्टेडियम
18 हजार दर्शकों की क्षमता वाले श्रीनगर का बख्शी स्टेडियम 40 करोड़ रुपये की लागत से 90 प्रतिशत तक तैयार हो चुका है. डेढ़ महीने बाद यहां फुटबॉल मैच का आयोजन होने लगेगा. इसके अलावा दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में घाटी का पहला एस्ट्रोटर्फ हॉकी स्टेडियम बन रहा है. ये इंटरनेशनल स्टेडियम पुलवामा के गवर्नमेंट बॉयज हायर सेकेंडर स्कूल में बनाया गया है.
इसी कड़ी में जब हमारे संवाददाता यहां पहुंचे तो उनकी मुलाकात फिजिकल एजुकेशन टीचर इम्तियाज अहमद पंडित और कुछ खिलाड़ियों से हुई. इम्तियाज ने कहा कि हमारे बच्चे काफी उत्साहित हैं. हॉकी प्लेयर सलमान ने कहा, 'हम भी बहुत उत्साहित हैं कि हमें यहां खेलने का मौका कब मिलेगा. एक हॉकी खिलाड़ी के रूप में कहूं तो ये पूरी जनरेशन के लिए एक बड़ा स्टेप है. जो हॉकी थी पहले वो डंप हो गयी थी. बस एक-दो खिलाड़ी खेलने जाते थे क्योंकि कोई ध्यान नहीं देता था.'
गोल्फ प्रतियोगिता का आयोजन
जुलाई 2014 के बाद कश्मीर में पहली बार गोल्फ प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. जम्मू-कश्मीर में कुल छह गोल्फ कोर्स हैं. उम्मीद है कि घाटी जल्द ही गोल्फ का पावर सेंटर बनकर उभरेगी. जम्मू कश्मीर स्पोर्ट्स काउंसिल की सचिव नुजाहत गुल ने खेल के क्षेत्र में विकास का जो आंकड़ा बताया उसे सुनकर आप भी कहेंगे कि 370 से आजादी के बाद कश्मीर में बहुत बड़ी खेल क्रांति शुरू हो चुकी है. यहां खेलो इंडिया स्कीम के तहत हॉकी का स्टेडियम बन रहा है. हॉकी का टर्फ बन रहा है. बच्चों के इन्वॉल्वमेंट के लिए उन्हें पॉजिटिविटीज बनाने के लिए. स्टेट गवर्नमेंट की फंडिंग से करीब दो सौ से ज्यादा प्रोजेक्ट बन रहे हैं. इसी कड़ी में 350 मैदानों का अपग्रेडेशन हो रहा है. यानी कश्मीर की नई पीढ़ी को गलत रास्ते पर चलने से बचाने और उनके भविष्य को संवारने की मुहिम में स्पोर्ट्स अहम भूमिका निभा रहा है.