भारतीय टीवी के इतिहास में पहली बार एक मां ने राष्ट्र के नाम संदेश दिया है और देश के तमाम इलाकों में लोगों ने Zee News के माध्यम से निर्भया की मां के दर्द को सुना.
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नई दिल्ली: भारतीय टीवी के इतिहास में पहली बार एक मां ने राष्ट्र के नाम संदेश (#MaaKaSandesh) दिया है और आज देश के तमाम इलाकों में लोगों ने Zee News के माध्यम से निर्भया की मां के दर्द को सुना. Zee News की अपील पूरे देश ने सुनी और पूरे देश ने निर्भया की मां का संदेश सुना और उनका दर्द समझा. उस संदेश का विश्लेषण आप 7 प्वाइंट्स में समझ सकते हैं:
1. हमारे देश की कानून व्यवस्था में कई खामियां हैं. ये व्यवस्था पीड़ित और उसके परिवार को लंबा इंतजार करवाती हैं और इन्हीं कमियों की वजह से दोषियों को बार-बार जीवनदान मिलता है जैसा कि निर्भया के केस में हो रहा है.
2. दूसरा प्वाइंट ये है कि हमारे देश की अदालतों में दोषियों के वकील, पीड़ित परिवार पर हर तरह का अनैतिक आक्रमण करते हैं. उनसे ना सिर्फ उलटे सीधे सवाल किए जाते हैं बल्कि पीड़ितों को ये यकीन दिलाया जाता है कि कानून दोषियों के साथ खड़ा है और जो न्याय मांग रहा है उसके साथ कानून की कोई हमदर्दी नहीं है.
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3. अगर एक अपराध के सभी दोषियों को एक साथ फांसी दिए जाने का प्रावधान है तो फिर सभी दोषियों को अलग-अलग अपील करने का अधिकार क्यों दिया जाता है? दोषियों के सारे कानूनी विकल्पों पर एक साथ कार्रवाई होनी चाहिए और एक साथ इन पर फैसला भी आना चाहिए.
4. न्याय में देरी की वजह से देश के लोगों का भरोसा सिस्टम और कानून व्यवस्था से उठ रहा है. यही वजह है कि लोग हैदराबाद एनकाउंटर जैसी घटनाओं का जश्न मनाते हैं...क्योंकि लोगों को लगता है कि अदालतों में वर्षों तक न्याय ना मिलने से अच्छा है कि बलात्कारियों और कातिलों के साथ तत्काल न्याय कर दिया जाए.
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5. हमारे देश में अपराधियों के मानव-अधिकारों की रक्षा के लिए तो बड़े वकील, बुद्धिजीवी और डिजाइनर पत्रकार पूरी जान लगा देते हैं लेकिन पीड़ित के मानव-अधिकारों की बात कोई नहीं करता.
6. हमारे देश में छीन कर आजादी देने के नारे तो लगाए जाते हैं लेकिन कोई छीन कर इंसाफ लेने की बात नहीं करता. यानी अपने ही देश से लोगों को तत्काल आजादी चाहिए, ये लोग चाहते हैं कि नए कानून फौरन वापस ले लिए जाएं. सब कुछ इनके मुताबिक होने लगे. लेकिन ये लोग एक पीड़ित को जल्द न्याय दिलाने के लिए आवाज़ नहीं उठाते.
7. आखिरी बात ये है कि अब देश के सब्र का बांध टूट रहा है. कानून और न्याय व्यवस्था सबको बराबरी का हक तो देती है लेकिन इंसाफ के तराजू पर अक्सर अपराधियों का पलड़ा ही भारी रहता है क्योंकि जिन लोगों ने एक लड़की की सांसें एक पल में छीन लीं, उन्हें अभी तक फांसी पर नहीं लटकाया गया है और निर्भया की आत्मा आज भी न्याय के लिए भटक रही है.