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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में पंचायत चुनाव के नतीजे तीन दिन बाद अब लगभग स्पष्ट हो गए हैं. इन चुनावों में बीजेपी को बड़ा नुकसान हुआ है. इसलिए अब हम उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करेंगे. जिस तरह विधान सभा चुनाव में पूरे राज्य की सरकार चुनी जाती है. ठीक वैसे ही पंचायत चुनाव में गांव की सरकार का चुनाव होता है, इसलिए ये चुनाव भी बहुत महत्वपूर्ण होते हैं.
इन Election में राजनीतिक पार्टियां अपने चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में नहीं उतरतीं लेकिन वो उम्मीदवारों को समर्थन जरूर देती हैं और इस बार तो ये काम बड़े स्तर पर हुआ. लगभग सभी बड़ी पार्टियों ने उन उम्मीदवारों की सूची जारी की, जिन्हें उनका समर्थन हासिल था. इसीलिए इन उम्मीदवारों की हार, अब इन पार्टियों की हार मानी जा रही है, जिनमें बीजेपी के लिए नतीजे शुभ नहीं हैं. सबसे पहले आपको नतीजों के बारे में ही बताते हैं.
उत्तर प्रदेश में जिला पंचायत की कुल 3 हजार 50 सीटों पर चुनाव हुआ. इनमें 1081 सीटों पर निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत हुई. 851 सीटों पर समाजवादी पार्टी के समर्थन वाले उम्मीदवार जीते. बीजेपी समर्थित 618 उम्मीदवारों की जीत हुई जबकि बीएसपी ने जिन उम्मीदवारों को समर्थन दिया था, उनमें से 320 ही चुनाव जीत पाए. इसके अलावा अपना दल के 47 और अजीत चौधरी की पार्टी RLD के समर्थन वाले 68 उम्मीदवार चुनाव में जीते. 65 सीटें कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों को मिलीं.
इस चुनावी जमा घटा को सरल शब्दों में समझाएं तो पंचायत चुनाव में सत्तारुढ़ दल बीजेपी, समाजवादी पार्टी से हार गई. समाजवादी पार्टी को बीजेपी से 233 सीटें ज्यादा मिलीं. जबकि बीएसपी के प्रदर्शन में भी सुधार हुआ. बहुत से लोग आज ये कह रहे हैं कि जब पंचायत चुनाव पार्टी सिम्बल पर लड़ा ही नहीं जाता तो ये बीजेपी की हार कैसे हुई? तो इसके दो कारण हैं. पहला कारण ये कि बीजेपी ने जिला पंचायत के लिए अपने उम्मीदवारों को समर्थन दिया था और उनकी सूची भी इसीलिए जारी की थी ताकि लोग उन्हें ही वोट दें. दूसरा कारण ये कि पंचायत चुनाव में ये ट्रेंड रहा है कि उसी पार्टी के समर्थन वाले उम्मीदवार जीत दर्ज करते हैं, जिसकी पार्टी की सरकार सत्ता में होती है और अभी सत्ता में बीजेपी है लेकिन इसके बावजूद बीजेपी को कम सीटें मिलीं.
2015 में जब इससे पहले उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव हुए थे, तब राज्य में अखिलेश यादव की सरकार थी और चुनाव में उनकी समाजवादी पार्टी के समर्थित उम्मीदवार जीते थे लेकिन बीजेपी ने इस ट्रेंड को तोड़ दिया. यानी बीजेपी ने एक ऐसा रिकॉर्ड बना दिया, जो वो शायद कभी बनाना नहीं चाहती होगी. बड़ी बात ये है कि अयोध्या, प्रयागराज, वाराणसी, कानपुर और मथुरा में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को आसानी से पछाड़ दिया. ये वो जिले हैं, जहां बीजेपी का काफी दबदबा माना जाता है और प्रधानमंत्री खुद वाराणसी से सांसद हैं लेकिन बीजेपी यहां हार गई.
वाराणसी के जिला पंचायत चुनाव में समाजवादी पार्टी को सबसे ज्यादा 15 सीटें मिलीं, 8 सीटों पर निर्दलीय जीते, बीजेपी को 7 सीटें मिलीं और बीएसपी व कांग्रेस को 5-5 सीटें हासिल हुईं. इसी तरह के नतीजे अयोध्या में भी देखने को मिला, जहां जिला पंचायत की 40 सीटों में से समाजवादी पार्टी को 21 सीटें मिलीं और बीजेपी 8 सीटों पर ही सिमट गई. बड़ी बात ये है कि बीजेपी के लिए अयोध्या के सोहावल उप-जिला में भी परिणाम बुरे रहे. ये वही जगह है जहां पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन दी गई है. पूर्वांचल में जहां समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को पीछे छोड़ा तो पश्चिमी यूपी में बीएसपी का प्रभाव दिखा. सबसे अहम मथुरा के नतीजे रहे, जहां बीएसपी समर्थित उम्मीदवारों ने जीत हासिल की. जबकि बीजेपी बीएसपी से पिछड़ गई.
बीजेपी के लिए ये नतीजे अच्छे क्यों नहीं हैं, इसे आप कुछ आंकड़ों से भी समझ सकते हैं. 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी को 403 में से 312 सीटें मिली थीं, यानी बीजेपी की जीत का स्ट्राइक रेट 77 प्रतिशत था. फिर 2019 के लोक सभा चुनाव में उसे यूपी की 80 सीटों में से 62 सीटें मिलीं यानी स्ट्राइक रेट उतना ही रहा, जितना 2017 में था. लेकिन पंचायती चुनाव में बीजेपी का स्ट्राइक रेट सिर्फ 25 प्रतिशत सीटों पर ही समिट गया और यह बहुत बड़ी गिरावट है.
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ये नतीजे इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वर्ष 2022 में यानी अगले साल उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने हैं. अब अगर हम इन चुनावों को यूपी का सेमीफाइनल मान लें तो ये नतीजे 2022 के विधान सभा चुनाव को लेकर क्या संकेत देते हैं, ये समझना ज़रूरी है. इसे हम आपको 5 Points में समझाते हैं-
1. अगले साल विधान सभा चुनाव में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी पार्टी अखिलेश यादव की होगी. यानी मुकाबला योगी आदित्यनाथ Vs अखिलेश यादव हो सकता है. ये हम पंचायत चुनाव के आधार पर कह रहे हैं.
2. पंचायत चुनाव में बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान पूर्वांचल, अवध और मध्य यूपी के क्षेत्र में हुआ. ये वो इलाके हैं, जहां बीजेपी का काफी प्रभाव है और ज्यादातर सीटों पर बीजेपी के ही सांसद और विधायक हैं लेकिन मौजूद नतीजों के बाद इन इलाकों में बीजेपी को समाजवादी पार्टी से टक्कर मिल सकती है.
3. पश्चिमी यूपी के इलाकों में कुछ जगहों पर अजीत चौधरी की आरएलडी और बीएसपी प्रभावशाली रही है. ऐसे में इन जगहों पर भी 2022 के लिए बीजेपी को काम करना होगा.
4. बीजेपी की हार का बड़ा कारण है गांव के लोगों का उसके प्रति बदलता रुझान, जिसका फायदा समाजवादी पार्टी ने उठाया. ऐसे में ये Point अगले साल के चुनाव में बड़ा बन सकता है. गांव के लोग किसके साथ हैं? इस पर बीजेपी को सोचना होगा.
5. जिला पंचायत चुनाव और विधान सभा चुनाव में काफी अंतर होता है. मुद्दे अलग होते हैं और सबसे बड़ी बात पार्टियां सीधे तौर पर आमने सामने होती हैं वो भी अपने सिम्बल के साथ. इसलिए ऐसा नहीं है कि जो अभी हुआ, वही अगले साल भी हो सकता है. हां ये जरूर है कि पंचायत चुनाव के नतीजे कुछ संकेत जरूर दे रहे हैं.
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