DNA ANALYSIS: रूस के 'विक्ट्री डे' पर भारतीय सेना का शौर्य
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DNA ANALYSIS: रूस के 'विक्ट्री डे' पर भारतीय सेना का शौर्य

रूस की राजधानी मॉस्को में बुधवार को 75वीं विक्ट्री डे परेड का आयोजन किया गया. इनमें भारत और चीन के सैनिक भी शामिल थे. भारत की थल सेना, वायु सेना और नौ सेना के जवानों के एक दस्ते ने भी इस परेड में हिस्सा लिया.

DNA ANALYSIS: रूस के 'विक्ट्री डे' पर भारतीय सेना का शौर्य

नई दिल्ली: रूस की राजधानी मॉस्को में बुधवार को 75वीं विक्ट्री डे परेड (Victory Day Parade) का आयोजन किया गया. विक्ट्री डे परेड का आयोजन हर साल 9 मई को रूस की राजधानी मॉस्को के रेड स्क्वायर (Red Square) पर किया जाता है. लेकिन इस बार Covid 19 की वजह से 9 मई को इसका आयोजन नहीं हो पाया और इसके लिए 24 जून का दिन चुना गया. लेकिन ये दिन भी अपने आप में खास है क्योकि इसी दिन वर्ष 1945 में नाजी जर्मनी को हराने के बाद रेड स्क्वायर पर पहली बार एक मिलिट्री परेड आयोजित की गई थी. जबकि रूस को जर्मनी के खिलाफ निर्णायक जीत 9 मई को मिली थी. अगर ये परेड 9 मई को आयोजित हो पाती तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस परेड में हिस्सा लेते. लेकिन Covid 19 की वजह से ऐसा संभव नहीं हो पाया.

करीब डेढ़ घंटे तक चली इस परेड में 19 देशों की सेनाएं शामिल हुईं. इनमें भारत और चीन के सैनिक भी शामिल थे. भारत की थल सेना, वायु सेना और नौ सेना के जवानों के एक दस्ते ने भी इस परेड में हिस्सा लिया. इस परेड को देखने के लिए करीब 64 हजार दर्शक मौजूद थे और इसमें शामिल सैनिकों की संख्या 14 हजार से ज्यादा थी.

इसके अलावा इस दौरान रूस के 27 शहरों में भी 50 हजार से ज्यादा सैनिकों ने मार्च किया. 

भारतीय सेना के दस्ते में कुल 75 सैनिक थे. आजादी से पहले भारत के सैनिकों ने ब्रिटेन की तरफ से दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था क्योंकि तब भारत पर ब्रिटेन का शासन था. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान करीब 84 हजार भारतीय सैनिकों ने अपने प्राणों का बलिदान दिया था जबकि 34 हजार से ज्यादा घायल हुए थे. 

अब आपको ये समझना चाहिए कि Covid 19 के दौर में जब दुनिया में भर में ऐसे बड़े आयोजनों को रद्द किया जा रहा है, बड़ी-बड़ी बैठकें रद्ध हो रही हैं तो ऐसे में  रूस ने दुनियाभर के नेताओं को मॉस्को बुलाकर और हजारों सैनिकों को रेड स्क्वायर पर उतारकर दुनिया को क्या संदेश देने की कोशिश की है?

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हैरानी की बात ये थी कि इस परेड में शामिल सैनिकों ने अपने चेहरे पर मास्क नहीं पहने थे और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने भी मास्क नहीं लगाया था. इस दौरान उन्होंने अपनी सेना के कई बड़े अधिकारियों से मुलाकात भी की. ये हाल तब है तब Covid 19 के मामले में रूस दुनिया में तीसरे नंबर पर है और वहां संक्रमण के 6 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. लेकिन इसके बावजूद पुतिन ने नियमों की परवाह नहीं की. जिन सैन्य अधिकारियों ने पुतिन से मुलाकात की उन्हें परेड़ से पहले 14 दिन के लिए अनिवार्य तौर पर क्वारंटीन में भेज दिया गया था.

इस परेड का गवाह बनने के लिए दुनिया के करीब 30 देशों के महत्वपूर्ण नेता मॉस्को पहुंचे थे. इनमें भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और चीन के रक्षा मंत्री Wie Fenghe भी शामिल हैं. Covid 19 और सोशल डिस्टेन्सिंग के नियमों के बावजूद आयोजित हुई इस परेड के पीछे की असली कहानी भी आपको समझ लेना चाहिए.

आपको याद होगा कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप जून के महीने में अपने देश में G7 देशों का एक समिट आयोजित कराना चाहते थे. लेकिन कोरोना वायरस की वजह से उन्हें अपनी ये योजना रद्द करनी पड़ी. लेकिन व्लादिमिर पुतिन ने तमाम खतरों के बावजूद ऐसा नहीं किया. और इसकी वजह ये है एक जुलाई को रूस की जनता उस संविधान संशोधन पर वोट डालने वाली है जिसके पास हो जाने के बाद व्लादिमिर पुतिन वर्ष 2036 तक रूस के राष्ट्रपति के पद पर रह पाएंगे. इस संविधान संशोधन प्रस्ताव पर रूस में ऑनलाइन वोटिंग होगी. इसलिए इस आयोजन के जरिए व्लादिमिर पुतिन ने अपने देश की जनता को राष्ट्रवाद का संदेश देने की कोशिश की है और ये परेड एक तरह से पुतिन की नई ताजपोशी की शुरुआत है.

रूस के संविधान के मुताबिक राष्ट्रपति के तौर पर पुतिन का कार्यकाल वर्ष 2024 में खत्म हो जाएगा लेकिन संविधान संशोधन पर मुहर लगने के बाद वो 2036 तक अपने पद पर रह सकते हैं. यानी पुतिन को राष्ट्रपति के तौर पर 12 वर्षों का एक्सटेंशन मिलने वाला है. व्लादिमिर पुतिन रूस की सत्ता के शीर्ष पर करीब 20 वर्ष से हैं. वो इससे पहले कई वर्षों तक रूस के प्रधानमंत्री भी रहे हैं. यानी अगर पुतिन को एक्सटेंशन मिल गया तो वो करीब 36 वर्षों तक रूस के सर्वोच्च पद पर काबिज रहेंगे. इससे पहले सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता के तौर पर जोसफ स्टालिन (Joseph Stalin) 29 वर्षों तक सत्ता में रहे थे.

हालांकि सबसे लंबे समय तक राष्ट्र अध्यक्ष रहने का रिकॉर्ड Fidel Castro के नाम है. जो करीब 49 वर्षों तक क्यूबा की सत्ता पर काबिज रहे थे.

कुल मिलाकर व्लादिमिर पुतिन खुद को रूस के सर्व शक्तिशाली नेता के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं और इस परेड के जरिए उन्होंने अपनी और रूस की ताकत का परिचय पूरी दुनिया से कराया है. लेकिन भारत के नजरिए से सबसे बड़ा सवाल ये है कि पुतिन भारत और चीन के बीच चल रहे विवाद में किसे चुनेंगे, वो अपने सबसे पुराने सहयोगियों में से एक भारत को चुनेंगे या फिर उस चीन को जिस पर रूस की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक निर्भर है.

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इसे समझने के लिए आपको ये समझना होगा कि व्लादिमिर पुतिन के भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कैसे रिश्ते हैं और वो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कितना पसंद करते हैं?

पहले आप भारत के साथ पुतिन के रिश्तों को समझिए. भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन पिछले कुछ वर्षों में कई मुलाकातें कर चुके हैं. लेकिन जब वर्ष 2018 में नरेंद्र मोदी रूस के शहर Sochi में भारत और रूस के बीच आयोजित एक अनौपचारिक समिट में हिस्सा लेने पहुंचे थे तब मोदी और पुतिन की दोस्ती पूरी दुनिया ने देखी थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने तब एक आलीशान बोट में सफर भी किया था और तब दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी पर भी सहमति बनी थी. इसके बाद सितंबर 2019 में भी रूस के Vladivostok शहर में दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी और भारत और रूस के संबधों को नई ऊर्जा मिली थी.

लेकिन सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या मोदी और पुतिन की इस दोस्ती के बावजूद रूस भारत और चीन के सीमा विवाद में भारत का साथ देगा? इसका जवाब इतना आसान नहीं है क्योंकि रूस और भारत दोनों पुराने सहयोगी तो हैं लेकिन अब दुनिया की राजनीति पहले जैसी नहीं है और रूस का कद भी दुनिया में पहले के मुकाबले कुछ छोटा हुआ है. रूस की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक चीन पर निर्भर है जबकि भारत के लिए रूस सबसे बड़ा हथियार निर्यातक देश है.

भारत अपने 56 प्रतिशत हथियार आज भी रूस से ही खरीदता है. लेकिन जब दोनों देशों के बीच व्यापार की बात आती है तो पलड़ा चीन का भारी हो जाता है.

भारत और रूस के बीच सिर्फ 53 से 55 हजार करोड़ रुपये का ही व्यापार होता है. ये चीन और रूस के बीच होने वाले व्यापार का 10 प्रतिशत भी नहीं है. वर्ष 2018 में चीन और रूस के बीच 8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार हुआ था.

लेकिन रूस भारत के साथ अपने ऐतिहासिक संबंध भी नहीं भुला सकता है क्योंकि जब-जब भारत पर संकट आया तब रूस ने भारत की मदद की. 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में रूस भारत और अमेरिका के बीच दीवार बनकर खड़ा हो गया था. इससे पहले भी सीमाओं पर चीन और पाकिस्तान जैसे दुश्मनों का सामना कर रहे भारत की मदद रूस ने ही की थी. 1960 के दौर में जब अमेरिका जैसे देशों ने भारत को फाइटर जेट्स देने से इनकार कर दिया था तब रूस ने ही भारत को Mig 21 जैसे फाइटरजेट्स दिए थे. इसके अलावा भी कई मौकों पर रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के पक्ष में वीटो किया है. रूस और भारत के लोग सांस्कृतिक रूप से भी एक-दूसरे के बहुत करीब हैं और हिंदू धर्म रूस में सबसे तेजी से उभरते धर्मों में से एक है. लेकिन भारत और रूस के संबंधों में जो चीज सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है वो ये है कि भारत आज भी अपने 56 प्रतिशत हथियार रूस से ही खरीदता है.

इसी वजह से 1960 से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच कई रक्षा सौदे भी हो चुके हैं. लेकिन एक जमाने में एक दूसरे के दुश्मन रहे रूस और चीन भी आज बहुत करीब आ चुके हैं. चीन रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. 

इसके अलावा चीन के साथ रूस का करीब 4 हजार किलोमीटर लंबा बॉर्डर है और रूस नहीं चाहता कि चीन यहां उसके लिए कोई समस्या खड़ी करे क्योंकि रूस आकार में दुनिया का सबसे बड़ा देश है. जिसकी सीमाएं एशिया और यूरोप के कई देशों से मिलती हैं जबकि रूस की आबादी करीब साढ़े 14 करोड़ है और ये जापान और पाकिस्तान जैसे देशों से भी बहुत कम है. इसलिए रूस के लिए इतनी कम जनसंख्या के साथ इतनी लंबी सीमाओं की रक्षा करना आसान नहीं है.

लेकिन रूस और चीन की इस दोस्ती के पीछे, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की केमिस्ट्री भी है. दोनों नेता कई मौकों पर एक दूसरे को सम्मानित कर चुके हैं. शी और पुतिन साथ खाना बना चुके हैं. पुतिन शी जिनपिंग को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह बोट यात्रा पर ले जा चुके हैं और शी जिनपिंग तो सैंडविच और वोदका के साथ पुतिन का 67वां जन्मदिन भी मना चुके हैं.

लेकिन इन दोनों नेताओं की दोस्ती की असली कहानी इन तस्वीरों से नहीं बल्कि उन अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से पता चलती है जिसका सामना चीन और रूस इस समय कर रहे हैं.

2014 में जब यूक्रेन के क्रीमिया पर रूस ने कब्जा कर लिया था तब अमेरिका ने रूस के खिलाफ कई आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे. इसके अलावा सीरिया में रूस के रोल को भी अमेरिका पसंद नहीं करता है. दूसरी तरफ अमेरिका और चीन के रिश्ते भी सबसे निचले स्तर पर हैं. दोनों देशों के बीच ना सिर्फ व्यापारिक युद्ध चल रहा है बल्कि अमेरिका Covid 19 के लिए भी चीन को ही जिम्मेदार मानता है और अमेरिका चीन की Huawei जैसी कंपनियों को भी ब्लैकलिस्ट कर चुका है. रोचक बात ये है कि जिस Huawei पर अमेरिका ने प्रतिबंध लगाया उसे लेकर रूस बहुत उत्साहित है और शी जिनपिंग और व्लादिमिर पुतिन एक मुलाकात के दौरान उस समझौते पर हस्ताक्षर भी कर चुके हैं जिसके तहत रूस की टेलीकॉम कंपनी Huawei के साथ मिलकर रूस में 5G नेटवर्क की शुरूआत करेगी. इसके अलावा दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी पर भी कई बार सहमति बन चुकी है.

करीब एक वर्ष पहले जब शी जिनपिंग पुतिन से मिले थे तो उन्होंने पुतिन को अपना बेस्ट फ्रेंड तक कह दिया था. 

कुल मिलाकर चीन को अमेरिका से टकराने के लिए कुछ मजबूत सहयोगियों की आवश्यकता है तो रूस को चीन के पैसों की जरूरत है. और कहते हैं कि पैसा सबसे बड़ा है और यही पैसा वर्षों पुरानी दोस्ती को तोड़ सकता है और नए दोस्त भी बना सकता है. इसलिए भारत और चीन के बीच विवाद की इस घड़ी में रूस फिलहाल दोनों देशों के साथ एक कूटनीतिक सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करेगा. लेकिन आने वाले समय में चीन का पैसा जीतेगा या भारत और रूस की दोस्ती ये कहना थोड़ा मुश्किल है.

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