DNA: तात्या टोपे को मृत्यु दंड तो बहादुर शाह जफर को सिर्फ देश निकाला क्यों मिला? क्या वाकई मुगल बादशाह ने दिलाई अंग्रेजों से आजादी
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DNA: तात्या टोपे को मृत्यु दंड तो बहादुर शाह जफर को सिर्फ देश निकाला क्यों मिला? क्या वाकई मुगल बादशाह ने दिलाई अंग्रेजों से आजादी

DNA on Bahadur Shah Zafar: आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को गुजरे हुए करीब पौने दो सौ साल हो चुके हैं. इसके बावजूद आजादी के पहले आंदोलन में उसकी भूमिका पर अब भी सवाल उठते रहते हैं. सवाल ये है कि जब पकड़े जाने पर तात्या टोपे को अंग्रेजों ने मृत्यु दंड दिया तो जफर को केवल देश निकाला देकर क्यों छोड़ दिया. 

DNA: तात्या टोपे को मृत्यु दंड तो बहादुर शाह जफर को सिर्फ देश निकाला क्यों मिला? क्या वाकई मुगल बादशाह ने दिलाई अंग्रेजों से आजादी

DNA Analysis on Bahadur Shah Zafar: वक्फ कानून हो या विरोध का कोई और मुद्दा, प्रदर्शनकारी मुट्ठी भर हों या हजारों-लाखों में. ज्यादातर प्रदर्शनकारियों को ये पता ही नहीं होता कि वो विरोध क्यों कर रहे हैं. किस बात पर कर रहे हैं. बस विरोध करने के लिए कहा गया है तो करना है. यही सोच है और ऐसी सोच में कभी-कभी ब्लंडर हो जाता है. फजीहत हो जाती है. जैसा- गाजियाबाद में एक हिंदू संगठन के साथ हुआ.

बहादुर शाह जफर की पेंटिंग पर पोती कालिख

गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर अचानक हिंदू रक्षा दल नाम के एक संगठन से जुड़े लोग पहुंचे. उन्होंने स्टेशन पर लगी बहादुर शाह जफर की पेटिंग पर कालिख पोत दी और दावा किया कि औरंगजेब के चेहरे पर कालिख पोती है. यानी दिमाग में इतना उन्माद भरा था कि तस्वीर देखकर ये भी फर्क नहीं कर पाए कि ये औरंगजेब है या देश के आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर. 

बस वीडियो शूट करवाना था, चर्चा में आना था तो बिना दिमाग लगाए कालिख पोत आए. पिछले 24 घंटे से अब इस हिंदू संगठन के कारनामे पर विपक्ष सोशल मीडिया के जरिए कालिख पोत रहा है. कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने एक्स पर एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने लिखा...कालिख पोतने गए थे औरंगजेब पर. पोत आए बहादुर शाह जफर पर. इनको ये भी मालूम नहीं है कि बहादुर शाह जफर ने 1857 में आजादी की पहली लड़ाई लड़ी थी.

सुप्रिया श्रीनेत के पोस्ट से तेज हुई बहस

सुप्रिया श्रीनेत की इस पोस्ट ने एक बार उस बहस को हवा दे दी, जो सालों से चली आ रही है. हम आपके लिए आज देश की आजादी में बहादुर शाह जफर के योगदान का DNA टेस्ट करेंगे. लेकिन उससे पहले जब ज़ी न्यूज़ की टीम ने जफर पर कालिख पोतने वाले हिंदू रक्षा दल से जुड़े लोगों से पूछा कि जब विरोध औरंगजेब का है तो बहादुर शाह जफर की तस्वीर क्यों काली की तो जवाब क्या मिला. उन्होंने कहा कि हैं तो सब मुगलों की औलाद ही. 

इनकी बातें सुनकर एक लाइन दिमाग में आ जाती है. हम कुछ जानते नहीं. हम किसी की मानते नहीं. इन लोगों ने तो अपनी गलती नहीं मानी. लेकिन इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर भी देश की आजादी में जफर के योगदान को लेकर फिर से चर्चा शुरू हो गई है. कई लोग आजादी की पहली लड़ाई में बहादुर शाह जफर की भूमिका पर सवाल पूछते हैं.

टोपे को मृत्यु दंड तो जफर को देश निकाला क्यों?

सवाल ये- जब बहादुर शाह जफर ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का आरंभ नहीं किया तो उन्हीं के नाम से इस संघर्ष को क्यों जाना जाए. कुछ लोग ये भी सवाल करते हैं कि अगर बहादुर शाह जफर वाकई 1857 जैसा विद्रोह करना चाहते थे तो वो अंग्रेजों से पेंशन क्यों लेते थे. जब तात्या टोपे जैसे वीरों को मृत्युदंड दिया गया तो बहादुर शाह जफर को सिर्फ देश निकाला क्यों दिया गया. 

इन सवालों और विद्रोह में बहादुर शाह जफर की भूमिका को लेकर इतिहासकार क्या कहते हैं. ये भी आपको गौर से सुनना और समझना चाहिए. इतिहासकारों का कहना है कि देश के पहले स्वतंत्रता आंदोलन में जफर की भूमिका संदिग्ध रही है. जफर की इस आंदोलन से जुड़ने की वजह से हिंदुस्तान को आजाद करवाना नहीं बल्कि फिर से अपनी खोई हुई रियासत को आजाद करवाना ज्यादा था. 

बहादुर शाह जफर और 1857 के विद्रोह को लेकर इतिहास से जुड़े मत अलग अलग हो सकते हैं. लेकिन गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर जो हुआ. उसको लेकर ये कहने में दो राय नहीं हो सकती. जब उन्माद या विरोध मे अति हो जाती है तो फिर सही और गलत में फर्क नहीं हो पाता. 

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