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नई दिल्ली: डीएनए में अब उस युद्ध का विश्लेषण जिसका भारत के टेलीविजन (Television) पर प्रसारण वर्ष 1999 में हुआ था. वर्ष 1999 में जुलाई की इसी तारीख को पाकिस्तान (Pakistan) के खिलाफ कारगिल युद्ध में भारत विजयी (India wins Kargil war) हुआ था इसीलिए 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस (Kargil Victory Day) के रूप में मनाया जाता है. कारगिल का युद्ध 60 दिनों से भी ज्यादा समय तक चला था.
इस युद्ध में भारत के 527 जवान शहीद हुए थे. खास बात ये कि कारगिल की जंग में पहली बार टेलीविजन के जरिये युद्ध आपके ड्राइंग रूम तक पहुंची थी. क्योंकि जब पाकिस्तान के साथ वर्ष 1965 और 1971 का युद्ध हुआ था तब टेलीविजन भारतीय घरों तक नहीं पहुंच पाया था.
उस समय ना सिर्फ टीवी के पत्रकारों की पहली पीढ़ी ने इस युद्ध को करीब से देखा, बल्कि न्यूज चैनलों के जरिए देश के लोग भी युद्ध का अनुभव कर रहे थे. तब हर व्यक्ति में ऐसा जुनून था कि वो खुद कारगिल की चोटियों पर पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ रहा हो. इसी युद्ध के दौरान ऐसा पहली बार हुआ, जब शहीद जवानों का पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचता तो शव यात्रा में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती थी. वो तस्वीरें जब टीवी पर लोग देखते थे तो पूरा देश अपने जवानों के साथ खड़ा हो जाता था.
मई 1999 में पाकिस्तानी सैनिकों ने आतंकवादियों के रूप में कारगिल में घुसपैठ कर दी थी. पाकिस्तानी सैनिक कारगिल की चोटियों पर कब्जा करके बैठ गए थे. आतंकवादी लेह से श्रीनगर को जोड़ने वाले नेशनल हाइवे को अपने नियंत्रण में लेना चाहते थे. ये हाइवे एक तरह से जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) की लाइफलाइन है. उस दौरान अगर ऐसा हो जाता तो सियाचिन में तैनात भारतीय सेना तक कोई भी सप्लाई नहीं पहुंच पाती तो वो इलाका देश से कट जाता.
करीब दो महीनों की लड़ाई और 527 सैनिकों की शहादत के बाद भारतीय सेना ने अपना इलाका पाकिस्तान के कब्जे से आजाद करवा लिया और इस तरह से भारत ने पाकिस्तान से ये लड़ाई जीत ली. दरअसल 26 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध जीतने का औपचारिक ऐलान किया था और इसीलिए इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
उस समय टीवी पत्रकारों के लिए इस युद्ध को कवर करना एक बड़ी उपलब्धि थी. ये पहला अनुभव था, जब लाइव प्रसारण के लिए आउटडोर ब्रॉडकास्टिंग वैन (Outdoor Broadcasting Van) नहीं थीं और युद्ध की कवरेज का टीवी पर प्रसारण होने में दो से तीन दिन लग जाते थे.
कारगिल युद्ध के दौरान टीवी चैनल के कैमरों की फुटेज वाले टेप किसी पॉयलट के जरिए श्रीनगर भेजी जाती थीं और फिर कोरियर सेवा की मदद से वो टेप दिल्ली आती थीं. यानी कारिगल में होने वाली गतिविधियों की खबर देश को दो से तीन दिन बाद पता चलती थीं. युद्ध की कवरेज के दौरान उन मुश्किल हालातों में हुए युद्ध को मैंने बहुत करीब से देखा था. तब जोखिम से भरी ये सच्ची रिपोर्टिंग इसलिए हुई थी ताकि कारिगल युद्ध की एक-एक खबर आप तक पहुंचाई जा सके.
कारगिल युद्ध ने ना सिर्फ भारत की रणनीति बदली, बल्कि इस युद्ध से हमारे देश ने काफी कुछ सीखा. देश ने पहली बात तो ये सीखी कि अमेरिका (US) पर ज्यादा निर्भर नहीं रहा जा सकता. युद्ध के दौरान भारत चाहता था कि अमेरिका अपने सैटेलाइट्स की मदद से भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना के ठिकानों की सही जानकारी बता दे. लेकिन अमेरिका ने इससे इनकार कर दिया. इसके बाद भारतीय सेना के लिए कारगिल की चोटियों पर पहुंचना ठीक वैसा ही था, जैसे किसी शख्स की आंखों पर पट्टी बंधी हो और उसे खाई पार करके जीत हासिल करनी हो. इसके बावजूद हमारे सैनिकों ने अपने पराक्रम से ये काम बखूबी पूरा कर दिया.
भारत ने ये भी सीखा कि पाकिस्तान का प्रधानमंत्री कोई भी हो लेकिन पाकिस्तान की सत्ता का रिमोट कंट्रोल वहां के सेना प्रमुख के पास ही होता है. जब कारगिल युद्ध हुआ तब पाकिस्तान के सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ थे, जो युद्ध के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने. कारगिल युद्ध से भारत ने ये भी सीखा कि पाकिस्तान पर किसी भी सूरत में भरोसा नहीं किया जा सकता. युद्ध से कुछ महीने पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अपने मंत्रियों के साथ बस से दिल्ली से लाहौर गए थे. तब उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व पीएम नवाज शरीफ से मुलाकात की थी. जैसे ही वो भारत लौटे उसके कुछ समय बाद ही पाकिस्तान ने कारगिल में भारतीय चौकियों पर अपना कब्जा कर लिया.
कारगिल युद्ध के बाद भारत ने ये महसूस किया कि देश में सीडीएस (Chief of Defence Staff) की नियुक्ति होनी चाहिए, जो तीनों सेनाओं के बीच एक कड़ी का काम करे. हालांकि CDS की नियुक्ति में 20 साल लग गए और वर्ष 2019 में जनरल बिपिन रावत को देश का CDS नियुक्त किया गया. कारगिल की लड़ाई में चीन (China) की भूमिका भी अहम थी. कारगिल युद्ध के दौरान चीन ने पाकिस्तान का समर्थन नहीं किया था.