आजादी के तुरंत बाद अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला कर दिया था और भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. जवाब में भारत की सेना पाकिस्तान से अपने इलाके जीतकर लगातार आगे बढ़ रही थी. तभी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) ने युद्ध विराम का ऐलान कर दिया.
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नई दिल्ली: आज हम जम्मू-कश्मीर के उस आधे हिस्से का विश्लेषण करेंगे जो पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) की एक भूल की वजह से पाकिस्तान के पास चला गया. वर्ष 1949 में 5 जनवरी के दिन संयुक्त राष्ट्र ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को निष्पक्ष तरीके से जनमत संग्रह का अधिकार दिया था. ये भारत सरकार की एक बड़ी भूल की वजह से हुआ.
वर्ष 1947 में जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir) के भारत में विलय को संयुक्त राष्ट्र की मदद से सुलझाने की कोशिश की गई, जबकि ये एक घरेलू मामला था, इसे अंतरराष्ट्रीय संगठन में नहीं ले जाना चाहिए था.
आजादी के तुरंत बाद अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान (Pakistan) ने कश्मीर (Kashmir) पर हमला कर दिया था और भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया. जवाब में भारत की सेना पाकिस्तान से अपने इलाके जीतकर लगातार आगे बढ़ रही थी. तभी तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने युद्ध विराम का ऐलान कर दिया. अचानक हुए फैसले से पाकिस्तान को जम्मू-कश्मीर के एक बड़े हिस्से पर कब्जा करने का मौका मिल गया. युद्ध खत्म होने से पहले ही 1948 में जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) कश्मीर (Kashmir) का मामला खुद संयुक्त राष्ट्र (UN) में ले जाने की भूल कर चुके थे, इसलिए पाकिस्तान को पीओके (Pok) से हटाया नहीं जा सका. इसी गलती का नतीजा है कि पाकिस्तान, कश्मीर को भारत के खिलाफ इस्तेमाल करता है.
नेहरू की सबसे बड़ी भूल ये थी कि उन्होंने कश्मीर के मुद्दे पर सरदार पटेल को विश्वास में नहीं लिया और आज़ाद भारत के पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन पर ज़रूरत से ज़्यादा भरोसा करते हुए कश्मीर पर जनमत संग्रह करवाने का फैसला ले लिया.
कश्मीर भारत का मस्तक है, पर वहां से देश का सबसे बड़ा सिरदर्द आतंक भी आता है. इसलिए हमारा मानना है कि कश्मीर विलय को देश से बाहर ले जाना एक राष्ट्रीय भूल थी.
नए साल में संयुक्त राष्ट्र से ही एक और अच्छी ख़बर आई है. 1 जनवरी से भारत, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council) के अस्थायी सदस्यों में शामिल हो गया है. अब हम जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री Imran Khan जो फेक न्यूज़ फैला रहे हैं उसके बारे में आपको सावधान करेंगे. ये मौका उन्हें कश्मीर पर हमारी राष्ट्रीय भूल की वजह से मिला है.
5 जनवरी को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट करके एक बार फिर से अपनी जनता को जम्मू-कश्मीर के बारे में गलत जानकारी देने की कोशिश की है.
इमरान खान ने ये दावा किया है कि 5 जनवरी 1949 को संयुक्त राष्ट्र ने जम्मू-कश्मीर के लोगों को निष्पक्ष तरीके से जनमत संग्रह कराने का अधिकार दिया था. लेकिन भारत की वजह से जम्मू-कश्मीर के लोगों को ये अधिकार नहीं मिला है.
पर ये पूरा सच नहीं है. 13 अगस्त 1948 को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जम्मू-कश्मीर विवाद पर एक प्रस्ताव पारित किया.
इस विवाद का हल निकालने के लिए बनाए गए United Nations Commission For India and Pakistan ने अपने Resolution में कहा था कि -
-पूरे जम्मू-कश्मीर राज्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत की है. जम्मू कश्मीर राज्य में PoK और चीन के कब्ज़े वाले इलाके भी शामिल हैं.
-सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि इस रेजॉल्यूशन के मुताबिक, भारत के लिए तब तक कश्मीर में जनमत संग्रह कराना जरूरी नहीं है जब तक पाकिस्तान इस इलाके में सीज़फायर लागू नहीं करता और Pok से अपना कब्ज़ा नहीं हटाता.
-उत्तरी कश्मीर में खाली कराए गए इलाके वापस जम्मू-कश्मीर को सौंपे जाएं. इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भारत की ही होगी.
हमारे पास संयुक्त राष्ट्र के उसी रेजॉल्यूशन की एक कॉपी है और हम आपको उसमें से कुछ खास हिस्से बताना चाहते हैं.
पाकिस्तान ने आज तक इनमें से किसी भी शर्त का पालन नहीं किया है और वो चाहता है कि भारत, जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराए. वैसे पाकिस्तान को ऐसा कहने की हिम्मत हमारे देश की कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति ने दी थी और ट्वीट करके इमरान खान ने फिर से अपना झूठ फैलाने की कोशिश की है. यहां हम कहना चाहते हैं कि इमरान खान खुद सच से दूर हैं और अपने देश को भी कश्मीर पर गुमराह कर रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान और भारत दोनों अपना अपना दावा करते रहे हैं, लेकिन इतिहास और तथ्य बताते हैं कि जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान का दावा न सिर्फ झूठा है, बल्कि इस दावे का कोई कानूनी, धार्मिक या भौगोलिक आधार ही नहीं है.
अमेरिका की एक लेखिका क्रिस्टीन फेयर (Christine Fair) ने अपनी किताब में पाकिस्तान के झूठे दावों की पोल खोली है. इस किताब का नाम है - Fighting To The End: The Pakistan Army's Way Of War. इस किताब में उन्होंने बताया है कि किस तरह जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान का दावा न सिर्फ ऐतिहासिक रूप से गलत है, बल्कि पाकिस्तान के ज्यादातर नेताओं और अफसरों ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित किए गए रेजॉल्यूशन को कभी पढ़ा ही नहीं है. जम्मू-कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के नेता, मीडिया और वहां के बुद्धिजीवी जिस तरह झूठ बोलते आए हैं. उसके बारे में Christine Fair ने जो कहा है उसे पाकिस्तान और उन सब लोगों को बहुत ध्यान से सुनना चाहिए जो जम्मू कश्मीर में भारत की भूमिका पर सवाल खड़े करते हैं.
संयुक्त राष्ट्र वो मंच है, जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर फर्जी और झूठे दावे करने के लिए किया है. हालांकि पिछले 73 वर्षों से पाकिस्तान इस दुष्प्रचार से आगे नहीं बढ़ पाया है. जबकि नए साल में भारत, संयुक्त राष्ट्र की Security Council के 10 अस्थायी सदस्यों में शामिल हो गया है. भारत के पास ये सदस्यता दो वर्षों तक रहेगी.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की अस्थायी सदस्यता शुरू होने पर वहां तिरंगा लगाया गया. अब ये झंडा यहां अगले दो वर्षों तक लगा रहेगा.
ये आठवां मौका है जब भारत को सुरक्षा परिषद में जगह मिली है. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र के 192 में से 184 देशों ने भारत को समर्थन दिया. ये भारत पर दुनिया के भरोसे का सबसे बड़ा सबूत है.
अब पाकिस्तान की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि Security Council में शामिल होने के बाद भारत लगातार आतंकवाद के मुद्दे को उठाता रहेगा. हालांकि भारत ने लगातार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार किये जाने का समर्थन किया है. ताकि भारत जैसे देशों को भी इसका स्थायी सदस्य बनाया जा सके. इस समय सुरक्षा परिषद में सिर्फ 5 स्थायी सदस्य हैं.