DNA ANALYSIS: इंडिया गेट पर 'ट्रैक्टर दहन', भगत सिंह के नाम पर राजनीति क्यों?
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DNA ANALYSIS: इंडिया गेट पर 'ट्रैक्टर दहन', भगत सिंह के नाम पर राजनीति क्यों?

इंडिया गेट के पास कल सुबह एक ट्रैक्टर में आग लगा दी गई. आग लगाने वाले भगत सिंह के नारे लगा रहे थे. उनका कहना था कि वो किसानों से जुड़े बिल का विरोध कर रहे हैं. लेकिन आग लगाने वाले ये लोग किसान नहीं, बल्कि पंजाब यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता थे.

DNA ANALYSIS: इंडिया गेट पर 'ट्रैक्टर दहन', भगत सिंह के नाम पर राजनीति क्यों?

नई दिल्ली: इंडिया गेट के पास कल सुबह एक ट्रैक्टर में आग लगा दी गई. आग लगाने वाले भगत सिंह के नारे लगा रहे थे. उनका कहना था कि वो किसानों से जुड़े बिल का विरोध कर रहे हैं. लेकिन आग लगाने वाले ये लोग किसान नहीं, बल्कि पंजाब यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ता थे. दिल्ली पुलिस ने इस मामले में 5 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें पंजाब युवा कांग्रेस के सचिव संदीप सिंह भुल्लर भी हैं. सवाल दिल्ली पुलिस पर भी है कि पंजाब की नंबर प्लेट वाला ये ट्रैक्टर दिल्ली में कैसे आया. दिल्ली में जहां पर यह घटना हुई वो संसद भवन से सिर्फ लगभग 200 मीटर दूरी पर है.

यहां भगत सिंह के नाम पर राजनीति हुई. पंजाब यूथ कांग्रेस के कुछ नेता किसान बनकर किस तरह नारे लगा रहे थे और ट्रैक्टर जला रहे थे. यह सब देखकर आज भगत सिंह की आत्मा कितनी दुखी होगी.

जब हमने इसकी पड़ताल की तो पता चला कि युवा कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने इस पुराने ट्रैक्टर को 19 सितंबर को बठिंडा के एक किसान हरमनदीप सिंह से 58 हजार रुपए में खरीदा था.

20 सितंबर को अंबाला में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन में इसी ट्रैक्टर को जलाने की कोशिश की थी. लेकिन तब पुलिस ने उन्हें रोक दिया था.

उसी ट्रैक्टर को कल सुबह एक मिनी ट्रक पर लादकर दिल्ली लाया गया. ट्रैक्टर के साथ लगभग 20 लोग भी थे. उन्होंने पहले कैमरों के आगे ट्रैक्टर में आग लगाई और फिर नारेबाजी शुरू कर दी. कैमरों के सामने ये पूरा तमाशा लगभग 15-20 मिनट तक चला.

क्या कोई किसान खुद अपना ट्रैक्टर जला सकता है?
देश का किसान जिन औजारों की पूजा करता है जिनसे वो खेती है करता है, फसल उगाता है और देश का पेट भरता है. जिस तरह से एक मध्यम वर्गीय नौकरी-पेशा आदमी एक कार का सपना देखता है, उसी तरह किसान का सपना होता है कि उसके पास खेती के लिए अपना ट्रैक्टर हो. फिर कोई किसान अपने सपने को कैसे तोड़ सकता है, उसे आग के हवाले कैसे कर सकता है.

ऐसे लोग किसान या उनके हितैषी नहीं हो सकते जो बीच सड़क पर ट्रैक्टर को आग लगा दें. अब आपको बताते हैं कि एक किसान को ट्रैक्टर खरीदने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस यानी NSSO के 2016 के आंकड़ों के अनुसार देश में किसानों की औसत सालाना कमाई मात्र 77 हजार रुपये है. यानी प्रति माह लगभग 6 हजार 400 रुपए. देश में एक ट्रैक्टर की कीमत 5 से 8 लाख रुपए तक है. ऐसे में 6 हजार रुपए प्रति महीने कमाने वाले किसान को यदि 5 लाख रुपये कीमत का ट्रैक्टर खरीदना है तो उसे बैंक से लोन लेना होता है.

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ये कुछ उसी तरह का प्रयास होता है कि जैसे एक 10 लाख रुपए सालाना कमाने वाला व्यक्ति 50 लाख रुपए का मकान किस्त पर खरीदता है, किसान और नौकरी पेशा व्यक्ति के बीच इस तरह की तुलना करने के पीछे हमारा एक ही मकसद है कि कोई सामान्य व्यक्ति अपनी मेहनत के पैसे से खरीदा घर विरोध दर्ज कराने के लिए आग के हवाले तो नहीं कर सकता, तो फिर कोई किसान अपना ट्रैक्टर कैसे जला सकता है.

आज जब भगत सिंह के नाम पर कुछ लोग इंडिया गेट पर ट्रैक्टर जला रहे हैं तो ऐसे में आज भगत सिंह के बारे में बात करना ज्यादा जरूरी हो जाता है. ताकि आज की पीढ़ी को पता रहे कि भगत सिंह ने जिस भारत की कल्पना की थी, वो ये नहीं है. 1907 में आज के दिन यानी 28 सितंबर को भगत सिंह का जन्म हुआ था और जब उन्हें फांसी के फंदे पर लटकाया गया तो वो सिर्फ 23 साल के थे.

आज के युवाओं के सपने बिल्कुल अलग
सोचिए 1931 में भगत सिंह जो सपने देखते थे, उनमें और आज यानी 2020 के युवाओं के सपनों में क्या अंतर आ चुका है. आज के युवा इस उम्र में करियर बनाने और पैसा कमाने के सपने देख रहे होते हैं. आज युवा अपने जीवन का कीमती समय सोशल मीडिया पर क्या पोस्ट करना है- इसमें लगा देते हैं. नई सेल्फी पोस्ट करने, उस पर मिलने वाले लाइक्स और कॉमेंट्स का हिसाब किताब लगाने में ही वक्त बिता देते हैं. आज ज्यादातर युवाओं की सोच अपने और अपने परिवार के बारे में होती है, लेकिन उसी उम्र में भगत सिंह भारत को आजाद कराने के सपने देख रहे थे.

भगत सिंह ने तब सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने की घटना को अंजाम दिया था लेकिन इस सावधानी के साथ कि उससे किसी व्यक्ति को कोई नुकसान न हो. बम फोड़ने के बाद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त वहां से भागे नहीं. उन्होंने खुद को गिरफ्तार करवाया. इस दौरान उन्होंने सेंट्रल असेंबली में पर्चे भी फेंके जिन पर लिखा था– ‘बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊंचे शब्दों की आवश्यकता होती है.’

असेंबली में हुए इस बम कांड को लाहौर षड्यंत्र केस के तौर पर जाना जाता है. इसी केस में भगत सिंह को फांसी की सज़ा हुई थी. भगत सिंह के पास भी एक आसान जीवन का विकल्प रहा होगा. लेकिन उन्होंने मुश्किल रास्ता चुना और हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए.

भाई के नाम भगत सिंह की भावुक चिट्ठी
आज हमारे पास भगत सिंह की सिर्फ कहानियां और कुछ तस्वीरें हैं. लेकिन उनके व्यक्तित्व का सही अंदाजा लगता है उन चिट्ठियों से जो उन्होंने जेल के अंदर से लिखी हैं. भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी हुई थी. इससे 20 दिन पहले 3 मार्च को उन्होंने अपने छोटे भाई कुलतार को एक चिट्ठी लिखी थी. तब कुलतार की उम्र सिर्फ 12 साल थी और वो जेल में अपने भाई से आखिरी बार मिलने गए थे. उर्दू में लिखे इस खत में भगत सिंह ने जो कुछ लिखा है, वो आज के नौजवानों को जानना चाहिए.

प्रिय कुलतार, तुम्हारी आंखों में आंसू देखकर दुख हुआ. हौसले से रहना, पढ़ाई-लिखाई करना, अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और क्या कहूं.

इसके बाद भगत सिंह ने 4 शेर लिखे हैं, जिसमें से एक है...

उसे फिक्र है हरदम नया तर्जे ज़फ़ा क्या है
हमें ये शौक है देखें सितम की इंतहा क्या है.

इसका मतलब यह कि उन्हें हर वक्त यह चिंता रहती है कि कैसे अन्याय के नए तरीके आजमाए जाएं, लेकिन हमें भी उनके अत्याचारों को सहने का शौक हो गया है.

भगत सिंह ने इस ख़त के अंत में लिखा है. खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं. तुम्हारा भाई भगत सिंह.

पत्रकार भी थे भगत सिंह
भगत सिंह को हम क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर याद करते हैं. लेकिन कम लोग जानते होंगे कि वो एक पत्रकार भी थे. वो चार भाषाओं में लिखा करते थे- अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू और पंजाबी. इसके अलावा वो बांग्ला और फारसी भाषा भी समझ और बोल लेते थे.

उस जमाने में भगत सिंह के लेख कीर्ति, प्रताप, वीर अर्जुन, मिलाप और अकाली नाम के पत्रों में छपा करते थे. लेकिन उनके ज्यादातर लेख बिना नाम के या नकली नामों से छपते थे.

मात्र 17 साल की उम्र में भगत सिंह ने आयरलैंड युद्ध के क्रांतिकारी डैन ब्रीन (Dan Breen) की किताब ‘My Fight for Irish Freedom’ का हिंदी में अनुवाद किया था.

भगत सिंह जेल में कुल 716 दिनों तक रहे थे. इस दौरान वो लगातार किताबें पढ़ते रहे थे. उन्होंने जेल में रहते हुए वहां के अधिकारियों से 300 से ज्यादा किताबें मांगकर पढ़ डाली थीं. जेल में रहते हुए उन्होंने किताबों के लिए भी भूख हड़ताल की थी.

भगत सिंह से सीख सकते हैं ये 5 बातें
भगत सिंह जब पैदा हुए थे तब देश गुलाम था, लेकिन आज हम आजाद हैं. लेकिन भगत सिंह का जीवन आज के नौजवानों के लिए भी एक सबक है. आज भी हम उनसे काफी कुछ सीख सकते हैं. ऐसी ही 5 बातें आज हम आपको बताते हैं-

- भगत सिंह सिर्फ 23 साल जीये, लेकिन इतने कम उम्र में उन्होंने दुनिया भर का साहित्य पढ़ रखा था. जेल में भी वो किताबें पढ़ते रहते थे और उनका नोट्स भी बनाते थे.

- भगत सिंह से यह सीखा जा सकता है कि जीवन सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए होना चाहिए.

- भगत सिंह कहा करते थे कि ''जिंदगी तो अपने दम पर जी जाती है दूसरों के कंधों पर जनाजे उठा करते हैं". भगत सिंह ने अपनी जिंदगी में यह बात सच करके दिखाई.

- भगत सिंह चाहते थे कि आजाद भारत में राजनीतिक, सामाजिक और व्यक्तिगत समानता हो. यानी कोई भेदभाव न हो. आज उनकी इस सीख को अपनाने की सबसे अधिक आवश्यकता है.

- भगत सिंह हमें जीवन में बड़ा लक्ष्य रखने और उसके लिए पूरी शक्ति लगा देने की सीख देते हैं. जब परिवार वालों ने उनकी शादी के लिए कहना शुरू किया था तो भगत सिंह का जवाब था कि गुलाम भारत में अगर कोई मेरी दुल्हन बनेगी, तो वो मेरी शहादत होगी.

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