DNA Analysis: अब से कुछ ही घंटे बाद पूरे देश में युद्ध से पहले का निर्णायक सायरन बजने जा रहा है. कल से पूरे देश में सिविल डिफेंस मॉकड्रिल का सायरन बजने वाला है. क्या ये सायरन पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का शंखनाद है? क्या ये सायरन भारत का ऐलान-ए-जंग है? आइए जानते हैं इसके बारे में.
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DNA Analysis: अमेरिकी सेना के जनरल रहे नॉर्मन स्वाचकॉफ ने कहा था The more you sweat in peace, the less you bleed in war. यानी शांति के समय आप जितना पसीना बहाएंगे युद्ध के मैदान में खून उतना कम बहेगा, इसका सार ये है कि युद्ध से पहले ही युद्ध की पूरी तैयारी कर लेनी चाहिए. भारत इन दिनों पाकिस्तान के खिलाफ जंग जैसे माहौल के बीच ऐसी ही तैयारी में जुटा है. अब से कुछ ही घंटे बाद, पूरे देश में युद्ध से पहले का निर्णायक सायरन बजने जा रहा है. कल से पूरे देश में सिविल डिफेंस मॉकड्रिल का सायरन बजने वाला है.
भारी होगा पलड़ा
क्या ये सायरन पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध का शंखनाद है? क्या ये सायरन भारत का ऐलान-ए-जंग है? क्या ये सायरन युद्ध में भारतीय नागरिकों की सुरक्षा का संकल्प है? इन सभी सवालों के साथ-साथ आज DNA में हम आपको, वॉर वाले सायरन का उद्देश्य उसका वर्तमान और रोचक इतिहास बताएंगे जिसे जानने के बाद आप खुद ही 'सायरन वॉर एक्सपर्ट' बन जाएंगे. जब कोई देश युद्ध लड़ता है तो उसे सिर्फ सैन्य ताकत की जरूरत नहीं होती. जन-शक्ति की भी जरूरत पड़ती है. जिस देश की जनता शारीरिक और मानसिक रूप से जितनी मजबूत होगी उस देश का पलड़ा जंग के मैदान में उतना ही भारी होगा.
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होगी मॉकड्रिल की रिहर्सल
इसी मकसद के साथ भारत अपने नागरिकों को युद्ध के लिए तैयार कर रहा है. इसी तैयारी को सिविल डिफेंस मॉकड्रिल का नाम दिया गया है और आपको इसे गंभीरता से लेने की जरूरत इसलिए है क्योंकि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर इस तरह की मॉकड्रिल होने जा रही है.
हो सकता है ब्लैक
मॉकड्रिल में कई बाते हैं पहली बड़ी बात थोड़ी देर के लिए पूरा शहर ब्लैक आउट हो सकता है यानी पूरे शहर की बिजली एक बार में काटी जा सकती है. तो ऐसी स्थिति में आपको पैनिक नहीं होना चाहिए. दूसरी बड़ी बात थोड़ी देर के लिए मोबाइल फोन के नेटवर्क जा सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो आपको धैर्य बनाये रखना चाहिए. नेटवर्क के आने का इंतजार करना चाहिए. तीसरी बड़ी बात तेज आवाज में सायरन बज सकता है. ऐसी सिचुएशन में अफरातफरी ना मचे, इसका ख्याल भी एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर आपको रखना चाहिए. चौथी बड़ी बात - पूरे मोहल्ले या सोसाइटी को खाली करवाया जा सकता है. अगर ऐसा होता है तो आपको सुरक्षा एजेंसियों के साथ कॉपरेट करना चाहिए. क्योंकि आपकी सुरक्षा के लिए ही ये सब किया जा रहा है.
काफी ज्यादा है महत्व
युद्ध के हालात में इस तरह की मॉकड्रिल का खास महत्व है जैसा कि हमने कहा, युद्ध सिर्फ सेना नहीं लड़ती, जनता भी लड़ती है. सेना बाहुबल से लड़ती है और जनता मनोबल से. लोग अगर मानसिक तौर पर मजबूत होंगे तो सेना बेफिक्र होकर दुश्मनों को धूल चटाएगी.
यही वजह है कि युद्ध की स्थिति में हर परिस्थिति से निपटने के लिए देश के नागरिकों को ये ट्रेनिंग दी जा रही है. अब हम आपको इस तरह की मॉकड्रिल के 5 KEY WORDS बताते हैं. पहला- AIR RAID SIREN, दूसरा- EVACUATION, तीसरा- CIVIL TRAINING, चौथा- CRASH BLACK OUT और पांचवां- CAMOUFLAGE
इंडिकेशन होते हैं
सबसे पहले आप ये समझिये की एयर रेड सायरन होता क्या है. जब दुश्मन देश हवाई हमला करता है तो लोगों को अलर्ट करने के लिए तरह तरह के सायरन बजाए जाते हैं. लेकिन ये आम सायरन नहीं होते हैं. इसमें कई तरह के इंडिकेशन होते हैं. सायरन कैसे बजता है. इसे कैसे पहचानें ये तो आपने देख लिया लेकिन सायरन कब बजाया जाएगा. आखिर इसकी जानकारी कैसे होगी कि दुश्मन का फाइटर जेट या दुश्मन की मिसाइल हमारे शहर की ओर आ रही है तो इसके लिए आपको पूरे इंटीग्रेटेड कमांड सिस्टम को समझना पड़ेगा.
अलर्ट किया जाता है
मान लीजिए कि कराची एयरबेस से कोई पाकिस्तानी फाइटर जेट टेकऑफ करता है तो IACCS यानी इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल इसे चेक करता है. इसके लिए ADC यानी एयर डिफेंस क्लियरेंस है जो भारतीय वायुसेना के विमानों की जानकारी रखता है और FIC यानी फ्लाइट इंटरफेयरेंस क्लीयरेंस जो यात्री विमानों की जानकारी रखता है. इन दोनों एजेंसियों से वेरिफाई किया जाता है. वेरिफिकेशन के बाद ये देखा जाता है कि ये फाइटर जेट किस दिशा में जा रहा है. रूट तय होने के बाद एयर डिफेंस सिस्टम को एक्टिवेट किया जाता है ताकि एयर डिफेंस मिसाइल के जरिए दुश्मन को हवा में ही तबाह कर दिया जाए. साथ ही उसके रास्ते में आने वाले हर शहर को अलर्ट कर दिया जाता है. डिस्ट्रिक्ट कलक्टर को इसकी जानकारी दी जाती है. जो लोगों को सायरन के जरिए इंटीमेट करते हैं औऱ ये सब यानी इतनी बड़ी प्रक्रिया एक से डेढ़ मिनट में ही पूरी हो जाती है.
लोग हो जाते हैं अलर्ट
सायरन से जनता अलर्ट तो हो जाती है लेकिन इसके बाद होता है EVACUATION यानी लोगों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने का काम दुश्मन के किसी भी हमले से बचने के लिए शहर शहर बने बंकरों और दूसरी सुरक्षित जगहों को भी एक्टिवेट कर दिया गया है. लोग वहां तक कैसे सुरक्षित पहुंच सकते हैं उन्हें इसकी ट्रेनिंग दी जाएगी. कल होने वाली मॉकड्रिल में अथॉरिटीज लोगों को साथ में लेकर चलने वाली है. सुरक्षा एजेंसियां लोगों को युद्ध की स्थिति में खुद को बचाने की ट्रेनिंग दे रही है. इसके लिए अलग अलग पब्लिक प्लेसेज और स्कूलों में लोगों को जागरुक किया जा रहा है.
आखिरी मॉकड्रिल
हिंदुस्तान ने आखिरी बार इस स्तर पर मॉकड्रिल 1971 में हुई थी. यानी 54 साल पहले. देश की बड़ी आबादी को अंदाजा तक नहीं है कि जंग के हालात क्या होते हैं. यही वजह है कि इतने बड़े स्केल पर मॉकड्रिल की जा रही है. इसी का एक अहम हिस्सा है क्रैश ब्लैकआउट. युद्ध की स्थिति में दुश्मन को गुमराह करने के लिए पूरे शहर की पावर ग्रिड ऑफ कर दी जाती है. इसी के साथ साथ हमारे सुरक्षा संयंत्रों को भी कैमोफ्लाज किया जाता है. यानी उन्हें छिपा दिया जाता है. ताकि ये दुश्मन के रडार में न आ पाएं क्योंकि दुश्मन पहला हमला यहीं करता है.वैसे तो देशभर में समय समय पर NDRF और फायर ब्रिगेड ड्रिल्स करती रहती हैं. लेकिन इतने बड़े स्तर पर इस मॉकड्रिल का उद्देश्य भी बड़ा है.
कितने सिस्टम हैं प्रभावी
मॉकड्रिल के जरिये ये चेक किया जा रहा है कि AIR RAID WARNING सिस्टम कितने प्रभावशाली हैं. ये चेक किया जाएगा की एयरफोर्स के साथ रेडियो सिग्नल और हॉटलाइन सिस्टम सही से काम कर रहे हैं या नहीं. सिविल डिफेंस सिस्टम के रिस्पॉन्स टाइम को भी चेक किया जा रहा है. लोगों को रेस्क्यू करने के प्लान को पुख्ता तैयार है या नहीं.. या इसे अपडेट करने की जरूरत है इसे भी रिव्यू किया जाएगा साथ ही साथ जगह जगह बने बंकरों के रेडीनेस को चेक किया जा रहा है. आजादी के बाद भारत ने अब तक पांच युद्ध लड़े हैं. पहला युद्ध वर्ष 1947-48 के दौरान पाकिस्तान से हुआ था, दूसरा युद्ध वर्ष 1962 में चीन से हुआ था. तीसरा युद्ध वर्ष 1965 में और चौथा युद्ध 1971 में हुआ था. दोनों युद्ध पाकिस्तान के साथ हुआ था. 1999 में फिर से करगिल में पाकिस्तान से साथ हमारा युद्ध हुआ. अगर इतिहास के पन्नों को आज खंगालें तो 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में भी सायरन को लेकर मॉक ड्रिल की गई थी. इसके अलावा युद्ध के दौरान सायरन का भी कई बार इस्तेमाल किया गया था. आज हम आपके लिए एक खास वीडियो लेकर आए हैं. ये वीडियो वर्ष 1971 के युद्ध से ठीक पहले मुंबई में हुई इसी तरह की मॉकड्रिल का है. पहले आप इस वीडियो को ध्यान से देखिए, उसके बाद आपको सायरन से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां देंगे.
इतनी बड़ी मॉकड्रिल नहीं हुई
भारत में अब तक हुए 5 युद्ध और उस दौरान मॉक ड्रील और सायरन के इस्तेमाल जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारी अब हम आपको बताने जा रहे हैं. आज देश की करीब 78 फीसदी आबादी का जन्म 1971 के बाद हुआ है और 1971 के बाद अब तक इतनी बड़ी मॉकड्रिल नहीं हुई है. 1971 में, मुंबई में उस समय इसका नाम बॉम्बे हुआ करता था. वहां लगातार 13 रातों तक लाइटें बंद रखी गई थी. क्योंकि मुंबई ना केवल देश की आर्थिक राजधानी है बल्कि भारतीय नौसेना का पश्चिम कमान सेंटर भी मुंबई है. मुंबई में अलग-अलग जगहों पर 311 सायरन लगाए गए थे. ये सायरन 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद लगाए गए थे और इनका इस्तेमाल 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान हवाई हमले की चेतावनी देने के लिए किया गया था.
किया गया था इस्तेमाल
हालांकि इनमें से कई अपग्रेड के अभाव में खराब हो चुके हैं. जुलाई 2006 में मुंबई बम ब्लास्ट में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए आखिरी बार इस सायरन का इस्तेमाल किया गया था. महाराष्ट्र में अभी करीब 492 सायरन लगे हैं जिसमें मुंबई में 311, पुणे में 85, नासिक में 33, ठाणे में 26 सहित कई और शहरों में सायरन लगे हैं. सायरन का एक अहम हिस्सा ब्लैक आउट होता है. जैसे ही सायरन का अलर्ट जारी होता है उसके बाद पूरे शहर में अंधेरा दिया जाता है. इससे जुड़ी एक दिलचस्प कहानी है जो आज आपको सुननी चाहिए. 1962, 1965 और 1971 के युद्ध के दौरान लोगों ने अपने घर की खिड़कियों को काले कपड़े या कागज से ढक दिया करते था या उसे काले पेंट से रंग देते थे. दरअसल युद्ध के समय लोग अपनी जान की रक्षा के लिए ऐसा करते थे. जब पूरे शहर में ब्लैक आउट हो जाता था तो ऐसे में अगर किसी ने घर में कैंडिल या लाइट का इस्तेमाल किया और अगर खिड़की से बाहर रोशनी दिखी तो दुश्मन देश का फाइटर जेट रोशनी देखकर हमला कर सकता था. इसीलिए घरों की खिड़कियों को ढककर रखा जाता था.
किया गया था अलर्ट
1965 और 1971 के वॉर के दौरान सायरन के जरिए लोगों को अलर्ट किया जाता था और लोग इसके बाद सुरक्षित जगहों पर छिप जाते थे । इसके लिए सार्वजनिक जगहों पर ट्रेंच बनाए थे, ट्रेंच एक गहरी खाई की तरह होता है. अभी आप एक ट्रेंच की तस्वीर देख रहे हैं जिसे पुरानी दिल्ली में 1971 के युद्ध से बनाया जा रहा था. जैसे ही सायरन बजता था, लोग इन ट्रेचों में छिप जाते थे. सामान्य तौर पर ये ट्रेंच तीन फुट के करीब गहरा होता था. अब आपको 1971 के युद्ध में लड़ने वाले वीर सैनिकों का तर्जुबा भी सुनना चाहए जिससे आप 1971 के युद्ध के दौरान हुए मॉक ड्रिल और सायरन अलर्ट जैसे एक्शन को और करीब समझ पाएंगे.
सायरन और मॉक ड्रिल से जुड़ी जानकारी
अब तक आप सायरन और मॉक ड्रिल से जुड़ी कई अहम जानकारी जान चुके हैं. अब एक बड़ा सवाल है कि सायरन की आवाज से कैसे पहचानें कि ये चेतावनी का अलर्ट है. आप अक्सर एबुंलेंस, पुलिस या फायर बिग्रेड की गाड़ी के साथ सायरन की आवाज सुनते हैं. लेकिन नॉर्मल सायरन और युद्ध सायरन में अंतर होता है. अब इसे समझते हैं. युद्ध में अलर्ट के तौर पर जो सायरन इस्तेमाल किया जाता है उसकी आवाज अलग और तेज होती है. आमतौर पर युद्ध वाले सायरन की आवाज 2-5 किलोमीटर की रेंज तक सुनाई देती है. इस आवाज में एक पैटर्न होता है. पहले यह धीरे-धीरे तेज होती है, फिर घटती है और यही क्रम लगातार चलता रहता है. युद्ध वाले सायरन की आवाज 120 लेकर 140 डेसिबल तक होती है. जबकि एम्बुलेंस पुलिस और फायर ट्रक में इस्तेमाल होने वाले सायरन की आवाज 110 से 120 डेसिबल होती है और इसमें उतार-चढ़ाव नहीं होता है बल्कि एक स्थिर स्वर में ये अलर्ट सुनाई देता है.
पहले कैसे दी जाती थी जानकारी
सायरन से जुड़ी जो जानकारी अब हम आपसे शेयर करने जा रहे हैं, उसे आप ध्यान से सुनिएगा. चाहें तो आप इसे किसी कागज पर भी नोट कर सकते हैं अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से भी आप इस सारी जानकारी को शेयर कर सकते हैं. दुनिया में जब तक सायरन का आविष्कार नहीं हुआ था तब तक युद्ध या खतरे की चेतावनी देने के लिए घंटियां, नगाड़े, तुरही और सींग से बने हॉर्न जैसे सामानों का इस्तेमाल किया जाता था भारतीय इतिहास पर बनी फिल्मों और सीरियल्स में आपने कई बार देखा होगा कि कैसे युद्ध से पहले ढोल, शंख या नगाड़े का इस्तेमाल किया जाता था. महाभारत में कुरुक्षेत्र के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण शंख बजाकर युद्ध का ऐलान करते थे.
कब किया जाता है इस्तेमाल
आधुनिक समय में युद्ध या किसी आक्रमण के खतरे को बताने के लिए पूरी दुनिया में सायरन का इस्तेमाल किया जाता है. स्कॉटलैंड के इंजीनियर और फिजिक्स के वैज्ञानिक जॉन रॉबिसन ने आज से 226 साल पहले 1799 में पहली बार आधुनिक सायरन को बनाया था. ये सायरन हवा की स्पीड से चलता था लेकिन 19वीं सदी के अंत में Steam यानी भाप से चलने वाले सायरन का आविष्कार हुआ. धीरे-धीरे मैनुअल और इलेक्ट्रिक सायरन का आविष्कार हुआ. 1819 में फ्रांसीसी इंजीनियर और भौतिक विज्ञानी बैरन चार्ल्स ने सायरन को और बेहतर किया था. आज दिखने वाला मैनुअल सायरन कब बना था और किसने बनाया इसको लेकर हमने काफी रिसर्च की लेकिन इसे लेकर कोई ठोस जानकारी नहीं मिली. लेकिन ये सच है कि जॉन रॉबिसन और बैरन चार्ल्स ने जो सायरन बनाया था वही धीरे-धीरे आगे मैनुअल सायरन में बदला. कल आप भी जगह-जगह ऐसा सायरन देखेंगे और इसकी आवाज सुनेंगे. मैनुअल सायरन की सबसे बड़ी खासियत होती है इसको चलाने के लिए बिजली की जरूरत नहीं है, इसे आप हाथ से आसानी से चला सकते हैं. इसे कही भी लेकर जा सकते हैं और इसे आसानी से कहीं रख सकते हैं कुल मिलाकर मैनुअल सायरन हर मौसम, हर परिस्थिति और हर जगह चलने में सक्षम हैं.