DNA ANALYSIS: Fake News पर 'पक्षपात' क्यों करते हैं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म?
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DNA ANALYSIS: Fake News पर 'पक्षपात' क्यों करते हैं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म?

फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर आरोप है कि वो अपने प्लेटफॉर्म्स पर कुछ खास कंटेंट्स को सेंसर करते हैं और उस पर फेक न्यूज़ (Fake News) का लेबल लगाते हैं.

DNA ANALYSIS: Fake News पर 'पक्षपात' क्यों करते हैं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म?

नई दिल्ली: दुनियाभर में लगभग 500 करोड़ लोग सोशल मीडिया (Social Media) का इस्तेमाल करते हैं और भारत में करीब 40 करोड़ लोग सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं. फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी सोशल मीडिया साइट्स पर आरोप है कि वो अपने प्लेटफॉर्म्स पर कुछ खास कंटेंट्स को सेंसर करते हैं और उस पर फेक न्यूज़ (Fake News) का लेबल लगाते हैं. इसकी वजह से करोड़ों लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रभावित होती है. हमारा ये विश्लेषण दुनिया के 500 करोड़ लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) से जुड़ा हुआ है.

28 ​अक्टूबर को अमेरिका (America) की संसदीय समिति ने लगभग साढ़े तीन घंटे तक एक वर्चुअल सुनवाई की और इस सुनवाई में फेसबुक, गूगल और ट्विटर के सीईओ शामिल हुए.

सबसे पहले आपको इस सुनवाई की बड़ी बातें बताते हैं-

- इन तीनों कंपनियों पर आरोप है कि वो अपने प्लेटफॉर्म्स पर अपनी मर्जी के मुताबिक, ऑनलाइन कंटेंट को सेंसर करती हैं और अमेरिका की संसदीय समिति कंटेंट को नियंत्रित करने के इसी तरीके को लेकर उन्हें जिम्मेदार ठहराना चाहती है.

- आरोप है कि अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में इन कंपनियों ने पक्षपातपूर्ण तरीके से कंटेंट को सेंसर करके एक पक्ष को फायदा पहुंचाने वाले फैसले लिए. अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी ने इन कंपनियों पर ये आरोप लगाए हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसी पार्टी से हैं.

- अमेरिका में इन तीनों कंपनियों को उनके प्लेटफॉर्म पर पोस्ट किए गए किसी ऑनलाइन कंटेंट या फिर किसी कंटेंट को हटाने के फैसले के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. अमेरिका में एक कानून सेक्शन 230 के तहत इन कंपनियों को ये छूट हासिल है. हालांकि विशेषज्ञों का दावा है कि अब इस कानून में बदलाव की जरूरत है.

- अमेरिका की इस संसदीय समिति ने इन तीनों कंपनियों के सीईओ से बहुत चुभने वाले सवाल पूछे हैं. अक्सर ट्विटर पर पक्षपात करने के आरोप लगते रहे हैं, इसलिए वहां के सांसदों के निशाने पर सबसे ज्यादा ट्विटर के सीईओ जैक डोर्सी रहे. 

ट्विटर का भेदभावपूर्ण रवैया
अब आपको ट्विटर के भेदभावपूर्ण रवैये के एक उदाहरण के बारे में बताते हैं. इसी महीने की 6 तारीख को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक ट्वीट किया. इसमें उन्होंने लिखा कि कोविड-19 का संक्रमण, फ्लू से कम खतरनाक है. हालांकि ट्रंप ने इसकी वजह ये बताई कि फ्लू की वैक्सीन मौजूद है फिर भी हर वर्ष 1 लाख से अधिक लोग इसका शिकार होते हैं.

ट्विटर ने ट्रंप के इस ट्वीट पर एक्शन लेते हुए इसे सेंसर कर दिया और इस पर अफवाह फैलाने और गलत जानकारी फैलाने का लेबल भी लगाया.

हालांकि इसी वर्ष 12 मार्च को चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने एक ट्वीट किया था. इसमें उन्होंने अमेरिका की सेना पर चीन के वुहान शहर में कोरोना वायरस का इंफेक्शन फैलाने का आरोप लगाया. वुहान से ही कोरोना वायरस के संक्रमण की शुरुआत हुई थी. लेकिन ट्विटर ने इस ट्वीट को सेंसर नहीं किया, बल्कि इस पर सिर्फ एक लेबल लगाया गया. यानी इस ट्वीट में सीधे अमेरिका पर गलत आरोप लगाए गए और इसे सेंसर नहीं किया गया.

अब आप सोचिए कि फेसबुक, गूगल और ट्विटर इन तीनों कंपनियों को चीन ने बैन कर दिया है. यानी ये कंपनियां इस समय चीन में उपलब्ध नहीं हैं. हालांकि इसके बाद भी अमेरिका की ये कंपनियां अपने ही देश के खिलाफ चीन का पक्ष ले रही हैं. ये बड़ी कंपनियां अमेरिका और दुनिया के बाकी देशों में अपना बिजनेस करती हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर ये चीन का साथ दे रही हैं.

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