नई दिल्ली: वर्ष 1850 में भारत में चेचक (Chicken Pox) की बीमारी से लोगों को बचाने के लिए वैक्सीन (Vaccine) लगाई गई थी. ये वैक्सीन तब ग्रेट ब्रिटेन से भारत आई थी और ये टीकाकरण अभियान (Vaccination Drive) अंग्रेज़ी सरकार द्वारा चलाया गया था.


टीबी की वैक्सीन


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आज़ादी के बाद वर्ष 1950 में भारत में बड़े पैमाने पर लोगों को टीबी की वैक्सीन (Vaccine) लगाई गई. ये वही दौर था जब भारत में मलेरिया की बीमारी तेज़ी से फैल रही थी और इसे रोकने के लिए गांव-गांव दवा का छिड़काव किया गया था.


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मलेरिया के खिलाफ अभियान


तब भारत में स्वास्थ्य सेवाएं काफ़ी कमज़ोर थीं और देश को आज़ादी मिले सिर्फ़ 4 वर्ष ही हुए थे, लेकिन इसके बावजूद मलेरिया के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर जागरुकता अभियान चलाया गया और तब स्वास्थ्यकर्मी गांव-गांव जाकर लोगों को जागरुक करते थे.


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स्पैनिश फ्लू की लहर


भारत में जब-जब कोई बीमारी आई है तो देश ने उसकी कई लहर का सामना किया है. आज जो कोरोना वायरस के दौरान हो रहा है, वो 100 वर्षों पहले भी हुआ था. वर्ष 1918 में तब के बम्बई शहर में Spanish Flu ने तेज़ी से लोगों को अपनी चपेट में लिया था. इसकी पहली लहर इतनी ख़तरनाक नहीं थी लेकिन दूसरी और तीसरी लहर में इसने ख़तरनाक रूप ले लिया था.


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उस दौरान इसे Spanish Flu ना कह कर Bombay Fever भी कहा गया और इस बीमारी से तब दो वर्षों में लगभग 18 लाख लोगों की जानें गईं.


कुछ ऐसा ही चेचक के दौरान हुआ. चेचक की बीमारी की कई लहर देश में आई और इसी की वजह से अंग्रेज़ी सरकार को बड़े पैमाने पर भारत में टीकाकरण अभियान चलाना पड़ा. और टीबी की बीमारी के दौरान भी ऐसा ही हुआ. यानी इतिहास से ये हम सीख सकते हैं कि भारत में किसी भी बीमारी की दूसरी और तीसरी लहर ज़्यादा ख़तरनाक साबित हुई हैं. और इसने लाखों लोगों की जानें ली है.