DNA ANALYSIS: दुनिया के दूसरे सबसे लोकप्रिय गीत को धर्म का प्रतीक बताकर क्यों की जाती है राजनीति?
Vande Mataram Song: वन्दे मातरम् गीत पर आपत्ति जताई जाती है, लेकिन दुनिया के दूसरे सबसे लोकप्रिय गीत को धर्म का प्रतीक बताने वाले ये लोग कौन हैं. आज का हमारा DNA बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय और उनके गीत वन्दे मातरम् को समर्पित है.
नई दिल्ली: कल 8 अप्रैल को राष्ट्रीय गीत वन्दे मातरम् के रचयिता, महान उपन्यासकार, कवि और पत्रकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय का निधन हुआ था. वन्देमातरम् गीत हमारे देश की धड़कनों में बसा है, आजादी की लड़ाई में ये गीत घर-घर गाया जाता था.
लाखों युवाओं और क्रांतिकारियों का तराना
उस समय ये एक गीत देश के लाखों युवाओं और क्रांतिकारियों का तराना बन गया था. इस गीत ने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोया. इस गीत का मतलब है- माता की वंदना करना. आज का हमारा DNA बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय और उनके गीत वन्दे मातरम् को समर्पित है.
हममें से बहुत से लोग जानते हैं कि अंग्रेजों के खिलाफ पहला स्वतंत्रता संग्राम सन 1857 में शुरू हुआ था, लेकिन बहुत कम लोग जानते होंगे कि इससे लगभग 94 साल पहले सन 1763 में अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ बंगाल में संन्यासियों ने विद्रोह शुरू कर दिया था. यह विद्रोह 35 सालों तक चला, जो आगे चल कर पूरे देश में प्रेरणा का स्रोत बना.
इधर, 1870-80 के दशक में अंग्रेजों ने सरकारी समारोहों में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ गीत गाना अनिवार्य कर दिया. इस आदेश से बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय को बहुत ठेस पहुंची.
उन्होंने 1876 में ‘गॉड! सेव द क्वीन’ के विकल्प के तौर पर ‘वन्दे मातरम्’ की रचना की. आपको जानकार आर्श्चय होगा कि ये गीत उन्होंने सियालदाह से नैहाटी जाते वक्त ट्रेन में ही लिखा था, जिसे संन्यासी विद्रोह की पृष्ठभूमि पर आनंद मठ उपन्यास में कविता के तौर पर लिखा गया था. ये बांग्ला और संस्कृत भाषा में लिखा गया था. उपन्यास में ये गीत एक विद्रोही संन्यासी भवानन्द द्वारा गाया गया है.
आजादी के गीत से आपत्ति कैसी?
इस गीत पर आपत्ति जताई जाती है, लेकिन दुनिया के दूसरे सबसे लोकप्रिय गीत को धर्म का प्रतीक बताने वाले ये लोग कौन हैं?
ये वो लोग हैं, जिन्हें आपने चुन कर लोक सभा में भेजा है. ये इसलिए चुन कर नहीं गए हैं कि आपकी सड़क, बिजली, पानी की समस्या को दूर करें बल्कि ये शहीदों पर राजनीति करते हैं, धर्म पर राजनीति करते हैं और देश पर राजनीति करते हैं.
संसद में जाने वाले ये नेता भारत की एकता और अखंडता की शपथ लेते हैं और दूसरे ही पल तोड़ देते हैं. ये जाकर संविधान की शपथ लेते हैं और उसकी जय जयकार करते हैं और बाद में इसके टुकड़े-टुकड़े कर देते हैं. ये यही लोग हैं जो देश को भी टुकड़े-टुकड़े करने की भाषा बोलते हैं.
देशभक्ति का धर्म सबसे बड़ा
ये लोग सांसद तो बन गए हैं लेकिन जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र से उपर नहीं उठ पाए हैं. ये ऐसा इसलिए करते हैं कि इससे इनकी टीआरपी बढ़ती है. ये अपनी कमियों को छिपाने के लिए सबसे अलग होने का दिखावा करते हैं. जब ये विरोध में बोलते हैं तो टीवी पर चर्चाएं होती हैं अखबारों में इनके फोटो छपते हैं. फ्री की पब्लिसिटी पाने के लिए इनको मेहनत भी नहीं करनी पड़ती है.
हमें लगता है कि हमें अपने देश और उसके प्रतीकों से प्यार करना चाहिए और इसके लिए आपको कोई धर्म नहीं रोकता है क्योंकि, सभी धर्मों से बड़ा देशभक्ति का धर्म है.