DNA ANALYSIS: क्या मजदूरों की पैदल यात्रा पर खेला जा रहा है राजनीतिक खेल?
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DNA ANALYSIS: क्या मजदूरों की पैदल यात्रा पर खेला जा रहा है राजनीतिक खेल?

 रेल मंत्रालय का दावा है कि ऐसे लोगों को ले जाने के लिए जो श्रमिक स्पेशल ट्रेन चल रही हैं, उनको पश्चिम बंगाल में आने की पर्याप्त अनुमति नहीं दी जा रही है. 

DNA ANALYSIS: क्या मजदूरों की पैदल यात्रा पर खेला जा रहा है राजनीतिक खेल?

नई दिल्ली: हम लगातार ऐसी तस्वीरें देख रहे हैं, जिसमें शहरों से प्रवासी मजदूर जैसे-तैसे अपने गांव जा रहे हैं. कोई पैदल चल रहा है, कोई साइकिल से जा रहा है. आपको सड़कों के किनारे, रेलवे ट्रैक के किनारे पैदल चलते हुए ऐसे हजारों लोग दिख जाएंगे, जो सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा इसी तरह से कर रहे हैं. लेकिन ये बात किसी को समझ में नहीं आ रही है कि जब मजदूरों के लिए स्पेशल ट्रेनें चल रही हैं, उनके लिए हर दिन कोई ना कोई बड़े ऐलान हो रहे हैं, तो फिर ऐसी हालत क्यों है, कि शहरों से अपने गांव जाने के लिए मजदूरों को पैदल चलना पड़ रहा है. आज हम आपको इसके बारे में समझाएंगे कि ये क्यों हो रहा है और इसके पीछे राजनीति का क्या खेल है? इसे सबसे पहले पश्चिम बंगाल के उदाहरण से समझिए.

पश्चिम बंगाल के करीब 50 लाख लोग देश के दूसरे राज्यों में नौकरी या मजदूरी करते हैं. जाहिर है कि इस वक्त इनमें से बड़ी संख्या में लोग फिलहाल घर वापस लौटना चाहते हैं और किसी तरह अपने परिवार से मिलना चाहते हैं. लेकिन रेल मंत्रालय का दावा है कि ऐसे लोगों को ले जाने के लिए जो श्रमिक स्पेशल ट्रेन चल रही हैं, उनको पश्चिम बंगाल में आने की पर्याप्त अनुमति नहीं दी जा रही है. 

पश्चिम बंगाल सरकार ने अब तक सिर्फ 8 स्पेशल ट्रेनों के आने की अनुमति दी है. इसी पर विवाद होने के बाद उसने अगले 30 दिन में 105 स्पेशल ट्रेनों के लिए परमिशन देने की बात कही है. लेकिन रेलवे का दावा है कि 105 ट्रेन तो एक दिन में पश्चिम बंगाल के लिए चलाई जा सकती है, इसलिए राज्य सरकार को अपना दिल बड़ा करना चाहिए.

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क्योंकि अगर 30 दिन में 105 ट्रेन ही चल पाएंगी तो फिर इतने वक्त में सिर्फ डेढ़ से दो लाख मजदूर ही अपने घर पहुंच पाएंगे. अब सोचिए जिस राज्य के 50 लाख लोग बाहर नौकरी या मजदूरी कर रहे हैं, उसमें से अगर एक महीने में सिर्फ डेढ से दो लाख लोग ही ट्रेन से अपने घर जा सकेंगे, तो बाकी के लोग क्या करेंगे. अब या तो ये लोग घर जाने के लिए कोई दूसरा साधन देखेंगे या फिर पैदल ही अपने घर निकल जाएंगे. यही इस वक्त देश में हो रहा है. 

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने पश्चिम बंगाल, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्यों का नाम लेकर कहा है कि ये राज्य मजदूरों के मामले में सहयोग नहीं कर रहे हैं. प्रवासी मजदूरों की संख्या को देखते हुए जितनी ट्रेनें इस वक्त चलनी चाहिए और जितनी ट्रेन चलाने की रेलवे की क्षमता है, उसके मुताबिक उतनी ट्रेनों को ये राज्य अपने यहां आने की परमिशन नहीं दे रहे हैं. रेल मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक अब तक जिन राज्यों ने स्पेशल ट्रेनों की अपने राज्यों में एंट्री की परमिशन दी है, उसमें सबसे आगे उत्तर प्रदेश और बिहार हैं. उत्तर प्रदेश सरकार ने 487 और बिहार सरकार ने 254 स्पेशल ट्रेनों को अपने यहां आने की अनुमति दी है. मध्य प्रदेश ने 79 स्पेशल ट्रेनों की परमिशन दी है. लेकिन झारखंड ने सिर्फ 48, राजस्थान में सिर्फ 22, छत्तीसगढ़ ने सिर्फ 10, पश्चिम बंगाल ने सिर्फ 8 स्पेशल ट्रेनों को आने की मंजूरी दी है. 

ऐसा लग रहा है कि ये राज्य अपने ही लोगों को वापस लाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि पश्चिम बंगाल हो या राजस्थान हो, छत्तीसगढ़ हो या झारखंड हो, इन राज्यों में विपक्ष का राज है, जैसे पश्चिम बंगाल में टीएमसी की सरकार है, राजस्थान-छत्तीसगढ़-झारखंड में कांग्रेस और उनके सहयोगियों की सरकार है, इसीलिए कहीं ना कहीं प्रवासी मजदूरों के मामले में राजनीति भी दिख रही है. 

जब रेलवे की तरफ ये कहा जा रहा है कि उन्होंने 1200 ट्रेन सिर्फ प्रवासी मजदूरों को घर पहुंचाने के लिए रिजर्व की हैं और वो रोज ढाई सौ से तीन सौ ट्रेन चला सकते हैं, तब क्यों ट्रेनों को आने की परमिशन देने में राज्य आनाकानी कर रहे हैं? अब या तो, ये राज्य वापस आने वाले प्रवासी मजदूरों को बोझ मानते हैं या अपने राज्यों में इन्हें कोरोना संक्रमण के और फैलने का डर है या इसमें राजनीति हो रही है या फिर ये सभी बातें हैं. 

रेल मंत्रालय के आंकड़े के मुताबिक प्रवासी मजदूरों के लिए वो अब तक एक हजार से ज्यादा स्पेशल ट्रेन चला चुके हैं और पिछले 15 दिन में करीब 13 लाख लोगों को उनके राज्यों में पहुंचा भी चुके हैं, तो फिर क्यों इस तरह की स्थिति है कि हमें हर तरफ पैदल जाते हुए मजदूर दिख रहे हैं, इसका सीधा मतलब यही है कि राज्य सरकारें केंद्र का सहयोग करने में नाकाम रही हैं.

ये भी बहुत अजीब बात है कि जिन राज्यों से ये मजदूर पैदल चल कर आ रहे हैं, उन राज्यों में इन्हें जाने से रोका नहीं जा रहा है. इसी से राज्य सरकारों की सीधी नाकामी दिख जाती है. प्रवासी मजदूरों के मुद्दे पर पहले दिन से यही हो रहा है. आपको ये याद होगा कि लॉकडाउन के ऐलान पर पीएम ने कहा था कि जो जहां पर है, वो वहीं पर रहे, लेकिन अगले ही दिन दिल्ली से हजारों लोग अपने गांव जाने के लिए निकल पड़े थे. इन लोगों को रोकने की किसी ने कोशिश नहीं की थी. 

यही अब पिछले कुछ हफ्ते से हो रहा है और हर तरफ से पलायन की तस्वीरें आ रही हैं. इसका सीधा मतलब तो यही है कि राज्य सरकारें इन लोगों को रोकने की कोशिश नहीं कर रही हैं. प्रवासी मजदूर जहां हैं वहीं पर रहें, इसके लिए उन्हें भरोसा दिलाने की जरूरत थी कि उन्हें किसी तरह का कष्ट नहीं होगा, रहने-खाने की दिक्कत नहीं होगी, लेकिन ऐसा लगता है कि राज्य सरकारें अपने इंतजामों में फेल हो गईं. ये भी हो सकता है कि ये राज्य खुद चाहते हों कि प्रवासी मजदूर उनके यहां से चले जाएं. 

 

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