भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो ये कामना कर रहे हैं कि भारत में भी अमेरिका जैसे दंगे हो जाएं. हमारे यहां ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है, जो चीन के साथ टकराव में भारत को हारते हुए देखना चाहते हैं. यह वो लोग हैं जो अपने ही देश से दुश्मनी निकालने का कोई मौका नहीं छोड़ते.
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नई दिल्ली : भारत में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो ये कामना कर रहे हैं कि भारत में भी अमेरिका जैसे दंगे हो जाएं. हमारे यहां ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है, जो चीन के साथ टकराव में भारत को हारते हुए देखना चाहते हैं. यह वो लोग हैं जो अपने ही देश से दुश्मनी निकालने का कोई मौका नहीं छोड़ते. आप चीन के साथ भारत के टकराव का ही उदाहरण ले लीजिए. भारत के बड़े-बड़े बुद्धिजीवी और डिज़ायनर पत्रकार इस समय अपने ही देश की सरकार को कोस रहे हैं, सरकार पर सवाल उठा रहे हैं, लेकिन इनमें से किसी ने भी चीन के खिलाफ एक शब्द तक नहीं कहा. इतना ही नहीं, यह लोग भारत और चीन के टकराव के बीच चीन का एजेंडा चला रहे हैं और चीन की बातों और तर्कों को न सिर्फ़ सही मान रहे हैं बल्कि प्रचारित भी कर रहे हैं.
आपने पिछले कुछ दिनों में सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो और कुछ तस्वीरें देखी होंगी. इन तस्वीरों के बारे में यह प्रचारित किया गया कि यह लद्दाख में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प की तस्वीरें हैं. शनिवार को एक और वीडियो वायरल हुआ था, जिसके बारे में दावा किया गया कि लद्दाख में चीन के सैनिकों को भारत के सैनिक उन्हीं की भाषा में जवाब दे रहे हैं. लेकिन इस वीडियो के तुरंत बाद कुछ और तस्वीरें वायरल हुईं, जिनके जरिए यह साबित करने की कोशिश हुई कि कुछ भारतीय सैनिकों को चीन के सैनिकों ने बंधक बना लिया है. इसमें से एक तस्वीर को सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया गया और इसको लेकर भारत सरकार को कोसा गया. यह तस्वीरें चीन के कुछ ट्विटर हैंडल से ट्वीट की गई थीं, जिन्हें हमारे यहां के कई विपक्षी नेताओं ने भी शेयर किया.
हालांकि भारतीय सेना ने आधिकारिक तौर पर इन वीडियो और तस्वीरों को ख़ारिज कर दिया है. यानी कुछ लोग झूठी तस्वीरों के जरिए दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाना चाहते हैं . जैसा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ज़ी न्यूज के साथ बातचीत में कहा कि इस मुद्दे को शांति से हल करने की कोशिश की जा रही है. ऐसे में इस तरह की तस्वीरें माहौल को बिगाड़ सकती है. हालांकि आप इसे चीन का मनोवैज्ञानिक युद्ध भी कह सकते हैं जिसके जरिए चीन भारत पर दबाव बनाना चाहता है और इसमें चीन की मदद भारत का गिद्ध गैंग कर रहा है. यह लोग चीन को इतना पसंद करते हैं कि इन्हें चीन के खिलाफ भारत की सख्ती नज़र ही नहीं आती, जबकि भारत पूरी मजबूती के साथ यह संदेश दे चुका है कि भारत ना तो चीन से लगी सीमा पर अपने इलाकों में इन्फ्रास्ट्रक्चर का निर्माण बंद करेगा और ना ही इस इलाके से पीछे हटेगा.
यही वजह है कि पहले युद्ध की तैयारियों की बात करने वाले चीन ने पिछले कई दिनों से शांति संदेश देने शुरू कर दिए हैं. चीन का विदेश मंत्रालय बार-बार कह रहा है भारत और चीन की सीमा पर स्थिति काबू में है. दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और सैन्य संवाद चल रहा है और बातचीत के ज़रिए दोनों देश किसी भी समस्या को सुलझा सकते हैं. अब इसे आप चीन की बहानेबाज़ी कह लीजिए या फिर उसकी मजबूरी मान लीजिए, लेकिन यह बात तो साफ है कि चीन के लिए इतना ये आसान नहीं है कि वो आक्रमक रवैया अपनाकर भारत को झुका ले, क्योंकि यह 1962 का नहीं बल्कि ट्वेंटी-ट्वेंटी का भारत है. तानाशाही की तर्ज पर चलने वाले चीन की इस रणनीति के बारे में दुनिया जानती है. इसलिए अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश चीन के ख़िलाफ़ और भारत के साथ खड़े हो गए हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा है कि चीन उग्र रवैया दिखाकर दूसरे देशों के लिए ख़तरा बन रहा है. भारत की सीमा पर चीन ने अपने सैनिकों की संख्या बढ़ाई है. अमेरिकी संसद की विदेश मंत्रालय की समिति ने कहा है कि भारत की सीमा पर चीन के रवैये से उसे बहुत चिंता है. इससे चीन ने एक बार फिर दिखा दिया है कि वो बातचीत से मामले सुलझाने में नहीं बल्कि धौंस दिखाने में भरोसा रखता है. भारत में ऑस्ट्रेलिया के उच्चायुक्त ने कहा है कि कुछ देश अपनी सीमा से बाहर के इलाकों में जबरन दखल देकर बिना वजह तनाव बढ़ाते हैं, जो किसी के लिए भी स्वीकार्य नहीं है.
वैसे चीन की आदत यही है कि किसी झगड़े में अगर दूसरा देश उसे कोई रियायत देता है, तो वो इसे दोस्ती नहीं, कमजोरी मान लेता है. इसलिए भारत ने अब तक बिल्कुल सही किया है, कि चीन को किसी तरह की कोई रियायत नहीं दी. लेकिन हमें उन लोगों को भी कोई रियायत नहीं देनी चाहिए जो लोग असल में यह चाहते हैं कि चीन के सामने भारत झुक जाए. इन्हें आप चीन के वह सैनिक कह सकते हैं, जिन्होंने कोई वर्दी नहीं पहनी है, और जो बॉर्डर पर भी नहीं है, लेकिन भारतीय सीमा के अंदर ही चीन के लिए काम कर रहे हैं. अपने ही देश से दुश्मनी और चीन से दोस्ती निभा रहे हैं, वह इसलिए क्योंकि चीन ने अपना एजेंडा चलाने के लिए इन पर काफी निवेश किया है.
बहुत सारे ऐसे पत्रकार हैं, जो चीन द्वारा प्रायोजित दौरों पर जाते हैं. ऐसे थिंक टैंक हैं, जिन्हें चीन से फंडिंग होती है. यह पूरी दुनिया को पता है कि किस तरह से चीन की कम्युनिस्ट सरकार दुनिया भर की मीडिया को अपने पक्ष में करने के लिए हर साल अरबों डॉलर खर्च करती है. इसके ज़रिए बड़े-बड़े अख़बारों में चीन के पक्ष में लेख लिखवाए जाते हैं और पत्रकारों को प्रायोजित दौरे करवाए जाते हैं.
2019 में रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स (Reporters Without Borders) संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें इस बात का ज़िक्र किया गया था कि चीन की सरकार दुनिया भर में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए मीडिया पर सालाना दस हज़ार करोड़ रुपये से भी ज़्यादा खर्च करती है. इसी रिपोर्ट में बताया गया था कि दुनिया भर के बड़े बड़े अख़बारों में चीन के विज्ञापन छपते हैं. ट्रेनिंग और सेमिनार के नाम पर दुनिया भर के पत्रकारों को चीन अपने यहां प्रायोजित दौरों के ज़रिए बुलवाता है.
चीन की ये रणनीति Sun Tzu (सुन ज़ू) के विचारों से बनी है, जो प्राचीन चीन के सैन्य रणनीतिकार और दार्शनिक थे. उनके मुताबिक दुश्मन पर हमला करने के बजाय दुश्मन के दिमाग पर हमला करना ज़्यादा बेहतर है. दुनिया भर के मीडिया हाउस और पत्रकारों को अपने वश में करके चीन की कम्युनिस्ट सरकार यही काम कर रही है. बुद्धिजीवियों, नेताओं और पत्रकारों का एक गैंग चीन पर निर्भर है. इसीलिए इनको आत्मनिर्भर भारत की बात पसंद नहीं आती. जो लोग आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, चीन पर निर्भर बुद्धिजीवी, नेता और पत्रकार उनके विचारों का मज़ाक बनाते हैं. यह वही लोग हैं, जो सोनम वांगचुक के भी पीछे पड़ गए हैं.
सोनम वांगचुक के बारे में आपने पिछले कई दिनों से बहुत कुछ देखा-सुना और पढ़ा होगा. वह इंजीनियर हैं, आविष्कारक हैं. मशहूर फिल्म थ्री ईडियट्स (Three Idiots) उन्हीं के जीवन से प्रेरणा लेकर बनी थी. सोनम वांगचुक लद्दाख के ही रहने वाले हैं और उन्होंने सीमा पर ताज़ा विवाद के बाद मेड इन चाइना (Made in China) सामान के बहिष्कार की मुहिम को नए सिरे से शुरु किया है. लेकिन जैसे ही सोनम वांगचुक ने ऐसा किया, भारत में कुछ एक खास विचारधारा वाले लोग उनके दुश्मन बन गए. इनमें कई नेता और पत्रकार शामिल हैं. सोनम वांगचुक ने कहा था कि चीन को जवाब देने के लिए सभी लोग हफ्ते भर में चीनी एप अनइंस्टॉल करें . इस अपील के बाद उन्हें बहुत लोगों का समर्थन मिला और लोग TikTok समेत तमाम चीना एप्स को अनइंस्टॉल करने लगे. लेकिन उमर अब्दुल्ला जैसे नेताओं को ये बाद पसंद नहीं आई. उमर अब्दुल्ला ने सोनम वांगचुक के विचार और मुहिम का मज़ाक बनाया और कहा कि अब तो कुछ करना ही नहीं, बस TikTok डिलीट करने से चीन लद्दाख से भाग जाएगा. कई डिज़ायनर पत्रकारों और संपादकों ने भी ऐसा ही किया. ये लोग सोनम वांगचुक को उनके वीडियो मैसेज पर घेरने में जुट गए और कहने लगे कि TikTok तो अनइंस्टॉल कर देंगे लेकिन दूसरे प्रॉडक्ट्स का क्या होगा, जो चीन से आ रहे हैं.
चीन ने जिस तरह से दुनिया भर के बाज़ार पर कब्ज़ा किया है, उसकी वजह से चीन के प्रॉडक्ट्स का पूरी तरह से अचानक बहिष्कार नहीं किया जा सकता, लेकिन अगर वांगचुक जैसे व्यक्ति, चीन को जवाब देने के लिए भारत की आत्मनिर्भरता की बात करते हैं और लोगों को प्रेरित कर रहे हैं तो फिर साथ देने के बजाय उनका मज़ाक उड़ाने वाली सोच को आप क्या कहेंगे? देश के दुश्मनों के खिलाफ बोलने में इन लोगों को बुरा क्यों लगता है? असल में देखा जाए तो यह लोग नहीं चाहते कि चीन पर हमारी निर्भरता कम हो. यह लोग नहीं चाहते कि सोनम वांगचुक जैसे लोग अपनी मुहिम में सफल हों.
यह बात पूरी तरह सत्य है कि किसी भी जंग में देश के हर नागरिक का दर्जा देश के सैनिक के बराबर होता है. बॉर्डर पर सेना चीन को उसी की भाषा में जवाब देना चाहती है, लेकिन एक नागरिक के तौर पर आप चीन के सामानों का बहिष्कार करके उसे आर्थिक झटका दे सकते हैं. कुछ लोग ऐसी कोशिशों का मज़ाक उड़ाते हैं. लेकिन असल में इन बातों का बड़ा असर होता है। देश में 7 करोड़ व्यापारियों के महासंघ कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स यानी CAIT ने कहा है कि वो अपने व्यापारियों को ये बात समझा रहे हैं कि वो चीन में बने सामानों के बजाय भारत में बनी चीज़ों को बेचे.
आपको यह जानकर भी हैरानी होगी, कि रिमूव चाइना एप्स (Remove China Apps) नाम का एक एप भारत में बहुत लोकप्रिय हो रहा है. यह एप आपके मोबाइल फोन में सभी चाइनीज एप्स की पहचान करके उन्हें डिलीट कर देता है. गूगल प्ले स्टोर पर दो हफ्ते में ही यह एप 10 लाख से भी ज्यादा डाउनलोड हो चुका है. इसी से आप चीन के खिलाफ देश के लोगों की नाराज़गी को समझ सकते हैं. मोबाइल एप मार्केट की ही बात करें, तो भारत में चीन के एप्स का दबदबा पिछले कुछ वर्षों में काफी बढ़ गया है. मोबाइल एप डाउनलोड के मामले में 2017 में टॉप 100 एप्स में सिर्फ 18 चाइनीज एप थे, लेकिन 2018 में टॉप 100 एप्स में चाइनीज एप बढ़कर 44 हो गए। TikTok, Vigo video, Shareit, UC browser जैसे चाइनीज एप्स का भारत में बड़ा यूज़र बेस है. जैसे TikTok के भारत में 20 करोड़ से भी ज्यादा यूजर्स हैं. इसी तरह हार्डवेयर मार्केट में भी चीन का दबदबा बना हुआ है. चीन के Xiaomi, Vivo और Oppo जैसे Brand भारत के घर घर में पहुंच गए हैं. अगर चीन के इन ब्रैंड्स, इन एप्स और इनकी कंपनियों को भारत से आर्थिक चोट लगेगी तो फिर चीन को समझ में आएगा कि भारत से उलझने का मतलब क्या होता है?
भारत के लोग चीन में बने इन मोबाइल एप्लीकेशन को अनइंस्टॉल करके एक हद तक चीन को जवाब तो दे सकते हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि भारत की उन कंपनियों का क्या होगा जिन में चीन का बड़े पैमाने पर पैसा लगा है. क्या ऐसी कंपनिया भी चीन से आने वाले निवेश का लालच छोड़ पाएंगी.
चीन सीमा पर भारत को अपनी ताकत दिखा रहा है तो अर्थव्यवस्था के दम पर भी चीन भारत को चोट पहुंचाना चाहता है, लेकिन यहां आपको एक बात और समझनी चाहिए और वह यह है कि चीन की सेना भले ही आकार में बड़ी हो और आधुनिक हथियारों से सुसज्जित हो लेकिन सच ये है कि चीन ने आखिरी बार कोई युद्ध आज से 41 साल पहले 1979 में लड़ा था और चीन यह युद्ध हार गया था. तब चीन का युद्ध वियतनाम से हुआ था, जबकि इस दौरान भारत की सेना लगातार युद्ध लड़ती भी रही है और युद्ध की तैयारियां भी करती रही है. भारत की सेना को एक साथ कई मोर्चों पर लड़ने की आदत है और भारतीय सैनिक इसमें माहिर भी हैं. भारत ने आखिरी बार 1999 में करगिल युद्ध लड़ा था और भारत की सेना आतंकवाद और नक्सलवाद के खिलाफ भी पूरे साल लड़ती रहती है. इसके अलावा पाकिस्तान और चीन की सीमा पर भी भारत की सेना हमेशा मुस्तैद रहती है और यही वजह है कि युद्ध की स्थिति में भारत की सेना खुद को जल्दी तैयार कर सकती है..जबकि चीन की सेना ने पिछले 41 वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय सीमा या अपने घर में किसी बडी चुनौती का सामना नहीं किया है. चीन की सेना सिर्फ अपने ही देश के लोगों का दमन करने का काम लगातार करती है, लेकिन अपने लोगों पर काबू पाने और युद्ध में दुश्मन को हराने में काफी फर्क है. इसके अलावा भारतीय सेना भारत के लोगों के लिए आदर्श है. यानी भारत के लोग हर परिस्थिति में अपनी सेना का साथ देते हैं और राष्ट्रवाद की भारत की सेना और भारत के लोगों को आपस में जोड़ता है, जबकि चीन की सेना को अपने लोगों को उतना समर्थन हासिल नहीं है जितना भारत की सेना को है. यानी युद्ध की स्थिति में चीन के पास हथियारों और सैनिकों की तादाद भले ही ज्यादा हो..लेकिन राष्ट्रवाद का बल नहीं होगा और यही चीन की सबसे बडी कमज़ोरी है.